आदिकालीन कवियों में विद्यपति,मेरे प्रिय कवि रहे हैं.पर मैं आज तक निर्णय नहीं कर पाई कि उनके काव्य में शृंगार की प्रधानता है या भक्ति-भाव की.अन्य कवियों में स्पष्ट पता चल जाता है .सूर तुलसी आदि कवियों का मूल स्वर भक्ति का है .पर विद्यापति ने अपने काव्य में दोनों का मिश्रण कर ऐसा टाफ़्टा बुन डाला कि पता ही नहीं लगता कौन सा स्वर अधिक मुखर है , कठिन है तय करना कि वे कि मूलतः वे भक्ति के कवि हैं या शृंगार के .
शृंगार की गहन रूपासक्ति में भक्ति की उज्ज्वलता ऐसी घुली कि
विलगाना मुश्किल हो गया -
'गिरिवर गरुअ पयोधर परसित गिम गज-मोतिक हारा ,
काम कंबु भरि कनक-संभु पर ढारत सुरधुनि-धारा .'
और ऐसे एक नहीं अनगिनत उदाहरण .
यों तो भक्ति में आराध्या का शृंगार वर्णन मर्यादा के अंतर्गत नहीं आता पर सभी तुलसी नहीं होते .कालिदास ने कुमार-संभव में कोई बाधा नहीं मानी ,सूर कृष्ण के सखा रहे तब वहाँ परदे की गुञ्जाइश कहाँ ?उनके लिये सब जायज़ हो गया .और रीति काल को तो एक आड़ चाहिये थी घोर दैहिकता के लिये .
सौन्दर्य का वर्णन करते समय कवि की भावना भक्ति का भाव धरे है या आसक्ति का - लगता है, फिर से पढ़ना पड़ेगा विद्यापति को !
शृंगार की गहन रूपासक्ति में भक्ति की उज्ज्वलता ऐसी घुली कि
विलगाना मुश्किल हो गया -
'गिरिवर गरुअ पयोधर परसित गिम गज-मोतिक हारा ,
काम कंबु भरि कनक-संभु पर ढारत सुरधुनि-धारा .'
और ऐसे एक नहीं अनगिनत उदाहरण .
यों तो भक्ति में आराध्या का शृंगार वर्णन मर्यादा के अंतर्गत नहीं आता पर सभी तुलसी नहीं होते .कालिदास ने कुमार-संभव में कोई बाधा नहीं मानी ,सूर कृष्ण के सखा रहे तब वहाँ परदे की गुञ्जाइश कहाँ ?उनके लिये सब जायज़ हो गया .और रीति काल को तो एक आड़ चाहिये थी घोर दैहिकता के लिये .
सौन्दर्य का वर्णन करते समय कवि की भावना भक्ति का भाव धरे है या आसक्ति का - लगता है, फिर से पढ़ना पड़ेगा विद्यापति को !
प्रतिभा जी ! विद्यापति ने 'मैथिली' को अपनी सरस कविताओं
जवाब देंहटाएंके माध्यम से शिखर तक पहुंचा दिया ,विद्यापति अद्भुत कवि हैं ।
मुझे लगता है कि बिहारी के इस दोहे को उन्हॉने जिया है-
" तंत्रीनाद कवित्त रस सरस राग रति रंग ।
अनबूडे बूडे , तिरे जे बूडे सब अंग ।"
इसीलिए उन्होंने राम एवम् काम दोनों को बखूबी गाया है ।
बढ़िया विमर्श-
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया-
आज ०४/०६/२०१३ को आपकी यह पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन - काला दिवस पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा विचार विमर्श करती पोस्ट ,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : ऐसी गजल गाता नही,
विद्यापति को बस कोर्स की किताबों में ही पढ़ा है अब ढूंढती हूँ कहीं नेट पर मिले तो ...
जवाब देंहटाएंविद्यापति को आप ही नहीं पढ़ें, हमें भी पढ़ायें
जवाब देंहटाएंअनिता जी और संगीता जी,
हटाएंनेट पर 'कविता कोश' के अन्य भाषाओँ के सेक्शन में 'मैथिली भाषा' विभाग में आपको विद्यापति की पर्याप्त रचनाएँ मिल जायेंगी.राधाकृष्ण पर शृंगार-प्रधान ,और शिव,देवी गंगा आदि पर भक्ति-परक और भी बहुत.
कोई कठिनाई हो तो बताएँ .
खूबसूरत पंक्तियाँ.लाजवाब . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकवि तो श्रंगार की बात करेगा ही, हम भक्तगण उसे भकित मान लेते हैं।
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