गुरुवार, 4 अगस्त 2022

'हिन्दू': व्युत्पत्ति के अनुसार -

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जब हम स्कूल में  पढ़ते थे तो बताया गया था कि जिस प्रकार व्यक्ति जीवन में अपना नामकरण स्वयं नहीं करता ,उसका नाम दूसरे लोगों द्वारा उसे दे दिया जाता है उसी प्रकार यह नाम हिन्दूऔर हिन्दुस्तान हमें दूसरों के द्वारा दिया गया है .

- कि  'हिन्दु' शब्द सिन्धु का एक रूप है  -क्योंकि जो लोग उत्तर-पश्चिम से इधर आये थे  उन्हें भारत में आने के लिये  सिन्धु नदी पार करनी पड़ी . इस पार के प्रदेश को उन लोगों ने सिन्धु के नाम को आधार बना कर नाम दे दिया .लेकिन उनके उच्चारण  भिन्न प्रकार के थे  जहाँ 'स' ध्वनि 'ह' में परिणत हो जाती थी (वे सप्ताह को हप़्ता ,मास को माह उच्चरित करते थे )उन्होने 'सिन्धु' को 'हिन्दु ' कहना शुरू कर  दिया था, परिणाम स्वरूप सिन्धु  नदी के इस पार के प्रदेश को हिन्दुस्तान नाम दे दिया.

 परंतु वास्तविकता यह है कि 'हिन्दू' शब्द का प्रयोग , बहुत प्राचीन काल से होता रहा है. भारत के प्राचीन ग्रंथ " वेदों " और " पुराणों " में . हिन्दू ' शब्द का उल्लेख मिलता है. 

अतः इसका संबंध प्राचीन, संस्कृत  से है, जहाँ यह कथन मिलता है -

" हीनं दुष्यति इति हिन्दूः ।” 

अर्थात : जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं ।

यदि संस्कृत के इस शब्द का सन्धि विच्छेदन करें तो पायेंगे ....

 हीन + दू = हीन भावना + से दूर

अर्थात् : जो हीन भावना या दुर्भावना से दूर रहे , मुक्त रहे , वो हिन्दू है !

"ऋग्वेद" के " बृहस्पति अग्यम् " में 'हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया हैं :-

“ हिमालयं समारभ्य यावद् इन्दुसरोवरं । 

 तं देवनिर्मितं देशं 

 हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।" 

अर्थात् : हिमालय से इंदु सरोवर तक , देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं !

केवल " वेद " ही नहीं, बल्कि " शैव " ग्रन्थ में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया हैं 

" हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्यते प्रिये ।”

अर्थात :- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं !

" पारिजातहरणम् " में 'हिन्दू' को कुछ इस प्रकार कहा गया है :-

”हिनस्ति तपसा पापान्

अर्थात :- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं !

" माधव दिग्विजय  में भी 'हिन्दू' शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है :-

“ ओंकारमन्त्रमूलाढ्य

 पुनर्जन्म द्ढाृंय: ।

 गौभक्तो भारत:

 गरुर्हिन्दुर्हिंसनदूषकः ।" 

अर्थात : वो जो " ओमकार " को ईश्वरीय धुन माने , कर्मों पर विश्वास करे , गौ-पालक रहे , तथा बुराइयों को दूर रखे, वो हिन्दू है !

इससे मिलता जुलता लगभग यही श्लोक " कल्पद्रुम " में भी दोहराया गया है :

" हिनस्तु दुरिताम्''

ऋग्वेद में " (8:2:41) में हिन्दू नाम के एक बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा का वर्णन  भी मिलता है.

निष्कर्ष  - बुराइयों को दूर करने के लिए सतत प्रयासरत रहने वाले , सनातन धर्म के पोषक व पालन करने वाले हिन्दू कहलाए.

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8 टिप्‍पणियां:

  1. कोटेशन्स उन्हीं प्राचीन ग्रन्थों के हैं ,अनिता जी.

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  2. बहुत सुंदर और महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने दीदी । आभार आपका। नमन और वंदन।

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  3. शकुन्तला बहादुर6 अगस्त 2022 को 3:30 pm बजे

    “हिन्दू”शब्द की व्युत्पत्ति के साथ उद्धरणों सहित प्रामाणिक व्याख्या विश्वसनीय है।

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  4. बहुत ही सटीक और सार्थक प्रामाणिक जानकारी दी है आपने आदरनीय प्रतिभा दीदी।'हिन्दू' शब्द की व्याख्या से बहुत गर्व की अनुभूति हुई।
    ये परिभाषा तो कमाल है 👌👌👌
    अर्थात : वो जो " ओमकार " को ईश्वरीय धुन माने , कर्मों पर विश्वास करे , गौ-पालक रहे , तथा बुराइयों को दूर रखे, वो हिन्दू है !
    क्या बात लिखी गई है माधव दिग्विजय में !!@

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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