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बड़ी तेज़ गति से चलते चले जाना - वांछित तोष तो मिलता नहीं ,ऊपर से मनः ऊर्जा का क्षय !
तब लगता है क्यों न अपनी मौज में रमते हुये पग बढ़ायें ; वही यात्रा सुविधापूर्ण बन ,आत्मीय-संवादों के आनन्द में चलती रहे ......
उस छोर की अनिवार गति और विदग्ध अति से मोह-भंग के बाद ,सहृदय जनों का ब्लाग-जगत के सहज आश्वस्तिमय क्रम में पुनरावर्तन होगा - इसी आशा में, मैं तो यहाँ से कहीं गई ही नहीं -
इहि आसा अटक्यो रह्यो अलि गुलाब के मूल,
आवहि बहुरि वसन्त ॠतु, इन डारन वे फूल॥
( बिहारी )
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बड़ी तेज़ गति से चलते चले जाना - वांछित तोष तो मिलता नहीं ,ऊपर से मनः ऊर्जा का क्षय !
तब लगता है क्यों न अपनी मौज में रमते हुये पग बढ़ायें ; वही यात्रा सुविधापूर्ण बन ,आत्मीय-संवादों के आनन्द में चलती रहे ......
उस छोर की अनिवार गति और विदग्ध अति से मोह-भंग के बाद ,सहृदय जनों का ब्लाग-जगत के सहज आश्वस्तिमय क्रम में पुनरावर्तन होगा - इसी आशा में, मैं तो यहाँ से कहीं गई ही नहीं -
इहि आसा अटक्यो रह्यो अलि गुलाब के मूल,
आवहि बहुरि वसन्त ॠतु, इन डारन वे फूल॥
( बिहारी )
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बहुत सुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर स्वीकारोक्ति..अब तो यह बात है कि...जीना यहाँ मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ
जवाब देंहटाएंरोज़नामचा में मुझे सम्मिलित करने हेतु आभारी हूँ आ.शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंप्रणाम
जवाब देंहटाएंमेरा भी अभिवादन.सुधी जनों का सान्निध्य मन प्रसन्न कर गया !
हटाएंप्रणाम आदरणीया
जवाब देंहटाएंआपने कहा और आ गए हम भी
आप ब्लॉग लेखन बराबर कर रही हैं यह सुखद है
हम भी प्रयास करेंगे लौटने का
दस दिन में दो नई पोस्ट डाल भी चुके
साधु प्रिय राजेन्द्र,यह उत्साह बना रहे!
जवाब देंहटाएं:) :)मैं भी कहीं और नहीं रमी थी बस चुप लगा कर बैठ गयी थी :)
जवाब देंहटाएंहां और क्या.देख लेते थे, बीच-बीच में उधर भी, कि क्या चल रहा है .
हटाएंमैं इस पथ पर चलने के प्रयास में हूँ, कुछ भ्रमित हूँ, कुछ व्यथित हूँ... पर हूँ! मम्मी, आपका आशीष मिलता रहे बस!
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