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क्या कैलेणडरों निमंत्रण-पत्रों और प्रयोग में आने के बाद फेंक दी जानेवाली चीज़ों पर भगवान के फ़ोटो छपवाना सही है?
ऐसी चीज़ें, जो उपयोग के बाद हमारे लिये बेकार हो जाएंँ,कूड़े में फेंक दी जाएंँ या रद्दी मे डाल दी जाएँ,और उन पर छापे गये फ़ोटो जो कल तक दीवारों या मेज़ की शोभा बने थे किसी काम के न रहें, बेकार होकर कूडे के ढेरों में,डाल दिये जाएं ,फट-फट कर चिन्दियाँ इदर-उधर बिखरती रहें पाँवों से कुचले जाते या रद्दी में बिक कर उनका मनमाना उपयोग किया जाता रहे. क्या यह उचित है या स्वीकार्य है?
जब तक उनकी ज़रूरत रही, सँभाले रहे और फिर उसका कोई हाल हो इससे कोई मतलब नहीं - सारा सम्मान तब तक, जब तक काम निकलता है.
और तो और देवी ,गणेश, श्रीकृष्ण, इत्यादि देवों की स्वर्ण आकृतियाँ गढ़वा कर ,आभूषणों में जड़वा कर ,या पेंडेन्ट बना कर पहनना उनके प्रति श्रद्धा- सम्मान व्यक्त करना है या अपनी आत्म-तुष्टि का एक साधन है?
होता यह है कि पसीने से चिपचिपातेी देह पर,पहने हुए वस्त्रों के ऊपर-नीचे हिलते-डोलते, झटके खाते, पहननेवाले की शान दिखाने के लिये, लटके रहते हैं, इसे उन रूपाकारों के प्रति,पूज्य-भाव, श्रद्धा या उनका आदर-मान कहें या अपनी सम्पन्नता का प्रदर्शन?
इस प्रकार का आचरण उनका अपमान नहीं कहा जाएगा?
क्या किसी भी प्रकार से इसे उचित कहा जा सकता है?
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पुनश्च (दिनांक:6अगस्त,2022.)
एक बात रह गई -
व्यक्तिगत कहें अथवा सामाजिक विचार-हीनता (नैतिक-पतन की सीमा तक कहें तो कैसा लगेगा?) ,'ऐसे ही चलती रहे - हमें क्या फ़र्क पड़ता है' सोच कर चुप लगा जाएँ या उचित कदम उठाना जरूरी लगता है ?
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कहीं अन्तर्मन में हमेशा ये प्रश्न होता ही है और हम खुद ऐसे प्रश्नों को प्रश्नों के ढेर में पीछे धकेल देते हैं ताकि फ़िर परेशान ना करें। कहीं से फ़िर से सर उठा लेता है यही प्रश्न सोचते हैं मनन करते हैं मानते हैं सही नहीं है और फ़िर पीछे धकेल देते हैं प्रश्नो के ढेर में।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी बात शत प्रतिशत सही है, इसे ज़रा भी उचित नहीं कहा जा सकता है
जवाब देंहटाएंसबकुछ जानते हुए भी किसी चीज के प्रति लापरवाह होना हम इंसानों की फितरत बन गयी है। फिर भी कुछ परम्परा जिन्हें हम अच्छा समझते हैं उनमें विद्यमान बुराई समय के साथ जागरूकता आने पर बदलने लगती हैं। आपके प्रश्न का हल भी समय के साथ जागरूकता आने पर जरूर निकलेगा, ऐसा मेरा सोचना है
जवाब देंहटाएंआभार,संगीता जी.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सहमत हूँ आपकी बात से । इसी तरह अगरबत्ती, धूपबत्ती, रोली , कपूर वगैरह के पैकेट पर भी नहीं छपनी चाहिए भगवान की फोटो । वो सब भी कूड़े में जाती हैं ।
जवाब देंहटाएंपैकेटों पर विज्ञापनी फ़ोटो लोंगों की आस्था के दोहन के लिये डाली जाती हैं ,पैकेट सही-सलामत देख कर फाड़ कर फेंका जाना उनकी नियति है.
हटाएंआपने मेरे मन की बात कह दी आदरणीया
जवाब देंहटाएंयह अनुचित है। लेकिन हम इंसान अपनी फितरत से बाज नहीं आते।
इंसान ईश्वर को सक्कर रूप में देख कर मन को एकाग्र कर पाता है इसी लिए भगवान को मूर्तियों के रूप में ढाल कर पूजा जाता है । रही कैलेण्डरों और शादी के कार्ड्स की बात तो बहुत से लोग मूर्तियाँ न खरीद कर पोस्टर या कैलेंडर्स को देख कर ही पूजा कर लेते हैं ।विवाह के लिए मांगलिक कार्य के आधार पर गणेश जी की तस्वीर या उनका लोगो लगा दिया जाता है । अब प्रश्न है कि छापना चाहिए ये नहीं तो सच तो बात यही है कि आस्था को देखते हुए नहीं छापना चाहिए क्योंकि जिस भगवान का आशीर्वाद लेते हैं उनको कूड़े में फेंकना उचित नहीं । समाधान ज़रूरी है ।शादी के कार्ड का तो मन में आया है लेकिन पोस्टर या कैलेंडर का नहीं समझ पा रही हूँ ।
जवाब देंहटाएंकार्ड पर गणेश जी की तस्वीर चावल और दाल चिपका कर बनाई जा सकती है । जिसे बाद में चिड़ियों को डाला जा सकता है ।।
बाकी पेन्डेन्ट के रूप में तो महज़ अपनी आत्मतुष्टि या दिखावे के लिए ही लोग ऐसा करते हैं ।।सार्थक सवाल किया है आपने ।
अपने आराध्य का सम्मान करना है तो सोचना होगा इस सवाल पर ।
बिल्कुल सही प्रश्न है हमें ईश्वर के प्रतीकात्मक
जवाब देंहटाएंतस्वीरों का अपमान नहीं करना चाहिए।
जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनका विरोध होना चाहिए।
विचारणीय प्रश्न
प्रणाम
सादर।
सही कहा आपने श्रद्धा अपनी जगह है परंतु आस्था के नाम पर व्यक्ति को अपनी मनोवृति बदलनी चाहिए। सराहनीय पहल।
जवाब देंहटाएंगज़ब लिखा आदरणीया दी।
सादर
सार्थक प्रश्न ....
जवाब देंहटाएंMera ManNa he ki thodi hi sahi lakin aa to rahi he logo me is soch k prati jagrukta. Bas insan ki jo fitrat he laparwahi ki vo jagrukta se aage nikal jati he mostly. But... Jb jab aise sawal uthte rahenge.... Jagrukta swayam apna path prashast karti rahegi. Pratibha ji ko sadar namaskar k sath aise prashn uthane k liye dhanyavaad... Kyuki ye sawal hamare supt vichaaron ko khatka kar jagate rehte he. 😊
जवाब देंहटाएंआस्था के नाम पर हमेशा गलत ही करते हैं, सोचना चाहिए
जवाब देंहटाएंईश्वर और आस्था के दिखावे पर आपका चिंतन वाकई विचारणीय है, मुझे भी ऐसा ही एक पेंडेंट तोहफे में मिला । कभी ख्याल ही नहीं आया । अब उसे पहनना मुश्किल होगा ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार।
बिल्कुल सही कहा आपने इन सबका सामुहिक विरोध होना चाहिए पटाखों फुलझड़ियों में , कैलेण्डर में यहाँ तक कि समाचार पत्रों में भी ये तस्वींरें छपती हैं और फिर कूड़े के ढ़ेर में या यूँ ही रास्तों में पैरों तले कुचली जाती हैं..।
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारणीय।
मैं आभारी हूँ आप सबकी,सुशील जी, अनिता जी,कविता जी,उषाकिरण जी,अभिलाषा जी,श्वेता जी,अनीता जी,मुदिता जी.काश बेनामी जी का शुभनाम भी जान पाती,भारती जी,,जिग्यासा जीऔर सुधा जी-संगीताजी को तो विशेष श्रेय जाता है ,इस प्रश्न को अपने पटल पर रखने के लिये.
जवाब देंहटाएंआप सब ने ध्यान दिया ,समाधान किसी एक के बस का नहीं ,लेकिन सचेत होकर आवाज़ उठाना जरूरी है .यों व्यक्तिगत स्तर पर हम स्वयं ऐसी वस्तुओँ
का प्रयोग न करें (हमारा परिवार बहुत दिनों से यही कर रहा है).कहीं से तो शुरुआत हो..!
प्रतिभा जी ,
हटाएंआपने इतना सार्थक प्रश्न उठाया है तो लोगों तक पहुँचना ही चाहिए था ।
ये बेनामी के नाम से जो टिप्पणी आयी है मुझे लगता है कि आपकी फैन अनामिका हैं । लेकिन पक्की तरह से नहीं कह सकती ,बस थोड़ा विचार पढ़ कर मुझे लगा ।
सादर
बहुत सही कहा आपने।ये बात लगभग हर इन्सान के मन में कभी ना कभी आती ही है पर हम अनदेखा कर देते हैं ये बातें।आपके परिवार की पहल सराहनीय है।लेकिन सुधा जी ने सच लिखा त्यौहारों के आते ही अखबार धार्मिक चित्रों और प्रतीकों से भर जाते हैं।शादी-ब्याह और अन्य प्रमुख अवसरों पर ज्यादा नहीं गणेश जी तो शोभायमान होते ही हैं।विचारणीय आलेख के लिए बधाई और आभार आपका।निश्चित रूप से मैं भी यथासम्भव इस ओर जरुर कुछ करूँगी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रश्न है |सच लिखा आपने, ईश्वर की फोटो का उचित उपयोग होना चाहिए,अनादर नहीं होना चाहिए |इस ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार आपका 🙏🙏
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