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राम कहो ...
मेरे पति की आदत थी हमारी नन्हीं-सी बेटी की छोटी-सी गोद में किसी प्रकार सिर टिका कर कहते थे 'निन्ना आ रही है 'और वह दोनों हथेलियों से थपक-थपक कर लोरी गा कर सुलाने लगती थी.कभी ऊँ-ऊँ करेके रोने का नाटक करते तो लाड़ लडाना शुरू कर देती थी.
केवल मेरी बेटी नहीं मैने अन्य बालिकाओं में भी यही वात्सल्य उमड़ते देखा है जैसे प्रकृति प्रदत्त उनके स्वभाव में हो .इसमें वे बड़ा-छोटा नहीं देखतीं.
इसलिये जब स्मृति ईरानी ने उस छात्र के लिये 'बच्चे' शब्द का प्रयोग किया तो मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगा .उम्र में काफ़ी छोटा होगा सो वात्सल्य प्रकट कर दिया , उस छात्र (आदमी कहूँ क्या?)की आपत्ति देख कर कुछ विचित्र लगा पर पर लक्षण देख कर मामला समझ में आने लगा. 'मातृवत् परदारांश्च परद्रव्याणि लोष्ठवत्' वाली उक्ति इस कोटि के लोगों को बेकार की बात लगती है. मुफ़्तखोरों को ऐसी बातें बकवास लगती हैंजो उनके मौज-मज़े में थोड़ा भी खलल डालें.परायी स्त्री में मातृभाव देखना उनके लिये वैसा ही है जैसे गधे के सिर पर सींग ' खोजना.दूसरों की गाढ़ी कमाई पर मौज करना ऊपर से गुर्राना उनकी आदत है . जैसा अन्न वैसा ही मन .सारी बेतुकी बहस उनकी छूछी बौद्धिकता की उपज है .
मेरे पति की आदत थी हमारी नन्हीं-सी बेटी की छोटी-सी गोद में किसी प्रकार सिर टिका कर कहते थे 'निन्ना आ रही है 'और वह दोनों हथेलियों से थपक-थपक कर लोरी गा कर सुलाने लगती थी.कभी ऊँ-ऊँ करेके रोने का नाटक करते तो लाड़ लडाना शुरू कर देती थी.
केवल मेरी बेटी नहीं मैने अन्य बालिकाओं में भी यही वात्सल्य उमड़ते देखा है जैसे प्रकृति प्रदत्त उनके स्वभाव में हो .इसमें वे बड़ा-छोटा नहीं देखतीं.
इसलिये जब स्मृति ईरानी ने उस छात्र के लिये 'बच्चे' शब्द का प्रयोग किया तो मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगा .उम्र में काफ़ी छोटा होगा सो वात्सल्य प्रकट कर दिया , उस छात्र (आदमी कहूँ क्या?)की आपत्ति देख कर कुछ विचित्र लगा पर पर लक्षण देख कर मामला समझ में आने लगा. 'मातृवत् परदारांश्च परद्रव्याणि लोष्ठवत्' वाली उक्ति इस कोटि के लोगों को बेकार की बात लगती है. मुफ़्तखोरों को ऐसी बातें बकवास लगती हैंजो उनके मौज-मज़े में थोड़ा भी खलल डालें.परायी स्त्री में मातृभाव देखना उनके लिये वैसा ही है जैसे गधे के सिर पर सींग ' खोजना.दूसरों की गाढ़ी कमाई पर मौज करना ऊपर से गुर्राना उनकी आदत है . जैसा अन्न वैसा ही मन .सारी बेतुकी बहस उनकी छूछी बौद्धिकता की उपज है .
हे स्मृति, -तुम सुन्दर हो ,युवा हो
(मुझे लगती हो ), जम कर बोलती हो और वह भी सोच-समझ कर कि साधारण दिमाग़वाला तक कन्विंस हो जाय .
क्यों
कुछ लोगों की बोलती बंद करने पर उतारू हो ?और तुम्हारे लिये हो मातृभाव की
स्वीकृति या सम्मान ,उन लोगों में जो प्रतिद्वंद्वितापूर्ण महिषासुरी भाव
से भरे हों ?
अरे , राम कहो !
*
अरे , राम कहो !
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- प्रतिभा सक्सेना.