मंगलवार, 12 मई 2020

का चुपि साध रहेउ बलवाना...'

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राम कथा के अंतर्गत सुन्दरकाण्ड,  परम सात्विक वृत्तिधारी पवनपुत्र हनुमान के बल,बुद्धि एवं  कौशल की कीर्ति-कथा है, उन्नतचेता भक्त की निष्ठामयी सामर्थ्य का गान है.
इस काण्ड का प्रारम्भ होता है जामवन्त के वचनों के उल्लेख से, जो मूलकथा से घटनाक्रम को जोड़ते हैं ,जिन पर सुन्दरकाण्ड का सम्भार खड़ा है.
रामत्व पर आपदा के चरम क्षणों में,आगे बढ़ कर चुनौती को स्वीकार करने का प्रश्न सामने खड़ा और परम समर्थ पवन-पुत्र मौन हैं.
'का चुपि साध रहे बलवाना...,,,,,,,,,पवन तनय बल पवन समाना'
जामवन्त की चुनौती भरी ललकार ने वज्राङ्ग को झकझोर दिया. शक्ति-सामर्थ्य का बोध जागा, अपार ऊर्जा तन में लहरा गई.तत्क्षण उन्होंने ठान लिया ,और दृढ़ निश्चय के बोल फूट पड़े -
'तब लगि मोहि परिखहु भाई.....
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जब लगि आवहुँ सीतहि देखी.'
इसी शक्ति-जागरण का प्रतिफल है सुन्दरकाण्ड,  सीता को खोजते हुए हनुमान सागर पार कर लङ्कापुरी पहुँचे ,जो तीन शिखरोंवाले(सुबेल,नील और सुन्दर )त्रिकूट पर्वत पर स्थित थी. सुन्दर शिखऱ स्थित अशोक वाटिका में, रावण ने सीता को बन्दिनी बना कर रखा था ,पवन-पुत्र के क्रिया-कलापों का केन्द्र वही रहा इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड उचित ही है.
शक्ति का यह उन्मेष किसी अहं की तुष्टि के लिए नहीं अन्याय के प्रतिकार के लिए, नीति ओर मनुज-धर्म की रक्षा के लिये है, स्वयं के मान-अपमान का विचार छोड़,निस्पृह भावेन अनीति के प्रतिकार एवं  शुभकार्यों के प्रति तत्परता के लिए है, इसी निर्वाह के कारण  राम-कथा का यह अंश अमर गाथा की परिणति पा गया है.
अञ्जनी कुमार की भक्ति कोई साधारण भक्ति नहीं थी, उन राम को पूर्णरूपेण समर्पित थी,जो आजीवन अपने सुख अथवा हित-साधना का विचार न कर,कर्तव्य के प्रति सतत तत्पर रहे. .विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों का निर्वाह किया. राम के परम उपासक हनुमान का बल,विवेक ,विज्ञान, रामकाज को ही अर्पित रहा.
रामत्व की विजय-यात्रा के लिये ऐसा ही समर्थ योगदान चाहिये, यही हनुमत् प्रयास,रामत्व को काँधे चढ़ाकर, उसके निर्वहन में सतत संरक्षक बन ,कई-कई आयामों में विस्तार पाता है.
हनुमनत्व की साधना के बिना रामत्व की सिद्धि नहीं होती.
अशोकवाटिका की वानरी कूद-फाँद,मारुतिनन्दन की वर्जना का घोष है कि अनीति से विरत हो, सन्मार्ग ग्रहण करो.
इस वज्राङ्गी क्षमता और शक्ति का उपयोग रामत्व अर्थात् सर्व-कल्याण की सिद्धि के लिये है.निस्वार्थ-निस्पृह भाव से ,उस के फलीभूत होने की साधना है और यही सुन्दरकाण्ड का प्रतिपाद्य है.
हनुमान की भक्ति निष्क्रिय हो कर बैठ जाने के लिए नहीं,अपनी क्षमताओं का समुचित उपयोग कर,अनर्थों के निवारण हेतु सतत प्रयत्नशील रहने की  साधना है, विश्व-कल्याण की प्रयोजना है, अनीति और अन्याय के निवारण का सङ्कल्प है. लोक-कल्याण राम का जीवनादर्श रहा ,और हनुमान,सम्पूर्ण निष्ठा के साथ, आजीवन उनकी कार्य-सिद्धि हेतु तत्पर रहे .
'कौन सो काज कठिन जग माँहीं', का उद्घोष कर जामवन्त ने सोई ऊर्जा को जगा कर ,जो संदेश दिया वह साधक के लिेए  अनुकरणीय है ,अन्यथा  हनुमान भक्ति का ढिंढोरा पीटना दिखावा मात्र है, बुद्धि, विवेक, ज्ञान का होना व्यर्थ है.
हनुमनत्व का सञ्चार ,तभी होगा जब उसका उपयोग अपने स्वार्थ ,के लिए न हो कर अनर्थों के निवारण, नीति और धर्म की रक्षा और सत् के सम्पादन एवं पोषण हेतु हो.जन साधारण सब सुनते समझते भी मौन रह जाय,इससे बड़ी विडंबना क्या होगी? हनुमान-भक्ति निष्क्रियता की ओर नहीं ले जाती ,रामत्व के धारण एवं पोषण के लिए प्रेरित करती है.
दृष्टा कवि सचेत करता है कि सामर्थ्यवान का निष्क्रिय रहना समाज के लिए हताशाजनक होता है,सङ्कट के समय काम न आ सके उस बल,बुद्धि ,विवेक का होना, न होना बराबर  है.
सुन्दरकाण्ड,राम-कथा का अङ्ग होते हुए,अपना महत्व रखता है,उसका पाठ प्रियकर है क्योंकि उससे आस्थाओँ को बल मिलता है.
अंतर्निहित क्षमताओँ का भान भूले व्यक्ति को चेताने की,उसके सुप्त बोध जगाने की कथा है सुन्दरकाण्ड. और इसका प्रेरक उद्घोष कि तुम तुल जाओ तो 'कौन सो काज कठिन जग माहीं?'  चेतना को उदीप्त  करता है. अपने सीमित स्पेस में कथा-गायक का आशान्वित करता स्वर, भ्रमित मानव-जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाने को प्रयासरत है.
सुन्दरकाण्ड का पाठ, साधक की सुप्त ऊर्जा को जगाने का साधन बने और  विश्व-मङ्गल के निर्वहन एवं संरक्षण हेतु तत्पर रहने का विवेक जगा सके तभी सार्थक और कल्याणकारी है महत् उद्देश्य की सिद्धि के लिये,संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए  हनुमनत्व की साधना,निष्ठापूर्वक अपना दायित्व निभाने में है, और यही सच्ची वज्राङ्ग-भक्ति है, जिसके होते रामत्व पर आँच आना सम्भव नहीं. साधक का मनोबल उसे निरन्तर आश्वस्त करता, है कि असम्भव का सेतु पाटने को उसका योगदान, चाहे  नन्हीं गिलहरी के परम लघु प्रयास जैसा हो ,स्पृहणीय है.
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