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कुछ अख़बारों द्वारा विभिन्न ब्लागों से सामग्री लेकर नियमित रूप से प्रकाशित की जाती है .पूरे के पूरे आलेख और साहित्यिक रचनायें वे अपनी ओर से अपने अख़बार में छाप लेते हैं .
मैं जानना चाहती हूँ कि इसके लिये लेखक से अनुमति लेने या पूछने-बताने की कोई ज़रूरत है या नहीं ? किसी भी ब्लाग से ,चाहे वह लॉक किया हुआ हो, मैटर ले कर छाप लेना उचित है या अनुचित ?
जब मेरे लेखन के साथ यह शुरू हुआ तो मुझे औरों से सूचना मिलती रही कि मेरी फलाँ रचना फलाँ जगह प्रकाशित है .मुझे विस्मय हुआ .
मुझसे न किसी ने प्रकाशित करने के लिये स्वीकृति ली ,न बाद में सूचित किया .तब मैंने अपने ब्लाग से कॉपी कर लेने पर रोक लगा दी .उन्होंने फिर अपना कौशल दिखाया और कुछ पूछने की ज़रूरत फिर भी उन्हें नहीं हुई . मेरे दूसरे ब्लाग पर से भी एक लेख उड़ा कर (भास्कर भूमि में )छाप लिया.मुझे फिर अन्य सूत्रों से पता चला. तब मैंने अपने दोनो सक्रिय ब्लागों पर यह सूचना लगा दी -© Pratibha Saksena and शिप्रा की लहरें, 2009-2012. Unauthorized use and/or duplication of this material without express and written permission from this blog’s author and/or owner is strictly prohibited.
उन्हें यह रोक रास नहीं आई सो उन्होंने रचना पर ही कैंची चलाना शुरू कर दिया .
मेरी एक कहानी 'टीस' लालित्यम् नामक ब्लाग से लेकर ,मनमाने ढंग से उसका शीर्षक ही बदल डाला .(किसी की कहानी का संदेश विकृत करने का अधिकार?)मैंने 16 दिसंबर को जो कहानी ब्लाग पर डाली थी ,दो दिन बाद देखा किसी दूसरे शीर्षक से भास्कर भूमि में प्रकाशित है (ब्लाग का उल्लेख था पर उसमें उस नाम की कहानी कहाँ से होती ) उसमें निहित संदेश पर तो उन्होंने अपनी ही बुद्धिमानी पोत दी थी.
हिन्दी के ब्लाग-जगत के सामने मैं यह स्थिति लाना चाहती हूँ .हो सकता है कुछ और जन भी इससे गुज़रे हों.
हिन्दी के ब्लागों की क्या यही नियति है कि जो चाहे उनके साथ मनमाना व्यवहार करे?
ऐसी स्थिति में क्या किया जाय कि इस मनमाने आचरण पर रोक लगे-
मैं आप सब ब्लागर मित्रों के विचार जानना चाहती हूँ . अतः आप सबसे विनम्र अनुरोध करती हूँ !
वे महोदय तो लेखक से परिचित नहीं ही होना चाहते होंगे,उन्हें ज़रूरत भी क्या है, उनका काम तो चले ही जा रहा है ,स्वनियुक्त संपादक जो बन गये हैं. (आजकल दबंगई का ही ज़माना है,रोज़ की ख़बरें इसकी पुष्टि करती हैं ).पर ऐसा करनेवाले व्यक्ति का नाम और परिचय ,मैं जानना चाहती हूँ किसी को पता हो तो कृपया बताये . भविष्य के लिये उन्हें सावधान भी करना चाहती हूँ .
यह भी संभव है कि इससे मुझे या मेरे ब्लाग को ही कोई खतरा हो !और यह भी हो सकता है कि अपने ऊपर ख़तरा भाँप कर हमारा कोई हिन्दी-ब्लागर- बंधु डर कर चुप्पी साध जाये !
फिर भी मैं प्रयत्न करूँगी .
आप सब का सहयोग चाहती हूँ .
- प्रतिभा सक्सेना
ऐसे लोगों का कुछ नहीं हो सकता है अगर हो सकता तो इनकी इतनी हिम्मत नहीं होती।
जवाब देंहटाएंफ़िर भी जो लिखे, यह सोच कर लिखे कि यह सबको फ़्री में देने के लिये है।
ऐसे लोग अगर उस पोस्ट का लिंग भी लगा दे तो भी बुरी बात नहीं है।
आप नोटिस भेज सकती हैं। बिना स्वीकृति के रचना प्रकाशित करना अपराध की श्रेणी में आता है।
जवाब देंहटाएंआपके साथ शायद पहली बार घटा है अतः परेशान हैं ...
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग जगत में हर तरह के लोग हैं बस अपने आपको पाठक मानने वाले अथवा कम जानकार नहीं हैं ! अधिकतर अपने आपको कम से कम साहित्यकार , कवि तथा सम्पादक समझते हैं और अच्छे अच्छों को समझाने और ज्ञान देने की क्षमता रखते हैं :))
अगर यह विश्वास न हो तो जिसे आप भलीभांति समझती हों, उन्हें उनकी गलती समझाने का प्रयत्न करें , आपको तुरंत महसूस करा दिया जाएगा कि आपने हिंदी कभी पढ़ी ही नहीं है ! :))
मैं आशा करता हूँ कि आप मेरे इन शब्दों पर भरोसा नहीं करेंगीं और यही ठीक रहेगा ! :)
फिलहाल तो मेरे विचार से, आपकी समस्या का कोई निदान नहीं दिखता समय के साथ गूगल ही कुछ करे तो हो सकता है !
सादर
मैंने पूर्व में ही अपनी प्रतिक्रिया दी थी.
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जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी , ये चोरों का ज़माना है ! हम तो बहुत लम्बे समय से इस दुःख को झेल रहे हैं ! ब्लॉग भी चोरी करते हैं ये लोग और फेसबुक की टिप्पणियां जहाँ "शेयर' आप्शन होता है , तब भी शेयर नहीं करते बल्कि कट-पेस्ट कर लेते हैं अपनी वॉल पर अपने नाम से। आपत्ति करने पर बेशर्मी से जवाब देते हैं ! ऐसे अपराध पर रोक लगनी चाहिए ! साहित्य की चोरी सबसे बड़ी चोरी है ! और ये अखबार वाले तो हम लोगों के मौलिक लेखन की ही कमाई खा रहे हैं ! खुद कुछ करते नहीं , दूसरों का चुरा लेते हैं ! कामचोर कहीं के!
इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है ... फिर भी पता करके बताने की कोशिश करूंगी
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप बिना इजाज़त ब्लॉग की चोरी सही बात नहीं है।
जवाब देंहटाएंबिना पूर्व स्वीकृति के किसी का लेख छापना ..यह एक रूटीन बना हुआ है आजकल.
जवाब देंहटाएंएक सूचना आप अपने ब्लॉग पर लगा सकती हैं कि बिना पूर्व स्वीकृति के कोई लेख न उठाया जाए.
ye to bahut kharaab bat hai...aapko us editor se bat karni chahiye..
जवाब देंहटाएंअभी कल मेरी रचना आज वालो ने अपने सम्पादकीय मे शीर्षक बदल कर चेंप दिया.
जवाब देंहटाएंसमझ नही आ रहा है कि क्या किया जाय्
प्रतिभा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी शिकायत कुछ हद तक जायज है, पर हमारी कोशिश यह रहती है कि हम उन लोगों की ही रचनाएं लें जिनने अनुमति दी है और मुझे याद आ रहा है कि शायद आपने पूर्व में अनुमति दी थी और उसके बाद ही आपके दोनों ब्लागों को हमने गुगल रीडर में अपने एकाउंट में रखा था....
कुछ तकनीकी कारणों से कई बार सूचना नहीं दे पा रहा मेरा फीचर विभाग पर फिर भी इस काम को दुरूस्त करने की कोशिश करूंगा......
आपकी ताजा कहानी के शीर्षक बदल देने की शिकायत वाजिब है, पर वह आपके ही नाम और आपके ही ब्लाग पते के साथ छपी है....
फिर भी आपको होने वाली असुविधा के लिए माफी मांगते हुए भरोसा दिलाता हूं कि आगे इस तरह की गलती न हो.....
अतुल जी ,
हटाएंआप लिख रहे हैं 'शायद पूर्व अनुमति दी' -कब और कैसे ,मुझे घोर आश्चर्य हो रहा है .फिर भी मुझे संतोष है कि आप सामने आये और कुछ तो माना .अब मेरे ब्लागों को उस श्रेणी(कभी भी ,कोई भी रचना लेने की ) से निकाल दीजिये.और जैसी सूचना ब्लाग पर लगी है - हर बार बिना अनुमति के न लेने की - उसे ही मान कर चलने की कृपा करें.
आपने आश्वस्त किया -धन्यवाद !
कृपया इस लिंक को पढ़िए...
जवाब देंहटाएंhttp://www.deshnama.com/2011/04/blog-post_13.html
जय हिंद...
शुरुवाती दौर में जब ब्लॉग नया नया आया था तब यह प्रयास होता था कि किसी भी तरह, चाहे वो अखबार में छप कर ही, ब्लॉग के बारे में लोगों को पता चले...उस पर क्या क्या छप रहा है...किस तरह का नया प्रचलन और कथा साहित्य सामने आ रहा है..आदि आमजन तक पहुँचे...ब्लॉग पर लिखने वाले भी अधिकतर नये लिखने वाले ही होते थे..जो कि जाने माने साहित्यकारों की तरह अखबार और पत्रिकाओं में कभी छपे न थे तो वो भी खुश हो लेते थे कि उन्हें अखबार ने पहचाना...लोगों से पहचान करवाई...कार्यवाही तो दूर वो आभारी महसूस करते हुए इस तरह छप जाने का बखान अपने ब्लॉग में माध्यम से मय कटिंग करते थे...आज भी हैं...और लोग भी हैं तो मैं भी अक्सर सम्मलित रहा इस तरह से....
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही समय बदला है...और यदि लोग एकजुट हो इसका विरोध करें तो संभव है कि ऐसी घटनायें अब रोकी जा सकती हैं...हालांकि आंकड़ों के अनुसार अभी भी बलॉग की जो स्थिति है...मेरी राय में अभी भी इसे प्रचार और प्रसार की आवश्यक्ता है....किन्तु यदि लेखक न चाहे तो वो स्वतंत्र है विरोध दर्ज करने का और कानूनी कार्यवाही करने का...
अच्छा मुद्दा उठाया है...साधुवाद!!
कुछ नी हो सक्ता
जवाब देंहटाएंis samasya k upay k liye google me shayad koi option nahi hai. aisa krity ghor virodh ka vishay hai, aur ham apne lekhan par malkiyana hak rakhte hue kanuni karyvahi karne k liye bhi swatantr hain. so kanuni karyvahi k alawa filhal to aur koi raasta nazar nahi aata. aur post uthane wale ko kadayi se anumati mangle ke liye mazboor kiya jaye.
जवाब देंहटाएंआपने अपनी समस्या को उद्घाटित करके सभी ब्लागरों को सावधान कर दिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
अक्सर अख़बार वाले ऐसा करते है पर भास्कर भूमि से शायद कोई चुक हुई है क्योंकि भास्कर भूमि अख़बार मेरे ब्लॉग से भी रचनाएँ लेता है पर इससे पहले उन्होंने मुझ से पूर्व अनुमति ली साथ ही उन्होंने भास्कर भूमि में छपे मेरे लेखों के अख़बार भेजने हेतु मेरा पता भी पूछा| पर मैंने उन्हें अख़बार भेजने की आवश्यकता के लिए मना कर दिया क्योंकि मुझे उनकी सिर्फ जेपीजी चाहिए होती है जो उनकी वेब साईट पर मिल जाती है |
जवाब देंहटाएंआदरणीया प्रतिभा जी
सादर प्रणाम !
क्षमा चाहता हूं , पहले ही दिन पढ़ लेने के बावजूद इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया अब दे पा रहा हूं ।
मेरे साथ भी कई बार ऐसे हादसे हुए हैं ।
मेरी रचनाएं और रचनाओं के अंश अंतर्जाल पर कई लोगों ने चुरा कर मनमानी की है ...
ब्लॉग वालों में भी रचनाचोर है , बहुत हैं
इनकी बनिस्पत फेसबुक वाले रचनाचोर अधिक सक्रिय हैं ।
ब्लॉग और फेसबुक दोनों जगह रचनाचोर - रचनाचोरनियां आज भी सक्रिय हैं
बहुतों को पहचानता हूं ... कितनों को फटकारा है ...
औरों से भी उनकी मिट्टी पलीत कराई है ...
पर ढीठ - बेशर्मों को कब शर्म आई है !?
इनका पता लग भी जाता है प्रायः ...
लेकिन जिन रचनाओं को जाल से उठा कर
लघु पत्र-पत्रिकाओं वाले रचनाचोर काम में ले लेते हैं , नाम तक बदल देते हैं ,
मूल लेख में हेरा-फेरी , सम्पादन का कुकर्म कर डालते हैं ... उन दुष्टों का हर पाप उजागर हो ही जाएगा , इसकी संभावना बहुत ही कम होती है ।
प्रति स्वतः भेजने का धर्म तो आजकल मांग कर रचना लेने वाले संपादक भी नहीं जानते
तो चोट्टे यह शराफ़त क्यों करेंगे ?
... और हमारी रचना की चोरी का देर-सवेर संयोगवश पता चल भी जाए तो ये कब जवाबदेही स्वीकार करने वाले हैं ?
सच कहूं तो लघु पत्र-पत्रिका का धंधा करने वाले
हमारे ब्लॉग पर लगी ढंग की रचनाओं को चौराहे पर पड़ा लावारिस सामान , और इससे भी अधिक अपने बाप का माल समझते हैं ।
ये भास्कर भूमि वाले कौन हैं ?
अतुल श्रीवास्तव जी ही हैं क्या ? ... या कोई और ?
भास्कर भूमि वालों से निवेदन है
अगर कभी मेरे ब्लॉग शस्वरं से भी रचनाएं ले कर
प्रकाशित की हो तो उन अंकों की प्रति मूझ तक पहुंचाने की मेहरबानी करे ।
राजस्थान साहित्य अकादमी , उदयपुर के अध्यक्ष पद को सुशोभित कर चुकी
आदरणीया अजित गुप्ता जी से निवेदन है कि मौलिक रचनाओं के परिप्रेक्ष में लेखकीय हितों के लिए संभवतः कुछ विस्तार से बताएं तो कृपा होगी ।
आप अपने ब्लॉग पर भी तत्संबंधी पोस्ट डाल सकती हैं ...
आम तौर पर बहुतायत से लिखे जा रहे
सतही ब्लॉगिया लेखन को कोई उठा ले / गिरा दे इससे उन लेखकों ( ? ) को गुस्सा आता होगा , नहीं आता होगा ...
मैं नहीं जानता ।
मैं तो मेल द्वारा , मैसेज द्वारा , कमेंट द्वारा , नंबर हाथ लग जाए तो मोबाइल-फोन द्वारा बुरी तरह लताड़ लगा देता हूं...
मात्र मेरी रचना की चोरी ध्यान में आने की स्थिति में ही नहीं , अन्य ब्लॉगर / कवि/ साहित्यकार / शायर की रचना की चोरी ध्यान में आने की स्थिति में भी ।
सोये हुए रचनाकारों को मेल से , मोबाइल-संवाद से सूचित करता हूं ... ताकि वे आवाज़ उठाएं ।
दिवंगत रचनाकारों की रचना चुराने वालों के साथ तो मैं कभी रियायत नहीं करता ।
हमारी रचना हमारा धन है !
हमारी रचना हमें अपनी संतान की तरह प्रिय है ।
किसी और मुफ़्तखोर की उस पर बुरी नज़र कैसे सह लेंगे ??
विषय संवेदनशील है ...
किसी की रचनाचोरी ध्यान में आने पर ब्लॉगर एक-दूसरे को मेल अथवा ब्लॉग-कमेंट बॉक्स में टिप्पणी माध्यम से सूचित तो कर ही सकते हैं ।
इसके लिए मित्र या फॉलोअर होना भी आवश्यक नहीं ! मैंने कई बार अनजान अपरिचितों को भी सूचित किया है गत दो-ढाई वर्षों में , जब से ब्लॉगर बना हूं ...
:)
मां सरस्वती सबका भला करे ...
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेन्द्र जी ,
हटाएंसुविचारित टिप्पणी देने के लिये ,तथा ,आगे के लिये सार्थक कदम उठाने के प्रयास हेतु ,आपका आभार
यह शिकायत और लोगों को भी है .अलग-अलग रह कर हमारे कहा-सुनी करने से तो बात वहीं खत्म हो जायेगी.ब्लाग-जगत की ओर से शुरुआत हो तो अनुकूल परिणाम की आशा बँधती है.समाचार- पत्र और पत्रिकाओं के नाम खुली चिट्ठी भेज कर उनसे विचार माँगे जायँ कि ब्लागों के साथ अन्याय न हो इस विषय में वे अपने विचार दें ,और जो सर्वमान्य हो उस उचित नीति का निर्धारण करें.
पत्रकारिता एक मिशन है,वे स्वयं विचार करें कि उनके क्षेत्र में जो हो रहा है वह कैसे सही रास्ते पर आये. .औचित्य और मूल्यों की बात करने पर वे कुछ सकारात्मक बातें कहेंगे , ऐसी आशा है.
कुछ तो दबाव होना चाहिये कि इस पर प्रतिबंध लग सके डॉ.अजित जी से आपने निवेदन किया ही है,अन्य योग्य जनों के सहयोग के बिना हम कुछ नहीं कर सकेंगे.
राजेंद्र भाई का कमेन्ट अपने आप में बेहतरीन लेख है !
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सीखने समझने के लिए !
यह कैसे पता लगेगा कि मेरी रचना चोरी कर कहीं, छापी गयी है ??
इसपर प्रकाश डालने का कष्ट करें !
आभार आपका
ये बात कोई नयी नहीं है क्योंकि इसका शिकार मैं भी बन चुकी हूँ। कभी कभी तो अनुमति मांग लेते हैं लेकिन फिर कब और कहाँ उसको लेकर प्रकाशित कर रहे हैं, इसके बारे में कोई सूचना नहीं मिलती है और प्रति ये तो कोई सवाल ही नहीं उठता है। हाँ कुछ लोग जरूर ही उसके बारे में सूचना दे देते हैं . इसके लिए ब्लॉग के लेखन को सुरक्षित रखने का कोई न कोई तो प्रावधान होना चाहिए। लॉक करने पर भी उसको चोरी कर लिया जाता है। बाकी इसके जानकर ही कोई मार्ग निकल सकते हैं और सबके लेखन को सुरक्षित रखा जा सके
जवाब देंहटाएंरेखा जी,
हटाएंऔर ब्लागर मित्र भी आगे आयें तब तो बात बने.सब चुप रहेंगे तब तो कुछ होनेवाला नहीं.
:(
जवाब देंहटाएंआपके आलेख के बाद अतुल श्रीवास्तव की टिप्पणी बहुत कुछ कह रही है ...
टिप्पणी के कुछ तत्व, जिनमें बहुत कुछ समाया हो, हो सकता है, मैं न समझ पाई होऊँ.मुझे लगा - जो व्यक्ति अपने ब्लाग का नाम (मुझे अब पता चला है)'सत्यमेव जयते'रखता हो ,उसे लीपा-पोती करने के स्थान पर स्पष्ट और न्यायसंगत बात कहना शोभता है -और वैसे तो आज के पत्रकार, ऊपर से संपादकी का तुर्रा -करेला और नीम-चढ़ा .उनके लिये क्या कहा जाय! अगर कुछ और तात्पर्य निहित हो तो कृपया बताएँ अनुराग जी,अपना मत ज़रूर सुधारूँगी. हिन्दी के ब्लागों की क्या यही नियति है? पर
हटाएंजी आपकी बात से सहमत हूँ, जिनसे गलती हुई है वे एक शब्द में क्षमा भी मांग सकते हैं लेकिन सफाई दर सफाई देना प्रीफर करते हैं, सच तो यही है कि हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में ब्लॉग-पोस्ट्स रोज़ छप रही हैं और उनमें से अधिकांश के लेखकों को इस बात की खबर किए जाने की मामूली सौजन्यता भी नहीं निभाई जाती, आज्ञा लेने या पारिश्रमिक देने की तो बात ही अजूबा होगी।
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