गुरुवार, 8 नवंबर 2012

पीला गुलाब - 8 & 9.



8 .
'आजकल दादा की पोस्टिंग कश्मीर  साइड में  है ,अच्छा मौका है ,' शिब्बू ने कहा ,'चलो हम लोग उधर भी घूम आते हैं .'
 और रुचि की गर्मी की  छुट्टियों में अर्न्ड लीव ले ली.बस, आ पहुँचे दादा के पास .
वैसे भी छुट्टी लेना है, तो लेना है ,पैसे काट लेंगे, काट लें .चिन्ता काहे की !
सात सल बीत गये रुचि की शादी को . दादा की पोस्टिंग के साथ कितनी जगहें घूम लीं .शिब्बू नई जगह जाये बिना रह नहीं सकते -चलो !चाहे हफ़्ते भर को ही सही .
नई जगह का नयापन ,अभ्यस्त होने में समय लगता है .
रुचि की नींद बीच में कई बार टूटती है.
रात के डेढ़ बजे हैं .
सिगरेट की महक ?कहाँ से ,इस समय ?
 पानी  लेने जाते  देखा ,उधर के अधखुले दरवाज़ों से धुएँ की कुछ भटकती लहरें बाहर आ रही हैं .
ठिठक गई .कुछ क्षण खड़ी देखती रही .फिर लौट गई .
जिठानी ने बताया था कुछ बताते नहीं.जब परेशान होते हैं तो यही करते हैं .
कभी-कभी चुपचाप अकेले टहलते हैं- कुछ सोचते-से .
'आजकल जाने क्या हो गया है इन्हें .कान पड़ी बात सुनाई नहीं देती .'
गति-विधि से लगता है कुछ गंभीर समस्या में पड़े हैं .'.
हाँ ,वह देख रही है -अपने में डूबे से .
पर क्या कहे सुरुचि !
'लगता है कुछ गंभीर समस्या में पड़े हैं ,आप परेशान होंगी इसलिये कुछ कहते नहीं होंगे . दीदी ,पर आप ही पूछिये न ! नहीं, जब सब खाना खाने बैठें तब पूछिये .हम सब होंगे न आपका साथ देनेवाले !'
 अख़बार में खबरों पर बात छेड़ दी रुचि ने .बात पर बात निकलने लगी .सीमाओं पर आसार अच्छे नहीं हैं.लगता है कुछ हो कर रहेगा .
'हाँ,  रंग-ढंग ऐसे ही बन रहे हैं . मेरा मन अजब सी चिन्ता से भरा रहता   है.जाना  तो है ही बुलावा आयेगा तो. ये लड़ाई लगता है बहुत आसान नहीं होगी .'
शिब्बू बोल पड़े,'पाकिस्तान के सिर उठाने की बात कर रहे हैं ?'
वे मुँह में रखा कौर चबाते रहे .
' पिद्दी सा तो है .कितना खींचेगा पाकिस्तान ! हमारे जवान ही धूल चटा देंगे ..'
'किसी  बल-बूते पर ही हिम्मत किये है ....दुश्मन को कभी कम मत समझो ,पता नहीं क्या दाँव खेल जाय. हम लोगों को तो तैनात रहना ही है .' '
 लड़ाई में जाने से पहले, इधर की जिम्मेदारियों का ख़याल हर फ़ौज़ी को आता है .
वे कह रहे थे-
'सैनिक की बीवी को अपने बल पर खड़ा होने को तैयार रहना होता है.  मुझे चिन्ता होती है अपने बच्चों की .किरन पढ़ी-लिखी होती तो सम्हाल ले जाती .'
अंजना -निरंजना दस और ग्यारह की हो गईं , कान्वेंट में पढ़ रही हैं .कब कहाँ पोस्टिंग हो जाय ,उनकी पढ़ाई में ज़रा भी व्यवधान नहीं देखना चाहते वे .
लड़कियाँ भी पास नहीं रहतीं .किरन अकेली पड़ जाती है .
'कौन हमारे बस में रहा कुछ.न पढ़ना-लिखना न और कुछ .बहू को देखो ,अपना भला-बुरा ख़ुद सोच लिया .'
.शिब्बू बोल पड़े ,'बात सेना में होने की नहीं ,सराब पीने की थी ,क्यों न ?'
'क्या शिब्बू ,फ़लतू बातें ले कर बैठ जाते हो .'
रुचि सिर झुकाये बैठी है .'
किरन व्याकुल हो बोल उठी -
मत करो ऐसी-वैसी बातें, मैं तो जनम की बेबस ,.ऐसी बातें सुन कर मेरा तो दिल बैठ जाता है .'

'सब आलतू- फ़ालतू बातें ..सूत न कपास ..' शिब्बू को बड़ी उलझन होने लगी थी .
'अंदर-अंदर लड़ाई तो चल रही है ,कुछ ठिकाना नहीं कब खुल कर होने लगे ..'
रुचि चुप बैठी  सुन रही है .

9 .
 सीमा पर तनाव कम नहीं हुआ .युद्ध की नौबत आ गई .
उधर घमासान मचा है .
 कर्नल अभिमन्यु जा चुके हैं फ़्रंट पर .

परिवार अपने निवास पर भेज दिया गया .
बड़े मुश्किल  दिन .
किरन झींकती है .'मरे ठीक से पूरी खबरें भी नहीं आने देते .हमें तो ये भी नहीं पता चलता आजकल किधर हैं .कोई पता हीं .नंबर लिख कर चिट्ठी डाल दो ,जाने मिलती भी होगी कि नहीं !'
हाँ, सारी बातें सेंसर होती हैं .
रुचि समझाती है ,'आप चिन्ता मत कीजिये दीदी,कर्नल हैं वे ,उन्हें कुछ नहीं होगा .'
'और ,जो ये ख़बरें रोज-रोज आती हैं. कितना क्या-क्या हो रहा है ..,मेरी तो जान सूखती रहती है .'

जानती है वह पूरी ख़बरें देते भी नहीं .त्रस्त रहता है मन .पर खुल कर कोई कुछ नहीं कहता .
किरन ने रुचि को जाने नहीं दिया -
'नहीं ,तुम कहीं मत जाओ .मैं बिलकुल अकेली पड़ जाऊँगी .'
'पता नहीं कितने दिन लड़ाई चलेगी .हमारा पलड़ा भारी है ,पर '... पर के आगे गहरा मौन .
'मुझसे अकेले  नहीं रहा जायेगा.और कौन बैठा है मेरा .अब तो मायके में माँ भी नहीं . .'
'नहीं आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे दीदी,हमारे साथ चलिये मन लगा रहेगा .'
' कहीं नहीं .यहाँ छोड़ गये हैं, यहीं रहूँगी , इन्तजार करूँगी उनका .'
 हफ़्ते  भर की छुट्टी और ले ली उसने .

ख़बरों पर सबका ध्यान रहता है .
सुन-सुन कर  जान सूखती रहती है. 
किरन कभी-कभी कह उठती है ,'यें दो-दो धींगड़ियाँ . मेम साब बनती हैं .कहाँ गुज़र होगी इनकी ?मेरी सुनती  नहीं .एक लड़का होता तो निश्चिंती होती .'
रुचि समझाती है ,' आप क्यों चिन्ता करती हैं? ये पढ़ी-लिखी लड़कियाँ  लड़कों से किसी तरह कम नहीं. देखना ,ये ही नाम रोशन  करेंगी .'
'हमने जब जब लड़के की बात उठाई वो भी ऐसे ही कहते थे .'
'ठीक कहते थे .'
कुछ रुक कर बोली,' उनकी बेटियों के लिये कुछ कहो ,उन्हें अच्छा नहीं लगता था .'
'बेटियाँ होती ही हैं प्यारी .दीदी,सिर्फ़ आपकी नहीं हमारी भी हैं वो .'
' वो भी तो ,मुझसे जियादा ,तुम्हें मानती हैं .'
*
मन में अजीब-अजीब बातें उठती हैं.कुछ बात निकाल कर रुचि का  रोने का मन होता है.
 याद आया घर की महरी कुंजा ,जिसकी बेटी को  किताबें खरिदवा देती थी ,पढ़ा देती थी .चौथी पास कर ली थी उसने ने .'दीदी-दीदी' कह कर उसके चारों ओर मँडराती थी .
 उस की बिदा की शाम काम करते-करते गा रही थी - 
'मैया कहे- धिया नित उठि अइयो ,
बाबा कहे ,तीज-त्योहार,
भैया कहे बहिनी, काज-परोजन .
भौजी कह - कौने काम !'

एक दिन में जीवन का सारा प्रबंध बदल जाता है - क्यों होता है ऐसा ? जनम के संबंधों का सारा मोह अचानक छूट सकता है क्या ?
पर होता यही  है .विवाह के बाद अगली बिदा तक वैसा कुछ नहीं रहता .उस घर  उस तरह नहीं रह पाती जैसे पहले रहती थी . औपचारिकता आ जाती है ,या मुझे ही ऐसा लगता है !वह बेधड़क मुक्त व्यवहार नहीं रहता. मर्यादा की एक अदृष्य लकीर- सी खिंच गई हो जैसे ,कुछ अलगाव -सा ,परायापन सा .
अब तो वहाँ भी मन नहीं लगता .
उमड़-उमड़ कर रोना आ रहा है .
और किरन दीदी ? उनका तो कहीं मायका भी नहीं !
ज़िन्दगी बड़ी मुश्किल चीज़ है !
*
(क्रमशः)




























7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कुछ देखा सुना और जिया सा..... सच में काफी कुछ बदल जाता है.....

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  2. एक दिन में सारा जीवन बदल जाता है,जिन्दगी बड़ी ममुश्किल चीज है,,,,,,,

    RECENT POST:..........सागर

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  3. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  4. आभार आदरेया प्रतिभा दी |
    सुन्दर प्रस्तुति ||

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  5. पीला गुलाब की सारी कड़ियाँ एक साथ पढ़ीं ..... ज़िंदगी किस रास्ते जाती है और मन किस रास्ते .... भावप्रवण कहानी चल रही है ....

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  6. khud par hairan hun ki maine yaha tippani nahi di....jabki padh to kafi din pahle hi liya tha. lekin sochti hun abhi kahani apni lay me chal rahi hai kuchh kahne layak mil bhi nahi raha. apka kisi vishay-vastu ko pravaah me baandhne ka hunar udwelit karta hai kuchh man me....

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