कहाँ शक्कर और कहाँ गुड़ ! एक रिफ़ाइंड, सुन्दर, खिलखिलाकर बिखर-बिखर जाती, नवयौवना , देखने में ही संभ्रान्त, सजीली शक्कर और कहाँ गाँठ-गठीला, पुटलिया सा भेली बना गँवार अक्खड़ ठस जैसा गुड़?
पर क्या किया जाय पहले उन्हीं बुढ़ऊ को याद करते हैं लोग.
इस चिपकू बूढ़-पुरान के चक्कर में, चंचला किशोरी-सी शक्कर किस चक्कर में पीछे कर देते हैं लोग! माँ की लोरी में गुड़ का गुण-गान है -'निन्ना आवे ,निन्ना जाय निन्ना बैठी घी-गुड़ खाय.,गुड़ खाय.' यों कहावतों में शक्कर अब गुड़ से टक्कर लेने लगी है- तुम्हारे मुँह में घी-शक्कर ,शक्क्रर में कुछ मक्कर ध्वनि साम्य होने से कुछ लोगों ने शकर कहना शुरू कर दिया, एक छोटा, प्यारा-सा नाम चीनी भी दे दिया. विदेशी नाम पाकर वह और इठलाने लगी.. स्वाद की बात कह रहे हैं आप ? हाँ क्यों नहीं आयेगा स्वाद ,गोरी छरहरी के नखरे भरे अंदाज. रस देंगे ही .खुदा जब हुस्न देता है नज़ाकत आ ही जाती है.
तो यह भी जान लीजिये शक्कर के रूप के पीछे बड़ा भारी केमिकल लोचा है, फार्मलीन काम आता है उसके लिये . और फर्मिलिन जैसी मारक चीज़ की अस्लियत आप केमिस्ट्री की डिक्शनरी में देख सकते है. जो इसमें रूप का गुरूर भरती है, उस फार्मलीन का 0.5 मिलीग्राम किसी भी आदमी को कैंसर से मार देने के लिए पर्याप्त है. तो ,शक्कर का रूप सँवारने में 23 हानिकारक रसायनों का प्रयोग होता है .तभी न जानलेवा स्वाद पाती है
सच्ची बात तो यह है कि शक्कर से रोटी खाना चाहो तो मिठास देने से पहले पहले दाँतो के नीचे पहुँचते ही करकराने लगती है ,कण बिखेरने लगती हैं .कितना भी घी लगा लो ,पकड़ से छूट निकलने में माहिर है. झऱ-बिखर कर भागती है, जैसे विद्रोह पर उतारू हो.
ऊपर से इस नखरीली को पचाने में 500 केलोरी खर्च करना पड़ता है. , इसको बनाने की पक्रिया में इतना अधिक तापमान होता है कि फास्फोरस जल कर खतरनाक हो जाता है. ऊपर से अपने ताव में हमारे भोजन के प्राकृतिक शक्कर को शरीर के उपयोग में आने से रोक देती है . वैज्ञानिको ने एक स्वर से चीनी को इसके लिये दोषी माना है -जी हाँ, वही चीनी जो आप बड़े चाव से मिठा3ई ,चाय. शर्बत सब में खाते हैं.
गुड़ में लोच-लचक है ,अपने हिसाब से मोड़-माड़ कर रोटी मे लपेट लो ,काट-काट कर खाते रहो, ,कोई डर नहीं कि बाहर निकलने की कोशिश करेगा. रोटी से बाहर भी आ गया तो मुँह में चिपका रहेगा ,कहीं जायेगा नहीं धीरे-धीरे घुलता, मिठास देता रहेगा .चीनी तो एकदम बिखरने पर उतारू हो जाती है. पहले कर्रकर्र टर्रायेगी फिर जहाँ मौका लगा छूट भागेगी.
रोटी पर दानेदार घी लगा हो और उस पर लाली लिये सुनहरा गुड़, लंबाई में लगा चोंगा-मोंगा बना हाथ में पकड़ कर मौज से खाते रहो - घी और गुड़ मिल कर विलक्षण स्वाद-सृष्टि करेंगे .बातों -बातों में मुँह खुल भी जाए पर साथ नही छोड़ेंगे.
मुझे तो तिल की पट्टी और रेवड़ी भी शक्कर से गुड़ की अधिक स्वादिष्ट लगती है .मलाईदार गर्म दूध हो और गुड़ की रेवड़ी साथ में. मुंह में रेवड़ी रहे साथ में दूध के घूँट भरते जाओं .संतुष्टि और पोषण पूरा मिलेगा.उसके आगे कौन चीनी घोल कर दूध घूँटना चाहेगा !रही तृप्ति और स्वाद की बात ! सो पूछिये मत ,स्वयं अनुभव कर लीजिये
सीधा-सादा ,शरीफ़-सा गुड अकेला ऐसा है जो बिना किसी जहर के बनता है गन्ने के रस को गर्म करते जाओ, गुड बन जाता है. इसमे कुछ मिलाना नही पड़ता. ज्यादा से ज्यादा उसमे दूध मिलाते है और कुछ नही मिलाना पड़ता.धरती से जुड़ा है गुड़ उसी का सोंधापन समाया है इसमें ,चीनी मैं कहाँ वह अपनापा ,रसायनों की रसाई पूरी है वहाँ
तो अब आप गुड़ खाइये और गुलगुलों का भी स्वाद लीजिये .याद रखिये - शक्क्रर में शक करने की बात यों ही नहीं है , चीनी नाम पाया है ,तो असलियत भी जान लीजिये . मीठी-मीठी बन कर जान ले बैठेगी एक दिन - चीनी जो ठहरी !
वाह ! शक्कर की पूरी पोल खोल कर रख दी है आपने, हम भी गुड के शैदाई हैं, दलिया हो या खीर गुड ही डालते हैं, यहाँ तक कि गाजर का हलवा भी गुड़ से स्वादिष्ट बनता है. रोचक अंदाज में लिखा गया यह लेख पाठक के अंतर को मिठास से भर देता है. बधाई !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-05-2017) को "रखना सम अनुपात" (चर्चा अंक-2971) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ .
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - मृणाल सेन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआभार आपका .
हटाएंआभार आपका.
जवाब देंहटाएंउचित जानकारी मिली पढ़कर
जवाब देंहटाएंहमारे यहां चीनी चलन में बस गयी है लेकिन चाय आज भी गुड़ से मीठी की जाती है। और बहुत स्वाद लगती है। एक दम कड़क।
चीनी कितनी नुकसानदेह है आज जाना।
वाह!!बहुत ही रोचक ओर ज्ञानवर्धक ।
जवाब देंहटाएंचीनी वाकई में चीनी है पर क्या करें आजकल के बच्चों को तो गुड़ भाता ही नहीं... फिर भी घर में सिर्फ मेरे लिए गुड़ आता है.....बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक लेख।
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