शनिवार, 17 मार्च 2018

मैं अश्वत्थामा बोल रहा हूँ --

मैं, अश्वत्थामा बोल रहा हूँ - 
शप्त मानवता के  विषम व्रण माथे पर लिये मैं,अश्वत्थामा ,युगान्तरों से  भटक रहा हूँ .चिर-संगिनी है  वह अहर्निश वेदना जिसकी यंत्रणा से विकल ,मैं वहाँ से भागा था .कितना लंबा विरामहीन जीवन जी आया! अनगिनती पीढ़ियों को  बनते-बिगड़ते देखा .कितने युगों का साक्षी  मेरा मौन अभी तक नहीं भंग हुआ. 
समर  बीता कहां है ? सत-असत् का युद्ध हर जगह चल रहा है- व्योम में ,जल में ,थल में .
दृष्टा नहीं बन पाता ,भोक्ता रहा हूँ जिसका ,जिसके बहते घाव लिये, चिरकाल यही सब देखने को अभिशप्त हूँ उससे निर्लिप्त रहना कहाँ संभव? वह दारुण युग जाते-जाते गहरे अवसाद की छायायें छोड़ गया - हर जगह विषाद के घेरे ,कहीं प्रसन्नता नहीं - बहुत समय लगा मुझे संयत होने में . 
 बीतती शताब्दियों के बीच एकदम चुप , बहुत  कुछ है कहने को मेरे पास ,पर कैसे , किससे कहूँ.  किसे अवकाश है ,और कहाँ धीरज ?
 मेरे जीवन में विसंगतियों का अंत कहाँ ,जीवन भर का उपेक्षित मैं.हँसी आती है सोच कर कि जब गोकुल में दूध-दही की नदियाँ बह रहीं थीं एक गुण संपन्न सद्विप्र का पुत्र दूध के धोखे आटे का घोल पिला कर बहलाया जाता रहा था.  
  जनोंमें,निर्जनोंमें ,देश-विदेश के पहचाने-अजाने लोगों के बीच चलता-फिरता हूँ .हाँ ,पहचाने लोग भी  हैं ,सामान्य जन नहीं जानते तो क्या,मैं चीन्हता हूं जिनके साथ रहा हूँ.काल के दीर्घ अंतराल के बीच जनमते हैं ,एक दूसरे से अनजान -पर मैं पहचान लेता हूं,अश्वत्थामा हूँ न .जी चुका हूँ कृष्ण के साथ उन्हीं के युग में,भीष्म,कर्ण,दुर्योधन,युधिष्ठिर, पार्थ,द्रौपदी ,कुन्ती, जो आज सब से अतीत हैं ,मेरे समकालीन थे.  युग-युग की पीर भरी यात्रा करते युग पर युग बीतते चले गये पर मेरा जीवन नहीं बीता, मेरा मौन नहीं टूटा .ॆ
विस्तृत काल खण्डों में बिखरे ,अधिकांश लोग जन्म लेते हैं ,परस्पर मिलते भी हैं- अपना देन-लेन पूरा करना है अभी .पर हिसाब की बही में नये अध्याय जुड़ने लगते हैं .फिर छुटकारा कहाँ?सांसारिकता में ,अपने राग द्वेष में ऐसे डूब जाते हैं कि भान नहीं रहता किधर बहे जा रहे हैं .पहचानते नहीं एक-दूसरे को  लेकिन पिछले संस्कारों से प्रेरित परस्पर जुड़ते - टूटते रहते हैं..इसी जग-बीती का एक भाग मैं भी .

ओह...आज कह रहा हूँ, उत्तेजित मन अपने अस्थिर आवेश में उतावला हो  सारा सोच-विचार खो बैठा था ,तब मैंने भी यही किया था.
(क्रमशः)



7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-03-2018) को ) "भारतीय नव वर्ष नव सम्वत्सर 2075" (चर्चा अंक-2914) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सभी को नव संवत्सर और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं। विक्रम संवत 2075 आप सबके जीवन में सुख, समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य लेकर आये यही हमारी कामना है।


    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, नव संवत्सर और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. अश्वत्थामा की पीड़ा को व्यक्त करना सरल कहाँ है..सदा जीवित रहने को अभिशापित है वह मस्तक पर घाव लिए..मर्मस्पर्शी लेखन !

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