बुधवार, 12 जून 2013

मन की मौज

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बिस्तर पर लेट जब मन अपनी मौज में होता है और मुक्त विचार परंपरा चल निकलती है तब  प्रायः ही कुछ मज़ेदार बातें ध्यान में आने लगती है.सोच-सोच कर हँसी भी आती है.ऐसी ही एक बात कल याद आ गई -
बहुत पहले की घटना  है - तब कानपुर में थे हम , बच्चे छोटे थे.
उस दिन हम लोग अस्सी फ़ुट रोड़ से हो कर पनकी जा रहे थे .दोंनो बच्चे साथ में थे सोचा एक बिस्किट का पैकेट यहीं से खरीद लें .गाड़ी साइड में रुकवा ली .मैं नीचे उतरी थी .
 पति ने कहा ,'वो उधर ज़रा बढ़ कर दो पैकेट ग्लूकोज़वाले ले लो,' साथ ही जोड़ दिया  'देख कर पार करना !'
 दस का एक नोट बढ़ाते हुए दुकान का ओर इशारा कर  दिया .मैं लेकर चल दी .उस   पार थी दुकान. मैं उधर ही बढ़ गई .
पहुँच कर मैंने वही दस का नोट दुकानदार को पकड़ाया ,'दो पैकेट ग्लूकोज़ वाले बिस्किट!'
बड़े ताज्जुब से उसने मेरी ओर देखा ,और साइडवाली दुकान की ओर इशारा कर दिया .
अब मेरा ध्यान गया - अरे, यहाँ तो  होम एप्लाइन्सेज़ भरे हैं !
एकदम उससे नोट  लिया मैंने और साइडवाली  की दुकान की ओर बढ़ गई .
सड़क के उस पार से बैठे-बैठे देख रहे थे .
मेरे पहुँचते ही पूछा,' क्यों , तुम उस दुकान पर बिस्कुट माँग रहीं थीं ?'
'तुम्हीं ने तो  इशारा कर के बताई थी सीधी वहीं चली गई.'
 ' तो क्या कहा उसने ?
'कहता क्या उसने सही दुकान दिखा दी .तुम्हें पहले ही ठीक बताना चाहिए था .'
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10 टिप्‍पणियां:

  1. :):) सच ,पत्नियाँ कितनी आज्ञाकारी होती हैं :):)

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  2. आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 14.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in पर लिंक की गयी है। कृपया देखें और अपना सुझाव दें।

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  3. फिर मत कहना पत्नियाँ बात नहीं मानती :)

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  4. आपकी यह सुन्दर रचना शनिवार 15.06.2013 को निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है! कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  5. विश्वास आत्मनिर्भरता .... कुछ भी कहो ... पर होता है ऐसा अक्सर ...

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