*
छूट माँगने में कोई शर्म नहीं हमारे यहाँ किसी को ! सिर पर चढ़ के माँगते हैं ,जैसे दूसरे इनका उधार खाए बैठे हैं.
छूट लेने की तो जैसे हमारी राष्ट्रीय आदत बन चुकी है .
अरे भई ,क्यों छूट लोगे ?अपाहिज हो ? लाचार हो ?जब ठीक-ठाक हो तो क्यों दूसरों के सिर सवार होना चाहते हो !
और हमारे यहाँ , बचपन से यही शिक्षा - लीजिये सुन लीजिये -
अगर सुनने से मन को चोट पहुँचे तो पहले ही क्षमा माँगे लेती हूँ .दूसरे देशों में मैंने एक चीज़ देखी -स्ट्रिक्ट हो कर बच्चों से माता-पिता वही करवाते हैं जो नियम के अनुसार है ,अनुशासन में रहने की शुरू से आदत पड़ती है .अपने पर नियंत्रण रखना सीखते हैं हमारे यहाँ मारे लाड़ के शुरू से नियम -भंग करवाने लोगों को कोई संकोच नहीं होता .
अरे, बच्चा है कह कर ,खुली छूट दे देंगे उसे .
कहाँ की बात है ये नहीं बताऊंगी. नहीं,कि कहीं मुझे ही न गरियाने लगें . अपने देश की महिमा के आगे .दूसरों की तारीफ़ सुनना हमें गवारा कहाँ !आचार-व्यवहार दो कौड़ी का रह गया हो चाहे ,पर अपनी डींग हाँकने में सबसे आगे !.हाँ दूसरों की फ़ालतू चीज़ों की नकल करने में पीछे नहीं रहेंगे. ढंग की आदतें अपनाने में तौहीन होती है .अब अधिक नहीं कहूँगी -फौरन कोई फ़तवा मिल सकता है
हाँ, तो हुआ यह कि जिस कांप्लेक्स में हम रहने गए ,वहाँ लॉन घास से सजे थे , साइकिल चलाने के लिए अलग से ट्रेलें बनी थीं ,माता-पिता शुरू से बच्चों को साध लेते.
बच्चे नीचे उतरते ,बाइक ट्रेल पर बाइक चलाते . लॉन की शोभा भी यथावत् बनी रहती थी .
कुछ नये भारतीय परिवारों का आगमन हुआ. माँ-बाप अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे .अब बात नीचे बाइक चलाने की ,उनने अपने प्यारे बच्चे से कहा,'जा बेटा चला ले यहीं सामने.'
'नहीं ,बाइक के लिए अलग से ट्रेल बनी हुई है ,इधर मत भेजिए .'
'अरे बच्चा है ,ज़रा चला लेगा तो क्या बिगड़ जाएगा !जाओ,बेटा ,बस एक चक्कर लगाना .हम देख रहे हैं.'
और उन्होंने उस उगी हुई घास पर बच्चे को बाइक चलाने भेज दिया .
फिर मुझसे बोलीं ,एकाध बार में कुछ नहीं होता .कौन हमेशा चलानी है! बच्चा ही तो है. इतने में कुछ नहीं होता. आप तो ज़्यादा ही सोचती हैं ?'
हाँ ,तुम्हारा ही तो प्यारा बच्चा है ,और सभी अगर एकाध बार करने लगे तो इस सुन्दर लॉन का तो सत्यनाश हो जाएगा !
अगर कोई टोक दे तो उन्हें लगता है हम कठोर हृदय हैं . उनके बच्चे के विशेषाधिकार का हनन हो रहा है.पीछे-पीछे ये भी कह देंगी .अपना बच्चा होता तो ...'
अब एक ने चलाई तो औरों के लिए रास्ता खुला. बच्चों को शुरू से समझ आने लगती है कि नियम ,मानना न मानना ,अपने पर निर्भर है जितनी हो सके छूट ले लो.
यहाँ तो लोगों को लगता है बड़े शान की बात है विशेषाधिकार माँगना .दूसरों के सिर पर चढ़ कर रहने में जो मज़ा है वह बराबरी से रहने में में कहाँ !
मुफ़त खोरों का पूरा वर्ग का वर्ग है -जो खाता भी है और ग़ुर्राता भी है
छूट लेने में शान है ,,दूसरों के सिर पर चढ़े रहने में बड़प्पन है .मंत्री ,नेता सब सामान्यजन को दुविधा दे कर सुविधा-लाभ करते हैं .
क्यों उन्हें स्पेशल-क्लास ,क्यों ,विशेष व्यवहार ,लाल बत्ती ,उनका कोटा ?
अरे , कोटे की बात !कोटे वाले लोगों की बहुतायत हैं यहाँ - दूसरों के हिस्से पर हमेशा नियत लगाये. अपने दम पर रहने की आदत शुरू से रही नहीं न !
सब की तरह रह कर काम करना पड़े तो एक दिन में दिमाग़ ठिकाने आ जाय ,,
कभी टोक दो तो उन्हें लगेगा उनके अधिकार में बाधा पड़ी .
जब और लोग बिना बिजली गर्मी में झुलस रहे हों , तब एसी. की हवा और शीतल लगती होगी !.
लोगों को टूटी सड़कों पर गड्ढों में गिरते देख ,अपने मुफ्त के बँगलों से जनता की कमाई के पैसों की कार से धूल उड़ाते सर्र से निकलने में कितनी तृप्ति होती होगी .
क्या और लोगों की श्रमशीलता ,,नियमों का सम्मान, कार्य के प्रति निष्ठा , दोहरा व्यवहार या दिखावा नहीं ,ये गुण क्यों नहीं अपनाए जाते .अच्छी आदतें लेते ज़ोर पड़ता है .और मौज-मज़े की बातें फौरन सिर चढ़ा लो .
महिलायें तो और खास तौर से ,
मैंने देखा वहाँ खाली समय मे अस्पतालों में ,सहायता करने जाना ,सामाजिक सेवा के काम और हाँ अच्छी तरह रहती भी हैं अपनी रुचि से .
और यहाँ खाली हैं तो किटी-पार्टी ,टी.वी ,गहनों -कपड़ों का दिखावा दुनिया भर की फ़ालतू चर्चायें ,
हमारी भारतीय मातायें अपने ख़ुद के बच्चे को भी अपनी भाषा नहीं सिखा ,अंग्रेजी़ में जो शान है ,हिन्दी में कहाँ !
और पुरुष ,रँग जाते हैं उसी रंग में .क्या -क्या कहा जाय भाषा- भूषा ,संस्कार .त्योहार ,पता नहीं कुछ बचेगा भी कि नहीं .अपने देश में भी -पराए देश में भी
ऐसे से ही ,सड़कों पर .जहाँ रुकना है वहां रुकेंगे नहीं ,,गति पर नियंत्रण रखने में परेशानी .जहाँ मौका देखा .छूट ले ली कभी अपने मनमाने ढंग से ,कभी शोर मचा कर .
स्वतंत्र होने का पहला लक्षण - नियम मानने में हेठी होती है ,नियम को तोड़ना बहादुरी है !
अनुशासन में रहना कमज़ोरी का लक्षण है-(जहाँ मौका मिले समर्थ बनो )
रास्ते में थूकना ,सड़क पर कूड़ा डाल देना ,जहाँ तहाँ सड़कें रोक लेना और तमाम बातें जिन्हें सब जानते हैं . कहाँ तक गिनाई जायँ ? अगर ,कोई मना करे तो लड़ने पर आमादा , कहेंगे,' क्या तुम्हारे बाप की सड़क है ?'
हमारे नहीं , तुम्हारे पिता-श्री की होगी तभी न पुश्तैनी अधिकार है दुरुपयोग करने का.
अपनी कमियों पर ध्यान दिलाया है दूसरों की अच्छाइयों गिनाई हैं .दूसरों की कमियाँ बताती तो अपने लिए गौरव की बात होती ,उनकी अच्छाइयाँ सुनने में शायद लज्जा का अनुभव हो और संभव है मुझे कोई ज़ोरदार उपाधि प्रदान कर दी जाय !
अब जो हो - ओखली में सिर दे ही दिया तो मूसलों का डर क्या !
*
- भानमती
छूट माँगने में कोई शर्म नहीं हमारे यहाँ किसी को ! सिर पर चढ़ के माँगते हैं ,जैसे दूसरे इनका उधार खाए बैठे हैं.
छूट लेने की तो जैसे हमारी राष्ट्रीय आदत बन चुकी है .
अरे भई ,क्यों छूट लोगे ?अपाहिज हो ? लाचार हो ?जब ठीक-ठाक हो तो क्यों दूसरों के सिर सवार होना चाहते हो !
और हमारे यहाँ , बचपन से यही शिक्षा - लीजिये सुन लीजिये -
अगर सुनने से मन को चोट पहुँचे तो पहले ही क्षमा माँगे लेती हूँ .दूसरे देशों में मैंने एक चीज़ देखी -स्ट्रिक्ट हो कर बच्चों से माता-पिता वही करवाते हैं जो नियम के अनुसार है ,अनुशासन में रहने की शुरू से आदत पड़ती है .अपने पर नियंत्रण रखना सीखते हैं हमारे यहाँ मारे लाड़ के शुरू से नियम -भंग करवाने लोगों को कोई संकोच नहीं होता .
अरे, बच्चा है कह कर ,खुली छूट दे देंगे उसे .
कहाँ की बात है ये नहीं बताऊंगी. नहीं,कि कहीं मुझे ही न गरियाने लगें . अपने देश की महिमा के आगे .दूसरों की तारीफ़ सुनना हमें गवारा कहाँ !आचार-व्यवहार दो कौड़ी का रह गया हो चाहे ,पर अपनी डींग हाँकने में सबसे आगे !.हाँ दूसरों की फ़ालतू चीज़ों की नकल करने में पीछे नहीं रहेंगे. ढंग की आदतें अपनाने में तौहीन होती है .अब अधिक नहीं कहूँगी -फौरन कोई फ़तवा मिल सकता है
हाँ, तो हुआ यह कि जिस कांप्लेक्स में हम रहने गए ,वहाँ लॉन घास से सजे थे , साइकिल चलाने के लिए अलग से ट्रेलें बनी थीं ,माता-पिता शुरू से बच्चों को साध लेते.
बच्चे नीचे उतरते ,बाइक ट्रेल पर बाइक चलाते . लॉन की शोभा भी यथावत् बनी रहती थी .
कुछ नये भारतीय परिवारों का आगमन हुआ. माँ-बाप अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे .अब बात नीचे बाइक चलाने की ,उनने अपने प्यारे बच्चे से कहा,'जा बेटा चला ले यहीं सामने.'
'नहीं ,बाइक के लिए अलग से ट्रेल बनी हुई है ,इधर मत भेजिए .'
'अरे बच्चा है ,ज़रा चला लेगा तो क्या बिगड़ जाएगा !जाओ,बेटा ,बस एक चक्कर लगाना .हम देख रहे हैं.'
और उन्होंने उस उगी हुई घास पर बच्चे को बाइक चलाने भेज दिया .
फिर मुझसे बोलीं ,एकाध बार में कुछ नहीं होता .कौन हमेशा चलानी है! बच्चा ही तो है. इतने में कुछ नहीं होता. आप तो ज़्यादा ही सोचती हैं ?'
हाँ ,तुम्हारा ही तो प्यारा बच्चा है ,और सभी अगर एकाध बार करने लगे तो इस सुन्दर लॉन का तो सत्यनाश हो जाएगा !
अगर कोई टोक दे तो उन्हें लगता है हम कठोर हृदय हैं . उनके बच्चे के विशेषाधिकार का हनन हो रहा है.पीछे-पीछे ये भी कह देंगी .अपना बच्चा होता तो ...'
अब एक ने चलाई तो औरों के लिए रास्ता खुला. बच्चों को शुरू से समझ आने लगती है कि नियम ,मानना न मानना ,अपने पर निर्भर है जितनी हो सके छूट ले लो.
यहाँ तो लोगों को लगता है बड़े शान की बात है विशेषाधिकार माँगना .दूसरों के सिर पर चढ़ कर रहने में जो मज़ा है वह बराबरी से रहने में में कहाँ !
मुफ़त खोरों का पूरा वर्ग का वर्ग है -जो खाता भी है और ग़ुर्राता भी है
छूट लेने में शान है ,,दूसरों के सिर पर चढ़े रहने में बड़प्पन है .मंत्री ,नेता सब सामान्यजन को दुविधा दे कर सुविधा-लाभ करते हैं .
क्यों उन्हें स्पेशल-क्लास ,क्यों ,विशेष व्यवहार ,लाल बत्ती ,उनका कोटा ?
अरे , कोटे की बात !कोटे वाले लोगों की बहुतायत हैं यहाँ - दूसरों के हिस्से पर हमेशा नियत लगाये. अपने दम पर रहने की आदत शुरू से रही नहीं न !
सब की तरह रह कर काम करना पड़े तो एक दिन में दिमाग़ ठिकाने आ जाय ,,
कभी टोक दो तो उन्हें लगेगा उनके अधिकार में बाधा पड़ी .
जब और लोग बिना बिजली गर्मी में झुलस रहे हों , तब एसी. की हवा और शीतल लगती होगी !.
लोगों को टूटी सड़कों पर गड्ढों में गिरते देख ,अपने मुफ्त के बँगलों से जनता की कमाई के पैसों की कार से धूल उड़ाते सर्र से निकलने में कितनी तृप्ति होती होगी .
क्या और लोगों की श्रमशीलता ,,नियमों का सम्मान, कार्य के प्रति निष्ठा , दोहरा व्यवहार या दिखावा नहीं ,ये गुण क्यों नहीं अपनाए जाते .अच्छी आदतें लेते ज़ोर पड़ता है .और मौज-मज़े की बातें फौरन सिर चढ़ा लो .
महिलायें तो और खास तौर से ,
मैंने देखा वहाँ खाली समय मे अस्पतालों में ,सहायता करने जाना ,सामाजिक सेवा के काम और हाँ अच्छी तरह रहती भी हैं अपनी रुचि से .
और यहाँ खाली हैं तो किटी-पार्टी ,टी.वी ,गहनों -कपड़ों का दिखावा दुनिया भर की फ़ालतू चर्चायें ,
हमारी भारतीय मातायें अपने ख़ुद के बच्चे को भी अपनी भाषा नहीं सिखा ,अंग्रेजी़ में जो शान है ,हिन्दी में कहाँ !
और पुरुष ,रँग जाते हैं उसी रंग में .क्या -क्या कहा जाय भाषा- भूषा ,संस्कार .त्योहार ,पता नहीं कुछ बचेगा भी कि नहीं .अपने देश में भी -पराए देश में भी
ऐसे से ही ,सड़कों पर .जहाँ रुकना है वहां रुकेंगे नहीं ,,गति पर नियंत्रण रखने में परेशानी .जहाँ मौका देखा .छूट ले ली कभी अपने मनमाने ढंग से ,कभी शोर मचा कर .
स्वतंत्र होने का पहला लक्षण - नियम मानने में हेठी होती है ,नियम को तोड़ना बहादुरी है !
अनुशासन में रहना कमज़ोरी का लक्षण है-(जहाँ मौका मिले समर्थ बनो )
रास्ते में थूकना ,सड़क पर कूड़ा डाल देना ,जहाँ तहाँ सड़कें रोक लेना और तमाम बातें जिन्हें सब जानते हैं . कहाँ तक गिनाई जायँ ? अगर ,कोई मना करे तो लड़ने पर आमादा , कहेंगे,' क्या तुम्हारे बाप की सड़क है ?'
हमारे नहीं , तुम्हारे पिता-श्री की होगी तभी न पुश्तैनी अधिकार है दुरुपयोग करने का.
अपनी कमियों पर ध्यान दिलाया है दूसरों की अच्छाइयों गिनाई हैं .दूसरों की कमियाँ बताती तो अपने लिए गौरव की बात होती ,उनकी अच्छाइयाँ सुनने में शायद लज्जा का अनुभव हो और संभव है मुझे कोई ज़ोरदार उपाधि प्रदान कर दी जाय !
अब जो हो - ओखली में सिर दे ही दिया तो मूसलों का डर क्या !
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- भानमती
बात तो सही ही कही है..फिर इतना डरना क्या..हो सकता है सब न ऐसे हों तो अपवाद कहाँ नहीं होते. निश्चिंत रहें...सीख लेने वालों को अच्छी सीख...
जवाब देंहटाएंसही बात !!
जवाब देंहटाएंसही बात कहते समय डरना काहे? प्रतिभा जी बहुत सार्थक चिन्तन है। बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख देती पोस्ट ...अब यहाँ और वहाँ का अन्तर तो है ही ...घुट्टी में पिला दिया जाता है छूट लेने का मन्त्र ..सार्थक चिंतन
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक, और सीख देती पोस्ट। बढिया लगा पढकर। आभार।
जवाब देंहटाएं"अपनी डींग हाँकने में सबसे आगे !.हाँ दूसरों की फ़ालतू चीज़ों की नकल करने में पीछे नहीं रहेंगे।"
जवाब देंहटाएंसच सुनना बहुत अच्छा लगा, संभवतः कोई जागे।
'दूसरों की कमियाँ बताती तो अपने लिए गौरव की बात होती ,उनकी अच्छाइयाँ सुनने में शायद लज्जा का अनुभव हो और संभव है मुझे कोई ज़ोरदार उपाधि प्रदान कर दी जाय !'
जवाब देंहटाएंना ना ! प्रतिभा जी...किसी का कद छोटा कर देने से स्वयं का कद लम्बा कैसे कर सकते हैं....और उपाधि?? हम्म.....उसका कुछ नहीं हो सकता...कहीं न कहीं तो frustration निकलेगा ना उनका जिनको अपनी गलतियां स्वीकार नहीं होंगी.....:/
''अब जो हो - ओखली में सिर दे ही दिया तो मूसलों का डर क्या !''
हम्म...प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर नहीं होता ये भय....मतलब..इस पर भी कोई बढियां सी पंक्तियाँ लिखीं जानी चाहिए थीं.....''एक चीज़ सही न करना..दूसरी चीज़ गलत करना...तीसरी एक और चीज़ होती है......गलत होते हुए देखते रहना उसे रोकने की कोशिश न करना......और कोई रोके अगर तो चुपचाप उसे प्रताड़ित होते देखना......''
खैर, आप कहते रहिये जितना कहना है...क्यूंकि अगर लिखने में भी भय छलकेगा तो लोग सोचेंगे ''अरे ! वाह...सही बातें लिखने में भय हो रहा है...तो सही करने में तो और होता होगा.....:(''
'अच्छी आदतें लेते ज़ोर पड़ता है .और मौज-मज़े की बातें फौरन सिर चढ़ा लो '
इस बात पर आशुतोष राणा (फिल्म कलाकार) की एक बात याद आ rahi है.....उनसे 'फैशन के क्षेत्र में पाश्चात्य संभ्यता का अंधानुकरण' बाबत कुछ पूछा गया था..और उन्होंने जवाब में कहा था.....''आधुनिक विचार अच्छे क्षेत्र में अपनाए जाने चाहिए....आधुनिक दिखने के लिए ये ज़रूरी नहीं कि आपने वेस्टर्न कपड़े शरीर पर पहने हुए हैं....बल्कि वे आपके ज़ेहन पर होने चाहिए..'' मसलन आप पहने हैं मिनी स्कर्ट ...और किसी विधवा स्त्री के पुनर्विवाह पर आपत्ति दर्ज कर रहे हैं......वो भी आज के ज़माने में....तो ये आधुनिकता नहीं आपकी संकीर्ण मानसिकता है...
खैर,
बधाई एक बेहद संतुलित और ईमानदार पोस्ट के लिए.
समीर जी ,कपिला जी ,तरु जी ,
जवाब देंहटाएंडर मुझे बिलकुल नहीं है ,ओखली में सिर देने की पुरानी आदत रही है -जो लगता है बिना कहे चैन नहीं पड़ता.
केवल कुछ सुनाना चाहती थी उन्हें ,जिन्हें ये बातें नहीं भातीं ,कि उनकी साइकॉलाजी का भान है मुझे.
यथार्थ की बेबाक प्रस्तुति । अच्छा लगा पढ़ कर ।
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी आपकी खरी खरी पोस्ट पढ़ कर आनंद आ गया .मेरा भी सारा दिन कुछ इस तरह की ही बातें अपने आस पास वालों को कहने में निकल जाता है ..पीठ पीछे लोग कहतें है कि अरे यह तो सनकी है..
जवाब देंहटाएंबहुत सही.
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