मौसम बदल रहा था ।ऐसे दिनों में प्रायः ही ज़ुकाम की शिकायत हो जाती है ।
जब क्लास में खड़े होकर बोलना पड़ता है तो गले में एकदम सुरसुरी और अटकाव के मारे बोल निकलना मुश्किल .
'कुछ लेते क्यों नहीं' कहने की विज्ञापनी परंपरा है सो
एक मित्र ने कहा ने कहा ,' बढ़ा क्यों रही हो ?ऐसे ये ठीक होनेवाला नहीं ।अपनी तो रोज़ गले की कवायद होती है । दवा ले लो ।'
मैंने कहा ,'एलोपैथी की दवा से एकदम खुश्क हो जाता है , लगता है सब अन्दर भर गया ।'
'एलोपैथी क्यों ?इधर कॉलेज के पीछे इधर वाली गली में डॉ. रमेश बैठते हैं ।होमियोपैथी के हैंं ।
भई ,हमें तो उनकी दवा खूब सूट करती है।'
बात तुक की लगी. अगला विषय काव्यशास्त्र - एकदम ठोस और भारी ! गला बीच में अड़ जाए, तो पढ़नेवालों का ध्यान इधर- उधर , कानाफूसी शुरू , मुझे और ज़ोर से बोलना पड़ेगा .
और सबसे बुरी बात पिछले सारे रिफ़रेन्सेज़ उनके दिमाग़ से गोल , आगे पाठ ,पीठे सपाट !
अभी-अभी पत्रकारिता की क्लास ली ,बातें मीडिया की ज़ोरदार और आवाज़ गले में ही रुक-रुक कानाफूसी पर उतारू .
इन्टरवल है, बाद का एक पीरियड फ़्री .
चलो, ले ही ली जाय दवा .
डॉक्टर के पास कई मरीज़ बैठे थे ,चार-छः तो अपनी छात्रायें ही ,पास पड़ता है न !और लड़कियों की आदत ,चलेंगी तो सहेली से कहेंगी -तू भी चल न !एक का काम दो-चार साथ के लिये .
एक महिला अपनी चार-पाँच साल की बच्ची को लाईं थीं -नाम मेघना ,पेट साफ़ न होने की शिकायत.
बोलीं,' थोड़ी-थोड़ी सी होती है और सख़्त भी .'
चट् से डाक्टर बोले ,'आपने उसका नाम भी तो ऐसा ही रखा है .'वही प्यारी-सी बच्ची .
(समझ गये होंगे आप .जैसे गाय का गोबर ,घोड़े की लीद , बकरी की मेंगनी) - बेचारी मेघना !
महिला चुप, कहें तो क्या कहें !सिर झुका ,पर्चा लेकर उठ गईं .
अगली बारी -
लड़कियाँ लिहाज़ के मारे पीछे हो गईं ,मुझे आगे कर दिया .
डॉक्टर के पास बैठ कर फटाफट् हाल कह सुनाया ।उन्होंने ध्यान से हमारी ओर देखा बोले ,' आप क्या रट के आई हैं ?धीरे धीरे बताइये ,फिर से ..'
मैं तो सन्न!
उफ़ , क्या करूँ इस जल्दी बोलने की आदत का !
लाख कोशिश की कभी कंट्रोल में नहीं आई !
वे छात्रायें कुछ मुँह घुमाये थीं, मुस्करा रही होंगी !
आँख उठा कर देखने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ी .
फिर से धीरे-धीरे हाल बताया और दवा ले कर भागी .
पर वहाँ से भागने से क्या होता ,क्लास में तो वही लोग हाज़िर होंगे , अपने संगी-साथियों सहित .
सामना करूँगी जाकर - करना ही पड़ेगा !
*
:):) ऐसा भी होता है कभी कभी .... रोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंचंगा चंचल चिकित्सक, चतुराई से बोल ।
जवाब देंहटाएंस्वस्थ स्वयं को रख रहा, रोगी संग किलोल ।
रोगी संग किलोल, बड़ा बन्दा अलबेला ।
बड़ा चुकाया मोल, रहा रविकर का चेला ।
बोल बोल खुद मौज, लगे जग को बेढंगा ।
संस्मरण यह खूब, दवा यह रखती चंगा ।।
वाह ! शिक्षिका को भी पढ़ाने वाला मिल गया..तभी कहते हैं सीखने के लिए कोई उम्र नहीं होती..रोचक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंजब आप धमाक से नीचे गिर जाएं, तो उतनी शीघ्रता से खड़े भी हो जाते हैं और चारों तरफ नजर घुमाकर देख लेते हैं कि किसी ने देखा तो नहीं। लगने की चिन्ता नहीं होती। ऐसा ही वाकया यह भी था।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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mazedaar waaqya !! :D
जवाब देंहटाएंmeri bhi maa khoob faastam faast boltin hain...aur isi kaaran do do baar bolna pad jaata hai unhe bhi ...:D
रोचक मजेदार संस्मरण,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बढिया संस्मरण
जवाब देंहटाएं,सशक्त अभिव्यक्ति अर्थ और विचार की .मेघना का क्या गोबर बनाया है उस अपढ़ डॉ ने . संक्रांति की मुबारकबाद .आपकी सद्य टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंआभार .
कुछ लोगों की खोपड़ी देर से कमांड लेती है। उनके लिए धीमे बोलना चाहिए। आप देखती नहीं,डाक्टरी की पढ़ाई कितने बरस चलती है!
जवाब देंहटाएंहाँ,ये बात तो है !
हटाएंSmiles...:) :) :)
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