शनिवार, 27 मार्च 2010

पेनोमीटर.

लोगों को हमेशा शिकायत बनी रहती है कि हमारा दर्द कोई नहीं जानता ,कभी कोई नहीं सोचता कि हम पर क्या बीत रही है ।दर्द की शिकायतें हर जगह से आती हैं पर कोई किसी का दर्द बाँटना तो दूर सहानुभूति तक नहीं दे पाता ।पता नहीं कौन कितने दर्द से होकर गुज़र रहा है जानना संभव ही नहीं है । दर्द अंदरूनी चीज़ है शरीर की प्रतिक्रयाओं से उसकी गहराई या तीव्रता का लोग अनुमान करते हैं जो अस्लियत से बहुत दूर होता है ।
कारण यह कि दर्द को मापने का कोई यंत्र अभी तक बना नहीं। पर जब शरीर का ताप मापा जा सकता है आसमान से बरसते पानी का हिसाब रखा जा सकता है तो सामने जो शरीर है उसका दर्द क्यों नहीं मापा जा सकता ?
हमारे यहां के लोगों के दिमाग कुछ कम थोड़े ही है ।हाँ ,यह बात अलग है कि वे अक्सर ही ठीक राह पर नहीं चलते ।
कुछ हमारे नेताओं की कृपा , कुछ ब्यूरॉक्रेसी के चक्रव्यूह, कुछ ठेकेदारों ने (चाहे समाज के हों ,चाहे धर्म के या किसी और के) ऐसी अंधेरगर्दी मचा रखी है कि दिमाग सही रास्ते चलने को तैयार भी हो तो इनके गोरखधंधों में फँस कर बीच रास्तों में बहक जाये ।पर मैंने कहा न अधिकतर ऐसा होता है ,सही रास्ते पर बने रहें ऐसे लोग भी, भले ही कम हों, हैं ।और वे सब कुछ झेलते हुये कर्मलीन रहते हैं । परिणाम सामने आता है तो दुनियाँ की नज़रे उनकी ओर घूम जाती हैं
धन्य हैं हमारे आईआईटियों वाले दिमाग?उन्होंने चुनौती स्वीकार कर ली ।जुट गये अध्ययन-अनुसंधान में में ।चेहरे के अवयवों के फैलाव -सिकुड़ाव ,नयनों का आलोड़न शरीर की नसों-नाड़ियों का संकुचन ,फड़कन ,तिड़कन,दर्द की लहरों के चढाव,फैलाव का ग्राफ़ांकन,आह-कराह का ,,दिमाग से चलनेवाली सूचनाओं का विश्लेषण -सबका लेखांकन कर अपनी प्रयोगशाला में गहन अध्ययन ।जहाँ सुनते दर्द की बात दौड़ जाते -जतालाते , सहानुभूति दिखाते अपनी लैब में लाते ,उसका मन बहलाने के बहाने अपने टेस्ट करते जाते ।आनेवाले सब बताने में सकुचाते पर उनके प्रेम-प्रदर्शन के आगे झुक जाते। किसी से न कहना की तर्ज़ पर अपनी बात बताते ।कभीलोग खौखियाते तिलमिलाते पर ये परम झैर्य से सब सहन करते जाते ।
और दिन रात एक कर उन्होंने पेनोमीटर का निर्माण कर लिया ।कहीं भी दर्द हो लगाइये पेनोमीटर और पता लग जायेगा कितने डिग्री है ।सिर में हाथ मे ,पाँव में शरीर के किसी अंग में पीड़ा हो आधे मिनट मे पता लग जायेगी पीर की गहराई , ।बाकायदा बीप्स देता है यह यंत्र ।किधर से उठ कर पीड़ा, किस अनुक्रम में किधऱ कितना संचार करेगी ,सब जानने की व्यवस्था कर ली गई ।
अब पेटेन्ट कराने के पहले अनुसंधान कर्ता उसे टेस्टिंग पर चला रहे थे ।कुछ अस्पतालों को ,कुछ ऑफ़िसों को कुछ शिक्षण संस्थाओं को लागत मूल्य पर पेनोमीटर दिये गये ।योजना बद्ध तरीके से परिणाम के आधार पर पुनः परीक्षण और फिर निर्माण की प्रक्रिया रह गई ।हाँ एक बात यह रह गई कि कुछ दर्द सोये रहते हैं और समय-समय पर उभरते है ,किसी खास मौसम में । उनकी नाप कैसे हो !और 'दर्दे दिल' जो कुछ लोगों में रह- रह कर जागता है ,उसे कैसे मापें ? तो इस पर भी काम जारी था ।जारी क्या काफ़ी आगे बढ चुका था ।पहली सफलता के बाद इन सूक्ष्म दर्दों को मापने का काम भी अंतिम चरण में पहुँच चुका था ।बड़ी महत्वाकाँक्षी योजना बनी ।देश में तो हाथ के हाथ बिकते ही ,थोक में विदेशों को सप्लाई होते । झूठों की पोल खुलती ,सच्चों का सहानुभूति पूर्वक उपचार होता ।विदेशी मुद्रा से देश का भंडार भर जाता ।
प्लान था छिपे- ढके ढंग से कार्य पूरा करने का करने का ।क्योंकि अगर हल्ला मचा, दुनिया भर में ख़बर फैल गई तो उसके अपने खतरे थे ।आजकल तो दूसरे देश के अनुसंधानों को ,चुराने खरीदने के अलावा मौका लगे तो अनुसंधानकर्ता को धमकियाँ मिलने लगती हैं उस का अपहरण तक हो जाता है ।खतरे कम नहीं ।सो सारा काम बड़े गुपचुप तरीके से चलने लगा। योजना के विषय में कोई कभी न खुल कर बात करता था न अखबारों ,आदि को इसकी महक लगने दी जाती ।कहीं बात फैल गई तो सारा प्रोग्राम ही चौपट हो जाये ।

कुछ संस्थानों और अस्पतालों में बड़ी कांफ़िडेन्स में लेकर टेस्ट के लिये पेनोमीटर दिये गये ।स्कूलों के टीचर तो बिचारे इतने दबंग होते नहीं कि बहाने पर बहाने करते जायें ,डिग्री कॉलेज को चुना गया ।लेनेलाले अधिकारी लोग तो बड़े उत्साह में थे कि अब कामचोरों और बहाने बना कर छुट्टी लेने वालों की पोल खुलेगी ।जरूरतमंद को उसका अधकार मिलेगा ।
लोगों का व्यवहार बदल जायेगा ,क्योंकि उन्हें पता होगा कि किसी के कितना दर्द है वे उसी अनुपात में 'चच्चच,चच्चच' करेंगे जिससे दर्दवाले को सान्त्वना मिलेगी ।
पर सब बंटाढार हो गया ।
हुआ यह कि सरकारी दफ़्तर में एक एसिस्टेन्ट था ।हमेशा काम के मौके पर सिरदर्द ,पेट दर्द का बहाना कर दूसरों पर काम टाल देता था ।अधिकारी ने पेनोमीटर लगाया ।उसकी पोल खुल गई ,जिन लोगों पर उसका काम डाला जाता था खार खाये बैठे थे ,खूब मज़ाक उड़ाया ।पर गये काम से ! वह साला निकला मंत्री जी का ।कहाँ से पेनोमीटर आया मंत्री जी ने अधिकारी से कबुलवा लिया ।झाड़ पड़ी सो तो पड़ी '-बड़े आये हो दर्द मापनेवाले !कौन जानता है कसी की पीड़ा ?बस मज़ाक बना कर रख दिया ।हाँ, आपने डिपार्टमेनट से परमीशन भी ली थी कि मनमानी करने पर उतारू हैं ?' उनकी तो कैरेक्टर रोल इन्ट्री चौपट हो जाती ।बड़े हाथ-पांव जोड़े ,साले जी को सब सुविधायें देने का वादा किया तब माफ़ी मिली ।
और अस्पताल अरे ,जिन मरीज़ों पर प्रयोग हुआ ,बुला लाये अपने सगों को ।वह लानत -मलामत की इन्चार्ज की ऊपर से
बाहर निकलते ही देख लेने की धमकी ।
तौबा कर ली उसने ,बीवी-बच्चों वाला आदमी न।
कॉलेज का तो पूछिये ही मत !सारी यूनियन आ गई मोर्चा लेने । 'प्रिन्सिपल मुर्दाबाद','यै मनमानी नहीं चलेगी ' और धरना ,हड़ताल कुछ नहीं छोड़ा ।हार मान ली बिचारे प्रिन्सपल ने ।कोई उसका अपना इन्टरेस्ट थोड़े ही न था ।

पर यहीं नहीं छोड़ा गया पीछा ।अनुसंधान करनेवाले लड़के क्या, उनके माँ -बाप तक धमका दिये गये ।
और प्रयोगशाला ? एक दिन अखबार में लोगों ने पढ़ा,' देश की जानी-मानी प्रयोगशाला में किसी शोध-छात्र की असावधानी से आग लग गई।कीमती उपकरण बर्बाद हो गये ,सालों की मेहनत से किये गये -शोध अध्ययनों के रिकार्ड जल कर स्वाहा हो गये ।'
सिर पीट कर रह गये वे अध्यवसायी लोग ।
लेकिन अन्यायी का दाँव सदा नहीं चलेगा ! इन जैसे सच्ची लगनवाले होंगे कामयाब एक दिन -और तब होगा सच्चे का बोलबाला ,झूठे का मुँह काला !
-- प्रतिभा सक्सेना .

पत्नी का पल्ला.

*

बंधु जी बड़े सोच में थे .
इधऱ कुछ दिनो से बंधु जी बड़ी उलझन में हैं . किस विषय पर लिखें . .
'क्या टापिक उठाएं समझ में नहीं आ रहा . हास्य-व्यंग्य के सारे विषय लोगों ने जुठा डाले .'
' कुछ सदाबहार विषय भी तो हैं - पत्नी कहीं चली गईं हैं क्या ?'
'अभी ज़रा बाजार गई हैं पर इसमें वह क्या करेंगी ?उन्हें लिखने-लिखाने का ज़रा शौक नहीं .'
थोड़ा आश्चर्य. हुआ .
व्यंग्य लिखनेवालों का दिमाग तो सुना है काफ़ी चलता है ,इनका कहाँ चला गया ? कहीं बिल्कुल ही चल तो नहीं गया .
और अपनी पत्नी पर तो पूरा हक़ हासिल होता है . कोई न मिले पत्नी पर पिल पड़ो . उस पर लिखने के लिये तो पूछने -ताछने, सोचने -विचारने ,दिमाग़ चलाने  की भी ज़रूरत नहीं ,जो लिखो ठीक.सबको थोड़ा तमाशा चाहिये ,उसे सामने कर दो . कोई रूप बनाकर हाज़िर कर दो - अतिशयोक्ति ,अन्योक्ति ,पुनरोक्ति ,व्यंग्योक्ति कटूक्ति -सब जायज़ है यहाँ .कसी को कोई आपत्ति नहीं होगी ,सब मज़े लेंगे .
भई ,कमज़ोर की जोरू दूसरों की भौजाई हुई .और स्पष्ट है लिखनेवाला कमज़ोर है .ताकतवर होता तो.पत्नी को प्रस्तुत कर देने की क्या ज़रूरत थी. सारी दुनिया पड़ी है अपने बल-बूते निपटते .चारों तरफ देखते , डट कर लोहा लेते.अपनी अकल के हथ-पाँव चला कर कुछ मौलिक करते. मेहरारू को घर से बाहर घसीटने की क्या जरूरत थी . काहे को बीवी को आगे कर कदम बढ़ाने की नौबत आती .पर यह बात उनसे सीधे-सीधे नहीं कही जा सकती ,कहीं उटक गये तो और मुश्किल !
हमने सर खुजाया ,फिर कहा-
'काका हाथरसी ने काकी,यानी अपनी पत्नी को ले कर कितना लिखा है .'
' हाँ, हमने पढ़ा है .बड़ा मज़ेदार लिखते हैं .हँसते-हँसते पेट में बल पड़ जाते हैं .'
'तो आप उन पर क्यों नहीं लिखते ?
'उन पर ?,उनकी पत्नी पर ?आपका मतलब है मैं काकी पर लिखूँ .अरे पिटवाना है क्या ??'
'पत्नी ! मेरा मतलब काकी नहीं. भगवान की कृपा से आप भी पत्नीवान हैं .'
उनके ज्ञान-चक्षु खुलते से लगे .हमने अपनी बात जारी रखी -
'सदाबहार विषय है .चाहे जो लिखिये ,कोई खतरा नहीं .वे तो उपकृत होंगी कि आपने उन्हें विषय बनाया, सबके सामने आने का मौका दिया ,लोग उनके बारे में भी जानते हैं.और मान लेओ गुस्सा भी हुईं, तो क्या कर लेंगी आपका ?धीरे धीरे आदत पड़ जायेगी सब झेलने की .आखिर भारत की पत्नी हैं .'
वे कुछ सोच में थे.
 बीच में बोले, 'भारत की पत्नी से मुझे क्या मतलब जब अपनी है . वह तो लड़ने पर आमादा हो जायेगा.'
' ठीक कह रहे हो .डरना मत ,बंधु! सदाबहार विषय हुम्हारे हाथ में है! पति हो पति बन कर जियो .
और उनकी लेखनी धड़ल्ले से चल पड़ी .
उन भली महिला को पति की हरकतों का पता है कि नहीं ,मुझे नहीं मालूम !
*
- प्रतिभा सक्सेना