*
जन्म से लेकर मृत्यु तक हम वस्त्रों में ही लिपटे रहते हैं.
वस्त्र-विन्यास का यह तीसरा युग है . पहला युग - प्राकृतिक उपादानों से निर्मित बाह्य तत्वों से ,शरीर के संरक्षण के लिये,
दूसरा - फ़ैशन के लिये .परिधानों का चयन - .रुचिपूर्ण ढंग से अच्छा लुक देकर सजाने,दिखाने के लिये .
इसी क्रम में 1935 से सिंथेटिक फ़ाइबर चलन में आया ,जो प्राकृतिक वस्त्रों से अधिक दमदार,अधिक क्षमता-संपन्न, विशेष कार्यो के लिये उपयोगी-,स्ट्रानट्स के लिये ,एंटी वेलेस्टिक वेस्ट्स,,अधिक तापरोधी,अग्निशामकों और कार रेसर्स के लिये विशेष उपयोगी.
ये तो आपने सुन ही लिया होगा कि दूध से कपड़े बनाने में सफलता मिल गई है. जी हाँ ,दूध का प्रोटीन-नीले काले भूरे रंगों में टेक्सटाइल रेशम की तरह मुलायम -सूँधने में दूध की कोई महक नहीं. इसका श्रेय है आंके डोमास्के को जो डिज़ाइनर हैं और माइक्रोबायोलॉजिस्ट भी.ये कपड़े एकदम ईको फ़्रेंडली हैं , खाया भी जा सकता है.
और अब तीसरे क्रम में सचेत बोध वाले वस्त्र -- यह वस्त्र-विन्यास निष्क्रिय होकर शरीर को केवल ढाके न रह कर .पहननेवाले की सुरक्षा के लिये जुम्मेदारी से संपन्नभी निभाएगा.
तीसरा चरण निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है.
न्यूयार्क की सेंसटेक्स एक स्मार्ट टीशर्ट के लिये प्रयत्नशील हैं जो कांडक्टिव फ़ाइबर्स से रचित है ,जिनसे छोटे ट्रांसफ़ार्मर फ़ीड होते हैं ,हृदय की धड़कन,रक्त में आक्सीज़न,साँस की गति,तापमान आदि को मानिटर करते रहते हैं - इन शर्ट्स को पहनने-योग्य मदर बोर्ड कहा जा सकता है.शर्ट में बुने हुये कांडक्टिव रेशों के द्वारा बेतार के ट्रांसमीटर को सूचनाएँ जाती हैं जो इंटरप्रेट होकर अस्पताल के मानीटरिंग स्टेशन पहुँचती हैं.
इसके आविष्कारक जार्जिया के टेक्नालाजी के प्रोफेसर सुन्दरेसन जयरामन हैं
यह ,टी शर्ट देखने में साधारण टीशर्ट जैसी लगती है ,मेटीरियल थोड़ा-सा मोटा ,Ace bandage जैसा,.जिसमें कई पोर्ट्स , फ़ोन के जैक समान संयोजकों से युक्त हैं. उन्होंने यह भी बताया कि सेंसर्स रोशनी में वीडियो का काम करते हैं ,वैसे ही जैसे एक GPS के सिग्नल्स में,
तो अब भविष्य की पोशाकें शरीर पर अपनी सक्रिय भूमिका निबाहेंगी
शिशु मृत्यु सिंड्रोम, अग्निशामक-दस्तों आदि की ज़रूरत के अनुसार विशेष संचालकों की व्यवस्था भी होने लगी है.
ब्रिटिश रिटेलर Mark&Spencer के टेक्नालाजी प्रमुख, इयान स्काट का कहना है कि कुछ वर्षों में हम इंटेलिजेंट ब्रा बाज़ार में ला सकते हैं .ये स्पोर्ट ब्रा जो स्ट्रेस , झटकेआदि को सेंस कर अपनी डायमेंशन एडजस्ट कर लेगी और अंगों का पूरा सहारा बनेगी ,जैसे खेल दौड़ आदि के झटकों भाँप कर अपने आप अनुकूलता बना कर शरीर को संरक्षित रखना.
लंदन में फ़िलिप्स डिज़ाइन नामक यूरोपियन व्यवसायी की लैब में पहनने योग्य इलेक्ट्रानिक्स का स्वप्नागार है .यहाँ पोशाकें तैयार की जाती हैं..इसमे लिनन के ऐसे एप्रन बनते हैं जिनमें पावर प्वाइंट और बिल्ट इन माइक्रोफोन संलग्न हैं ,जिनसे रसोई के एप्लीएंसेज़ बिना हाथ लगाये संचालित हों.जैसे हाट प्लेट आन-आफ़ करना ,कोई रेसिपी स्क्रीन पर दिखाना आदि.लेकिन अभी यह विक्रय के लिये नहीं केवल ्प्रदर्शन के लिये.. बाज़ार के आइटम में एक इलेक्ट्रानिक जैकेट (ICD +) जिसेमें MP3 ऑडियो प्लेयर और सेलफ़ोन ,कालर में माइक्रोफ़ोन,आदि संलग्न हैं. इसमें और एक snazzy लुकिंग पाकेट्स और सिले हुये तारोंवाली जाकेट में थोड़ा ही फ़र्क है.
इसी प्रकार संगीत की लय और धुन से ताल और प्रकाश के प्रभाव देना भी गायिका या नर्तकी की वस्त्र-योजना में सम्मिलित हो जायेगा. लंदन की एक अग्रदर्शी डिज़ाइनर कैथेरीन से जब पूछा कि क्या वह बोलने वाले कपड़े पसंद करेगी ?
वह बोली," बिलकुल नहीं , कहीं ऐसा न हो कि कपड़े झ़ट् से हमीं को टोक दें - हट,झूठे कहीं के ..कह कर'
अब विकसित टेक्नालाजी वाले उत्पादों पर काम हो रहा है,जहाँ कपड़े में ही इलेक्ट्रानिक्स अनुस्यूत हैं. वस्त्रों की भूमिका बदलती जा रही है.
जीवन में आने वाली समस्याओं के लिये प्राकृति के भंडार में समाधानों की अपार शृंखला विद्यमान है. बस, ज़रूरत है तो समझने और उचित ढंग से उपयोग करनेवाले की.
मांट्रियल की नेक्सिया बाइटेक्नालाज़ी कंपनी के संचालक जेफ़ टर्नर, स्पाइडर सिल्क उत्पादन योजना पर कार्यरत हैं. 42 वर्षीय टर्नर मांट्रियल में उस कंपनी के हेड हैं जहाँ स्पाइडर सिल्क का उत्पादन होता है .उनकी कंपनी मकड़ी से सबक ले रही है .मकड़ी के जाले का रेशा स्टील के से पाँच गुना मज़बूत होता है. उसमें खिंच जाने की भी क्षमता होने के कारण वस्त्र-विन्यास के लिये अधिक उपयुक्त है .अत्यंत उत्साही टर्नर का कहना है प्रकृति के पास जीवन की समस्याओं के समाधान की पूरी शृंखला है .उसकी अपार लीला का करिश्मा कब से चला आ रहा है. इसके मूल आधार 20 तरह के अमीनो एसिड्स हैं.
मकड़ी ने अपने तंतुओँ के लिये जिनका का प्रयोग किया वही हमारे बालों ,त्वचा और शरीर में कार्य रत हैं .कितनी कुशलता से मकड़ी उनसे लंबा अटूट रेशा खींच कर बुनाई करती है , जिसमें इतनी मज़बूती और पारदर्शिता है.और यह पूरी तरह बायलोजिकल है ,हानिरहित है.
मकड़ियों को तो हम पाल नहीं सकते ,उसने उपाय निकाला मकड़ी के
तंतु का प्रोटीन-जीन को बकरी से जीन संयुक्त किया जाय ( जो उस के केवल mammary gland को प्रभावित करता है)फिर उसके दूध से वह तंतु प्रोटीन अलग कर लिया जाय. उस को प्रोसेस कर उसे कातने पर वही तंतु तैयार हो जायेगा.ऐसे जीनवाली बकरी सामान्य रहती है .जेनेटिकली माडिफ़ाइड बकरी में 70,000 सामान्य बकरी के जीन्स और केवल एक मकड़ी का जीन है, जिससे उसे कोई हानि नहीं पहुँचती.इस नये तंतु को उसने बायोस्टील नाम दिया .यह नायलान से अधिक मज़बूत और बायोडिग्रेडेबिल भी होगा.
सभ्यतायें अपने द्वारा प्रयुक्त सामग्री से परिभाषित होती हैं. जैसे स्टील से औद्योगिक और सिलिकान से कंप्यूटर क्रान्ति हुई ऐसे ही अब बायो मिमिक्री का युग आ रहा है ,जो प्रकृति की कार्यशाला के प्रयोगों को अपने हिसाब से नियोजित करेगा.
ब्रूनल वि.वि. (दक्षिणी इंगलैंड)के डिज़ाइन फ़ार लाइफ़ सेंटर की आशा थाम्सन ने पत्रिका के आकार का एक चमकदार पीला तकिया दिखाया -बहुत सारे वाल्यूम कंट्रोल आइकंस से कढ़ा हुआ ,जिनका स्विच ताँबा चढे नायलोन की दो तहों के बीच दबा था
उसका काम विकलांगों की कई असमर्थताओँ का निवारण करना था.
मानवोपयोगी उपादानों के स्वप्न बुनती आशा थाम्सन जैसे लोगों से मिलकर इन संवेदनशील वस्त्रो से कौन उदासीन रह सकता है?
आगे-आगे देखिये, किन-किन रेशों से भविष्य अपने ताने-बाने पूरता है !
वस्त्र-विन्यास का यह तीसरा युग है . पहला युग - प्राकृतिक उपादानों से निर्मित बाह्य तत्वों से ,शरीर के संरक्षण के लिये,
दूसरा - फ़ैशन के लिये .परिधानों का चयन - .रुचिपूर्ण ढंग से अच्छा लुक देकर सजाने,दिखाने के लिये .
इसी क्रम में 1935 से सिंथेटिक फ़ाइबर चलन में आया ,जो प्राकृतिक वस्त्रों से अधिक दमदार,अधिक क्षमता-संपन्न, विशेष कार्यो के लिये उपयोगी-,स्ट्रानट्स के लिये ,एंटी वेलेस्टिक वेस्ट्स,,अधिक तापरोधी,अग्निशामकों और कार रेसर्स के लिये विशेष उपयोगी.
ये तो आपने सुन ही लिया होगा कि दूध से कपड़े बनाने में सफलता मिल गई है. जी हाँ ,दूध का प्रोटीन-नीले काले भूरे रंगों में टेक्सटाइल रेशम की तरह मुलायम -सूँधने में दूध की कोई महक नहीं. इसका श्रेय है आंके डोमास्के को जो डिज़ाइनर हैं और माइक्रोबायोलॉजिस्ट भी.ये कपड़े एकदम ईको फ़्रेंडली हैं , खाया भी जा सकता है.
और अब तीसरे क्रम में सचेत बोध वाले वस्त्र -- यह वस्त्र-विन्यास निष्क्रिय होकर शरीर को केवल ढाके न रह कर .पहननेवाले की सुरक्षा के लिये जुम्मेदारी से संपन्नभी निभाएगा.
तीसरा चरण निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है.
न्यूयार्क की सेंसटेक्स एक स्मार्ट टीशर्ट के लिये प्रयत्नशील हैं जो कांडक्टिव फ़ाइबर्स से रचित है ,जिनसे छोटे ट्रांसफ़ार्मर फ़ीड होते हैं ,हृदय की धड़कन,रक्त में आक्सीज़न,साँस की गति,तापमान आदि को मानिटर करते रहते हैं - इन शर्ट्स को पहनने-योग्य मदर बोर्ड कहा जा सकता है.शर्ट में बुने हुये कांडक्टिव रेशों के द्वारा बेतार के ट्रांसमीटर को सूचनाएँ जाती हैं जो इंटरप्रेट होकर अस्पताल के मानीटरिंग स्टेशन पहुँचती हैं.
इसके आविष्कारक जार्जिया के टेक्नालाजी के प्रोफेसर सुन्दरेसन जयरामन हैं
यह ,टी शर्ट देखने में साधारण टीशर्ट जैसी लगती है ,मेटीरियल थोड़ा-सा मोटा ,Ace bandage जैसा,.जिसमें कई पोर्ट्स , फ़ोन के जैक समान संयोजकों से युक्त हैं. उन्होंने यह भी बताया कि सेंसर्स रोशनी में वीडियो का काम करते हैं ,वैसे ही जैसे एक GPS के सिग्नल्स में,
तो अब भविष्य की पोशाकें शरीर पर अपनी सक्रिय भूमिका निबाहेंगी
शिशु मृत्यु सिंड्रोम, अग्निशामक-दस्तों आदि की ज़रूरत के अनुसार विशेष संचालकों की व्यवस्था भी होने लगी है.
ब्रिटिश रिटेलर Mark&Spencer के टेक्नालाजी प्रमुख, इयान स्काट का कहना है कि कुछ वर्षों में हम इंटेलिजेंट ब्रा बाज़ार में ला सकते हैं .ये स्पोर्ट ब्रा जो स्ट्रेस , झटकेआदि को सेंस कर अपनी डायमेंशन एडजस्ट कर लेगी और अंगों का पूरा सहारा बनेगी ,जैसे खेल दौड़ आदि के झटकों भाँप कर अपने आप अनुकूलता बना कर शरीर को संरक्षित रखना.
लंदन में फ़िलिप्स डिज़ाइन नामक यूरोपियन व्यवसायी की लैब में पहनने योग्य इलेक्ट्रानिक्स का स्वप्नागार है .यहाँ पोशाकें तैयार की जाती हैं..इसमे लिनन के ऐसे एप्रन बनते हैं जिनमें पावर प्वाइंट और बिल्ट इन माइक्रोफोन संलग्न हैं ,जिनसे रसोई के एप्लीएंसेज़ बिना हाथ लगाये संचालित हों.जैसे हाट प्लेट आन-आफ़ करना ,कोई रेसिपी स्क्रीन पर दिखाना आदि.लेकिन अभी यह विक्रय के लिये नहीं केवल ्प्रदर्शन के लिये.. बाज़ार के आइटम में एक इलेक्ट्रानिक जैकेट (ICD +) जिसेमें MP3 ऑडियो प्लेयर और सेलफ़ोन ,कालर में माइक्रोफ़ोन,आदि संलग्न हैं. इसमें और एक snazzy लुकिंग पाकेट्स और सिले हुये तारोंवाली जाकेट में थोड़ा ही फ़र्क है.
इसी प्रकार संगीत की लय और धुन से ताल और प्रकाश के प्रभाव देना भी गायिका या नर्तकी की वस्त्र-योजना में सम्मिलित हो जायेगा. लंदन की एक अग्रदर्शी डिज़ाइनर कैथेरीन से जब पूछा कि क्या वह बोलने वाले कपड़े पसंद करेगी ?
वह बोली," बिलकुल नहीं , कहीं ऐसा न हो कि कपड़े झ़ट् से हमीं को टोक दें - हट,झूठे कहीं के ..कह कर'
अब विकसित टेक्नालाजी वाले उत्पादों पर काम हो रहा है,जहाँ कपड़े में ही इलेक्ट्रानिक्स अनुस्यूत हैं. वस्त्रों की भूमिका बदलती जा रही है.
जीवन में आने वाली समस्याओं के लिये प्राकृति के भंडार में समाधानों की अपार शृंखला विद्यमान है. बस, ज़रूरत है तो समझने और उचित ढंग से उपयोग करनेवाले की.
मांट्रियल की नेक्सिया बाइटेक्नालाज़ी कंपनी के संचालक जेफ़ टर्नर, स्पाइडर सिल्क उत्पादन योजना पर कार्यरत हैं. 42 वर्षीय टर्नर मांट्रियल में उस कंपनी के हेड हैं जहाँ स्पाइडर सिल्क का उत्पादन होता है .उनकी कंपनी मकड़ी से सबक ले रही है .मकड़ी के जाले का रेशा स्टील के से पाँच गुना मज़बूत होता है. उसमें खिंच जाने की भी क्षमता होने के कारण वस्त्र-विन्यास के लिये अधिक उपयुक्त है .अत्यंत उत्साही टर्नर का कहना है प्रकृति के पास जीवन की समस्याओं के समाधान की पूरी शृंखला है .उसकी अपार लीला का करिश्मा कब से चला आ रहा है. इसके मूल आधार 20 तरह के अमीनो एसिड्स हैं.
मकड़ी ने अपने तंतुओँ के लिये जिनका का प्रयोग किया वही हमारे बालों ,त्वचा और शरीर में कार्य रत हैं .कितनी कुशलता से मकड़ी उनसे लंबा अटूट रेशा खींच कर बुनाई करती है , जिसमें इतनी मज़बूती और पारदर्शिता है.और यह पूरी तरह बायलोजिकल है ,हानिरहित है.
मकड़ियों को तो हम पाल नहीं सकते ,उसने उपाय निकाला मकड़ी के
तंतु का प्रोटीन-जीन को बकरी से जीन संयुक्त किया जाय ( जो उस के केवल mammary gland को प्रभावित करता है)फिर उसके दूध से वह तंतु प्रोटीन अलग कर लिया जाय. उस को प्रोसेस कर उसे कातने पर वही तंतु तैयार हो जायेगा.ऐसे जीनवाली बकरी सामान्य रहती है .जेनेटिकली माडिफ़ाइड बकरी में 70,000 सामान्य बकरी के जीन्स और केवल एक मकड़ी का जीन है, जिससे उसे कोई हानि नहीं पहुँचती.इस नये तंतु को उसने बायोस्टील नाम दिया .यह नायलान से अधिक मज़बूत और बायोडिग्रेडेबिल भी होगा.
सभ्यतायें अपने द्वारा प्रयुक्त सामग्री से परिभाषित होती हैं. जैसे स्टील से औद्योगिक और सिलिकान से कंप्यूटर क्रान्ति हुई ऐसे ही अब बायो मिमिक्री का युग आ रहा है ,जो प्रकृति की कार्यशाला के प्रयोगों को अपने हिसाब से नियोजित करेगा.
ब्रूनल वि.वि. (दक्षिणी इंगलैंड)के डिज़ाइन फ़ार लाइफ़ सेंटर की आशा थाम्सन ने पत्रिका के आकार का एक चमकदार पीला तकिया दिखाया -बहुत सारे वाल्यूम कंट्रोल आइकंस से कढ़ा हुआ ,जिनका स्विच ताँबा चढे नायलोन की दो तहों के बीच दबा था
उसका काम विकलांगों की कई असमर्थताओँ का निवारण करना था.
मानवोपयोगी उपादानों के स्वप्न बुनती आशा थाम्सन जैसे लोगों से मिलकर इन संवेदनशील वस्त्रो से कौन उदासीन रह सकता है?
आगे-आगे देखिये, किन-किन रेशों से भविष्य अपने ताने-बाने पूरता है !
***
प्रकृति से प्रेरित होकर विज्ञान कितनी अनोखी उपलब्धियां हासिल कर रहा है..आश्चर्यजनक जानकारीपूर्ण पोस्ट..
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’देश के प्रथम नागरिक संग ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ,कुमारेन्द्र सिंह जी.
जवाब देंहटाएंविज्ञान की उपलब्धियों की सुरुचिपुर्ण जानकारी देती पोस्ट।
जवाब देंहटाएंमेल से प्राप्त -
जवाब देंहटाएंवस्त्रों से सम्बन्धित अभूतपूर्व एवं नवीनतम टेक्नॉलोजी की जानकारी से समन्वित आपका आलेख पढ़कर मैं आश्चर्यचकित रह
गयी । भविष्य के गर्भ में अभी क्या क्या छिपा है ? इसके प्रति जिज्ञासा जगाने वाला ये आलेख श्लाघनीय है ।
आपके व्यापक ज्ञान के लिये अनेकश: साधुवाद ।
शकुन्तला बहादुर
वस्त्रों की नयी तकनिकी के विषय में विस्तार से जानकारी मिली ..अद्भुत और आश्चर्यचकित करने वाली जानकारी के लिए आभार .
जवाब देंहटाएं