शनिवार, 4 अप्रैल 2015

कोख का करार - समापन .

*
'ऐसे कब तक पड़े रहेंगे ,दोनों तरफ़ के खर्चे और आमदनी का ठिकाना नहीं ,' हैरिस परेशान हैं ,'उधर  मेरे न होने से कितनी गड़बड़ियाँ हो रही हैं .सब चौपट हुआ जा रहा है.'
ऐसे पलों में जूली का मनोबल टूटने लगता है
कैसी बेबसी है - यहाँ भी कोख ने लाचार कर दिया !
 सचमुच ,बड़ी मुश्किल है .
 जूली का अपराध बोध प्रबल हो उठा , सब मेरे ही कारण ! ..क्या करूँ मैं,मेरी इच्छा थी कि  बच्चा अपना हो.
बुझे-से स्वर में बोली,' मुझे लगा ,अगर अपना हो सकता है तो इधर भी कोशिश करें ..,.---जार्ज ने एडाप्ट किया था क्या नतीजा हुआ ज़िन्दगी भर का झिंकना .तभी ... अँधेरे में हाथ डालने को मन तैय्यार नहीं हुआ. ,अरे,दोनों का न सही, तुम्हारा सही.
'इतना आसान है यह सब क्या ..सुन लिया न ,डाक्टर ने क्या कहा?'
सब सुना ,सब देखा -क्या कहे जूली.
'डाक्टर क्या करे. कोई उसके हाथ में तो है नहीं. अब जो उठा है सवाल ,तुम्हीं तय करो .'
'मेरे तय करने को हई क्या ..?
क्या करे जूली ?
 

फिर प्रयोग !पता नहीं कब तक ..उधर सारा बिज़नेस फ़ेल हुआ जा रहा है..
नहीं..नहीं अब  जल्दी तय करना पड़ेगा .और कोई चारा नहीं .
पति ने खीझ कर कहा -
मैं तो हर तरह तैयार हूँ-.
 कहीं से कोई आसरा नहीं ,चिढ़कर बोल उठी ,' क्यों नहीं तैयार होगे.तु्म्हें मौका जो मिल रहा है,'
'तो फिर चलो यहाँ से! तुम्हारी तो चित भी मेरी पट भी मेरी . खुद अपने  घेरे से निकल पाती नहीं , भरोसा किसी के लिए है नहीं ?और ,बाद में मुझ पर  धर दोगी .'
जूली रुआँसी हो आई .
हैरिस सिर पर हाथ रखे बैठा है .
 '..हमारे ही बीच दीवार खड़ी हो जाये, तो सब बेकार है .'

 ' तुम तो एकदम उखड़ पड़ते हो .शंका क्यों करूँगी ?ये पापी मन तुम्हें दूसरी के साथ सोच नहीं पाता .मेरी बात को यों गाँठ मत बाँधो. जरूरत है इसलिये ही तो ,..'
कहते-कहते जूली का मन कसक उठा .
' बर्दाश्त करूँगी  . .और कोई चारा नहीं, फिर कहाँ वह ,कहाँ हम . .'
वह कुछ नहीं बोला .
 जूली ने फिर कहा -
' काम हो जाए ,फिर कभी वास्ता पड़े, सवाल ही नहीं उठता!
' बस तुमने कह दिया और हो गया ..'
'अरे हाँ ..' मोनिका के बुरी तरह चौंकने की घटना दिमाग में घूम गई .
- असली सवाल तो यही है .'
मँझधार से निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा.
*
जूली ने मोनिका से कहा था,
' पता नहीं कितना और टाइम लगे, डॉक्टरों के प्रयोग  हैं.ये ट्यूब ,वो नली  सब फ़ालतू धंधे ..'
 बात स्वगत-कथन बन कर रह गई,मोनिका चुप है .
फिर पूछा,'कित्ता खिंचे क्या पता ,आपको तो कोई परेशानी नहीं ?'
'सबसे बड़ी परेशानी तो मुझे ही है पर मजबूर हूँ. ऐसी फँसी हूँ - पैसा लौटा नहीं सकती .यहाँ से कहीं जा नहीं सकती .'
 जूली  उसी को ताक रही थी.
'..सोचा था साल भर में सब हो जायेगा पर अभी तो पता नहीं कितना   ..'
' आज के बाद भी ,कम से कम भी ले कर चलो तो दस महीने प्लस चार जो निकल गए और कम से कम दो-दीन और..'...
'दो-तीन और किस हिसाब से ?'
' मासिक चक्र के हिसाब से कांसेप्शन के दिन तय करते हैं ये लोग  ..'.कहते-कहते जूली चुप हो गई .
मोनिका इशारा समझ गई  एक दम टेन्स हो गई.
'मेरा मतलब वो नहीं. मैं तो डॉक्टर की बात बता रही थी .कि कोई सीधा माध्यम मिल भी जाय तो भी इतना समय, कम से कम ...'
 सीधा माध्यम ?
बेतरह उलझ गई  मोनिका -सरोगेसी वाली औरतों में कोई भी तैयार हो सकती है.
और फिर मेरा क्या होगा ? कितना उधार सिर लिये बैठी हूँ - कैसे वापस जाऊँगी?
आजकल न नींद आती है, न चैन .उफ़ !
*
 सुबह-सुबह मोनिका का फ़ोन आया - आज आपका क्या प्रोग्राम है?'.
जूली ने कहा , अकेली हूँ .हैरिस को कहीं जाना पड़ गया ,शाम तक लौटेंगे .
आपको राइड चाहिये क्या ?'
'नहीं, आपसे मिलने आ रही हूँ. '
उसके लिए खाना बना लिया जूली ने .
आई तो कुछ देर थकी -अवसन्न सी बैठी रही .
फिर बोली', आप से कुछ कहना है .'
-अब क्या कहेगी जाने ..
'मुझे पुरुषों के साथ संबंध बनाने में कोई रुचि नहीं रही.वितृष्णा होती है उनसे.'
क्या मतलब है?  जूली चौंक गई .उसका मुँह देखने लगी .
कुछ क्षण एकदम चुप रही  ज्यों शब्द ढूँढ रही हो .
फिर बोली, 'आज तक किसी से नहीं कह सकी .मैं विवाहित नहीं हूँ पर..
'कहते-कहते  कुछ अटक गई
जूली विस्मित .मन में  अजीब आशंकाएँ जाग गईं - ऐसी लगती तो नहीं थी  .अच्छे घर की संस्कारशील लड़की लगी थी .
 'गलत मत समझिये ,मेरा कोई दोष नहीं था. एक बार फँस गई थी मैं . होस्टल जा रही थी .बस स्टाप पर रुकना पड़ा -पानी बरस रहा था .किनारे आड़ में खड़ी हो गई  15-16 साल की मैं अकेली .'
वह फिर रुकी ,गले में कुछ अटक गया हो ज्यों.
 '..वे तीन लड़के थे. कई बार का देखा एक लड़का भी था, ' आ जाओ गाड़ी में क्यों भीग रही हो? अभी पहुँचाये देते हैं .'
मैंनें मना किया.वे तुल गये . मेरा बस कहाँ चलता ?और फिर .
सिर नीचा किये बैठी है अपनी ही गोद में आँसू टपाटप गिर रहे हैं.
गला रूँधती सिसकी समेट ली उसने.
' रौंद डाला था उनने मुझे.'
 चेहरा एकदम उजाड़ ,
' क्या बताऊँ . याद नहीं करना चाहती, न किसी से कहना चाहती हूँ .मन में ज़हर भर जाता है . सिर्फ़ आपके लिए, आपसे कह रही हूँ ..कि आप समझ लें.'
जूली क्या कहे !
'आपसे पैसे लेकर खर्च कर चुकी ..   हिसाब कैसे पूरा करूँगी .
जूली का मन भर आया , मुँह से निकला -' मैं समझ रही हूँ .
ईश्वर ने कोख दी और दुनिया भर की दुश्वारियाँ हमारे नाम लिख दीं .'
बार-बार सिसकियाँ उठ रही हैं, 'इस सब से उबरना चाहती हूँ ...कोई रास्ता नहीं मेरे लिए.
 '..तब रूममेट की माँ ने बहुत सहारा दिया था.उन्ही ने शान्त किया
समझाया.कोई साथ नहीं .तुम्हारे माता-पिता साथ  होते तो भी सहारा रहता .उन लोगों को सज़ा दिलवाने में कौन साथ देगा तुम्हारा ? दुनिया भर की खींच-तान झेलोगी .पढ़ाई से जाओगी दस बातें बनेंगी उन लोगो से अकेली पार पाना आसान नहीं बेटा .तुम ठीक-ठीक चली आईँ यही बहुत है आगे का सोचो .  '
. वितृष्णा से भर जाती हूँ .बड़ी मुश्किल से सामान्य हो सकी .
'..जो आपने दिया था उसमें से बहुत खर्च हो गया. आगे भविष्य मुँह बाये खड़ा है  .उधार भरना है .जल्द से जल्द छुटकारा पाना है और आप को दिया वचन भी. .'
दुख की गहनता चेहरे पर लिख गई हो जैसे .

जूली सिहर उठी -
'मैं जा भी कहाँ सकती हूँ ?'
,'आदमी कैसा पशु बन जाता हैं अपने क्षणिक सुख के लिए क्या-क्या करता है ,' जूली का  गला भी भर आया .
'.. अपनी देह से घृणा होने लगती है क्यों मिला ऐसा शरीर जिस पर दूसरों की मनमानी चले , ज़िन्दगी भर, देह धरे का खामियाज़ा भुगतना पड़े. सच कहती हूँ  मुझे पुरुष मात्र से वितृष्णा हो गई है ... .'
गला रुँधने लगता है बार-बार '
जूली स्तब्ध बैठी है .
 'बहुत मुश्किल है पर कोशिश करूँगी ...'ज़लालतें झेलने को ही तो मिला  है औरत का जनम...'

आगे सुन नहीं पा रही  जूली, ' अरे उधर ..' कहती  उठकर किचेन में चली गई .
 मोनिका ने यह भी कहा था -
' ..पर अपने पति को किसी और को सौंप देना बहुत मुश्किल होगा. .आपके मन में कोई द्विधा रहे तब बिलकुल नहीं ....'
कुछ बोले बिना जूली ने उसकी पीठ पर हाथ रख दिया ,फिर सिर पर ..क्या कहे ,क्या करे ..?
'नदी-नाव संयोग है ,हमारा क्या बस ! मेरी ओर से निचिंत रहिये ...'
भोजन  के समय अधिकतर चुप्पी छाई रही .
चलती-फिरती बातों के बीच मोनिका कह गई ,' लोग जिस सुख लिए पगला जाते हैं मैं उसका अनुभव कर सकने में अक्षम हो गई हूँ .दिन-रात कचोटता मन कौन समझेगा , एक गहरी उसाँस ,'यह देह केवल साधन बनेगी आपकी आवश्यकता पूर्ति के लिए .एक तोड़े गए नारी शरीर की  सार्थकता यही सही! '

*
 
हैरिस की वापसी हो गई -अब निश्चिन्त हो कर अपना करोबार सँभालेंगे.
'वहाँ  मेरे न होने से  बहुत गड़बड़ हुआ है.' 
जाने के पहले मोनिका से कहा था. 'आप अपने खर्चों में संकोच न करें ,खूब मौज से  रहें ,मस्त रहें .'
मोनिका ने चैन की साँस ली- अच्छा हुआ ,अब सामना नहीं होगा . लाख निर्लिप्त रहने की कोशिश करे ,हैरिस के सामने पड़ते ही अजीब-सी बेचैनी घेरने लगती है.
जूली यहीं रुकी है, मोनिका से दूर रहना अभी उचित नहीं ,बीच में  लगा आएगी कनाडा का चक्कर .
जानती है इन दिनों की मनस्थिति बच्चे पर बहुत असर डालती है.
लड़का हो चाहे लड़की ,स्वस्थ हो और दीर्घजीवी हो -मोनिका सुरक्षित-संरक्षित रहे !
 'कहीं कोई भी परेशानी  हो तो हम हाज़िर हैं.'  
उस ने भी आश्वस्त कर दिया है -
चिन्ता मत कीजिये ,अपनी तरफ़ से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ूँगी. '
*
जूली अक्सर ही मोनिका को बुला लेती है .
उस दिन उसकी रसोई की एक-एक चीज़ मोनिका ध्यान से देख रही थी.
'मेरी आदत है ,सामान इकट्ठा मँगा लेती हूँ, बाद में आराम रहता है .'
'मैं तो देख रही हूँ आपको क्या-क्या पसंद है खाने-पीने में  ,ये भी कि आप की और क्या रुचियाँ हैं ?'
'उससे क्या होगा ?'
'इसलिये कि आपकी संतान आप की रुचि में ढले,' फिर पूछ बैठी, 'आप को खट्टी चीज़ें कम भाती हैं ?'
'हाँ, बचपन से खट्टे का शौक नहीं रहा. साथ की लड़कियाँ कैथ ,इमली ,कच्ची अमियाँ चबातीं थीं तो देख कर ही मेरे दाँत कसमसाने लगते थे .'
वह हँसने लगी,' मैंने तो ये सब खूब खाया है .अब भी बिना अचार मेरा खाना गले से नहीं उतरता रहा, पर अब छोड़ दूँगी .'
जूली विस्मित .
''.. और आपकी तरह चटपटा और मीठे का कंबीनेशन बनाऊँगी.
'अरे ,आप तो....'
'आपके स्वाद अपने में धारूँगी न .. वो जो कचौड़ियाँ आप खाती थीं मैं भी चाय के साथ खाने लगी हूँ .और हाँ ,आपके कॉस्मेटिक्स और कलर सेंस भी समझ लिया है .खरीद लाऊँगी '.
'मेरे पास हैं , साथ रख दूँगी.'
'..आपसे जितनी अनुकूलता रहेगी उसे नयापन नहीं लगेगा . वही रही-बसी दुनिया पायेगा तो फौरन एडजस्ट हो जायेगा .होगा तो आप ही का न! अच्छा है आपके रंग-ढंग में रचाव मिले .. '
जूली कहे भी तो क्या .
 'रात को लेटती हूँ तो आपकी पसंद के गाने सुनती हूँ ,आपकी पसंद का खाती हूँ .
कोई अनुमान नहीं सकता कितना बदला है मैंने अपने आपको .'.

'हाँ, इधऱ सच में बदली सी लगती हैं .मैंने समझा ,प्रेगनेंसी की वजह से..' .
'वो तो है .पर जो बदलाव मैं कर रही हूँ वो आपको ध्यान में रख कर. मेरा विचार है कि बच्चे पर माँ-पिता के संस्कार आना ज़रूरी है .तभी तो आपसे अपनापा होगा .मैंने मुँह माँगी रक़म ली है पूरी ईमानदारी बरतूँगी .'
क्या उत्तर दे जूली  .
'और हाँ ,अपनी पसंद की दो ड्रेसेज़ भेज दीजिएगा अपनी पहनी हुई.पर दो में क्या होगा   कुछ और भी कपड़े ,,नये नहीं , पुराने जिनमें आपकी गंध और परस बसा हो  .
.. प्रसाधन सामग्री जो खतम हो रही है वह भी .अभी से उन्हीं महकों उसी स्पर्श का आदी होने दीजिए उसे  .और रात के लिये अपनी पसंद के दो ढीले-ढाले  गाउन भी.'
'आपको बताती हूँ सब, अपना हिस्सेदार बनाने के लिये !रात में कभी मेरा मन लोरी गाने का करता है, ये वाली आप सीख लीजिये. कभी सुनाएँगी तो प्यार के वही बोल सुन कर मगन होगा न ..
इन  दिनों मुझे पता नहीं क्या हो रहा है .अपने को बिलकुल भूल कर आपके  बारे में सोचती रहती हूँ.'
'मेरी नहीं तुम सिर्फ़ बच्चे की चिन्ता करना.'
 'उसी के लिए तो मैंने अपने को दाँव पर लगा दिया .इतना पैसा लिया आपसे . उसे भी जस्टीफ़ाई करना था.' 

फिर धीमे स्वर में बोल गई,'अपने लिए अभी सारी उमर पड़ी है. '
जूली का जी कैसा-कैसा होने लगता है ,और वह बोले जाती है,
'मैं चाह रही हूँ उसे पिता के साथ असली माँ के भी संस्कार मिलें . देखिए मैंने अपने को आपकी आदतों में ढाला .सिर्फ़ इसलिए कि वह आपका रहे. .खाना-पीना, अपने रंग-ढंग सब बदलने की पूरी कोशिश मैंने की .और जानती हैं कभी-कभी भरमा जाती हूँ -  मैं हूँ कि आप हो गई ?
आईने मे अपना शरीर देखती हूँ आपका लगता है मैं तो छरहरी थी ,अब देखिये न आपकी तरह भरा-पुरा ,और रंगत भी मुझे लगता है आप जैसी उजली हो गई है.'
जूली  मानती है , 'हाँ बालों का स्टाइल ,चाल, बोलने का लहज़ा सब  .पहलेवाली लगता ही नहीं.' कितना बदल गई है लड़की .
उफ़, यह क्या कर रही है . जीवन को ही नाटक बना डाला है !
मुँह से निकल पड़ा -
  ,' मोनिका , कैसे तुम नाटक की पात्र हो गईं .'
'यह प्रेम ,ये भाव सब उसके रहें जो इस बच्चे की माँ है .माध्यम भर बनी हूँ मैं तो !
बस इधर से निपट कर अमरीका चली जाऊँगी .'
*
समय पूरा हो गया है .हैरिस उपस्थित .
 सब कुशल रहे, सारी सवधानियाँ बरती जा रही हैं.
तीनों डाक्टर- अमर,मानस ,रम्या साझीदार रहे इस घटना-क्रम के .उन्हीं के हाथों अंतिम-चरण संपन्न हुआ.
स्वस्थ शिशु  हैरिस पर गया है .मोनिका  का यही मन था, जूली तो चाहती ही थी .

और मिल गई अस्पताल से छुट्टी.
अब काहे की देर ,मोनिका बिलकुल तैय्यार है -
'लीजिये आपका बच्चा.' दोनों हाथों बढ़ा दिया उसने - अपनी टिमटिमाती आँखों की विस्मयभरीे दृष्टि से दुनिया देखते ,हिलता-डुलता एक नन्हा-सा  बंडल !
जूलीवाली नेलपॉलिश आज उन नखों में नहीं थी.
'...और ये अटैची - आपके कपड़े .सब इसी में हैं .'
बड़े तटस्थ भाव से शिशु को पकड़ा दिया .' बहुत समय हो गया , अब इस आरोपण से छुट्टी पाना चाहती हूँ . आज्ञा दें  ...'
जूली विमूढ़, बाहों में नव-शिशु.

मोनिका को घूम कर चलते देख भीतर से हूक उठी . उससे से रहा नहीं गया ,पुकार लिया ,'अरे, यों मत जाओ.रुको .'कहती उसके पीछे बढ़ी.
' मैं , निमित्त मात्र रही थी .शरीर  गिरवी पड़ा था अब तक. मुक्त हो गया. अब अपने उसी रूप में जा रही हूँ .'
जूली देख रही थी-  सचमुच वह छँट गई थी - देह वैसी ही सिमटी   जैसी थी,वही  ड्रेस पहने सामने खड़ी थी, पहले जैसी ..,बोल,चाल-ढाल सब वही जैसी पहली बार देखी थी. 

अरे हाँ, बोलेने  ढंग भी वही  जो उसका अपना था.जूली  की  आँखों में अनायास आँसू भर आए .अजीब सी व्याकुलता में ,चाहा रोक ले .बढ़ने को पग उठाया .
हैरिस ने बढ़ कर रोक दिया ,'पागल मत बनो .जाने दो अब. उसे अपना जीवन जीने दो.'
वह  कुछ कदम आगे चले आए ,' हम कनाडा में हैं ,आप अमेरिका रहेंगी .बिलकुल अकेली हैं. कभी आपकी कोई सहायता कर सकें तो  बहुत खुशी होगी.हम  हमेशा को एहसानमंद हो गये. '
वह थोड़ा मुड़ी,' आप चिन्ता न करें .अकेली नहीं रहूँगी .स्वाभाविक जीवन जिऊँगी .  ..
मैं भी कृतज्ञ हूँ ,समझ गई हूँ  सभी पुरुष  जानवर नहीं  होते !' 

जूली मुँह बाये देखे जा रही है .

*



12 टिप्‍पणियां:

  1. माँ! कहानियों के विषय में मेरा हमेशा यह मानना रहा है कि उसमें एक रहस्य का तत्व होना ही चाहिये. और जब मैंने लिखना शुरू किया तो यही शैली अपनाई जिसके कारण लोग कहते हैं कि मेरा लिखना जहाँ से शुरू होता है, वहाँ से अंत तक सारी भविष्यवाणियाँ फ़ेल हो जाती हैं.
    आपकी कथाओं को पढने के बाद एक बात सीखने को मिली कि किसी कहानी का कथानक या उसका अंत कितना भी प्रेडिक्टेबल क्यों न हो, लेखन उसे उत्कृष्ट बना देता है. एक ही माटी, एक ही कैनवस, एक ही रंग यदि अलग अलग कलाकारों को दे दिये जाएँ तो विषय एक होने पर भी उनकी कृतियाँ भिन्न होंगी.
    यह कथा बिल्कुल प्रेडिक्टेबल थी शुरू से, लेकिन दूसरी कड़ी में यह संकेत मिल गये थे कि अंतिम कड़ी आसान नहीं होगी. इस कड़ी में मोनिका के चरित्र का जिस प्रकार आपने विस्तार किया है, मेरे जैसे कहानी से जुड़ जाने वाले व्यक्ति की आँखों में आँसू आ गये. शब्दों का ऐसा चमत्कार और सम्वादों की ऐसी जीवंतता कि उसका दर्द अपने दिल की टीस सा प्रतीत होने लगता है.
    एक स्त्री के चित्रण में उसे देवी के शिखर तक पहुँचाने के लिये मोनिका द्वारा किये जा रहे प्रयोजन एक उदाहरण हैं उन तमाम होने वाली माताओं के लिये जिन्हें शायद यह पता नहीं कि यह नौ महीने की यात्रा एक जैविक या शरीर विज्ञान की यात्रा नहीं, बल्कि एक ऐसी स्वर्गिक यात्रा है जिसका सौभाग्य केवल स्त्री को प्राप्त है.
    और कथा का अंत जिस विन्दु पर हुआ वहाँ तो मोनिका गंगा की तरह लगी जिसने अपने सात पुत्रों को जन्म के साथ ही जलसमाधि दे दी! अपने "तनय" का परित्याग करने के लिये गंगा सा चरित्र और पवित्रता चाहिये.
    यह विषय मेरे दिल के बहुत करीब है माँ और इस विषय पर यह कहानी आपके समक्ष नतमस्तक करती है मुझे! चरण स्पर्श!

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  2. शकुन्तला बहादुर4 अप्रैल 2015 को 11:11 pm बजे

    मोनिका का अन्तर्द्वन्द्व, जूूली की आशंका और चिन्ता ने मन में विक्षुब्धता
    और निराशा को जन्म दिया था । कार्य की सिद्धि से मोनिका की मुक्ति और जूली की कामना-पूर्ति पाठक को सन्तुष्ट और निश्चिन्त कर जाती है ।
    शिशु को सौंप कर निरुक्त सी मोनिका का जाना उसके चरित्र की उदात्तभावना को सिद्ध करता है । पुरुषों के सम्बन्ध में उसका परिवर्तित विचार मन को आश्वस्त कर जाता है , फलस्वरूप सामान्य जीवन जीने का उसका निर्णय सुखद अनुभूति देता है । कथा के वाद-संवाद अत्यन्त
    स्वाभाविक और मन को छूने वाले हैं । इस नए कथ्य का निर्वाह अतीव
    कुशलता से करते हुए लेखिका ने कथा को सुखान्त बनाकर पाठक को
    निश्चय ही कृतार्थ किया है । लेखिका की उर्वर कल्पना और लेखनी की
    प्रवीणता वस्तुत: प्रशंसनीय है । शत शत साधुवाद !!

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  3. शकुन्तला बहादुर4 अप्रैल 2015 को 11:15 pm बजे

    उपरिलिखित मेरी टिप्पणी में कृपया निरुक्त के स्थान पर विरक्त पढ़ें ।
    धन्यवाद ।

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  4. कहानी ने अचानक जिस और रुख किया। वैसा सोचा नहीं था। मोनिका की आपबीती जहाँ आँखों को गीला कर जाती है वहीँ उसकी रूममेट की माँ की दी सलाह मन को झखझोर जाती है फिर वही सारे सवाल छोड़ जाती है मन में, आखिर नारी का ही सारा कसूर क्यों.... ? अद्भुत कहानी और उसका एक सुखद अंत।

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  5. एक ऐसे विषय को कहानी का कथ्य बनाना जो न तो अभी तक शायद हमारे परिवेश का नहीं है और न ही नया है (कुछ हिंदी फिल्मकार समय से बहुत आगे जाकर इस विषय पर फिल्म भी बना चुके हैं .' चोरी-चोरी चुपके चुपके ' तो पूरी तरह इसी कथानक पर आधारित है ) वह भी इतनी जीवन्तता के साथ कि कहानी नहीं वास्तविक घटना लगती है यह आपकी कलम का ही कमाल है . हाँ अंत ने इसे सबसे अलग कर दिया .मोनिका का चरित्र व् सोच फिल्म से सर्वथा अलग है और यहीं कहानी पर विशिष्टता की छाप लग जाती है . साथ ही दिव्या जोशी जी के सवाल पर विराम भी ...

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  6. अभी-अभी किराये की कोख पर आधारित एक उड़िया नाटक देख कर आ रहा हूँ । और अब यह समापन किश्त । वास्तव में यह पूरा विषय भावनाओं, विवशताओं, जैविक सीमाओं, चिकित्सकीय खिलवाड़ और कानूनी पक्षों से जुड़ा हुआ है । इस पर लोग चिंतित हो रहे हैं ......और अपने-अपने तरीके से समस्या को उठा रहे हैं । आपको बहुत धन्यवाद ! एक ज्वलंत विषय को उठाने के लिये ।

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  7. कहानी का अंत सुखद है..जूली को सन्तान मिली तो मोनिका ने भी जीवन को देखने का नया नजरिया पाया...बहुत बहुत बधाई इस नये विषय पर इतनी प्रभावशाली कहानी के लिए..

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  8. बहुत ही बढ़िया मर्मस्पर्शी और ह्रदय को छूती कहानी ...

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  9. बहुत ही बढ़िया मर्मस्पर्शी और ह्रदय को छूती कहानी ...

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  10. कहानी अच्छी लगी,
    संभवतः सत्य घटना पर आधारित है।

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