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दो छोट-छोटे मोज़े ,ऊपर से रोल किए हुए जैसे उतारे वैसे ही उछाल दिए .एक इधर ,एक उधर . सिमटे पड़े हैं दोनों - एड़ी और पंजे दोनों के काफ़ी शेप में .रोज़ पड़े होते हैं इसी मुद्रा में ,स्कूल से उसके आने के बाद .
आता है मेरा पोता . नौ वर्ष का - बैग एक ओर डाला जैसे बड़े बोझ से छुटकारा पाया ,और आगे बढ़ते ही एक-एक हाथ से एक-एक मोजा उतार कर ऐसे ही उछाल देता है ,रोज़ दोनों मोज़े ऐसे ही ज़मीन पर लोटे जैसे दो नन्हे-नन्हें सफ़ेद खरगोश .
सम्हाल कर रखने को कहती है उसकी माँ ,मेरी बहू ,पर उसे कहाँ ध्यान रहता है .आते ही दो चीज़ों से छुटकारा ,एक बड़ा-सा बस्ता और दो नन्हें नन्हें सफ़ेद मोज़े ऊपर से रोल नीचे से एड़ी-पंजा धारे, पड़े होते हैं आराम से ज़मीन पर . मुझे तो प्यारी लगती हैं ,उनकी निश्चिंत मुद्रा और कहीं पर भी पड़ा होना .मैं तो हटाती भी नहीं ,देख कर मन तरंगायित हो जाता है .ऐसी भी क्या व्यवस्था .ज़रा सी जगह में तो सिमटे पड़े हैं.रहने दो न वहीं - नन्हें-नन्हें खरगोश !
एक और उसकी उसकी आदत ! कभी-कभी .आकर बस्ता डालता और धीरे-से दरवाज़े की ओट में छिप जाता ,मुझे डराने के लिए .जहाँ मैं आई ,खूब ज़ोर से 'हाओ' करके निकलता .पहले दिन मैं चौंक गई .उसे बड़ा मज़ा आया ,फिर तो अक्सर ही ,और मुझे डरने का नाटक करना पड़ता .
आखिर कहां तक डरूँ !एक दिन मैंने सोचा चलो इन्हें भी मज़ा चखाया जाय .
उसके स्कूल से आने की ताक लगाये रही .दूर से देखा आ रहा है तो ,दरवाज़े के बाहर ,बराम्दें में निकल आई ..खंभे के पीठे जाकर छिप गई .पोज़ीशन बदल-बदल कर ओट बनाए रखी .जब बिलकुल खंभे से आगे आने को हुआ ,मैं खूब ज़ोर सै 'हाओ' करके चिल्लाई.
वह एकदम डर गया .ज़ोर से चीखता हुआ ,उल्टे
पैरों प्राण लेकर भागा.
मैं ज़ोरों से अट्टहास करती हुई पीछे से निकली .उसे पुकारा.
बैग नीचे गिरा भागता चला जा रहा था, सुना ही नहीं उसने .
मैं बढ़ी ,ज़ोर से आवाज़ लगाई.
काफ़ी आगे जाकर उसने आवाज़ पहचानी मुड़ कर देखा ,मुझे देख दौड़ना बंद कर दिया ,फिर एकदम समझ गया .
हँसने लगा .एक दूसरे को देखते हम लोग खूब हँसे .शाम तक जब भी उसकी शक्ल देखूं,वही दृष्य याद कर ,हँसी रुके ही न. हम दोनों एक दूसरे को देखते ही हँस पड़ते रहे कई दिनों तक .
उसक डर कर पलटना और चीख़ते हुएअँधाधुंध भागना -वह दृष्य भी कभी भूला सकती हूँ !
सच्ची, बड़ा मज़ा आया !
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दो छोट-छोटे मोज़े ,ऊपर से रोल किए हुए जैसे उतारे वैसे ही उछाल दिए .एक इधर ,एक उधर . सिमटे पड़े हैं दोनों - एड़ी और पंजे दोनों के काफ़ी शेप में .रोज़ पड़े होते हैं इसी मुद्रा में ,स्कूल से उसके आने के बाद .
आता है मेरा पोता . नौ वर्ष का - बैग एक ओर डाला जैसे बड़े बोझ से छुटकारा पाया ,और आगे बढ़ते ही एक-एक हाथ से एक-एक मोजा उतार कर ऐसे ही उछाल देता है ,रोज़ दोनों मोज़े ऐसे ही ज़मीन पर लोटे जैसे दो नन्हे-नन्हें सफ़ेद खरगोश .
सम्हाल कर रखने को कहती है उसकी माँ ,मेरी बहू ,पर उसे कहाँ ध्यान रहता है .आते ही दो चीज़ों से छुटकारा ,एक बड़ा-सा बस्ता और दो नन्हें नन्हें सफ़ेद मोज़े ऊपर से रोल नीचे से एड़ी-पंजा धारे, पड़े होते हैं आराम से ज़मीन पर . मुझे तो प्यारी लगती हैं ,उनकी निश्चिंत मुद्रा और कहीं पर भी पड़ा होना .मैं तो हटाती भी नहीं ,देख कर मन तरंगायित हो जाता है .ऐसी भी क्या व्यवस्था .ज़रा सी जगह में तो सिमटे पड़े हैं.रहने दो न वहीं - नन्हें-नन्हें खरगोश !
एक और उसकी उसकी आदत ! कभी-कभी .आकर बस्ता डालता और धीरे-से दरवाज़े की ओट में छिप जाता ,मुझे डराने के लिए .जहाँ मैं आई ,खूब ज़ोर से 'हाओ' करके निकलता .पहले दिन मैं चौंक गई .उसे बड़ा मज़ा आया ,फिर तो अक्सर ही ,और मुझे डरने का नाटक करना पड़ता .
आखिर कहां तक डरूँ !एक दिन मैंने सोचा चलो इन्हें भी मज़ा चखाया जाय .
उसके स्कूल से आने की ताक लगाये रही .दूर से देखा आ रहा है तो ,दरवाज़े के बाहर ,बराम्दें में निकल आई ..खंभे के पीठे जाकर छिप गई .पोज़ीशन बदल-बदल कर ओट बनाए रखी .जब बिलकुल खंभे से आगे आने को हुआ ,मैं खूब ज़ोर सै 'हाओ' करके चिल्लाई.
वह एकदम डर गया .ज़ोर से चीखता हुआ ,उल्टे
पैरों प्राण लेकर भागा.
मैं ज़ोरों से अट्टहास करती हुई पीछे से निकली .उसे पुकारा.
बैग नीचे गिरा भागता चला जा रहा था, सुना ही नहीं उसने .
मैं बढ़ी ,ज़ोर से आवाज़ लगाई.
काफ़ी आगे जाकर उसने आवाज़ पहचानी मुड़ कर देखा ,मुझे देख दौड़ना बंद कर दिया ,फिर एकदम समझ गया .
हँसने लगा .एक दूसरे को देखते हम लोग खूब हँसे .शाम तक जब भी उसकी शक्ल देखूं,वही दृष्य याद कर ,हँसी रुके ही न. हम दोनों एक दूसरे को देखते ही हँस पड़ते रहे कई दिनों तक .
उसक डर कर पलटना और चीख़ते हुएअँधाधुंध भागना -वह दृष्य भी कभी भूला सकती हूँ !
सच्ची, बड़ा मज़ा आया !
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दोनों में दोस्ती पक्की हुई। हमें भी बहुत मजा आया।
जवाब देंहटाएंपढ़कर मुझे भी बहुत मज़ा आया...
जवाब देंहटाएं:):) पढ़ कर बहुत मज़ा आया ...इस तरह अभी तक अपने बच्चों के साथ ही खेली हूँ ...पोते के साथ तो खेलने में वक्त है :):)
जवाब देंहटाएंकिसमें कितना बच्चा होता है! मैं भी कितना गम्भीर होता हूं, पर पोता मेरे अन्दर का बच्चा बाहर निकाल लाता है! :)
जवाब देंहटाएंहमें पढ़ कर और भी मजा आया और जोरदार हंसी भी | बच्चे ऐसी ही मासूम शरारतो से सभी को अपने से जोड़े रखते है |
जवाब देंहटाएंमेरा ध्यान आकर्षित किया मोज़ों के वर्णन ने....ज़ुराबें इतनी खूबसूरती के साथ भी लिखी जा सकतीं हैं...पहली दफे देखा...
जवाब देंहटाएंये घटना अलग जगहों पर अलग अलग आयु वर्ग के लोगों के साथ घटित होती होगी...मैंने भी अपने नानाजी नानी को डराया होगा...मगर इसे संस्मरण के तौर पर 'ज़ुराबों के खरगोशों' के साथ इस तरह से पढ़ना बेहद प्यारा सा अनुभव रहा.....मुझे तो मज़ा नहीं आया प्रतिभा जी...:(..मैं तो मोज़े के खरगोश पकड़ने में ध्यान केन्द्रित कर रही थी इसलिए....:)
अतिसुन्दर...बड़ा मजा आ गया !
जवाब देंहटाएंमोहक।
जवाब देंहटाएंमधुरिम।
सच में... बड़ा मज़ा आया। :)