मंगलवार, 16 अगस्त 2011

'ज' के साथ 'जी'.


*
बात उन दिनों की है जब हँसी आती थी तो आये चली जाती  रुकने का नाम नहीं .
और हर बात पर,चाहे तुक की हो चाहे बेतुकी, एक दूसरे की खिंचाई करने की आदत .
मेरी मित्र विशाखा और मैं .नामों को लेकर, उच्चारणों को ले कर अक्सर उलझ जाते.
उन्हीं दिनों हमारे यहाँ एक शिक्षिका आईं - 'गिरिजा देवी शर्मा' . विशाखा ने जब कहा 'गिरिजा जी '.
 लगा कह रही है 'गिरजा जी .'
मुझे हँसी आ गई .
बस, होने लगी बहस .
तय पाया नाम में अगर एक 'ज' आ गया तो आगे 'जी' लगाना उचित नहीं.
और वे 'गिरजा जी' के बजाय 'गिरजा देवी' बनी रहीं  .
 विशाखा के एक संबंधी थे ब्रजेश . अक्सर आ जाते थे .
मैंने कहा तो अब उनके  आगे 'जी' मत लगाना .
'फिर ?'
'बाबू' लगा दो .
बन गई बात .
अब मेरी बारी आई .राजेश ,उसका पड़ोसी , वह तो बचपन से नाम लेती थी.  
चाय बनाई विशाखा ने .
राजेश सुड़क-सुड़क कर  पीने लगा .
हम दोनों ने एक दूसरे को देखा .हँसी बार-बार आ रही थी.
'क्या हुआ ?'
अब क्या कहें उससे !
विशाखा ने मेरे ऊपर डाल दिया ,'इसकी आदत ही ऐसी है.और इसे देख कर मुझे हँसी आ जाती है .'
'राजेश जी ,बात ये है ...'
'क्यों फिर वही..' विशाखा ने टोका ,'फिर तूने जी लगाया ?'
'देखो राजेश तुम्हारे नाम में एक 'ज' है .अब उसमें एकौर 'जी' लग देंगे तो कुछ जमेगा नहीं.  बेतुका लगने लगेगा !'
वह सोच में पड़ गया ,'तो 'जी' मत न लगाओ .'
'फिर क्या लगायें ?'
'कुछ मत लगाओ .'
'कुछ तो लगाना है .तुम्हारी तो अम्माँ भी खाली नाम नहीं लेतीं 'राजेश कुमार' कह के बुलाती हैं ..''
'इत्ता बड़ा कुमार ?ये हमसे नहीं होने का.'
 तो सीधे नाम लो '
'अरे वाह .'
'बस 'बाबू' लगा दे ,और बाबू तो वो हई .'
'हाँ ठीक .अब मैं कहूँगी ,राजेश बाबू .'
-
फिर विवाह के बाद. नये नामों से वास्ता पड़ा ,-
राजू ,अज्जू ,विजय...
जहाँ 'ज' आया ,जी लगाते-लगाते रुक जाती  फ़ौरन बाबू निकल पड़ता मुँह से ,अपने आप ही, अनायास - विशाखा जैसे सिर पर सवार हो .
-
अब विशाखा नहीं है ,पर उसकी बात तो है .
'ज्योति' के आगे 'जी' लगाने में ज़ोर पड़ता है.लगता है कुछ गड़बड़ हो गया  . 'ज्योति जी' -निकलता नहीं मुँह से .'ज्योति बाबू' बिलकुल सही लगता है - संतोषप्रद !
'जीवन जी' और 'जीवन बाबू' ?
मुझे दूसरा ठीक लगता है - नाम में 'ज' है आगे भी 'जी' ,कुछ बेतुका-सा लगता है मुझे तो !

वैसे  जैसे जिसका मन !
***

8 टिप्‍पणियां:

  1. यह बढ़िया रहा ....
    मैंने भी अपने आसपास के तमाम नाम ढूंढ लिए ... :-)
    शुभकामनायें आपको

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. आदरणीय डॉ.अनवर जमाल,
    आप मेरे ब्लाग पर आये ,और टिप्पणी दी ,मैं उपकृत हुई .
    बस, एक निवेदन करना चाहती हूँ -कृपा कर साहित्य और लालित्य के क्षेत्र में राजनीति, धर्म आदि का विवेचन न करें, इन मुद्दों के लिये इसी कोटि के ब्लाग्ज़ भी हैं ,जब मेरी रुचि होगी तो वहाँ जा कर पढ़ लूँगी.
    अन्यथा न लें ,यह निवेदन मैं अपने ब्लाग के लिये कर रही हूँ.
    धन्यवाद.

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  4. .

    प्रतिभा जी ,

    मजेदार पोस्ट है ...खूब हंसाया ...ख़ास करके ..." गिर-जा-जी"। आगे से जब भी कहीं 'जी' लिखूंगी , आपकी इस पोस्ट का ध्यान आ जाएगा।

    .

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  5. बहुत सुन्दर प्रसंग किन्तु किसी को जैसे भी बुलाया जय - शब्द आगे वाले को कटु और अप्रिय न लगे , इसका तो ध्यान होनी ही चाहिए !

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  6. :)
    रोचक!
    यह रस कितने ही दिन बाद मिला।

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