सोमवार, 14 अप्रैल 2014

धरती सजी रहे - बाल-कहानी.

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'माँ ,देखो ,ये कबूतर इस पानी में घुस कर पंख फड़फड़ा रहा है- सारा पानी उछाल-उछाल कर चारों तरफ़  कीचड़ कर दिया '
'रोज़ भगाती हूँ,और जब देखो तब चले आते हैं ..', अम्माँ थोड़े गुस्से में थीं. मुकुल ने और शिकायत की,'और ये चिड़ियाँ तोता, गिलहरी मौका लगते ही फल और डालें कुतरती रहती हैं .'
'अब जाल लगवा देंगे चारों ओर ..' मम्मी ने कहा.
मुकुल बड़ा-सा बाँस लेकर सारे पक्षियों और गिलहरी को दूर तक खदेड़ने लगा.
उसी रात उसे सपना आया -कि तोता ,गौरैया ,गिलहरी , कबूतर, खरगोश आदि बहुत से लोग आये हैं .कह रहे हैं ,'हमें तुमसे बात करनी है.
सपने में मुकुल ने सोचा 'अरे ,इन सब को भी बोलना आता है ..'.
 उसे याद आया कितोता तो हमारी बोली अच्छी तरह बोल लेता है .'
वह बाहर निकल आया
'आओ बैठो .'
वे रंग-बिरंगे नन्हें -प्यारे लोग उसके आस-पास बैठ गये .मुकुल के मन में खुशी की लहरें उठने लगीं .उसे लगा खूब सुन्दर-सुन्दर बहुत तरह के खिलौने उसके पास इकट्ठे हो गए हैं .
उसने सोचा ,'कितने प्यारे , जानदार खिलौने जैसे हैं ये सब .'
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ उसने पूछा, 'क्या हुआ?'
'तोता आगे आया बोला ,'आप लोग क्या चाहते हैं .हम पशु-पक्षी यहाँ नहीं रहें ? .'
'नहीं क्यों , रहो न .हमने कब मना किया आराम से रहो ,बस हमारी जगह पर गड़बड़ मत करो .'
' आपकी जगह कौन सी  ?
'यही, जहाँ हम रहते हैं .,  पाँच साल में हमने इसे कितना अच्छा कर लिया पर तुम लोग समझते नहीं ..'     '
 ,'हाँ ,पाँच साल से आप लोग यहाँ आ गये .पहले हज़ारों सालों से ,हम सब यहाँ रहते थे ,धीरे-धीरे आप लोगों ने हमें भगा कर सब अपने कब्ज़ें में कर लिया . ये तो खुली जगह थी खूब पेड़ थे दूर-दूर तक खुला आसमान था, धूप-हवा-पानी किसी चीज़ की कमी नहीं थी .लेकिन ये सारी जगह आपकी कैसे हो गई .?.'
'ज़मीन ले कर पापा ने ये बड़ी-सी कोठी बनवाई है न, अपने रहने के लिये .'
' और हम सब को उजाड़ दिया .हम लोग लड़ नहीं सकते और आदमी लोग हमेशा मनमानी करते हैं.'
वे बोलने लगे-
'पेड़ कटवा दिये..हमारे घोंसले तोड़-फोड़ दिये अंडे-बच्चे निकाल फेंके .न हमारे रहने को जगह न खाने को फल कहाँ जाये हम '
'हम तो आपसे कुछ नहीं लेते .न हमें कपड़े चाहियें ,न बड़े-बड़े घर ,और सामान तो बिलकुल नहीं'
छोटी-सी गिल्लो बोली ,' हम तो धरती के खिलौने हैं ,सबको खुश रखते हैं. यह सब प्रकृति ने सब जीवों के लिये रचा है .आप लोगों ने सब-कुछ   छीन लिया. सब के  हिस्सों को अपने लिये समेट लिया ....'   
'कैसे ?'
.,देखो न ,सब जगह दीवारें खिंच गई ,ये लो सुनो .ये छोटी-सी गौरैया क्या कह रही है..'
वह आगे फुदक आई ,'हमने तो घरों के मोखों में घोंसला बनाना शुरू कर दिया था.तुम्हारे आँगन में खेलना हमें बड़ा अच्छा लगता था .पर तुम लोगों ने हर जगह जाली और तार लगा दिेये .
'अम्माँ कहती हैं तुम लोग खूब कूड़ा और तिनके फैलाती हो ..'
मुकुल को ध्यान आया अभी कुछ दिन पहले अम्माँ सफ़ाई कर रहीं थीं ,झाड़ू के धक्के से  बराम्दे की साइड से एक तिनकों का घोंसला नीचे आ गिरा .दो बिलकुल नन्हें बच्चे ज़मीन पर पड़े चीं-चीं कर रो रहे थे ,दो अंडे टूटे पड़े थे उनका पीला पदार्थ ज़मीन बिखरा पड़ा था. जन्म लेने के पहले ही उस जीव की हत्या हो चुकी थी .'
' अपने घर तो बढ़ाते जा रहे हो और हमारा छोटा-सा घोंसला ,जरा सी जगह में, उसे नहीं रहने दिया..हमारे अंडे-बच्चे मर जाते हैं हमें भी दुख होता है ..'
मुकुल सिर झुकाये सुन रहा था .समझ नहीं पा रहा था क्या उत्तर दे .
गिलहरी बोल पड़ी,'
तुम-लोग घऱ बनाते हो तो कितना सामान पड़ा रहता  है ,और कितनी  गंदगी फैलाते हो तुम लोग हर जगह थूकना ,कूड़ा फैलाना और भी जाने-क्या-क्या..   ,'
नन्हा खरगोश अब चुप न रह सका ,'भगवान ने इन्हे सब के साथ मिल कर रहने की अक्ल क्यों नहीं दी? अरे, ये आदमी लोग बड़े स्वार्थी हैं.. .बड़े लालची हैं.'
'हम लोग तो ज़रा सी जगह में गुज़र कर लेते थे .तुम लोग चार-जनों के लिये  कितनी-भी जगह घेर लो मन नहीं भरता .हमारे लिय न नदी का पानी पीने लायक रहा .सब गंदगी बहा-बहा कर खराब कर दिया. हवा में तमाम धुआँ और अजीब सी महकें .सांस लेते तक नहीं बनता-कभी-कभी तो ..'
कौवे का कहना था   ' धरती माता का दुलार सब प्राणियों के लिये है . हमारे न होने पर इनका जीवन भी  कितना कठिन हो जायेगा ये नहीं जानते ये लोग .!
मुकुल को याद आया कि पशु- पक्षी इस धरती के लिये बहुत उपयोगी हैं ,और पेड़-पौधों के बिना दुनिया उजाड़ हो जायेगी ..'.
इतने में उसकी नींद खुल गई .
सपना उसके ध्यान में था. .कभी पढ़ा हुआ एक  कथन उसके मन में कौंध गया -' यह धरती  एक कुटुंब है जिसमें सभी जीव-धारी एक दूसरे पर निर्भर हैं .'
उसने सोचा कुछ -न कुछ करना ज़रूर पड़ेगा जिससे कि यहाँ सबका जीवन सुखी हो सके .इन प्यारे-प्यारे खिलौनों से  धरती
हमेशा सजी रहे !
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