तमिल और संस्कृत का अंतःसंबंध - वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में .
तमिल भाषा के प्रथम व्याकरण की रचना वैदिक काल के अगस्त्य मुनि द्वारा की गई थी, जो उन्हीं के नाम से अगस्त्य व्याकरण जाना गया। तमिल भाषा की ध्वनियों में उसकी परिणति अगन्तियम हो गयी । अगन्तियम में तमिल के तीन भाग सम्मिलित हैं । प्रथम है इयल अर्थात् पाठ साहित्य, दूसरा इसै अर्थात गेय साहित्य और तीसरा नाटकम् अर्थात नाटक साहित्य। अगस्त्य ऋषि को "तमिल का पिता" भी कहा गया है।इधर ऋग्वेद के पहले मंडल में सूक्त संख्या 165 से लेकिर 191 तक कुल मिलाकर 27 सूक्त अगस्त्य के नाम से मिलते हैं .
राम-अगस्त्य मिलन के प्रसंग में वाल्मीकि रामायण का सारा विवरण बहुत ही सजीव है।अगस्त्य से मिलने से पहले अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ राम सुतीक्ष्ण मुनि से मिलने गए थे और वहीं से उनको अगस्त्य के प्रसिद्ध आश्रम जाने का मार्ग मालूम पड़ा था। तो इस आधार पर तय यह माना जा सकता है कि अगस्त्य ऋषि राम के समकालीन थे और वैदिक मंत्र-रचना के दूसरे सहस्त्राब्द के अन्तिम चरण में हुए थे।
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा काण्ड सर्ग 47, श्लोक 19 में सुग्रीव ने सीता की खोज में वानरों को भेजते समय कहा था-
ततो हेममयं दिव्यं मुक्तमणि विभूषितम्।
युक्तं कपाटं पांडयानां द्रक्ष्यथ वानरा:।।
इससे सिद्ध होता है कि त्रेतायुग में न दक्षिण भारत के कपाटपुर के पांड्य नरेश थे
प्रारंभिक तमिल भाषा साहित्य के 3 संघमों के वर्णन में द्वितीय संघम का आधारभूत "कपाटपुर" रहा है, जिसका उल्लेख महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में प्रस्तुत किया है।
महाभारत में भी महर्षि वेद व्यास पांड्य नरेश सागरध्वज का उल्लेख किया है, जो पांडवों की ओर से कौरवों से लड़ा था, वह कपाटपुर शासक रहा था।
तमिल में अगस्त्य को अगत्तियंगर भी लिखा गया है और उसी के अनुसार उनके व्याकरण को अगत्तियम। इसी आधार पर वैयाकरणा तोलकाप्पियर ने ग्रंथ लिखा तोलकाप्पियम। इससे स्पष्ट है कि अगस्त्य मुनि से ही तमिल इतिहास शुरु होता है। तमिलनाडु में कार्य करके अगस्त्य मुनि कम्बोडिया गए। कहा जाता है कि कम्बोडिया को मुनि अगस्त्य ने ही बसाया है। तमिल के प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ में भी यह प्रसंग है।
तमिल के "मलय तिरुवियाडल पुराणम" में तो यहां तक तमिल भाषा की प्राचीनता और ऐतिहासिकता का उल्लेख है कि शिव जी ने जब मुनि अगस्त्य को दक्षिण भारत जाने को कहा तो उन्हें तमिल भाषा में ही निर्देश दिए थे। भगवान शिव ने ही उन्हें तमिल भाषा की शिक्षा दी थी।
वाल्मीकि रामायण के सुन्दर काण्ड के 30वें सर्ग में अशोक वृक्ष के नीचे शोकमग्ना सीताजी से हनुमान जी की प्रथम वार्ता संस्कृत की बजाय तमिल में बतायी गई है। इससे पूर्व हनुमान जी ने देखा था कि रावण सीता जी से संस्कृत में ही वार्ता कर रहा था। उन्हें शक था कि यदि संस्कृत में बात की तो सीताजी उन्हें रावण का भेजा अनुचर न समझ लें। उस प्रयुक्त भाषा को वाल्मीकि जी ने "मधुरां" विशेषण प्रदान किया है। संस्कृत के बाद भारत में सबसे प्राचीन भाषा तमिल ही मान्य है।
महामुनि अगस्त्य सारे भारत में अपनी बौद्धिकता और कर्मठता के लिये विख्यात थे.
उन्होंने ही उत्तर और दक्षिण के बीच विंध्य के आर-पार आवागमन सुलभ किया था .इस विषय में एक कता है .-
एक बार विंध्य पर्वत को गुस्सा आ गया कि क्यों नहीं सूर्य मेरी भी वैसे परिक्रमा करता जैसे वह मेरू पर्वत की किया करता है। सूर्य ने कोई ध्यान नहीं दिया तो विंध्य ने ऊपर आकाश की तरफ अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया। इतना बढ़ा लिया कि सूर्य की गति रुक गई। त्राहि-त्राहि करते लोगों ने अगस्त्य से पुकार लगाई.ऋषि विंध्य के पास
पहुँचे .वह प्रणाम करने नीचे झुका
आशीर्वाद दे कर बोले ,'वत्स ,अभी मैं उस पार जा रहा हूँ ,मैं लौटूँ तब तक झुके रहना .'
और वे कभी लौटे नहीं। तब से विंध्य नीचे झुका हुआ है .है।
तमिल-परंपरा के अनुसार संस्कृत और द्रविड़ भाषाएँ एक ही उद्गम से निकली हैं.. इधर भाषा-तत्त्वज्ञों ने यह भी प्रमाणित किया है कि आर्यों की मूल भाषा यूरोप और एशिया के प्रत्येक भूखंड की स्थानीय विशिष्टताओं के प्रभाव में आकर परिवर्तित हो गयी, उसकी ध्वनियां बदल गयी, उच्चारण बदल गए और उसके भंडार में आर्येतर शब्दों का समावेश हो गया..
भारत में संस्कृत का उच्चारण तमिल प्रभाव से बदला है, यह बात अब कितने ही विद्वान मानने लगे हैं.. तमिल में र को ल और ल को र कर देने का रिवाज है.. यह रीती संस्कृत में भी 'राल्योभेदः' के नियम से चलती है.. काडवेल(Coldwell) का कहना है की संस्कृत ने यह पद्धति तमिल से ग्रहण की है..
विश्व के विद्वानों ने संस्कृत, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाओं के समान तमिल को भी अति प्राचीन तथा सम्पन्न भाषा माना है। अन्य भाषाओं की अपेक्षा तमिल भाषा की विशेषता यह है कि यह अति प्राचीन भाषा होकर भी लगभग २५०० वर्षों से अविरत रूप से आज तक जीवन के सभी क्षेत्रों में व्यवहृत है।
तमिल का लगभग 2,500 वर्षों का अखण्डित इतिहास लिखित रूप में है। मोटे तौर पर इसके ऐतिहासिक वर्गीकरण में प्राचीन- पाँचवी शताब्दी ई. पू. से ईसा के बाद सातवीं शताब्दी, मध्य- आठवीं से सोलहवीं शताब्दी और आधुनिक- 17वीं शताब्दी से काल शामिल हैं। कुछ व्याकरणिक और शाब्दिक परिवर्तन इन कालों को इंगित करते हैं, लेकिन शब्दों की वर्तनी में प्रस्तुत स्वर वैज्ञानिक संरचना ज्यों की त्यों बनी हुई है। बोली जाने वाली भाषा में काफ़ी परिवर्तन हुआ है,
'बहुत प्राचीन काल में भी तमिल और संस्कृत के बीच शब्दों का आदान-प्रदान काफी अधिक मात्रा में हुआ है, इसके प्रमाण यथेष्ट संख्या में उपलब्ध हैं.. किटेल ने अपनी कन्नड़-इंगलिश-डिक्शनरी में ऐसे कितने शब्द गिनाये है, जो तमिल-भंडार से निकल कर संस्कृत में पहुँचे थे.. बदले में संस्कृत ने भी तमिल को प्रभावित किया.. संस्कृत के कितने ही शब्द तो तमिल में तत्सम रूप में ही मौजूद हैं.. किन्तु, कितने ही शब्द ऐसे भी हैं, जिनके तत्सम रूप तक पहुँच पाना बीहड़ भाषा-तत्त्वज्ञों का ही काम है.. डा.सुनीतिकुमार चटर्जी ने बताया है की तमिल का 'आयरम' शब्द संस्कृत के 'सहस्त्रम' का रूपांतरण है.. इसी प्रकार, संस्कृत के स्नेह शब्द को तमिल भाषा ने केवल 'ने'(घी) बनाकर तथा संस्कृत के कृष्ण को 'किरूत्तिनन' बनाकर अपना लिया है.. तमिल भाषा में उच्चारण के अपने नियम हैं.. इन नियमो के कारण बाहर से आये हुए शब्दों को शुद्ध तमिल प्रकृति धारण कर लेनी पड़ती है'..-दिनकर जी द्वारा लिखा 'संस्कृति के चार अध्याय' से .
दक्षिण भारत की कुछ गुफ़ाओं में प्राप्त तमिल भाषा के प्राचीनतम लेख ई.पू. पहली-दूसरी शताब्दी के माने गए हैं और इनकी लिपि ब्राह्मी लिपि ही है।
सातवीं शताब्दी में पहली बार कुछ ऐसे दानपत्र मिलते हैं, जो संस्कृत और तमिल दोनों ही भाषाओं में लिखे गए हैं। संस्कृत भाषा के लिए ग्रन्थ लिपि का ही व्यवहार देखने को मिलता है। तमिल भाषा की तत्कालीन लिपि भी ग्रन्थ लिपि से मिलती-जुलती है।
पल्लव शासक, अपने उत्तराधिकारी चोल और पाण्ड्यों की तरह, संस्कृत के साथ स्थानीय जनता की तमिल भाषा का भी आदर करते थे, इसीलिए उनके अभिलेख इन दोनों भाषाओं में मिलते हैं। नौवीं-दसवीं शताब्दी के अभिलेखों को देखने से पता चलता है कि तमिल लिपि, ग्रन्थ लिपि के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से विकसित हो रही थी।
इन दो चोल राजाओं का शासन दक्षिण भारत के इतिहास का अत्यन्त गौरवशाली अध्याय है। इन्होंने संस्कृत के साथ-साथ तमिल भाषा को भी आश्रय दिया था। इनकी विजयों की तरह इनका कृतित्व भी भव्य है। इनके अभिलेख संस्कृत भाषा (ग्रन्थ लिपि) और तमिल भाषा (तमिल लिपि) दोनों में ही मिलते हैं। राजेन्द्र चोल का ग्रन्थ लिपि में लिखा हुआ संस्कृत भाषा का तिरुवलंगाडु दानपत्र तो अभिलेखों के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। इसमें तांबे के बड़े-बड़े 31 पत्र हैं, जिन्हें छेद करके एक मोटे कड़े से बाँधा गया है। इस कड़े पर एक बड़ी-सी मुहर है।
तमिल लिपि में राजेन्द्र चोल का तिरुमलै की चट्टान पर एक लेख मिलता है। उसी प्रकार, तंजावुर के बृहदीश्वर मन्दिर में भी उसका लेख अंकित है। इन लेखों की तमिल लिपि में और तत्कालीन ग्रन्थ लिपि में स्पष्ट अन्तर दिखाई देता है।
15वीं शताब्दी में तमिल लिपि वर्तमान तमिल लिपि का रूप धारण कर लेती है। हाँ, उन्नीसवीं शताब्दी में, मुद्रण में इसका रूप स्थायी होने के पहले, इसके कुछ अक्षरों में थोड़ा-सा अन्तर पड़ा है। शकाब्द 1403 (1483 ई.) के महामण्डलेश्वर वालक्कायम के शिलालेख के अक्षरों तथा वर्तमान तमिल लिपि के अक्षरों में काफ़ी समानता है।
'सदियों पहले भारत को एक करने की कोशिश भक्ति काल में हुई थी, जब दक्षिण के गुरुओं ने उत्तर का रुख किया था। उससे भी सदियों पहले शंकराचार्य ने इस धरती को जोड़ने के लिए हदबंदी की थी। वक्त ने उन कोशिशों को भुला दिया। अब वक्त बदलने के साथ जो सिलसिला चल पड़ा है, उसे आगे ले जाने की समझदारी नॉर्थ को दिखानी चाहिए। और इसका सबसे कारगर तरीका है तमिल या मलयालम को तालीम में शामिल करना। स्कूलों में पुरानी भाषाओं की तकलीफदेह रटंत की जगह त्रिभाषा फॉर्म्युले में साउथ की भाषाओं को जगह देने भर से वह कच्चा पुल तैयार हो जाएगा, जो विंध्य पर्वत को इतना बौना कर देगा, जितना अगस्त्य मुनि भी नहीं कर पाए थे।' -संजय खाती का ज़िन्दगीनामा.
(कुछ तथ्यों को साभार गूगल से लिया गया है )
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- प्रतिभा सक्सेना.
आलेख रोचक है| कई भाषाओं का चरित्र उनकी प्रचलित लिपियों की कमी-बेशी द्वारा भी गढा जाता है| संस्कृत शब्दों के कई क्षेत्रीय रूप इस कारण भी अस्तित्व में आते रहे हैं| र और ल की दुविधा जापानी भाषा में भी दिखती है| एक छोटी सी पोस्ट का लिंक नीचे है,शायद आपको पसंद आये: सहस्र कैसे हज़ार बना?
जवाब देंहटाएंविभिन्न भाषा के गीत देवनागरी में लिखे हुवे हैं मेरे पास |
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म अवलोकन से भारतीय भाषाएँ एक सी लगती है-
तमिल और संस्कृत का साम्य- बढ़िया
आभार आदरेया ||
बहुत रोचक।
जवाब देंहटाएंBahut rochak. aabhaar aapka.
जवाब देंहटाएंरोचक आलेख, इतने गहन संबंध हैं दो भाषाओं के, यह ज्ञात नहीं था।
जवाब देंहटाएंएक बहुत ही सांस्कृतिक धरोहर समेटे है यह आलेख .
जवाब देंहटाएंFor the reason that the admin of this web site is working, no question very soon it will be famous, due
जवाब देंहटाएंto its feature contents.
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बारहा पढने को बाध्य करती रचना है आपकी .तमिल संस्कृत अंतर सम्बन्ध की पुख्ता खबर देती हुई .आपकी टिप्पणियाँ हमारी शान हैं ,अभिमान हैं .शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंइस लेख के द्वारा बहुत सी नयी जानकारीयां मिलीं ... आभार
जवाब देंहटाएंbahut hi umda aalekh!! jabse post hua hai tabse aaj tak kai baar padhkar bina kuch likhe lauti hoon.kaaran-ki uchit shabd hi nahin milte the..itna gyaan bhi na tha ki kaise is lekh ko aatmsaat karoon.? achha hi hua ki kuch nai keh paayi :)
जवाब देंहटाएं(ek pustak padh rahi hoon Vasudevsharan ji ki ''prithvi-putr'' ..usme lekhak ne sthan sthan par bhaashaaon ke mehatv par prakaash dala hai.unke lekhon se pata chala ki kitne hi shabd jo hazaaron vasrhon praacheen hain kintu kisi shabdkosh me na rehkar janpadon/grameen anchal kee lokbhaashaaon me surakshit hain.sanskrit ki kitni hi dhaatuyein vilupt praay: hain kintu lokbhasha ke shabdon me aaj bhi mil jaatin hain.we aavhaahan karte hain anya lekhkon aur kaviyon ka..ki apne pradesh apni apni bhoomi kee jadon me jaakar bhaashaon ko pehchaane..unhe apni rachnaon me sthan dein.
)isliye keh rahi hoon itna sab ki unhe padhne ke baad jaana..ki kisi bhi bhasha vishesh ka humaare bhaarat me bahut adhik aitihaasik mehatv hai.use hume sanrakshit karna chahiye.aur sahi arthon me us pustak me nihit sandesh ko grahan karne ke pashchaat hi aapke is aalekh kee value mujhe samajh aayi hai.aur adhik graahy ho gaya aapka lekh mujhe :)
ek videshi patrkaar kee book (In search of secret India)me bataya gaya hai ki praacheen tamil bhasha bhi bahut kam log jaante hain..aur kitne hi aise granth hain jo praacheen tamil me hain..aur jagat se sarvatha achhoote hain.kaash aap jis setu k liye keh rahin hain..wo ban jaaye..to hum sabhi apni sanskriti aur dharm ke goodhtam rehasyon se vanchit reh jaane se bach jaayenge.
aasha hai 'tamil sanskrit ke ant:sambandh'' ko samajhne ke baad humara bhi apni mool bhaashaon ke prati naata aur gehra hoga.
aapke aalekh ko padhkar hriday aapke liye sneh se bhar utha.dinkar ji ki kitaab maine padhi hui hai..us pustak ke sath prithvi putr aur aapka ye aalekh maine apne mann me note kar liya :):")
bahut bahut aabhaar Pratibhajee..aapke gyan,lekhni aur shram ke aage natmastak hai mera paathak hriday :)
:( lamba comment ho gaya! :(
जवाब देंहटाएंbaharhaal..ye kehne aayi wapas..ki itta bhasha bhasha kehne ke baad bhi roman me type kar rahi hoon..to uska karan kewal takneeki hai.Net connection bahut weak hai to devnagri me nahin likh paati aajkal.
:(
kshama praarthi!
समझ रही हूँ तरु,किसी मजबूरी में ही कोई हिन्दी को रोमन में लिखता है(मुझे तो इतना मुश्किल लगता है,कि ऐसे में लिखना ही टाल जाती हूँ).और फिर इतना गंभीर विवेचन. इतने व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचारपूर्वक तुमने जो लिखा वह तो किसी ब्लागर की एक पोस्ट बनने को पर्याप्त है.
हटाएं(लंबी टिप्पणी गहरी पैठ और चिन्तन की द्योतक लगती है मुझे)- मैं उपकृत हुई.
:) jee pratibhajee..
जवाब देंहटाएंmushkil mujhe bhi lagta hai..parantu vikalp bhi nai rehta :(.
yahan par meri hi baat ko tippani kee lipi kaat rahi thi..to kaaran dena aawashyak jaan pada..:(
baaqi aapko mail bhi kar diya hai..:)
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मैने इस लेख को फेसबुक में शेयर किया है। लेख पढ़कर आनंद आ गया। तमिल-संस्कृत संबंधों पर पड़ताल किया तो यह लेख हाथ लगा।..आभार आपका।
जवाब देंहटाएंhttps://www.facebook.com/devendra.pandey.188/posts/555251627936762?comment_id=555459861249272&offset=0&total_comments=16¬if_t=feed_comment
धन्यवाद ,देवेन्द्र जी !
हटाएंसुंदर लेख. (भले ही 6 साल बाद पढ़ा)
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