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जब श्रीराम लंका विजय कर अयोध्या लौट रहे थे, उनके प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे, भरत जी ने सोचा कि उनका राज्य उन्हें अर्पण कर अब यथाशीघ्र भार-मुक्त हो जाऊं. गुरु वशिष्ठ की सहमति से , वे राम जी के राज्याभिषेक की व्यवस्था मे लग गए.भरत जी ने गुरु से उस अवसर पर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का निवेदन किया. प्रसन्न मन गुरु वशिष्ठ ,आमंत्रण भेजने का काम शिष्यों को सौंप गुरु अन्य कार्यों में व्यस्त हो गये.
राजतिलक के समय जब श्रीराम ने आगत देवी देवताओं में श्री चित्रगुप्त जी को नहीं देखा तब भरतजी से पूछा कि वे क्यों नहीं पधारे. खोज-बीन करने पर पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों द्वारा उन तक निमंत्रण पहुंचाया ही नहीं गया.
श्री चित्रगुप्तजी सब-कुछ जान चुके थे उन्होंने इस भूल को अक्षम्य मानते हुए सभी प्राणियों का लेखा-जोखा बही सामने से खिसका दी और लेखनी क़लमदान पर रख दी .
जब सारे देवी-देवता राजतिलक से लौटे तो पाया कि बहुत अव्यवस्था मची हुई है. प्राणियों के कर्म का लेखा-जोखा हुआ ही नहीं.और यह निश्चित करना संभव नहीं कि किसकी कौन-सी गति हो. फलस्वरूप स्वर्ग-नरक के सारे काम रुक गये हैं.
सारा मामला श्री राम की समझ में आ गया. इस भारी चूक के परिमार्जन के लिए श्रीराम गुरु वशिष्ठ के साथ अयोध्या में श्री चित्रगुप्त जी के स्थान श्री धर्म-हरि मंदिर गये और उनकी स्तुति की.तत्पश्चात चूक के लिये क्षमा-याचना करते हुए उनसे सृष्टि-संचालन में सहयोग देने की प्रार्थना की.
श्री चित्रगुप्त जी ने राम का आग्रह स्वीकार कर लिया. उन्होंने प्रातःकाल विधिपूर्वक मसि-पात्र सहित लेखनी की पूजा कर उसे ग्रहण किया प्राणियों के कर्मों का विवरण सूची-बद्ध करने के लिए बही उठा ली और लेखन-कार्य पुनःआरम्भ कर दिया. सृष्टि का कार्य विधिवत् चलने लगा.
लेकिन इस बीच चौबीस घण्टे उनकी लेखनी निष्क्रिय रही थी. कायस्थ समाज ने इसका संज्ञान लिया और तभी से पूरी दुनिया में कायस्थ-जन दीपावली पर 24 घंटों के लिए क़लम रख देते है और अगले दिन क़लम- दावात के पूजन के बाद ही उसका प्रयोग करते हैं.
प्रायः ही हमारे रीति-रिवाज़ ,किसी घटना या मान्यता से जुड़े होते हैं ,कालान्तर में लोग कारण भूल जाते हैं. और पूछने पर
युवा पीढ़ी कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती.
(अयोध्यापुरी में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित श्री चित्रगुप्त मन्दिर को 'श्री धर्म हरि मंदिर' कहा गया है. धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उन्हें तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होगा. अयोध्या माहात्म्य में भी यह उल्लेख मिलता है).
- प्रतिभा सक्सेना.