आंचलिक बोली के माधूर्य से पगी यह कथा जिस प्रश्न पर जाकर समाप्त होती है, उस प्रश्न का इम्पैक्ट (इसका हिन्दी पर्याय कदाचित वह आघात नहीं करता मेरे लिये, जो इस कथा में है) इस कथा के पाठक को एक प्रश्न के साथ ही छोड़ जाता है. और यही इस कथा की सार्थकता है. सामान्यत: जो प्रश्न तथाकथित पढे-लिखे लोगों के मन में नहीं आते, वो ऐसे ही भोले अनपढ़ लोग पूछ बैठते हैं!! गाँधी के प्रयोगों के नारीकरण पर देखें विद्वज्जनों के क्या विचार हैं!!
आदरणीया मुझे क्षमा करें । दरअसल कथा का अन्तिम अंश व आपका प्रश्न ही कथा के उद्देश्य को लगभग अर्थहीन बना रहा है । गान्धी जी के प्रति आदर या अनादर का भाव बेशक अपनी निजी राय होसकती है । फिर भी एन डी तिवारी या आज के नेताओं की चरित्र-हीनता का प्रेरणा-स्रोत गान्धी जी को बनाना अनुचित ही नही असत्य भी है जो आपके अनुत्तरित प्रश्न से स्पष्ट ध्वनित होता है भानमती की समझ में गान्धी-मारग दैहिक स्वेच्छाचार और स्त्री-लोलुप मानसिकता का प्रतीक है । गान्धी जी का इससे बडा अवमूल्यन हो नही सकता । सलिल भैया ने जिसे ग्रामीणों का भोलापन कहा है वह वास्तव में धूर्त्ततापूर्ण अत्यल्पज्ञता है जो कुछ लोगों द्वारा फैलाई गई अर्धसत्य बातों की देन है । एक बार पुनः क्षमा याचना ..।
गिरिजा दीदी! मुझे कथा के अंतिम अंश से कतई यह आभास नहीं हो रहा है कि एन.डी.तिवारी या अन्य नेताओं की चरित्रहीनता का प्रेरणा-स्रोत गाँधी जी को बताया गया है. गाँधी जी के कई प्रयोग उनकी ज़िद्दीपन को दर्शाते हैं जो उनके लिये व्यवहारिक हो सकते थे, पर दूसरों पर उन्हें थोपना सर्वथा अनुचित था. गाँधी जी के जिस प्रयोग की ओर भानमती ने इशारा किया है तथा उसकी सार्वभौमिकता पर प्रश्न चिह्न लगाया है, उसका उचित उत्तर क्या हो सकता है?? ओशो को भी लोगों ने इसी प्रकार बदनाम किया था, बिना उनको समझे-बूझे-जाने. आज उनके प्रवचन स्टैटस सिम्बल की श्रेणी में गिने जाते हैं. गाँधी जी के जीवन की एक ऐसी ही घटना (उसका वर्णन उचित नहीं) यदि किसी सामान्य व्यक्ति के जीवन में घटी होती तो घटिया आदमी कहा जाता वो. यहाँ एन डी तिवारी या अन्य के लिये गाँधी को प्रेरणा-स्रोत नहीं बताया गया है, बल्कि उस पार्टी को उनकी विरासत बताया गया है जिनका ये नेता प्रतिनिधित्व करते हैं और जिनके लिये गाँधी उनके निजी ब्राण्ड हैं!! भानमती का प्रश्न भोलेपन की परिभाषा में न भी आये तो समझदारी से पूछा गया एक व्यंग्य तो है ही!! आपने स्पषटता से अपने विचार रखे इसके लिये आभार!!
बिहारीबन्धु ने अत्यन्त सटीक उत्तर दिया है । गाँधी जी ने अपने ब्रह्मचर्यके परीक्षण अथवा प्रयोग के लिये जो कुछ किया , उस पर बहुतों ने प्रश्नचिह्न लगाया है । उनके बेटों ने और प्राइवेट सेक्रेटरी ने भी , जो विरोध प्रगट करने हेतु उनकी सेवा से दूर चले गए थे । इस विषय पर बहुत कुछ प्रमाणों के साथ लिखा जा चुका है । फिर यदि अनपढ़ भानमती ने जिज्ञासा प्रगट कर दी तो क्या बुरा किया । भाँग के नशे में कहने वाले को क्या दोष दें ? क्या एक धोबी ने राम द्वारा सीता को स्वीकार करने के लिये ऐसा ही उदाहरण नहीं दिया था ? फिर राम ने सीता को त्याग भी दिया । इसघटना के उल्लेख से अवमानना का कोई प्रश्न नहीं उठता है । तथ्य तो तथ्य ही रहेंगे । किसी महान व्यक्ति का भी कोई आचरण यदि अनुचित हो , तो भी उस पर पर्दा डालना या स्वीकार कर लेना न्यायसंगत और उचित नहीं माना जा सकता है । किसी गाँधीभक्त के द्वारा भानमती के लिये अल्पज्ञऔर असभ्य शब्दों का प्रयोग शोभा नहीं देता है ।
shikha ji jaisa haal hai mera bhi. honth yatha sthan aa hi nahi rahe. aur dimag hai ki apki maan ki modak muskaan aur apke bhole se chehre ko antardhyan sa ho kar dekhe ja raha hai. kitna keemti hota tha na sau ka note. Mera bachpan apni bua k pas beeta hai, bachpan me vo bhi yahi batati thi ....ki bahut sasta jamana tha. kuchh aisi keemte batati thi. kahani padh kar maja aa gaya.
आंचलिक बोली के माधूर्य से पगी यह कथा जिस प्रश्न पर जाकर समाप्त होती है, उस प्रश्न का इम्पैक्ट (इसका हिन्दी पर्याय कदाचित वह आघात नहीं करता मेरे लिये, जो इस कथा में है) इस कथा के पाठक को एक प्रश्न के साथ ही छोड़ जाता है. और यही इस कथा की सार्थकता है.
जवाब देंहटाएंसामान्यत: जो प्रश्न तथाकथित पढे-लिखे लोगों के मन में नहीं आते, वो ऐसे ही भोले अनपढ़ लोग पूछ बैठते हैं!! गाँधी के प्रयोगों के नारीकरण पर देखें विद्वज्जनों के क्या विचार हैं!!
आदरणीया मुझे क्षमा करें । दरअसल कथा का अन्तिम अंश व आपका प्रश्न ही कथा के उद्देश्य को लगभग अर्थहीन बना रहा है । गान्धी जी के प्रति आदर या अनादर का भाव बेशक अपनी निजी राय होसकती है । फिर भी एन डी तिवारी या आज के नेताओं की चरित्र-हीनता का प्रेरणा-स्रोत गान्धी जी को बनाना अनुचित ही नही असत्य भी है जो आपके अनुत्तरित प्रश्न से स्पष्ट ध्वनित होता है भानमती की समझ में गान्धी-मारग दैहिक स्वेच्छाचार और स्त्री-लोलुप मानसिकता का प्रतीक है । गान्धी जी का इससे बडा अवमूल्यन हो नही सकता । सलिल भैया ने जिसे ग्रामीणों का भोलापन कहा है वह वास्तव में धूर्त्ततापूर्ण अत्यल्पज्ञता है जो कुछ लोगों द्वारा फैलाई गई अर्धसत्य बातों की देन है । एक बार पुनः क्षमा याचना ..।
जवाब देंहटाएंगिरिजा दीदी!
जवाब देंहटाएंमुझे कथा के अंतिम अंश से कतई यह आभास नहीं हो रहा है कि एन.डी.तिवारी या अन्य नेताओं की चरित्रहीनता का प्रेरणा-स्रोत गाँधी जी को बताया गया है. गाँधी जी के कई प्रयोग उनकी ज़िद्दीपन को दर्शाते हैं जो उनके लिये व्यवहारिक हो सकते थे, पर दूसरों पर उन्हें थोपना सर्वथा अनुचित था.
गाँधी जी के जिस प्रयोग की ओर भानमती ने इशारा किया है तथा उसकी सार्वभौमिकता पर प्रश्न चिह्न लगाया है, उसका उचित उत्तर क्या हो सकता है?? ओशो को भी लोगों ने इसी प्रकार बदनाम किया था, बिना उनको समझे-बूझे-जाने. आज उनके प्रवचन स्टैटस सिम्बल की श्रेणी में गिने जाते हैं.
गाँधी जी के जीवन की एक ऐसी ही घटना (उसका वर्णन उचित नहीं) यदि किसी सामान्य व्यक्ति के जीवन में घटी होती तो घटिया आदमी कहा जाता वो. यहाँ एन डी तिवारी या अन्य के लिये गाँधी को प्रेरणा-स्रोत नहीं बताया गया है, बल्कि उस पार्टी को उनकी विरासत बताया गया है जिनका ये नेता प्रतिनिधित्व करते हैं और जिनके लिये गाँधी उनके निजी ब्राण्ड हैं!!
भानमती का प्रश्न भोलेपन की परिभाषा में न भी आये तो समझदारी से पूछा गया एक व्यंग्य तो है ही!!
आपने स्पषटता से अपने विचार रखे इसके लिये आभार!!
हा हा हा. हँस लूँ पहले फिर कुछ और लिखूंगी। । मजा आ गया प्रतिभा जी, जबाब नहीं आपका।
जवाब देंहटाएंबिहारीबन्धु ने अत्यन्त सटीक उत्तर दिया है । गाँधी जी ने अपने ब्रह्मचर्यके परीक्षण अथवा प्रयोग के लिये जो कुछ किया , उस पर
जवाब देंहटाएंबहुतों ने प्रश्नचिह्न लगाया है । उनके बेटों ने और प्राइवेट सेक्रेटरी ने
भी , जो विरोध प्रगट करने हेतु उनकी सेवा से दूर चले गए थे । इस विषय पर बहुत कुछ प्रमाणों के साथ लिखा जा चुका है । फिर यदि
अनपढ़ भानमती ने जिज्ञासा प्रगट कर दी तो क्या बुरा किया । भाँग के
नशे में कहने वाले को क्या दोष दें ? क्या एक धोबी ने राम द्वारा सीता
को स्वीकार करने के लिये ऐसा ही उदाहरण नहीं दिया था ? फिर राम ने सीता को त्याग भी दिया । इसघटना के उल्लेख से अवमानना का कोई प्रश्न नहीं उठता है । तथ्य तो तथ्य ही रहेंगे । किसी महान व्यक्ति का भी कोई आचरण यदि अनुचित हो , तो भी उस पर पर्दा डालना या स्वीकार कर लेना न्यायसंगत और उचित नहीं माना जा सकता है । किसी गाँधीभक्त के द्वारा भानमती के लिये अल्पज्ञऔर असभ्य शब्दों का प्रयोग शोभा नहीं देता है ।
वाह शकुन्तला जी , क्या बात है । अब तो मुझे भानमती की जगह खुद को अल्पज्ञ व असभ्य कहना चाहिये ।
जवाब देंहटाएंshikha ji jaisa haal hai mera bhi. honth yatha sthan aa hi nahi rahe. aur dimag hai ki apki maan ki modak muskaan aur apke bhole se chehre ko antardhyan sa ho kar dekhe ja raha hai. kitna keemti hota tha na sau ka note. Mera bachpan apni bua k pas beeta hai, bachpan me vo bhi yahi batati thi ....ki bahut sasta jamana tha. kuchh aisi keemte batati thi. kahani padh kar maja aa gaya.
जवाब देंहटाएंaww....post to hai hi nai :( merko pichhli dafe samajh nai aayi thi..dubarapadhne aayi thi :''-(
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