अराल(अरल) सागर सूख गया -
कभी दुनिया के समुद्रों में चौथे चौथे नंबर पर रहे अराल(अरल) सागर का 90 फीसदी हिस्सा, बीते 50 सालों में ,सूख चुका है . यह मध्य एशिया में कजाकिस्तान एवं उजबेकिस्तान के बीच लहराता था। इसके विशाल आकार के कारण इसे सागर माना गया था .स्थानीय भाषाओं के शाब्दिक अर्थ के अनुसार इसका नाम - 'द्वीपों की झील की संज्ञा सार्थक थी। यह वो दौर था जब 1,534 द्वीपों वाले इस सागर को आइलैंड्स का सागर कहा जाता था. 55 लाख साल से निरंतर जलपूरित दुनिया का यह चौथा बड़ा सागर अब सूख कर एक झील मात्र रह गया है.
इस क्षेत्र की नदी अमु दरिया को कैस्पियन सागर की ओर मोड़ने के प्रोजेक्ट के कारण अराल पूरी तह सूख गया.
1960 में सोवियत प्रशासन ने इसमें विसर्जित होने वाली दो नदियों - आमू और साइर नदी को मरुभूमि सिंचाई के लिए विमार्गित करने का निर्णय लिया .परिणाम स्वरूप ये तीन अलग-अलग भागों में बंट गया और आने वाले 40 सालों में अराल सागर का 90 प्रतिशत जल खत्म हो गया , 74 प्रतिशत से अधिक सतह सिकुड़ गई और आकार भी 1960 के आकार का 10 प्रतिशत रह गया दिन-प्रतिदिन इसका आकार में और कमी आती जा रही है।पहाड़ों पर बर्फ का कम होना भी इसका एक कारण माना जा सकता है , जिसके पिघलने से सागर में पानी भरता था.
ये दुनिया के सबसे बड़ी पर्यावरण आपदाओं में से एक है। 1997 में सूखने के क्रम में अरल सागर चार झीलों में में बंट गया था, जिसे उत्तरी अरल सागर, पूर्व बेसिन, पश्चिम बेसिन और सबसे बड़े हिस्से को दक्षिणी अरल सागर का नाम दिया गया।किसी समय इसका क्षेत्रफल लगभग 68,000 वर्ग किलोमीटर था। इसके बाद 2007 तक यह अपने मूल आकार के 10 प्रतिशत पर सिमट गया. पानी की लवणता में निरंतर वृद्धि हो रही है और मछलियों का जीवन असंभव हो गया है।
अरल सागर तट पर बीते हुए वक्त से बहुत समय तक मुलाकात नहीं की जा सकेगी . जहाँ हलचल-कोलाहल से आपूर्ण, व्यस्त एवं जीवंत बंदरगाह था, यही रेगिस्तान कभी प्राणमय जल-जगत को अपने में धारे ,विशाल सागर बना हिल्लोलित रहता था ,अब उजड़ा दयार है. . अब अवशिष्ट जल की लवणीयता बढ़ती जा रही है .ऊपरी सतह पर नमक की एक पर्त भी दिखाई दे जाती है . हवाओं में खारापन घुल गया है,धूल का झीना आवरण हर चीज की छुअन में किसकिसाहट बन कर जमा है .जिस धरती पर सागर की लहरों ने सैकड़ों शताब्दियों अठखेलियाँ की थीं वह रूखी उजाड़ पड़ी है. .आनेवाली पीढ़ियों को अब वहाँ केवल अपार सूखा रेगिस्तान दिखाई देगा . रेत पर टेढ़ा पड़ा लावारिस जहाज़ इन करकराती हवाओं में कब तक अपने शेष-चिह्न बचा पायेगा कौन जाने. नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों में एक उल्लेख आता है -
तीसरे महायुद्ध के समय एक सागर सूखकर रेगिस्तान बन जाएगा (यह भविष्यवाणी पूरी तरह से "अरल सागर" पर खरी उतरती है जो दुनिया का चौथा सागर होने के बाद अब पूरी तरह से रेगिस्तान मे बदल चूका है)तो क्या अब कोई शंका है कि हम समय के उस क्षेत्र में आ पहुँचे हैं जहाँ तीसरा महायुद्ध सिर पर खड़ा है .
- प्रतिभा सक्सेना
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-09-2016) को हो गए हैं सब सिकन्दर इन दिनों ...चर्चा मंच ; 2458 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मम्मी!
जवाब देंहटाएंकिसी भी जलाशय का सूख जाना एक दुखद घटना होती है. गंगा नदी का सूख जाना मैंने अपनी आँखों के सामने देखा है, और जब जब देखा है तब तब आँख से आँसू निकले हैं. अब तो ये हाल है कि पटना जाता हूँ तो गंगा दिखाई भी नहीं देती और मेरी देखने की हिम्मत भी नहीं होती. भूमंडल पर ७०% जल है, ऐसे में जलाशयों का संकुचित होना, जीवन के संकुचित होने का लक्षण है.
कहते हैं गुजरात का रण भी कभी लहराता सागर था. वहाँ के लोग सागर के मरुभूमि होने जाने को अहंकार के धूसरित होने के मुहावरे के रूप में उद्धृत करते हैं.
रही बात भविष्यवाणी की. सच या झूठ मैं नहीं कह पाऊँगा. लेकिन जब कभी भविष्यवाणियों की बात होती है तो मुझे शेक्सपियेर का नाटक "मैकबेथ" याद आ जाता है. जिसमें तीन चुडैलों द्वारा की गयी भविष्यवाणियाँ समय समय पर सच होती हैं. लेकिन उनका सच होना किस प्रकार संभव होता है, इसका वर्णन शेक्सपियेर से बेहतर कोई नहीं कर सकता.
एक अछूते विषय पर आपने जो बात रखी है उसका प्रमाण अभी से ही मिलना प्रारम्भ हो गया है, मम्मी! दस प्रतिशत बचा अराल सागर, क्या १०%बची मानवता का प्रतीक नहीं? आपने सही कहा है, जिस दिन यह बचा खुचा दस प्रतिशत भी समाप्त हुआ, उस दिन बिना तीसरे विश्वयुद्ध के सब समाप्त हो जाएगा. प्रदूषित यमुना भी (जिसे मैं कालिंदी से काली नदी कहता हूँ) दिल्ली के समाज को कितना प्रदूषित कर गयी है किससे छिपा है!
अब बस!
गंगा ! गंगा का उल्लेख कर द्रवित कर दिया सलिल तुमने ,उनके यों विरूपित होने का विचार ही मन को व्यथित कर देता है गंगा सूख जायँ और हम इस धरती पर हों वह नौबत ही न आये !.
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नीरजा भनोट और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
जवाब देंहटाएंhttps://www.facebook.com/MadanMohanSaxena
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डरावना...सच..
जवाब देंहटाएंप्रकृति के साथ मानव ने बहुत खिलवाड़ किया है जिसका परिणाम है अरल सागर के सूख जाने जैसी घटना..कभी तो सचेत होगा मानव.
जवाब देंहटाएंभविष्यवाणी का तो पता नहीं लेकिन तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़े तो हैं .
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