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लगभग दो वर्ष बाद भारत लौट रही हूँ ,सानफ़्रान्सिस्को एयरपोर्ट से दो दिन के उबाऊ सफ़र के बाद नई दिल्ली आ कर देश की धरती का परस मिला .
परिचित चेहरे -परिचय कोई नहीं पर भारतीय रंग-ढंग में रँगे लोग नये नहीं लग रहे . .एयरपोर्ट की व्यवस्था बहुत अच्छी हो गई है . अप्रैल बीत रही है ,उतनी गर्मी नहीं लग रही इस बार जैसी हमेशा लगा करती थी .वैसे मौसमों का ढर्रा हर जगह बदल रहा है .सामान उठवाने में लोग आगे बढ़ आते हैं .
रास्ता थोड़ा ऊबड़-खाबड़ है पर पहले जितना नहीं .
वही चिर-परिचित वनस्पतियाँ . सुनहरे झूमरों से लदा इठलाता आरग्वध(अमलतास)आँखें जुड़ा गईं .
गुलमोहर लाल-लाल हँसी बिखेरते जहाँ-तहाँ खड़े हैं .सड़क के किनारे वही पेड़-पौधे -आक ,धतूरा ,अरंड.शीशम और बबूल ,ऊँचे घने पाकड़ ,जिन पर झूला बहुत सजता है ..पीपल के चंचल पत्ते और गंभीर खड़े नीम ,और किनारे की घास भी तो. इन्हें देखने को आँखें तरस गईँ थीं.
सब के नाम नहीं मालूम, जैसे आस-पास रहनेवाले बहुत लोगों से देखा-देखी का परिचय है - नाम जाने बिना. इन सबको खूब पहचानती हूँ कुछ के नाम भी मालूम हैं ,याद नहीं आ रहे. मन पुलक उठा .
वहाँ बहुत सुन्दर वनस्पतियाँ थीं सब-कुछ स्वच्छ सुनियोजित .,लेकिन इनका मेरा जन्म का साथ है -लगाव है,इनके साथ पली बढ़ी हूँ .. मन करता है इनके पास चली जाऊँ .बचकानी-सी इच्छा जागती है नन्हीं-नन्हीं शाखें जो कँप रही हैं -रोमांचित-सी. जा कर हाथों से छू लूँ .
हवा के झोंके बार-बार गंध-भरे संदेश ले कर आ रहे हैं तुलसी की सुवास ,बेला की मदिर गंध इधऱ के घरों के आंगन ,अब आँगन कहाँ ,लान से चुरा कर ले आये होंगे . .
हरियाली दिख रही है चारों ओर .
डर रही थी ,धूल की पर्त ओढ़े सूखे पेड़ इधर-उधर खड़े होंगे .वैसा कुछ नहीं .हर जगह हर-भरे पल्लव- कर हिलाती डालें लहरा रहे हैं .अच्छा लग रहा है इन हवाओं का परस,इन राहों का दरस .बहुत दिनों के छूटे अपनों से मिलने को मन उमग रहा है
दो दिन बाद है हरिद्वार का आरक्षण - परम आत्मीय गंगा का सान्निध्य और हिमालय की छाँह पाने हेतु .अभी नहीं गई तो सांसारिक प्रतिबद्धताओँ में टलता चला जायेगा जाने कब तक .
अभी उधर मौसम भी अच्छा होगा . बौरों से लदे आम या नन्हीं-नन्हीं अमियाँ . गंगा की जलधार में उत्तरी हिमानियों का स्वच्छ-शीतल जल , मार्ग में पड़ती गिरि की नेह-धाराओँ से मिलता बहा आ रहा होगा .
शीघ्र ही वर्षा ऋतु आकाश छा लेगी .ग्रीष्म के ताप से विकल वृक्ष पर्ण- आच्छादन उतार मुक्त स्नान करेंगे ,शाखायें हिल-हिल कर जल बिखेरेंगी.पर्वतों की रुक्ष हुई देह सिक्त करती धारायें बह निकलेंगी . गंगा रजस्वला हो रहेंगी ,तीन महीने तक .उससे पहले ही देव-दर्शन का सौभाग्य पा लूँ .
देवतात्मा हिमालय की दुर्निवार पुकार ,कैसे अनसुनी करूँ . जाना तो वहीं होगा - बारंबार !
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अपने देश की बात ही कुछ और है, सुंदर आलेख
जवाब देंहटाएंआपकी भाषा शैली से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है...बहुत-२ धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभारत में स्वागत है आपका!
जवाब देंहटाएंप्रतिभाजी, स्वागत है आपका भारत में। आप कितने दिन हैं भारत में और क्या कार्यक्रम है, बताएं। अभी तो वर्षाकाल चल रहा है तो धरती पूर्णतया हरी-भरी हो रही है। भारत में इतनी वनस्पतियां हैं इसीलिए तो यह देवभूमि है।
जवाब देंहटाएंमोह को, और प्रकृति के अपनेपन को जीवंत कर दिया है आपने यहाँ।
जवाब देंहटाएंमाँ गँगा और देवात्मा हिमालय से जुड़ा विवरण तो मुग्ध कर देता है।
अजित जी ,
जवाब देंहटाएंअपनों का यही स्नेह प्रमुदित कर देता है.अभी वापस जाने का कोई इरादा नहीं -पिछले दस वर्षों में बहुत बाहर रही .बाबा रामदेव के योगपीठ में वानप्रस्थ-व्यवस्था के अंतर्गत रजिस्टर्ड हूँ .वहीं रहने का विचार था ,पर अभी कुछ सुविधाओं के लिये थोड़ा और समय लग रहा है .उसी की प्रतीक्षा कर रही हूँ.
आपकी प्रखर लेखनी से अभिभूत होती रहती हूँ .
शाह नवाज़ जी ,
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ .अपने देश का यह अपनापन बहुत आश्वस्त करता है.
अपनी मिटटी सदैव अमृत तुल्य होती है ! दुन्य का पवित्रतम मिटटी ! गणेश चतुर्दशी की शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंये बिछोह भी...कितना नवीन और गहरा कर देता है रिश्ते-नातों के साथ साथ छोटी छोटी चीज़ों से जुड़ाव को भी।
जवाब देंहटाएंहम्म, जी मत जाईयेगा अब कहीं भी...हम सबके ही पास रहिये अब।
:)
मातृ-भूमि पर आगमन के लिए आपका स्वागत है। आपकी ख़ुशी का अनुमान लगा सकती हूँ। आपका भारत प्रवास सुखमय हो।
जवाब देंहटाएंआपकी तूलिका सदृश लेखनी ने भारत की प्राकृतिक सुषमा का जो मनोहारी चित्र खींचा है,उसने मन को उत्कंठित कर दिया। कैलिफ़ोर्निया के मनोमुग्धकारी प्रकृति-सौंदर्य के बीच रह कर भी आपके पास हरिद्वार पहुँचने को मन अकुला रहा है। काश! मैं भी वहाँ पहुँच जाती।थोड़ी ईर्ष्या हो रही है आपसे-प्रतिभा जी।शीघ्र लौट
जवाब देंहटाएंआइए।
प्रतिभा जी ,
जवाब देंहटाएंयह सूचना मुझसे कैसे रह गयी ? आप अभी भी भारत में ही हैं ? आप हर विषय को रोचक रूप दे देती हैं ...
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की ११०० वीं बुलेटिन, एक और एक ग्यारह सौ - ११०० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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