*
(यह आलेख उस समय लिखा गया था जब कलाम साहब भारत के राष्ट्रपति थे ,अटल जी प्रधान मंत्री और कुमारी मायावती उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री .)
*
मेरी मित्र निरुपमा की पुत्री का विवाह था।लडकी की शादी , काम की क्या कमी !हफ्ते भर पहले से हाथ बटानेवालों का आनाजाना शुरू हो गया था ।रिश्तेदार -संबंधियों का आना होने लगा था ।घर में हर समय हलचल मची रहती थी ।नये-नये आने वालों को हर काम तो दिया नहीं जा सकता था ।दुल्हन के जेवर कपडों और सन्दूक सँभालने की जुम्मेदारी निरुपमा ने मुझे सौंप दी थी ।लिस्ट बनाना,हर चीज व्यवस्थित है या नहीं ,कपडों के मैचिंग सेट बनाना ,कहीं कुछ अधूरा तो नहीं रह गया ,क्या -क्या कहाँ-कहाँ से आना है ,भिन्न-भिन्न अवसरों पर दुल्हन क्या पहनेगी उसका पूरा प्रबंध करना मुझे सौंप दिया गया था ।परिवार के दो लडकों और मीता की सहेली शिखा मेरी सहायता के लिये तैनात थीं ।डाइनिंग हाल में एक स्टोर टाइप का कमरा था ,कमरा क्या कोठरी, जिसमें खास-खास सामान रखा जाता था । जेवरों के पिटारे और सन्दूकवाली इस कोठरी की चाबी हमेशा मेरी कमर में खुँसी रहती थी ।डाइनिंग-हाल में हर समय कोई न कोई मौजूद रहता था ,और खाने -नाश्ते के समय तो कुर्सियाँ भरी ही रहती थीं ।मैं अक्सर अपनी चाय नाश्ता अन्दर ले लेती थी ,खुला हुआ सामान बार-बार कौन बन्द करे रितु और निमा मेरी सुविधा का ध्यान रखती थीं ।
परिवार के बुजुर्ग पहले राउंड में भोजन कर जाते थे ,अगली पीढी के खाने का कार्यक्रम बाद में हा-हा हू-हू के साथ देर तक चलता रहता था । शादी का मस्ती भरा माहौल ,भोजन से ज्यादा रस वे बातों में लेते थे ।।लडके -लडकियाँ मिल कर एक-दूसरे की खिंचाई कर रहे थे ।बात-बात पर ठहाकों का शोर !ऐसे ही चर्चा छिड गई ए.पी.जे. कलाम साहब और अपने वाजपेयी जी की ।उस समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं ।
नितिन ने कहा ,'पता नहीं अपने वाजपेयी जी कुँवारे क्यों रह गये ?'
'अरे भई ,हिन्दुस्तान में लडकियों का परसेन्टेज ,लडकों से बराबर कम होता चला जा रहा है ।कुछ को तो कुँवारा रहना ही पडेगा ।वाजपेया जी ने उदाहरण पेश किया है ।'
'ये बात नहीं ,'एक लडकी की आवाज थी ,'वाजपेयी महिला विरोधी हैं ।खाना-आना तो अपना बना ही लेते हैं। ।अपने घर में महिला का शासन उन्हें पसन्द नहीं। पी.एम. हैं ,खुद तो बिजी रहंगे ,घर में पत्नी की ही चलेगी ।'
'वाह री अक्ल की पुटलिया ,पी.एम. तो अब बने हैं शादी की उम्र निकलने के बाद ,' अमन ने टोक दिया
'बात वो नहीं है ।असल में उन्हें बच्चे पसंद नहीं हैं ।शादी की होती तो बच्चे होते ।देखा है कभी उन्हें बच्चों के साथ ?जब कि कलाम साहब को बच्चों के बीच में ही आनन्द आता है ।ये हमेशा बच्चों से बचते हैं ,' बोलनेवाली शिखा थी ।
' नहीं भई ,बात बच्चों से बचने की नहीं है ।आबादी इतनी बढ रही है उस पर भी तो कंट्रोल करना है ।राष्ट्रपति और प्रधान मंक्त्री अगर लालू की राह चल पडें तो सारा देश बिहार बन जायेगा ।'
'तुम गलत सोच रहे हो ।शादी कर ली और बच्चे हुये तो उनके लिये भी ,मेरा मतलब है उनके भविष्य की भी सोचनी पडेगी । देखो न,पंडित नेहरू ने इन्दिरा जी और इन्दिरा जी ने राजीव -संजय को आगे बढाया ।अब सोनिया जी के रहते राहुल-प्रियंका का इन्तजाम हो रहा है ।अपने वाजपेयीजी वंशवाद के खिलाफ़ हैं ।और संतान होगी तो वे खुद नहीं , तो चमचागीरी में और लोग उसे मिनी वाजपेयी कह कर आगे धकियायेंगे ही ,' चमन ने स्पष्ट किया ।
'बेकार की बात !पहले संघ में थे इसलिये शादी नहीं की ,फिर उमर इतनी हो गई कि सोचा होगा ढंग की लडकी मिल भी गई तो लोग हँसेंगे ।
'नहीं भई ,जिस लडकी को चाहते थे उसकी शादी कहीं और हो गई ,इसलिये कुँआरे ही जिन्दगी बिता रहे हैं ,' सूचना देनेवाले बच्चूभाई थे ।
'सच्ची क्या ?तुम्हें कैसे पता लगा ?' शिखा बच्चू की ओर खिसक आई ।
'पता लगने की खूब कही !कई बार ऐसा देखा गया है ।कवि आदमी तो हैं ही स्टूडेन्टलाइफ में ही कोई भा गई होगी !उसी का खामियाजा आज तक भुगत रहे हैं ।'
इसी बीच मोहल्ले की दादी ,बुआ का सहारा लिये डगर-मगर करती आ पहुँचीं थीं।बुआ को पेपर वगैरा पढने का शौक है ,वे बोलीं ,'एक बार पाकिस्तान की कोई महिला इनसे शादी करने को तैयार थी -पेपर में पढा था हमने ।'
'तो कहे नाहीं कर ली ,' दादी पोपले मुँह से कहने लगीं ,'बडा अच्छा मऊका रहे ।दोनों देस एक हुइ जाते ।पहले के राजा महराजा अइसे बियाह करके आपुन ताकत बढावत रहे ।'
'ऐसे विवाह राजनीति के हिसाब से बहुत फायदेमन्द हैं । दादी ,तुम्ही समझाओ न !' रितु अपनी हँसी दबाये थी
'लेकिन हमारे राष्ट्र पति भी तो क्वाँरे हैं ।'
' उनकी हेयर स्टाइल ऐसी है कि लडकियों की तरफ निगाह ही नहीं जाती ।उनके लिये एक का पति होना ही काफी है ।'
'पति ?बिना ब्याह के ,किसके पति ?'
'राष्ट्र के ! पर उन्हें बच्चे पसन्द हैं।दुनियादारी छोड़-छाड़ के जुटे रहे शुरू से अपनी धुन में , अब सारे राष्ट्र के बच्चे उनके बच्चे । '
' पता नहीं आज कल के लडके ,उनसे कुछ सीख क्यों नहीं लेते !स्टूडेन्ट लाइफ में ही गर्ल फ्रेन्ड्स ,और वेलेन्टाइन डे .....।'
'सभी लोग वाजपेयी और कलाम हो गये तो तेरा क्या होगा ,बहना ?'
जोर का ठहाका ! दूसरे ने छौंक लगाया ,' फिर तो इन्हें मायावती बन कर जिन्दगी गुजारनी पडेगी ।'
अब की लडकियाँ शर्माती कहाँ हैं ,चट् से जवाब दिया ,'तब तो सारा बजट बर्थ- डे मनाने में सिमट जायेगा फिर भी कमी पडेगी ।'
दूसरी ने जडा ,'साहूकारों ,अफसरों, बिजनेस और ठेकेवालों से ' लै लै आओ धर-धर जाओ ' वाली नीति लागू कर दी जायेगी ।'
मुक्ता काफी दिन कानपुर में रही थी ,बात का सूत्र उसने अपने हाथ में लिया ,' हम बतायें पूरी बात ?जब अपने पी.एम. अपने पिताजी के साथ कानपुर के डी.ए.वी.कालेज में पढते थे तो इनकी दादी ने इनकी अम्माँ से कहा -काहे अब अटल्लू को बियाह काहे नाहीं करतीं ? घर में बहुरिया आवै ।'
माँ और दादी ने कहा तो कहने लगे अभी तो हमारी और पिताजी की पढाई चल रही है ।पढाई पूरी हो गई । पर ये घर में टिकें तब न ! संघ के स्वयं-सेवक बन कर मारे-मारे घूमते थे ।दादी चाहती थीं पुत-बहू का मुँह देखें ,पडपोता खिलायँ ।कभी इनके पिता से कहें ,कभी माँ से ।माँ की सुनते कहां थे ,भारत माँ के आगे ।
दादी ने एक बार इनके सामने माँ को टोका तो वे खीझ पडीं ,' नाहीं सुनत तो हम का करैं ?आपुन प्राण दै दें का?'और 'प्राण देने की बात सुन कर अटल्लू उठे और बाहर चल दिये ।
रोहित ने विस्मय से पूछा ,'ये प्राण देने की बात कहाँ से आ गई ?'
'पहले ऐसे ही कहा जाता था -प्राण खाये जा रहे हो ,जान ले लो हमारी ,क्यों प्राण दिये दे रहे हो वगैरा-वगैरा ।'
'किसी को इस पर हँसी नहीं आती थी ?कहते -कहते मुक्ता खिलखिला कर हँस पडी ।
' पहले के बच्चे हमलोगों जैसे नहीं थे ,प्राणों की बात सुनते ही दहल जाते थे ।हमारी खुद की दादी ऐसे बोलती थीं । तब बडी जल्दी प्राणों पर बन आती थी ।'
'अब लोग समझदार हो गये हैं ,प्राणों का लेन-देन इतनी आसानी से नहीं होता ।'
'पर बात तो वाजपेयी जी की हो रही थी ।'
'वही तो ,उन्हें लगा अभी तो दादी प्राण देने को तैयार बैठी हैं,कहीं लेने पर तुल बैठीं तो !बस डर कर भाग लिये ।'
'सच कह रही हो ?तुम्हें कैसे पता ?'
' हमारा अन्दाज है कि ऐसा हुआ होगा ।'
' बेकार बको मत ! संघ मे जाने का शौक इन्हें शुरू से था ।स्वयंसेवक का व्रत लिया था ,शादी कैसे करते ?'
'तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे पूछ कर चले आ रहे हो ?'
'तो पूछ भी लेंगे !अबकी बार इधर आयें तो यही सही ।'
ये मैं पहले बता दूँ कि ये लोग थोडे सिरफिरे हैं ,जो कहते हैं कर गुजरते हैं । एक बार एक मंत्री जी को घेर चुके है । तुले बैठे हैं ,मौका मिला तो पूछने से बाज नहीं आयेंगे ।
वाजपेयी जी कभी इधऱ आयें तो आमने -सामने को तैयार रहें .
सुनने की उत्सुकता हमें भी रहेगी ।
(यह आलेख उस समय लिखा गया था जब कलाम साहब भारत के राष्ट्रपति थे ,अटल जी प्रधान मंत्री और कुमारी मायावती उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री .)
*
मेरी मित्र निरुपमा की पुत्री का विवाह था।लडकी की शादी , काम की क्या कमी !हफ्ते भर पहले से हाथ बटानेवालों का आनाजाना शुरू हो गया था ।रिश्तेदार -संबंधियों का आना होने लगा था ।घर में हर समय हलचल मची रहती थी ।नये-नये आने वालों को हर काम तो दिया नहीं जा सकता था ।दुल्हन के जेवर कपडों और सन्दूक सँभालने की जुम्मेदारी निरुपमा ने मुझे सौंप दी थी ।लिस्ट बनाना,हर चीज व्यवस्थित है या नहीं ,कपडों के मैचिंग सेट बनाना ,कहीं कुछ अधूरा तो नहीं रह गया ,क्या -क्या कहाँ-कहाँ से आना है ,भिन्न-भिन्न अवसरों पर दुल्हन क्या पहनेगी उसका पूरा प्रबंध करना मुझे सौंप दिया गया था ।परिवार के दो लडकों और मीता की सहेली शिखा मेरी सहायता के लिये तैनात थीं ।डाइनिंग हाल में एक स्टोर टाइप का कमरा था ,कमरा क्या कोठरी, जिसमें खास-खास सामान रखा जाता था । जेवरों के पिटारे और सन्दूकवाली इस कोठरी की चाबी हमेशा मेरी कमर में खुँसी रहती थी ।डाइनिंग-हाल में हर समय कोई न कोई मौजूद रहता था ,और खाने -नाश्ते के समय तो कुर्सियाँ भरी ही रहती थीं ।मैं अक्सर अपनी चाय नाश्ता अन्दर ले लेती थी ,खुला हुआ सामान बार-बार कौन बन्द करे रितु और निमा मेरी सुविधा का ध्यान रखती थीं ।
परिवार के बुजुर्ग पहले राउंड में भोजन कर जाते थे ,अगली पीढी के खाने का कार्यक्रम बाद में हा-हा हू-हू के साथ देर तक चलता रहता था । शादी का मस्ती भरा माहौल ,भोजन से ज्यादा रस वे बातों में लेते थे ।।लडके -लडकियाँ मिल कर एक-दूसरे की खिंचाई कर रहे थे ।बात-बात पर ठहाकों का शोर !ऐसे ही चर्चा छिड गई ए.पी.जे. कलाम साहब और अपने वाजपेयी जी की ।उस समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं ।
नितिन ने कहा ,'पता नहीं अपने वाजपेयी जी कुँवारे क्यों रह गये ?'
'अरे भई ,हिन्दुस्तान में लडकियों का परसेन्टेज ,लडकों से बराबर कम होता चला जा रहा है ।कुछ को तो कुँवारा रहना ही पडेगा ।वाजपेया जी ने उदाहरण पेश किया है ।'
'ये बात नहीं ,'एक लडकी की आवाज थी ,'वाजपेयी महिला विरोधी हैं ।खाना-आना तो अपना बना ही लेते हैं। ।अपने घर में महिला का शासन उन्हें पसन्द नहीं। पी.एम. हैं ,खुद तो बिजी रहंगे ,घर में पत्नी की ही चलेगी ।'
'वाह री अक्ल की पुटलिया ,पी.एम. तो अब बने हैं शादी की उम्र निकलने के बाद ,' अमन ने टोक दिया
'बात वो नहीं है ।असल में उन्हें बच्चे पसंद नहीं हैं ।शादी की होती तो बच्चे होते ।देखा है कभी उन्हें बच्चों के साथ ?जब कि कलाम साहब को बच्चों के बीच में ही आनन्द आता है ।ये हमेशा बच्चों से बचते हैं ,' बोलनेवाली शिखा थी ।
' नहीं भई ,बात बच्चों से बचने की नहीं है ।आबादी इतनी बढ रही है उस पर भी तो कंट्रोल करना है ।राष्ट्रपति और प्रधान मंक्त्री अगर लालू की राह चल पडें तो सारा देश बिहार बन जायेगा ।'
'तुम गलत सोच रहे हो ।शादी कर ली और बच्चे हुये तो उनके लिये भी ,मेरा मतलब है उनके भविष्य की भी सोचनी पडेगी । देखो न,पंडित नेहरू ने इन्दिरा जी और इन्दिरा जी ने राजीव -संजय को आगे बढाया ।अब सोनिया जी के रहते राहुल-प्रियंका का इन्तजाम हो रहा है ।अपने वाजपेयीजी वंशवाद के खिलाफ़ हैं ।और संतान होगी तो वे खुद नहीं , तो चमचागीरी में और लोग उसे मिनी वाजपेयी कह कर आगे धकियायेंगे ही ,' चमन ने स्पष्ट किया ।
'बेकार की बात !पहले संघ में थे इसलिये शादी नहीं की ,फिर उमर इतनी हो गई कि सोचा होगा ढंग की लडकी मिल भी गई तो लोग हँसेंगे ।
'नहीं भई ,जिस लडकी को चाहते थे उसकी शादी कहीं और हो गई ,इसलिये कुँआरे ही जिन्दगी बिता रहे हैं ,' सूचना देनेवाले बच्चूभाई थे ।
'सच्ची क्या ?तुम्हें कैसे पता लगा ?' शिखा बच्चू की ओर खिसक आई ।
'पता लगने की खूब कही !कई बार ऐसा देखा गया है ।कवि आदमी तो हैं ही स्टूडेन्टलाइफ में ही कोई भा गई होगी !उसी का खामियाजा आज तक भुगत रहे हैं ।'
इसी बीच मोहल्ले की दादी ,बुआ का सहारा लिये डगर-मगर करती आ पहुँचीं थीं।बुआ को पेपर वगैरा पढने का शौक है ,वे बोलीं ,'एक बार पाकिस्तान की कोई महिला इनसे शादी करने को तैयार थी -पेपर में पढा था हमने ।'
'तो कहे नाहीं कर ली ,' दादी पोपले मुँह से कहने लगीं ,'बडा अच्छा मऊका रहे ।दोनों देस एक हुइ जाते ।पहले के राजा महराजा अइसे बियाह करके आपुन ताकत बढावत रहे ।'
'ऐसे विवाह राजनीति के हिसाब से बहुत फायदेमन्द हैं । दादी ,तुम्ही समझाओ न !' रितु अपनी हँसी दबाये थी
'लेकिन हमारे राष्ट्र पति भी तो क्वाँरे हैं ।'
' उनकी हेयर स्टाइल ऐसी है कि लडकियों की तरफ निगाह ही नहीं जाती ।उनके लिये एक का पति होना ही काफी है ।'
'पति ?बिना ब्याह के ,किसके पति ?'
'राष्ट्र के ! पर उन्हें बच्चे पसन्द हैं।दुनियादारी छोड़-छाड़ के जुटे रहे शुरू से अपनी धुन में , अब सारे राष्ट्र के बच्चे उनके बच्चे । '
' पता नहीं आज कल के लडके ,उनसे कुछ सीख क्यों नहीं लेते !स्टूडेन्ट लाइफ में ही गर्ल फ्रेन्ड्स ,और वेलेन्टाइन डे .....।'
'सभी लोग वाजपेयी और कलाम हो गये तो तेरा क्या होगा ,बहना ?'
जोर का ठहाका ! दूसरे ने छौंक लगाया ,' फिर तो इन्हें मायावती बन कर जिन्दगी गुजारनी पडेगी ।'
अब की लडकियाँ शर्माती कहाँ हैं ,चट् से जवाब दिया ,'तब तो सारा बजट बर्थ- डे मनाने में सिमट जायेगा फिर भी कमी पडेगी ।'
दूसरी ने जडा ,'साहूकारों ,अफसरों, बिजनेस और ठेकेवालों से ' लै लै आओ धर-धर जाओ ' वाली नीति लागू कर दी जायेगी ।'
मुक्ता काफी दिन कानपुर में रही थी ,बात का सूत्र उसने अपने हाथ में लिया ,' हम बतायें पूरी बात ?जब अपने पी.एम. अपने पिताजी के साथ कानपुर के डी.ए.वी.कालेज में पढते थे तो इनकी दादी ने इनकी अम्माँ से कहा -काहे अब अटल्लू को बियाह काहे नाहीं करतीं ? घर में बहुरिया आवै ।'
माँ और दादी ने कहा तो कहने लगे अभी तो हमारी और पिताजी की पढाई चल रही है ।पढाई पूरी हो गई । पर ये घर में टिकें तब न ! संघ के स्वयं-सेवक बन कर मारे-मारे घूमते थे ।दादी चाहती थीं पुत-बहू का मुँह देखें ,पडपोता खिलायँ ।कभी इनके पिता से कहें ,कभी माँ से ।माँ की सुनते कहां थे ,भारत माँ के आगे ।
दादी ने एक बार इनके सामने माँ को टोका तो वे खीझ पडीं ,' नाहीं सुनत तो हम का करैं ?आपुन प्राण दै दें का?'और 'प्राण देने की बात सुन कर अटल्लू उठे और बाहर चल दिये ।
रोहित ने विस्मय से पूछा ,'ये प्राण देने की बात कहाँ से आ गई ?'
'पहले ऐसे ही कहा जाता था -प्राण खाये जा रहे हो ,जान ले लो हमारी ,क्यों प्राण दिये दे रहे हो वगैरा-वगैरा ।'
'किसी को इस पर हँसी नहीं आती थी ?कहते -कहते मुक्ता खिलखिला कर हँस पडी ।
' पहले के बच्चे हमलोगों जैसे नहीं थे ,प्राणों की बात सुनते ही दहल जाते थे ।हमारी खुद की दादी ऐसे बोलती थीं । तब बडी जल्दी प्राणों पर बन आती थी ।'
'अब लोग समझदार हो गये हैं ,प्राणों का लेन-देन इतनी आसानी से नहीं होता ।'
'पर बात तो वाजपेयी जी की हो रही थी ।'
'वही तो ,उन्हें लगा अभी तो दादी प्राण देने को तैयार बैठी हैं,कहीं लेने पर तुल बैठीं तो !बस डर कर भाग लिये ।'
'सच कह रही हो ?तुम्हें कैसे पता ?'
' हमारा अन्दाज है कि ऐसा हुआ होगा ।'
' बेकार बको मत ! संघ मे जाने का शौक इन्हें शुरू से था ।स्वयंसेवक का व्रत लिया था ,शादी कैसे करते ?'
'तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे पूछ कर चले आ रहे हो ?'
'तो पूछ भी लेंगे !अबकी बार इधर आयें तो यही सही ।'
ये मैं पहले बता दूँ कि ये लोग थोडे सिरफिरे हैं ,जो कहते हैं कर गुजरते हैं । एक बार एक मंत्री जी को घेर चुके है । तुले बैठे हैं ,मौका मिला तो पूछने से बाज नहीं आयेंगे ।
वाजपेयी जी कभी इधऱ आयें तो आमने -सामने को तैयार रहें .
सुनने की उत्सुकता हमें भी रहेगी ।