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बुधवार, 10 सितंबर 2014

कथांश - 18. & 19.

18.
विवाह जैसे पारिवारिक समारोहों में सम्मिलित होने का अवसर ,वसु को पहली बार मिल रहा था.आगत संबंधियों की समवयस्का लड़कियों में घुलने -मिलने का रोमांच उसके लिए सुखद अनुभव था . 
आगत जनों में सहज उत्सुकता थी  -इनसे हमारी  क्या रिश्तेदारी है ?
राय साब ने स्पष्ट कर दिया , 'मेरी बड़ी बहिन हैं. दीदी के साथ में , और बाद में  तो पूरा ,सब इन्हीं ने सँभाला है .'
उनके घर की महिलाओं  के बीच और बरात के समय भी  ,माँ ने वसु को पूरी निगरानी में रखा.

उसे आँखों तले रखने की कोशिश करती थीं .उन्हें लगता था  महिलाओं में कोई  उससे फ़ालतू बातें न पूछने लगे -बाप के बिना बेटी कितनी निरीह हो जाती है माँ जानतीं थीं .
पिता के आकाश और प्रकाश तले  बेटी सहजमना विकसती है , उसकी छाया में निश्चिन्त साँस लेती है .
वसु को वह सुरक्षा कहाँ मिली ,कहीं एक कसक रही होगी उसके मन में!
मुझे याद है एक बार अकेले में , कुछ झिझकते हुए उसने  मुझसे  कहा था ,' मैंने पिता जी के कभी नहीं देखा .भइया ,एक बार उनसे मिलना चाहती हूँ .'
'कोशिश करूँगा...' मैंने कहा था .क्या पता कभी हो भी पायेगा या नहीं!
*
'कितना सुन्दर गाती है आपकी बेटी, ' एक रिश्तेदार महिला ने माँ से कहा था,' रतजगे में इसे यहीं रहने दीजिये न .'
वसु ने बड़ी आशा से उनकी ओर देखा था माँ  अनदेखा कर गईँ .
'बारह बजे तक तो मैं ही रहूँगी .फिर  एकाध घंटा ही तो और होगा ... इसके बिना वहाँ का  काम नहीं चलता . सारा घर फैला पड़ा है. कामवाली आएगी   ,नहाते-धोते  उसकी भी  चौकसी ज़रूरी ..'

मीता ने साध लिया, अपनी चाची से कहा,'कामवाली पर तो कड़ी नज़र रखनी होती है..पर हाँ अभी पांच-सात मिनट और रुक जाइए . वसु ,मेंहदी लगा ले... . '

हमारे घर जब वह तनय को और मुझे नाश्ता देने आई तो वह बोला था, 'बोला ,'आप ने गाने में हरा दिया हमें .बहुत अच्छी आवाज़ है .एक गाना रिकार्ड करलूँ आपका?'

वह बोली,'मेरा गला खराब है .'

'मुझे तो बिलकुल ठीक लग रहा है.'

'बोलना और गाना क्या एक ही बात है ?'

वह चुप हो गया .चलते समय फिर बोला था,

'अरे वसु जी ,आपको भाभी ने बुलाया है '.

बड़ी बेरुखी  से वसु बोली ,'अच्छा  ?"

मैने ताज्जुब से देखा ये ऐसे क्यों बोल रही है .

बाद में पता चला जूते-चुराई में इन लोगों की खूब लड़ाई हुई है.

कल रात कह भी रही थी,'ये लोग बरात में क्या आए आए अपने को लाट साब  समझने लगे ..'
अपने साथियों के साथ तनय इधर की लड़कियों को ,खूब हँस-हँस कर चिढ़ाता -खिजाता रहा था.

घर वालों ने अपनी लड़कियों को ही हिदायतें दीं उन लड़कों से कुछ नहीं कहा ,इसलिए और  खिन्न थी वह.

ऊँह, शादी-ब्याह में तो ये सब चलता ही है .
*
19.
शादी की तारीख रमन बाबू ने बड़ी सोच कर रखी थी .
 बीच में पड़नेवाली दुर्गापूजा की छुट्टियों का पूरा फ़ायदा विनय को मिला .कॉलेज बंद रहता है उन दिनों  .
मैं बड़ी उलझन में पड़ा  था उन दिनों .शादी के दिन वहाँ रहना नहीं चाहता.भेंट देने का सामान भी खरीदना था .,सोच लिया था, यहीं से  ले कर जाऊँगा .
पूजा की छुट्टियों के पहले वेतन मिलना था - मेरी पहली आय !
समय पर पहुँचाना भी जरूरी - माँ को सामान न मिला तो क्या भेंट देंगी उसे?
महिलाओं के लिए खरीदारी कभी की नहीं ,करना तो दूर साथ में गया भी नहीं था - वह भी जेवर और साड़ी की .दूकानदार  बडे ताड़ू होते हैं . अकेला पा कहीं उल्लू न बना दे .
कुछ  ट्रेनियों से अच्छी पहचान हो गई थी ,उन्हीं में एक शेखर ,जिसके ससुराली संबंधी   नगर में थे ,से बात कर ली .
'काहे ,चिन्ता करते हो .मेरी साली आखिर किस दिन के लिए है ,साथ ले लेंगे.'
उसने बताया हमारी शादी की तो सारी  तो सारी ज्वेलरी यहीं की रही. इस दुकान के पुराने गाहक हैं ये लोग .'
इधर बीच में रविवार था, बीच में एक छुट्टी लेकर मुझे  तीन दिन मिल रहे थे ,वेतन हाथ में आ गया था.
 भेंट खरीद कर   पहुँचानी भी थी  .
 उन लोगों के साथ  खरीदारी कर लाया. 
'पैसों की चिन्ता मत करो बाद में आ जायेंगे' - दुकानदार ने कह दिया था  .
माँ को पहले  लिख चुका था .
पहुँचना ज़रूरी था.साड़ी और चेन के बिना माँ क्या करतीं ?

शाम को पहुँचा .मेरे लिए खाना बना रखा  था.वसु घर आ गई थी ,माँ आनेवाली थीं .रात ही फेरे पड़ जायेंगे .बस ,फिर बिदा की तैयारी तैयारी .
कुछ करने को नहीं मुझे . ट्रेन के सफ़र के बाद नहाने चल दिया .
निकला तो माँ आ गईं थीं .
अटैची से निकाल कर साड़ी और चेन माँ को पकड़ा दी .
वे चेन को हाथ में लेकर वज़न का अनुमान कर रही हैं .ढाई तोले की लग रही है पेंडेन्ट भी सुन्दर  है - मोर का पंख !पर इत्ती भारी क्यों ली?'
'माँ, तुम्हारी भी कोई पोज़ीशन है. किसी से कम क्यों रहो !'
वसु साड़ी निकाल कर देखने लगी ,'अरे वाह,कित्ती सुन्दर  !'
नीले बैकग्राउंड पर रुपहले बूटे , भरा-भरा आँचल !
उसके ऊपर नील रंग खूब खिलता है.
'भइया तुम्हारी पसंद कितनी अच्छी है .'
हाथ में फैलाए  वसु अपलक देखे जा रही है .
'अच्छी लगी न तुझे ,मुझे पता था ,'
 अटैची से एक और नीली साड़ी निकाली लगभग वैसी ही बस ज़रा कम भारी - वसु के लिए भी ले ली थी.
 उसे पकड़ा दी  ,'ले वसूटी !'
दोनों हाथों से साड़ी चिपकाए मुझसे  आ लिपटी,' भैया तुम कितने अच्छे हो !'
'तू उससे गोरी है, और अच्छी लगेगी तुझ पर .'
मुख पर मंद स्मित लिये  माँ परम संतुष्ट भाव से देखती रहीं .
'कुछ अपने लिए भी लिया या सब इन्हीं लोगों पर लुटा आया ?'
'अभी पूरी ज़िन्दगी पड़ी है माँ ,हर महीने पैसा मिलेगा .'
'खूब तरक्की कर बेटा ,बस  मंदिर में प्रसाद चढ़ाना है !'
 'माँ ,मुझे एक बात लग रही है तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया ..'
'कैसी बात कर रहा है मुन्ना,' फ़ौरन टोक दिया उन्होंने .'ये सब मेरे लिए ही तो है. बस यही चाहिये मुझे ,तुम लोग खुश रहो भरे-पुरे- मेरा सबसे बड़ा सुख यही ...'
जानता हूँ अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा उन्होंने . .
'पर्स निकाल कर उनके हाथ में पकड़ा दिया था,'जित्ते चाहिये हों, मां' .
'बस एक-सौ-एक प्रसाद के ..'
निकाल लिए गिन कर और पर्स वापस कर दिया.
'किसी से कह मत देना कि मेैं घर पर हूँ  '
उपहार पैक किया वसु ने, फिर चले गए वे लोग - उसके विवाह के साक्षी बनने.
मैं घर पर हूँ अकेला -
रात ही तो निकालनी है ,बीत जायेगी यह भी  !

*
माँ ने बताया था -इनके रिवाज है पहली बिदा जनवासे में हो जाती है .वहाँ ससुर, जेठ ,ननदोई ,आदि भेटें देकर कुछ खिला -पिला कर वापस भेज देंगे. तब ससुराल के जोड़े में,जमाई को टीका कर ,उसी के साथ कल ससुराल के लिए बिदा होगी .दो प्रस्थान ,एकदम एक आँगन  से न हों, सो शादी के बाद जनवासे के लिए  पहली बिदा हमारे आँगन  से होगी .
नहा कर तौलिया डालने छत पर गया था .
इतने में नीचे से आवाज़ आई ,'माँ  दीदी आई हैं.'
साथ आई लड़कियाँ देहरी के बाहर ही रुकी रहीं. 

वह अंदर आ रही थी .
माँ कह रहीं थीं ,'अरे ,तैयार हो तुम तो ?

'बाबूजी ने कहा सगुन पूरे होना चाहियें ,कोंछा डलवा आओ! माँ, रुकना नहीं है.'
बाहर से एक लड़की बोली ,'विनय भैया ले जाने के लिए  के लिए वहाँ दरवाजे पर इंतज़ार कर रहे हैं ,भाभी जल्दी करना .'
उसने चुपचाप सुन लिया .

माँ कह रहीँ थी, 'हाँ , हाँ वो तो करना ही है .मैं लाती हूँ .'
वे  सामान लेने अंदर गईं

मैं नीचे उतरते उतरते बीच में रुक गया था .

वह उधर चली आई.

'मुझे पता था आओगे .मुझसे बड़े हो प्रणाम कर लूँ  तुम्हें.'

मैं बड़ा हूँ ? हाँ.
 उसने एक बार माँ से पूछा था,' ब्रजेश मुझसे बड़े हैं न ?'

माँ ने माना था,' हाँ ,उन पुराने चक्करों में इसका साल बेकार चला गया था .पढ़ाई में पिछड़ गया !'
वह सामने खड़ी कह रही थी,
'देखो ,तुम्हारी पहली आय में से अपना हिस्सा वसूल लिया न मैंने ?'

 ध्यान से   देखा - वही रुपहले बूटोंवाली नीली साड़ी - सिर ढके नीले पल्ले  का बॉर्डर चेहरे पर दमक रहा था ,भाल बिन्दी माँग सिन्दूर, पेंडेन्ट का मोरपंख ऊपर ही  झलमला गया - जैसे कोई अप्सरा ! 
अपलक देखता रह गया था.

मेंहँदी रचे हाथ जोड़े वह झुकी. अध-बिच ही मैंने  दोनों हाथ बढ़ा कर सिर  साध, जड़ाऊ टीके से सजा उसका भाल चूम लिया ,'जाओ पारमिता ,सुखी रहो!'

अपने को  सँभाल नहीं पा रहा था दृष्टि धुँधला गई . कहीं देख न ले , सिर घुमा कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा .
वह देहरी की ओर चली गई.
 उसे छूट थी सब के सामने खुल कर रोने की , मिल-भेंट कर कर आँसू बहाने की.

माँ सूप लिए चली आ रहीं थीं पहले ही तैयार कर रखा था.

 'अरे वसू , वो  बड़ा रूमाल ले आ ,वहीं रखा है ,इसका आँचल खराब हो जाएगा .'
वे लोग घर की देहरी के समीप खड़े हैं .इस मुँड़ेर की झिंझरी से दिखाई दे रहा है .

'बेटा ,पति के घर जा रही हो मन  में कोई पूर्वाग्रह ले कर मत जाना ,गृहस्थ-जीवन एक कसौटी है ,मुझे विश्वास है खरी उतरोगी तुम !'

'माँ ,कृतार्थ हुई! आशीष तुम्हारे अंतर्मन से निकला है. शिरोधार्य किया मैंने .'

ज़रा रुक गई थी बीच में ,गले में कुछ आ गया था शायद .फिर बोलने लगी -

'...और उनके प्रति शंका न रखना माँ ,विनय ने ख़ुद मुझसे पूछा था ,'आप के मन में कोई बाधा-संशय हो तो मुझे बता दीजिए ,मैं इस शादी से  मना कर दूँगा .आप पर कोई आँच नहीं आएगी .'

'जान कर  कर बहुत संतोष हुआ' 
उनकी आवाज़ में वही भाव झलक रहा था

भावावेश में मीता ने झुक कर उनके पाँव छू लिए.

उसे अँकवार भरते दोनों के आँसू बह रहे  थे .

रूमाल लेकर आ गई वसु.

देहरी पर खड़ा कर माँ  कोंछा डालने  बढ़ीं .सूप में चावल और चने की दाल वाली द्यूलारी,उसमें कुछ लड्डू,और दस-दस के कुछ नोट  .देहरी पर खड़ी मीता ने आँचल पसार कर ग्रहण किया.
माँ ने रूमाल  ऊपर  फैलाया दिया  . सात बार सूप से उसका आँचल भरा, मुट्ठी भर बचा लिया .
 सजल नयन हो बोलीं ,'बेटा,  ये अंजलि  में भर ले , जब चलने लगना बिना इधर घूमे ,मुँह फेरे हुए ही पीछे उछाल देना . और ये पानी -दो घूँट पीकर भरा गिलास वहीं रख देना - मायके में तेरा अन्न-जल बना रहेगा .... फिर आना बेटा !'

रोती हुई वसु को खींच कर पारमिता ने अपने से लगा लिया .नीचे वे तीनों रो रहीं थीं

'दीदी को ले जा बेटा ., वहाँ सब इन्तज़ार कर रहे होंगे .कह देना मैं अभी आ रही हूँ ..'
 पानी का गिलास वसु ने लेकर ताक पर रख दिया .पलट कर देखने की  मनाही थी वह आँसू बहाती चली गई. 
वसु साथ है .साथ की लड़कियों ने अपने बीच ले लिया. 

 माँ सूप लेकर अंदर .
मैं छत पर खड़ा ,ज़मीन पर उसके बिखेरे द्यूलारी के दाने अपलक देखे जा रहा हूँ !
(क्रमशः)
*