गुरुवार, 29 नवंबर 2012

दुखी हो लेना ही पर्याप्त नहीं है.


*

आज मल्हार ब्लाग का आनन्द ले रही थी .वहाँ 8सितंबर 2012 की एक पोस्ट है -
अवन्तीपुर (कश्मीर).जिसमें 14वीं शती के एक  सुल्तान सिकंदर बुतशिकन द्वारा
क्रूरता की सभी हदें पार कर बड़े व्यापक रूप से धर्मांतरण हुए और साथ ही कत्ले आम भी.
 चुन चुन के सभी मंदिरों को धराशायी कर दिया गया . अवन्तिपुर का विष्णु मंदिर भी इसी कारण अन्य मंदिरों की तरह  वर्तमान अवस्था में है. यहअद्भुत एवं अद्वितीय मंदिर इतना मजबूत था कि उसे तोड़ने में एक साल लग गया था. अनंतनाग (इस्लामाबाद) से ८ किलोमीटर की दूरी पर ललितादित्य द्वारा ८ वीं सदी में निर्मित  मार्तंड सूर्य मंदिर के खँडहर हैं.
यह सब पढ़ कर और अपनी संस्कृति के इन पुरावशेषो को देख कर दुखी हो लेना ही पर्याप्त नहीं लगा. इस भू.पू.महादेश की समृद्ध संस्कृति,  ,(जिसमें धर्म ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन एवं प्रयोगशालायें आदि ,तथा स्थापत्य महत्व के स्थल भी शामिल है ) के ऐसे बेजोड़ उदाहरण धार्मिक विद्वेष के कारण  किस-किस के द्वारा भग्न किये गये.इसका पूरा विवरण होना चाहिये .
एक सांस्कृतिक पर्यवेक्षण कर सारे विवरण एक जगह एकत्र किया जाएँ जो
उन कालों के सांस्कृतिक इतिहास का निरूपण करे .अपने प्राचीन(सांस्कृतिक) इतिहास को जानना भी ,हर भारतवासी का अधिकार है .
यह जानने की भी उत्सुकता है कि ,उस धर्म में क्या कोई विचारशील संतुलित व्यक्ति नहीं था जो इस धार्मिक उन्माद ,और आतंकवाद को सही मार्ग दिखाता .सब उसकी खूबियों के कसीदे पढ़ने वाले जमा थे, और वास्तव में क्या हो रहा है उस ओर से पीठ फेर लेना ही उनकी खासियत थी ?
*

शनिवार, 24 नवंबर 2012

भानमती का लोक-जाल ..

*
'आज तो खूब पहन-ओढ़ कर आई हो. जम रही हो ."
वह मुस्कराये जा रही है .
'क्या हुआ, भानमती ?'
'बस  पूछो मत .शादियों के तमाशे  हैं ,क्या बतायें ..'
'पर हुआ क्या?
'रिश्तेदारी में शादी थी वहीं का  ध्यान आ गया. '
'अब बताओ भी..'
'हम लोगों के यहाँ शादी में आप लोगों की तरह शार्टकट नहीं होता कि दो दिन को बरात-घर, धरमशाला ली ,और सबको वहीं से निपटा कर चले आये.या होटल में एक रात के कमरे ले कर अलग-अलग मेहमान टिका दिये .
हमारे सब साथ रहते हैं हाथ बटाते हैं, सोना चाहे अलग कमरों में  हो . हफ़्ता भर पहले और तीन दिन बाद तक रीति-रिवाज , नेग-चार चलते हैं .तेल-हल्दी ,मातृ-पूजन ,इन्हीं से तो रिश्तेदारी का मजा है साथ मिकर कुंआ पूजना, आम महुआ ब्याहना, कुम्हार का चाक , देवी-देवताओं से लेकर ब्रहृस्थान की पूजा सब .'
सुनती रही मैं .
'और देखो तो, अलग-अलग कितने प्रोग्राम ,कहीं लड़के-लड़कियन की अंताक्षरी ,सिनेमा के नहीं- सच्ची कविताई रामायण और दूसरे . मेहरुओं का ढोलक पर गीत ,असली देवी के ,तेल के, भात के, मेंहदी के ,भाँवर के सब  देसी गीत .यही तो मजे हैं शादी-ब्याह के .मिल के खाना, मिल के गाना ,हँसना-हँसाना. कहीं ताश .कहीं लिस्टें बन रही हैं ,कहीं बंदनवार ,माली नाइन ,कुम्हारिन सब की  झाँय-झाँय.लगता है घर में शादी हो रही है .अब क्या ,अब तो न मंडप छवाना ,न खंब गाड़ना ,न ननदोइयों की पीठ पे सलहजों के  हल्दी वाले धमाके!
अब तो सब रेडी-मेड .दो दिन में निपटाया और भागे .पैसे का खेल दिखा लों भले, वो रस कहाँ ?
'भानमती,ये सब पहलेवाली बातें हैं.अब कहाँ वह सुविधा..'
'कोई ना ,अब भी जा के देखो, इन शहरों से दूर. वहाँ मिलेगा असली मज़ा .
शादी क्या !उत्सव होता है उत्सव ,पूरे हफ़्ते का ,खुले मन से  .कम खर्चें आनन्द बड़े .अब तो कमरे में से सज-धज के निकले और आकर बैठ लिये .खा-पी लिये .चल दिये'
'अरे हमने भी वो शादियाँ खूब देखी हैं ,हमसे क्या कहती हो.'

मेरी बात वह सुनती कहाँ है .
'एक कहीं की चाची आईं थी .उनकी आदत है चलते चलते किसी की भी हों दो-एक चादरें अपने साथ बाँध लेने की.' ताली पीट कर हँसी वह,' हमारे जेठ के बेटे ने उनके नहाने जाते ही उनका सामान खोल के चादरें निकालीं और जैस का तैस बाँध दिया .'
'हाँ ,अक्सर ऐसे लोग आ जाते हैं .ताश की गड्डियाँ ,किताबें ,वगैरा तो अक्सर ही .और कभी तो बराती भी कुछ न कुछ बाँध ले जाते हैं .'
'पर  अब तो झंझट टालते हैं किसी तरह !'
'हमें सब पता है. पहले हमारे यहाँ भी महीने भर पहले से अपने सगे आने लगते थे
नाज बीनना -फटकना ,दाले ,बड़ी-मुँगौड़ी ,,डिबिया का सामान एक संदूकची में खिलौने,दूध पिलाने की बोतल ,झबले ,फ़्राकें .,स्त्रियों के अंतः वस्त्र,बटुये ,रूमाल,सुहाग की चीज़े कंघा-शीशा आदि भर दिया जाता था .जो वरके घर की स्त्रियाँ खोलती थीं और हँसी मज़ाक के बीच आपस में बाँटती थीं.)'
 उसे लगता है जैसे मुझे कुछ मालूम ही नहीं .
'सारे काम घर में होते थे .पर अब किसे इतनी फ़ुर्सत और कहाँ इतना पसारा .सब झटपटवाले काम.'

'हमारे लोगों के तो अब भी होता है .रीति-रिवाज मानने में कौन पैसा खरच होता है !'

'तो चूल्हा ,चक्की ,मूसल-ओखली  भी?'
'हाँ ,हाँ, पूरी मरजाद से. हमारी तरफ़ अब भी हफ़्ता भर तो लग ही जाता है .रिस्तेदारों को ठैराने के लिये पास-पड़ोस के घरों में कमरों  का इंतज़ाम कर लेते हैं .'
' पर हँसने की बात क्या है, वो बताओ .'
'सुनो तो ..' उसने कहा . पूरी भूमिका बाँधे बिना बता दे तो भानमती कैसी !
 '...तो इनने पड़ोस का एक खाली घर ले लिया था ,वहीं पचीसेक लोग ठहरे थे. बाकी घर में .कल रात क्या हुआ ?साथ  के कमरे में मामा,चाचा फूफा के बच्चे इकट्टे थे .कुछ झायँ-झायँ चल रही थी.
फुआ की मीना ,और मौसी के लड़के में बहस हो रही थी.
पूरा विवरण देने लगी वह -
हाँ तो ताऊ जी के बेटे ने पूछा,वही सबसे बड़े थे  दो बच्चन के बाप !
' बात कहाँ से शुरू हुई  ,पहले ये बताओ .'

मैं बताती हूँ -मीना तैयार .
गोपाल बोलने लगा ,'नहीं, मैं बता रहा हूँ .दिन भर बाज़ार की भाग-दौड़ से थका ,आराम करना चाहता था . मैं ज़रा सो गया , कि इनने  मेरे मुँह पर समेटा हुआ कपड़ा फेंक के मारा ..'
'मुझे क्या पता था  उन बिस्तरो में कोई दबा पड़ा है.. '
'पूरी बात बताओ ,शुरू से ..'
वह फिर बोलने लगा ,
'मैं अपने कमरे में गया . बिस्तरों का ढेर लगा था . कौन उठा-उठा कर जगह बनाए सो एक साइड से थोड़ा धकिया कर उसी में घुस गया.मुँह पर एक कंबल का कोना तान लिया. ख़ूब भरक गया था ,हल्की सी नींद आई थी कि इनने खींच कर मारा  , चौंक कर जग गया मैं तो ..'
'बस-बस चुप करो .मैं बताती हूँ असली बात - कपड़े बदलने थे मुझे . कोई कमरा नहीं .मिला .  एक खाली दिखा जहाँ लहदी की तरह बिस्तरों का अंबार लगा था. चलो यहीं सही, मैंने सोचा. वो तो ये कहो कि साड़ी उतार के बिस्तरों के ढेर पर  फेंकी थी ,बस .'
'नहीं ,झूठ बोल रही हो..' वह बीच में बोला ,' आगे शुरू हो गईँ थीं ..'
' मेरी बात सुनिये और कपड़े  नहीं  ..'
'गलत !..उतारे .,साड़ी मेरे ऊपर फेंकने के बाद  ..'.
 'तो तुम जान बूझ बने पड़े थे?'
'चौंक कर जागा तो पलकें झपकाना भूल गया, आँखें फाड़े देखता रह गया .'
'बत्तमीज़ कहीं के ..'
'बत्तमीज़ मुझे कहा ,खुद ने ही तो आकर शुरू किया '
कुछ लोग बीच-बचाव करने लगे .एक ने कहा,
' ये तो पता लगे , फिर क्या हुआ !'
'होता क्या इनने एक चादर खींच कर लपेट ली और मुझे मारने लगीं .'
'तुम्हें पकड़ कर तो मारा नहीं होगा, भाग जाते  बाहर .'
'कमरे की कुंड़ी तो इनने पहले से लगा ली  थी .'
'कपडे बदलने आई थी तो..'
'तो मारा काहे से?'
 'तकिये फेंक-फेंक कर मारे .'
'क्यों इसके ऊपर तकिये फेंके तुमने ?'
'और कुछ था नहीं क्या करती , बिस्तरों के तकिये पड़े थे बस .'
'वह  मेरा कमरा था ,'
' शादी के घर मेंअलग से तुम्हारा कमरा ?'
'हाँ हाँ ,मैं वहीं टिका था .वहाँ घुस कर तुम..'
'बस,बस, चुप रहो तुम दोनो. अब हल्ला मत मचाओ. आगे एक दूसरे से दूर-दूर रहना.बोलने की बिलकुल जरूरत नहीं  !'
ताऊ जी के बेटे ने मुस्करानेवालों को आँखें दिखाईँ और दोनो को चुप कर दिया ,
 धीमें से बुदबुदाये थे -'अब शादी का घर है इतना तो चलेगा! '
यह भानमती भी एक ही है, इंटरनेट से निकाल कर लोक-जाल में फँसा देती है !
*

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

पीला गुलाब - समापन सत्र.

*
10
'एक तो दो-दो लौंडियाँ ,ऐसी चढ़ा के रक्खीं बिलकुल अपने मन की हो रही हैं .ऊपर से अंग्रेजी इस्कूल में दाखिल करवा दीं' - जिठानी की शिकायत पर रुचि समझा देती -
बदलते हुये समय के साथ नहीं चलेंगे अपने बच्चे पिछड़ जायेंगे , दीदी,लड़कियाँ हैं तो क्या. वे भी खुश रहें ,आप  भी  तो यही चाहती होंगी ..'
' हमारे कौन जमापूंजी धरी है .इत्ता चढ़ जायेंगी तो कहाँ लड़का मिलेगा .हम तो इसी में परेशान हैं कि शादी कैसे होयगी .' किरन कहती रही .

कर्नल साहब अपनी बेटियों को किसी से कम नहीं देखना चाहते .होस्टल में रह कर पढती रहीं दोनों .
'और क्या करते दीदी, जहाँ उनकी पोस्टिंग हुई वहाँ ,अच्छे स्कूल नहीं थे ,कैसे साथ रखते बच्चों को !'
'तो क्या  वहाँ की लौंडियाँ पढ़ती नहीं .अरे, पैसे जोड़ते शादी के लिये .'
किरन को  याद आता है कित्ता दबा रखा गया था उसे.
'रुचि ,तुम्हीं अच्छी रहीं ..हम तो गाय थे,जहाँ हाँक दिया चले आये !'
शिब्बू कहते हैं,'  किस्मत सराहो भाभी , ऐसा घर-वर पाने को तरसते हैं लोग .'
' तो  फिर इनने ...कोई अकारन ही तो आई बरात वापस नहीं करता ...? ' इशारा रुचि की ओर
अब, इसका जवाब किसके पास !
 *
पिछली बार जब शिब्बू ,दादा के पास आये थे तब की बात .
इस लड़ाई के कोई आसार नहीं थे तब .यों ही बातें चल रहीं थीं.
अचानक अभिमन्यु कह उठे -
तुम भी बी.ए कर लेतीं किरन तो मुझे संतोष हो जाता .परिस्थितियाँ बदलते देर नहीं लगती .और फिर सेना में होने का मतलब ..'
किरन से रहा नहीं जा रहा ,'मत कहिये, नहीं ,कुछ भी मत कहिये .भगवान ऐसे  दिन न दिखाए .
 सब चुप हैं .
कर्नल सा. कह उठे थे, ' अपनी बेटियों को क़ाबिल बनाना चाहता हूँ ,उन्हें कभी बेबस न होना पड़े ..'
'दादा, तुम बेकार परेशान होते हो .हम लोग भी तो हैं न .'
'अरे शिब्बू ,तुम्हारी  ढंग की कमाई होती तो ..'
'मैं नहीं हूँ क्या ? रुचि बीच में बोल पड़ी,' निश्चिन्त रहिये आप .'
 ' पर  कल को तुम्हारे अपने भी तो  ....'किरन बीच में बोल पड़ी.
 '  हमारे न सही ,लाला तुम्हारे एक लड़का हो जाता .वंश का नाम  तो चलता .'
सात साल में दो बार आस बँधी पर निष्फल चली गई .
'यहाँ  अपना बस कहाँ चलता है, भाभी ."
'अपने अलग नहीं चाहिये हमें. निश्चिंत रहिये  .इनके लिये जो  अरमान हैं दिल में ,ज़रूर पूरे होंगे .'
वे चुप उसका मुँह देख रहे हैं.
'कुछ मत सोचिये ... , मेरे होते इनके सामने कोई बाधा नहीं आयेगी .'वह कहती चली गई ,'जीवन में और चाहे  कुछ न कर सकी होऊँ, पर यहाँ पीछे नहीं हटूंगी.'
आज पहली बार जेठ के सामने रुचि इतना बोल गई .
कर्नल ने उसकी ओर  आँख भर कर देखा था -परितृप्त दृष्टि!
'अपना भी जीवन जीना साथ में, सुरुचि ,बिलकुल अकेली मत पड़ जाना .'.
देवर -भाभी चकित .आज पहली बार दोनों को बोलते सुना .
'और कुछ कहाँ कर सकी , इतना तो संतोष रहे .'
चाय के बर्तन उठा कर चलती रुचि की आँखें भर आईँ थी .
 *
दिन बहुत धीरे-धीरे बीत रहे हैं.
इस साल तो पिछले ग्यारह सालों का रिकॉर्ड टूटा है. बहुत सर्दी पड़ रही है .उड़ाने कैंसिल ,ट्रेने  सब लेट .धुंध के मारे दिखाई नहीं देता . एक्सीडेंट भी तो कितने हुये हैं .
जीवन जड़-सा हो उठा है. क्या करे कोई-
  कैसे-कैसे कुविचार उठते हैं !
निश्चिंत कहाँ रह पाता है मन .
इधर कोई खबर नहीं आ रही .
रेडियो की ख़बरों पर ध्यान लगा रहता है सबका .सीमा पर एक विमान दुश्मन ने गिरा दिया .झटका-सा लगा था सबको
शीत-लहरके कारण स्कूलों में छुट्टी. लड़कियाँ घर आ गई हैं ..
पर्वतों पर हिमपात और कोहरा ,
हेलिकाप़्टर और प्लेन यथास्थान लौट आयें तभी निश्चिंत हो पाते हैं सब.
कभी -कभी पता ही नहीं मिलता .खोजना भी मुश्किल .
अभिमन्यु कहाँ हैं, कैसे हैं, किसी को पता नहीं .
इस कठिन समय में वह  जिठानी के पास बनी है.
*
11.
अचानक एक दिन   सेना की वर्दी में कुछ अधिकारी  उपस्थित हो गये .
सब सन्न !
 क्या हो रहा ह किसी की समझ में नहीं आ रहा .बस यह समझ में आया कि अब बड़के भैया  कभी घर नहीं लौटेंगे .
रंजना-निरंजना सहमी खड़ी हैं ,
'हमारे डैडी..'
'बेटा तुम्हारे डैडी,' ऑफिसर ,'उठ कर उन तक गया ,थपकता हुआ बोला ,'बड़े बहादुर आदमी थे ...देश के लिये बलिदान किया ... उन्होंने ...'
किरन सपाट स्वर में कह उठी 'वे अब कभी नहीं लौटेंगे ..' 
 रो उठी वह,मुख  पर आँचल दबाए ,दुर्वह वैधव्य का  घुटा  हुआ रुदन ,विचित्र सी ध्वनि में उस मौन अशान्ति  को  तोड़  गया . सब के ह़दय  तल तक काँप उठे.  .
लड़कियाँ माँ से आ लिपटीं .
वे लोग बहुत कुछ कहते रहे ,बहुत तारीफ़ करते रहे कर्नल अभिमन्यु की ,पर कुछ भी ,किसी के मन तक नहीं  पहुँच रहा .
यह सबको सुनाई दे गया कि कर्नल अभिमन्यु ,की पार्थिव देह पूरे सैनिक सम्मान के साथ आ रही है .

*
लोग आ-जा रहे हैं .मिलिट्री का बैंड बज रहा है .
गूँज आ- आ कर हृदय से टकराती है . अपना कर्तव्य निभा रही रुचि .

रो-रो कर निढ़ाल हुई जिठानी एक कुर्सी खींच कर बिठा दिया किरन के साथ होकर साध लिया उसने .
दोनो पुत्रियाँ एकदम विमूढ चिपकी खड़ी है.
बहुत लोग आ गये हैं .व्यवस्थायें हो रही  है .
 'अब हम क्या करें ?'
उसके कंधे पर सिर रख निरंजना अचानक रो उठी .
एक व्यक्ति बढ़ आया,
'बेटा ,तुम्हारे पिता मरे नहीं अमर हो गये .घबराना मत मैं हूँ .'
' हम हैं तुम्हारे साथ .,'
सांत्वना देनेवालों की कमी नहीं है .
रुचि ने आगे बड़कर दोनों को गले लगा लिया. वे रोती हुई सिमट आईं,'चाची, अब आप ही अम्माँ को समझाओ .'
वे जानती हैं ,माँ के लिये यह सब कितना भारी पड़ रहा है .

व्याकुल सा भरभराता स्वर फिर उठा,'अब हम कैसे क्या करेंगे?'
'दीदी , हम हैं .बच्चों के लिये आप चिन्ता मत करिये .'
'वो हमारी जिम्मेदारी हैं ,हम करेंगे उनका सब कुछ .' शिब्बू ने साथ दिया.
दोनों अपने से लगाये रुचि कह रही है -
'आज से ये मेरी बेटियाँ .सारी जिम्मेदारी मेरी .दीदी ,अब आप कुछ नहीं कहेंगी इनके लिये!'
*
किरन कह रही है ,'सब चले जायेंगे,सब  भूल जायेंगे ,बस मैं रह जाऊँगी  बेबस अकेली .क्या करूँगी ?कैसे बिताऊँगी ज़िन्दगी ?'
'रास्ता मिलेगा दीदी ,जरूर मिलेगा.'
शिब्बू बेचारे समझ नहीं पा रहे क्या कहें .
'हाँ, और क्या हम लोग हैं ,फिर दादा की पेंशन भी तो  .और हमारी जिम्मेदारी भी .'
'अरे ,आगे की भी सोचनी है ,ऐसे ही थोड़े बैठी रहेंगी ..'
' क्या मतलब ?'
'मतलब,बेकार बैठे दुखी होंगी .,' उनकी ओर घूम कर बोली ,'दीदी ,आप तो शादी के बाद इन्टर कर चुकी हैं ?'
' हाँ ,उनका बहुत मन था मैं आगे पढ़ूँ ,ट्यूशन रखवा दी थी,'
 किरन को अब पछतावा हो रहा  है.

'..कितना अच्छा होता उनकी सुन लेती .कुछ करने लायक हो जाती .वहाँ  तो हमें घर के काम में लगा देती थीं मामी .अम्माँ हमारी बेबस थीं .टीचरें हमसे हमेसा खुश रहीं पर हमें पढ़ाता कौन ! फिर बाद में तो मेरा मन नहीं लगता था पढ़ने में.'
'  अब ..किसके सिर पड़ूँ  .  पहाड़ सी ज़िन्दगी कैसे कटेगी  ? कहीं लग जाऊं . ढंग का काम कौन देगा मिुझे किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का न सही पानी पिलाने का और ऊपर का काम ही सही ..'
'कैसी बातें करती हैं दीदी ,चलिये मेरे साथ बी.ए का फ़ार्म भरिये .दो साल में बी.ए. '
' कुछ कर पाऊंगी क्या ?'
'हो गया सो हो गया , आप में कोई कमी थोड़े न.तब  ध्यान नहीं दिया अब तो कर सकती हैं  .खूब कर सकती हैं अगर चाहें तो .'
चुपचाप सोच रही है किरन .
'अब इत्ती उमर में?सब हँसेंगे हमारे ऊपर  .'
' तो क्या ..?पता है हमारे यहाँ एक पचास साल से ऊपर की महिला ने एडमिशन लिया .किसी की परवाह नहीं की ,और पता है ,सबसे अच्छे नंबर उसी के आये .
हम लोगों ने खूब तारीफ़ की उसे हिम्मत दी . वो हमारे यहाँ लाइब्रेरी में है अब.'
*
अभि के व्यक्तिगत सामान का बड़ा-सा बंडल आया है .
रुचि पर सारी जुम्मेदारी आ पड़ी है .
 खोल कर देख रही है .
 ड्रेस ,मेडल ,रोज़ के उपयोग का सामान .
देखती रही आँखें धुँधला आईँ .
एक लिफ़ाफें में बड़ा सहेज कर रखा हुआ कुछ!
क्या है यह ?
रुचि खोल कर देखती है .
एक रुमाल में लपेटा हुआ पीला गुलाब - सूख गया था पर आकार लिये था .
 .दोनो हाथों में रूमाल सामने किये  रुचि देखे जा रही है .
बीती हुई  बातें अंतस् में टीस भरती उभर आईं

'दादा भी एक ही निराले हैं .'शिब्बू ने कहा था. 
बराम्दे में बैठे शेव कर रहे थे, बग़ीचे में माली ,गुलदस्ता बनाने को फूल छाँट रहा था .
'और सब रंग हैं बस एक  कमी - पीले गुलाब की बेल यहाँ बहुत जमेगी '
' नहीं लाला,' भाभी ने चट् जवाब दिया था ,'पीला गुलाब बिलकुल नहीं चलेगा यहाँ  .माली ने चाव से लगाया पर ,तुम्हारे दादा ने हटवा दिया था .'
कर्नल साहब को पीला रंग बिलकुल पसंद नहीं !'
खूब याद है रुचि को .
और आज समेटे खड़ी है वही फीकी पड़ गई पीली पंखुरियाँ !
हथेली में भर लेती है नाक के पास लाकर वास  लेती है .बहुत मंद-सी गंध-शेष . यही है क्या - बहकी हुई प्रीत की महक !
 उस प्रथम परिचय की भेंट , अनायास जुड़े  प्रेम-बंधन की स्मृति ,नये जुड़े संबंध का साक्षी वह पीला गुलाब ,जिसे उन नेह भरे हाथों ने उसके केशों में टाँक दिया था.
उस सज्जा में सबके सामने कैसे जाती ?
 बगीचे से लौटती बार उसने  खींच कर  निकाला ,अभि ने तुरंत हाथ बढ़ा कर थाम लिया था.
डंण्डी पकड़े नचाते हुये सबके सामने कहा था उसने  ,'आपके बग़ीचे के ये पीले गुलाब बहुत दिलकश  हैं , लिये जा रहा हूँ एक  .'
उसी  फूल के अवशेष देखे जा रही है रुचि ..
 'क्या है इसमें?' शिब्बू आ कर खड़े हो गये थे.
' पूजा के फूल लग रहे हैं, कहीं का प्रसाद, उन्हीं के सामान में  रक्खे दे रही हूँ ..'
बिखरी  पंखुरियाँ उसी रुमाल में सहेज दीं उसने .
अभि ,तुम नहीं हो , अब तुम मेरे जेठ भी नहीं हो .उस संबंध से मुक्त हो .पर मैं बँधी हूँ वचन की डोर में ,दो-दो  वचनों की डोर .मैं दोनो ओर से बँधी हूँ .
एक बार की चूक  का परिताप सदा को पल्ले से बँध जाता है .
गालों पर बह आए आँसू पोंछ लेती है वह.
 जो करणीय है वही करूँगी- राह बहुत बाकी है अभी !
(समाप्त)
*

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

पीला गुलाब - 8 & 9.



8 .
'आजकल दादा की पोस्टिंग कश्मीर  साइड में  है ,अच्छा मौका है ,' शिब्बू ने कहा ,'चलो हम लोग उधर भी घूम आते हैं .'
 और रुचि की गर्मी की  छुट्टियों में अर्न्ड लीव ले ली.बस, आ पहुँचे दादा के पास .
वैसे भी छुट्टी लेना है, तो लेना है ,पैसे काट लेंगे, काट लें .चिन्ता काहे की !
सात सल बीत गये रुचि की शादी को . दादा की पोस्टिंग के साथ कितनी जगहें घूम लीं .शिब्बू नई जगह जाये बिना रह नहीं सकते -चलो !चाहे हफ़्ते भर को ही सही .
नई जगह का नयापन ,अभ्यस्त होने में समय लगता है .
रुचि की नींद बीच में कई बार टूटती है.
रात के डेढ़ बजे हैं .
सिगरेट की महक ?कहाँ से ,इस समय ?
 पानी  लेने जाते  देखा ,उधर के अधखुले दरवाज़ों से धुएँ की कुछ भटकती लहरें बाहर आ रही हैं .
ठिठक गई .कुछ क्षण खड़ी देखती रही .फिर लौट गई .
जिठानी ने बताया था कुछ बताते नहीं.जब परेशान होते हैं तो यही करते हैं .
कभी-कभी चुपचाप अकेले टहलते हैं- कुछ सोचते-से .
'आजकल जाने क्या हो गया है इन्हें .कान पड़ी बात सुनाई नहीं देती .'
गति-विधि से लगता है कुछ गंभीर समस्या में पड़े हैं .'.
हाँ ,वह देख रही है -अपने में डूबे से .
पर क्या कहे सुरुचि !
'लगता है कुछ गंभीर समस्या में पड़े हैं ,आप परेशान होंगी इसलिये कुछ कहते नहीं होंगे . दीदी ,पर आप ही पूछिये न ! नहीं, जब सब खाना खाने बैठें तब पूछिये .हम सब होंगे न आपका साथ देनेवाले !'
 अख़बार में खबरों पर बात छेड़ दी रुचि ने .बात पर बात निकलने लगी .सीमाओं पर आसार अच्छे नहीं हैं.लगता है कुछ हो कर रहेगा .
'हाँ,  रंग-ढंग ऐसे ही बन रहे हैं . मेरा मन अजब सी चिन्ता से भरा रहता   है.जाना  तो है ही बुलावा आयेगा तो. ये लड़ाई लगता है बहुत आसान नहीं होगी .'
शिब्बू बोल पड़े,'पाकिस्तान के सिर उठाने की बात कर रहे हैं ?'
वे मुँह में रखा कौर चबाते रहे .
' पिद्दी सा तो है .कितना खींचेगा पाकिस्तान ! हमारे जवान ही धूल चटा देंगे ..'
'किसी  बल-बूते पर ही हिम्मत किये है ....दुश्मन को कभी कम मत समझो ,पता नहीं क्या दाँव खेल जाय. हम लोगों को तो तैनात रहना ही है .' '
 लड़ाई में जाने से पहले, इधर की जिम्मेदारियों का ख़याल हर फ़ौज़ी को आता है .
वे कह रहे थे-
'सैनिक की बीवी को अपने बल पर खड़ा होने को तैयार रहना होता है.  मुझे चिन्ता होती है अपने बच्चों की .किरन पढ़ी-लिखी होती तो सम्हाल ले जाती .'
अंजना -निरंजना दस और ग्यारह की हो गईं , कान्वेंट में पढ़ रही हैं .कब कहाँ पोस्टिंग हो जाय ,उनकी पढ़ाई में ज़रा भी व्यवधान नहीं देखना चाहते वे .
लड़कियाँ भी पास नहीं रहतीं .किरन अकेली पड़ जाती है .
'कौन हमारे बस में रहा कुछ.न पढ़ना-लिखना न और कुछ .बहू को देखो ,अपना भला-बुरा ख़ुद सोच लिया .'
.शिब्बू बोल पड़े ,'बात सेना में होने की नहीं ,सराब पीने की थी ,क्यों न ?'
'क्या शिब्बू ,फ़लतू बातें ले कर बैठ जाते हो .'
रुचि सिर झुकाये बैठी है .'
किरन व्याकुल हो बोल उठी -
मत करो ऐसी-वैसी बातें, मैं तो जनम की बेबस ,.ऐसी बातें सुन कर मेरा तो दिल बैठ जाता है .'

'सब आलतू- फ़ालतू बातें ..सूत न कपास ..' शिब्बू को बड़ी उलझन होने लगी थी .
'अंदर-अंदर लड़ाई तो चल रही है ,कुछ ठिकाना नहीं कब खुल कर होने लगे ..'
रुचि चुप बैठी  सुन रही है .

9 .
 सीमा पर तनाव कम नहीं हुआ .युद्ध की नौबत आ गई .
उधर घमासान मचा है .
 कर्नल अभिमन्यु जा चुके हैं फ़्रंट पर .

परिवार अपने निवास पर भेज दिया गया .
बड़े मुश्किल  दिन .
किरन झींकती है .'मरे ठीक से पूरी खबरें भी नहीं आने देते .हमें तो ये भी नहीं पता चलता आजकल किधर हैं .कोई पता हीं .नंबर लिख कर चिट्ठी डाल दो ,जाने मिलती भी होगी कि नहीं !'
हाँ, सारी बातें सेंसर होती हैं .
रुचि समझाती है ,'आप चिन्ता मत कीजिये दीदी,कर्नल हैं वे ,उन्हें कुछ नहीं होगा .'
'और ,जो ये ख़बरें रोज-रोज आती हैं. कितना क्या-क्या हो रहा है ..,मेरी तो जान सूखती रहती है .'

जानती है वह पूरी ख़बरें देते भी नहीं .त्रस्त रहता है मन .पर खुल कर कोई कुछ नहीं कहता .
किरन ने रुचि को जाने नहीं दिया -
'नहीं ,तुम कहीं मत जाओ .मैं बिलकुल अकेली पड़ जाऊँगी .'
'पता नहीं कितने दिन लड़ाई चलेगी .हमारा पलड़ा भारी है ,पर '... पर के आगे गहरा मौन .
'मुझसे अकेले  नहीं रहा जायेगा.और कौन बैठा है मेरा .अब तो मायके में माँ भी नहीं . .'
'नहीं आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे दीदी,हमारे साथ चलिये मन लगा रहेगा .'
' कहीं नहीं .यहाँ छोड़ गये हैं, यहीं रहूँगी , इन्तजार करूँगी उनका .'
 हफ़्ते  भर की छुट्टी और ले ली उसने .

ख़बरों पर सबका ध्यान रहता है .
सुन-सुन कर  जान सूखती रहती है. 
किरन कभी-कभी कह उठती है ,'यें दो-दो धींगड़ियाँ . मेम साब बनती हैं .कहाँ गुज़र होगी इनकी ?मेरी सुनती  नहीं .एक लड़का होता तो निश्चिंती होती .'
रुचि समझाती है ,' आप क्यों चिन्ता करती हैं? ये पढ़ी-लिखी लड़कियाँ  लड़कों से किसी तरह कम नहीं. देखना ,ये ही नाम रोशन  करेंगी .'
'हमने जब जब लड़के की बात उठाई वो भी ऐसे ही कहते थे .'
'ठीक कहते थे .'
कुछ रुक कर बोली,' उनकी बेटियों के लिये कुछ कहो ,उन्हें अच्छा नहीं लगता था .'
'बेटियाँ होती ही हैं प्यारी .दीदी,सिर्फ़ आपकी नहीं हमारी भी हैं वो .'
' वो भी तो ,मुझसे जियादा ,तुम्हें मानती हैं .'
*
मन में अजीब-अजीब बातें उठती हैं.कुछ बात निकाल कर रुचि का  रोने का मन होता है.
 याद आया घर की महरी कुंजा ,जिसकी बेटी को  किताबें खरिदवा देती थी ,पढ़ा देती थी .चौथी पास कर ली थी उसने ने .'दीदी-दीदी' कह कर उसके चारों ओर मँडराती थी .
 उस की बिदा की शाम काम करते-करते गा रही थी - 
'मैया कहे- धिया नित उठि अइयो ,
बाबा कहे ,तीज-त्योहार,
भैया कहे बहिनी, काज-परोजन .
भौजी कह - कौने काम !'

एक दिन में जीवन का सारा प्रबंध बदल जाता है - क्यों होता है ऐसा ? जनम के संबंधों का सारा मोह अचानक छूट सकता है क्या ?
पर होता यही  है .विवाह के बाद अगली बिदा तक वैसा कुछ नहीं रहता .उस घर  उस तरह नहीं रह पाती जैसे पहले रहती थी . औपचारिकता आ जाती है ,या मुझे ही ऐसा लगता है !वह बेधड़क मुक्त व्यवहार नहीं रहता. मर्यादा की एक अदृष्य लकीर- सी खिंच गई हो जैसे ,कुछ अलगाव -सा ,परायापन सा .
अब तो वहाँ भी मन नहीं लगता .
उमड़-उमड़ कर रोना आ रहा है .
और किरन दीदी ? उनका तो कहीं मायका भी नहीं !
ज़िन्दगी बड़ी मुश्किल चीज़ है !
*
(क्रमशः)




























सोमवार, 5 नवंबर 2012

तमिल और संस्कृत का अंतःसंबंध.


तमिल और संस्कृत का अंतःसंबंध - वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में .

तमिल भाषा के प्रथम व्याकरण की  रचना  वैदिक काल के अगस्त्य मुनि द्वारा की गई थी, जो उन्हीं के नाम से अगस्त्य व्याकरण जाना गया। तमिल भाषा की ध्वनियों  में उसकी परिणति अगन्तियम हो गयी । अगन्तियम में तमिल के तीन  भाग सम्मिलित हैं । प्रथम है इयल अर्थात् पाठ साहित्य, दूसरा इसै अर्थात गेय साहित्य और तीसरा नाटकम् अर्थात नाटक साहित्य। अगस्त्य ऋषि को "तमिल का पिता" भी कहा गया है।इधर ऋग्वेद के पहले मंडल में सूक्त संख्या 165 से लेकिर 191 तक कुल मिलाकर 27 सूक्त अगस्त्य के नाम से मिलते हैं .
राम-अगस्त्य मिलन के प्रसंग में वाल्मीकि रामायण का सारा विवरण बहुत ही सजीव है।अगस्त्य से मिलने से पहले अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ राम  सुतीक्ष्ण मुनि से मिलने गए थे और वहीं से उनको अगस्त्य के प्रसिद्ध आश्रम जाने का मार्ग मालूम पड़ा था। तो इस आधार पर तय यह माना जा सकता है कि अगस्त्य ऋषि राम के समकालीन थे और वैदिक मंत्र-रचना के दूसरे सहस्त्राब्द के अन्तिम चरण में हुए थे।
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा काण्ड सर्ग 47, श्लोक 19 में सुग्रीव ने सीता की खोज में वानरों को भेजते समय कहा था-
ततो हेममयं दिव्यं मुक्तमणि विभूषितम्।
युक्तं कपाटं पांडयानां द्रक्ष्यथ वानरा:।।
इससे सिद्ध होता है कि त्रेतायुग में न दक्षिण भारत के कपाटपुर के पांड्य नरेश थे
प्रारंभिक तमिल भाषा साहित्य के 3 संघमों के वर्णन में द्वितीय संघम का आधारभूत "कपाटपुर" रहा है, जिसका उल्लेख  महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में प्रस्तुत किया है।
महाभारत में भी महर्षि वेद व्यास पांड्य नरेश सागरध्वज का उल्लेख किया है, जो पांडवों की ओर से कौरवों से लड़ा था, वह  कपाटपुर शासक रहा था।
  तमिल में अगस्त्य को अगत्तियंगर भी लिखा गया है और उसी के अनुसार उनके व्याकरण को अगत्तियम। इसी आधार पर वैयाकरणा तोलकाप्पियर ने ग्रंथ लिखा तोलकाप्पियम। इससे स्पष्ट है कि अगस्त्य मुनि से ही तमिल इतिहास शुरु होता है। तमिलनाडु में कार्य करके अगस्त्य मुनि कम्बोडिया गए। कहा जाता है कि कम्बोडिया को मुनि अगस्त्य ने ही बसाया है। तमिल के प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ में भी यह प्रसंग है।
तमिल के "मलय तिरुवियाडल पुराणम" में तो यहां तक तमिल भाषा की प्राचीनता और ऐतिहासिकता का उल्लेख है कि शिव जी ने जब मुनि अगस्त्य को दक्षिण भारत जाने को कहा तो उन्हें तमिल भाषा में ही निर्देश दिए थे। भगवान शिव ने ही उन्हें तमिल भाषा की शिक्षा दी थी।
 वाल्मीकि रामायण के सुन्दर काण्ड के 30वें सर्ग में अशोक वृक्ष के नीचे शोकमग्ना सीताजी से हनुमान जी की प्रथम वार्ता संस्कृत की बजाय तमिल में बतायी गई है। इससे पूर्व हनुमान जी ने देखा था कि रावण सीता जी से संस्कृत में ही वार्ता कर रहा था। उन्हें शक था कि यदि संस्कृत में बात की तो सीताजी उन्हें रावण का भेजा अनुचर न समझ लें। उस प्रयुक्त भाषा को वाल्मीकि जी ने "मधुरां" विशेषण प्रदान किया है। संस्कृत के बाद भारत में सबसे प्राचीन भाषा तमिल ही मान्य है।
 महामुनि अगस्त्य सारे भारत में  अपनी बौद्धिकता और कर्मठता के लिये विख्यात थे.
उन्होंने ही उत्तर और दक्षिण के बीच विंध्य के आर-पार आवागमन सुलभ किया था .इस विषय में एक कता है .-
 एक बार विंध्य पर्वत को गुस्सा आ गया कि क्यों नहीं सूर्य मेरी भी वैसे परिक्रमा करता जैसे वह मेरू पर्वत की किया करता है। सूर्य ने कोई ध्यान नहीं दिया तो विंध्य ने ऊपर आकाश की तरफ अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया। इतना बढ़ा लिया कि सूर्य की गति रुक गई। त्राहि-त्राहि करते लोगों ने  अगस्त्य से पुकार लगाई.ऋषि  विंध्य के पास
पहुँचे .वह प्रणाम करने नीचे झुका
आशीर्वाद दे कर बोले ,'वत्स ,अभी मैं उस पार जा रहा हूँ ,मैं लौटूँ तब तक झुके रहना .'
और वे कभी लौटे  नहीं। तब से विंध्य नीचे झुका हुआ है .है।
तमिल-परंपरा के अनुसार संस्कृत और द्रविड़ भाषाएँ एक ही उद्गम से निकली हैं.. इधर भाषा-तत्त्वज्ञों ने यह भी प्रमाणित किया है कि आर्यों की मूल भाषा यूरोप और एशिया के प्रत्येक भूखंड की स्थानीय विशिष्टताओं के प्रभाव में आकर परिवर्तित हो गयी, उसकी ध्वनियां बदल गयी, उच्चारण बदल गए और उसके भंडार में आर्येतर शब्दों का समावेश हो गया..
भारत में संस्कृत का उच्चारण तमिल प्रभाव से बदला है, यह बात अब कितने ही विद्वान मानने लगे हैं.. तमिल में र को ल और ल को र कर देने का रिवाज है.. यह रीती संस्कृत में भी 'राल्योभेदः' के नियम से चलती है.. काडवेल(Coldwell) का कहना है की संस्कृत ने यह पद्धति तमिल से ग्रहण की है..
 विश्व के विद्वानों ने संस्कृत, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाओं के समान तमिल को भी अति प्राचीन तथा सम्पन्न भाषा माना है। अन्य भाषाओं की अपेक्षा तमिल भाषा की विशेषता यह है कि यह अति प्राचीन भाषा होकर भी लगभग २५०० वर्षों से अविरत रूप से आज तक जीवन के सभी क्षेत्रों में व्यवहृत है।
तमिल का लगभग 2,500 वर्षों का अखण्डित इतिहास लिखित रूप में है। मोटे तौर पर इसके ऐतिहासिक वर्गीकरण में प्राचीन- पाँचवी शताब्दी ई. पू. से ईसा के बाद सातवीं शताब्दी, मध्य- आठवीं से सोलहवीं शताब्दी और आधुनिक- 17वीं शताब्दी से काल शामिल हैं। कुछ व्याकरणिक और शाब्दिक परिवर्तन इन कालों को इंगित करते हैं, लेकिन शब्दों की वर्तनी में प्रस्तुत स्वर वैज्ञानिक संरचना ज्यों की त्यों बनी हुई है। बोली जाने वाली भाषा में काफ़ी परिवर्तन हुआ है,
'बहुत प्राचीन काल में भी तमिल और संस्कृत के बीच शब्दों का आदान-प्रदान काफी अधिक मात्रा में हुआ है, इसके प्रमाण यथेष्ट संख्या में उपलब्ध हैं.. किटेल ने अपनी कन्नड़-इंगलिश-डिक्शनरी में ऐसे कितने शब्द गिनाये है, जो तमिल-भंडार से निकल कर संस्कृत में पहुँचे थे.. बदले में संस्कृत ने भी तमिल को प्रभावित किया.. संस्कृत के कितने ही शब्द तो तमिल में तत्सम रूप में ही मौजूद हैं.. किन्तु, कितने ही शब्द ऐसे भी हैं, जिनके तत्सम रूप तक पहुँच पाना बीहड़ भाषा-तत्त्वज्ञों का ही काम है.. डा.सुनीतिकुमार चटर्जी ने बताया है की तमिल का 'आयरम' शब्द संस्कृत के 'सहस्त्रम' का रूपांतरण है.. इसी प्रकार, संस्कृत के स्नेह शब्द को तमिल भाषा ने केवल 'ने'(घी) बनाकर तथा संस्कृत के कृष्ण को 'किरूत्तिनन' बनाकर अपना लिया है.. तमिल भाषा में उच्चारण के अपने नियम हैं.. इन नियमो के कारण बाहर से आये हुए शब्दों को शुद्ध तमिल प्रकृति धारण कर लेनी पड़ती है'..-दिनकर जी द्वारा लिखा 'संस्कृति के चार अध्याय' से .
दक्षिण भारत की कुछ गुफ़ाओं में प्राप्त तमिल भाषा के प्राचीनतम लेख ई.पू. पहली-दूसरी शताब्दी के माने गए हैं और इनकी लिपि ब्राह्मी लिपि ही है।
सातवीं शताब्दी में पहली बार कुछ ऐसे दानपत्र मिलते हैं, जो संस्कृत और तमिल दोनों ही भाषाओं में लिखे गए हैं। संस्कृत भाषा के लिए ग्रन्थ लिपि का ही व्यवहार देखने को मिलता है। तमिल भाषा की तत्कालीन लिपि भी ग्रन्थ लिपि से मिलती-जुलती है।
पल्लव शासक, अपने उत्तराधिकारी चोल और पाण्ड्यों की तरह, संस्कृत के साथ स्थानीय जनता की तमिल भाषा का भी आदर करते थे, इसीलिए उनके अभिलेख इन दोनों भाषाओं में मिलते हैं। नौवीं-दसवीं शताब्दी के अभिलेखों को देखने से पता चलता है कि तमिल लिपि, ग्रन्थ लिपि के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से विकसित हो रही थी।
 इन दो चोल राजाओं का शासन दक्षिण भारत के इतिहास का अत्यन्त गौरवशाली अध्याय है। इन्होंने संस्कृत के साथ-साथ तमिल भाषा को भी आश्रय दिया था। इनकी विजयों की तरह इनका कृतित्व भी भव्य है। इनके अभिलेख संस्कृत भाषा (ग्रन्थ लिपि) और तमिल भाषा (तमिल लिपि) दोनों में ही मिलते हैं। राजेन्द्र चोल का ग्रन्थ लिपि में लिखा हुआ संस्कृत भाषा का तिरुवलंगाडु दानपत्र तो अभिलेखों के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। इसमें तांबे के बड़े-बड़े 31 पत्र हैं, जिन्हें छेद करके एक मोटे कड़े से बाँधा गया है। इस कड़े पर एक बड़ी-सी मुहर है।
तमिल लिपि में राजेन्द्र चोल का तिरुमलै की चट्टान पर एक लेख मिलता है। उसी प्रकार, तंजावुर के बृहदीश्वर मन्दिर में भी उसका लेख अंकित है। इन लेखों की तमिल लिपि में और तत्कालीन ग्रन्थ लिपि में स्पष्ट अन्तर दिखाई देता है।
15वीं शताब्दी में तमिल लिपि वर्तमान तमिल लिपि का रूप धारण कर लेती है। हाँ, उन्नीसवीं शताब्दी में, मुद्रण में इसका रूप स्थायी होने के पहले, इसके कुछ अक्षरों में थोड़ा-सा अन्तर पड़ा है। शकाब्द 1403 (1483 ई.) के महामण्डलेश्वर वालक्कायम के शिलालेख के अक्षरों तथा वर्तमान तमिल लिपि के अक्षरों में काफ़ी समानता है।
'सदियों पहले भारत को एक करने की कोशिश भक्ति काल में हुई थी, जब दक्षिण के गुरुओं ने उत्तर का रुख किया था। उससे भी सदियों पहले शंकराचार्य ने इस धरती को जोड़ने के लिए हदबंदी की थी। वक्त ने उन कोशिशों को भुला दिया। अब वक्त बदलने के साथ जो सिलसिला चल पड़ा है, उसे आगे ले जाने की समझदारी नॉर्थ को दिखानी चाहिए। और इसका सबसे कारगर तरीका है तमिल या मलयालम को तालीम में शामिल करना। स्कूलों में पुरानी भाषाओं की तकलीफदेह रटंत की जगह त्रिभाषा फॉर्म्युले में साउथ की भाषाओं को जगह देने भर से वह कच्चा पुल तैयार हो जाएगा, जो विंध्य पर्वत को इतना बौना कर देगा, जितना अगस्त्य मुनि भी नहीं कर पाए थे।' -संजय खाती का ज़िन्दगीनामा.
(कुछ तथ्यों को साभार गूगल से लिया गया है )
*
- प्रतिभा सक्सेना.