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छुट्टी ! मतलब नियमों- अनुशासनों से खुली छूट , लादी गयी व्यवस्था से मुक्ति , मनमाने मौज से रहने का दिन .सारी चर्या पर ख़ुद का नियंत्रण - नहाने ,खाने, बैठने-उठने सब में !
बल्कि छुट्टी का खुमार एक दिन पहले की शाम से चढ़ने लगता है . लगता है कल कौन ड्यूटी बजानी है और आराम-आराम से चलने लगते हैं शेष बचे रहे दिन के धंधे . खाने कोई जल्दी नहीं न सोने की .फिर इधर उधर कुछ-न-कुछ करते काफ़ी रात हो जाती है .
असली छुट्टी का दिन शुरू होता है चौथाई दिन चढ़े जागने के बाद से. सोओ देर में, तो समय से कैसे उठ सकते हैं ? नींद खुल भी जाय तो बिस्तर पर पड़े रहने का अपना ही आनन्द है .और उठने की जल्दी भी क्या ? उठे तो पहले टीवी पर हाथ गया , एक छुट्टी का ही तो दिन मिलता है कुछ मन का करन को . पर इत्मीनान से देखने की फ़ुर्सत किये है ?दैनिक क्रियाओं के बिना चलता नहीं न ! कोई प्रोग्राम लगा कर छोड़ दिया , अपनी तान उठाता रहता है टीवी.जिसे मौका मिला कोई बटन उमेठ कर अपने हिसाब से एडजस्ट कर , वाल्यूम बढ़ा देता है .बीच बीच में आपसी मुँहाचाही तो चलनी ही है -कुछ कहने-सुनने को एक ही तो दिन मिलता है .इन्हीं सब झंझटों में नाश्ते में देरी होते जाना स्वाभाविक है . भोजन के समय से ज़रा सा पहले हो जाय तो भी गनीमत है .
अब तक पड़े बहुत से ऊल-जलूल काम निबटाना भी जरूरी - इधर का सामान उधर करना, किताबें अगर घर में हों तो उलटना-पलटना , कागज़-पत्तर समेटना ,कपड़ों के पचड़े सँभालना . कैलेंडर का पन्ना बदलना भी बीच में कहाँ हो पाया था . आज सारे बचे-खुचे काम दिखाई दे रहे हैं हैं .
रात देर में सोये ,ऊपर से खाना देर में खाओ तो शरीर अलसायेगा ही . ज़रा लेटने का मन हो आता है - वैसे मौका कहाँ मिलता है इत्मीनान से बैठने का भी. मन करता है आज ड्यटी से छूट मिली है ,ज़रा पाँव पसार कर लंबे हो लें .फिर कहीं कोई आ गया तो उसके साथ बैठक ही सही. कहीं बाहर भी निकल सकते हैं ,बाज़ार या कोई और कारण .लौटत-लौटते समझ में आने लगता है ' कल फिर वही ढर्रा !,सुबह जल्दी उठना है ड्यूटी पर हाज़िरी देनी है .'
वाह ,सोचा था क्या-क्या कर डालेंगे. कुछ नहीं हो पाया - बेकार निकल गया दिन - बीत गई छुट्टी !
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छुट्टी ! मतलब नियमों- अनुशासनों से खुली छूट , लादी गयी व्यवस्था से मुक्ति , मनमाने मौज से रहने का दिन .सारी चर्या पर ख़ुद का नियंत्रण - नहाने ,खाने, बैठने-उठने सब में !
बल्कि छुट्टी का खुमार एक दिन पहले की शाम से चढ़ने लगता है . लगता है कल कौन ड्यूटी बजानी है और आराम-आराम से चलने लगते हैं शेष बचे रहे दिन के धंधे . खाने कोई जल्दी नहीं न सोने की .फिर इधर उधर कुछ-न-कुछ करते काफ़ी रात हो जाती है .
असली छुट्टी का दिन शुरू होता है चौथाई दिन चढ़े जागने के बाद से. सोओ देर में, तो समय से कैसे उठ सकते हैं ? नींद खुल भी जाय तो बिस्तर पर पड़े रहने का अपना ही आनन्द है .और उठने की जल्दी भी क्या ? उठे तो पहले टीवी पर हाथ गया , एक छुट्टी का ही तो दिन मिलता है कुछ मन का करन को . पर इत्मीनान से देखने की फ़ुर्सत किये है ?दैनिक क्रियाओं के बिना चलता नहीं न ! कोई प्रोग्राम लगा कर छोड़ दिया , अपनी तान उठाता रहता है टीवी.जिसे मौका मिला कोई बटन उमेठ कर अपने हिसाब से एडजस्ट कर , वाल्यूम बढ़ा देता है .बीच बीच में आपसी मुँहाचाही तो चलनी ही है -कुछ कहने-सुनने को एक ही तो दिन मिलता है .इन्हीं सब झंझटों में नाश्ते में देरी होते जाना स्वाभाविक है . भोजन के समय से ज़रा सा पहले हो जाय तो भी गनीमत है .
अब तक पड़े बहुत से ऊल-जलूल काम निबटाना भी जरूरी - इधर का सामान उधर करना, किताबें अगर घर में हों तो उलटना-पलटना , कागज़-पत्तर समेटना ,कपड़ों के पचड़े सँभालना . कैलेंडर का पन्ना बदलना भी बीच में कहाँ हो पाया था . आज सारे बचे-खुचे काम दिखाई दे रहे हैं हैं .
रात देर में सोये ,ऊपर से खाना देर में खाओ तो शरीर अलसायेगा ही . ज़रा लेटने का मन हो आता है - वैसे मौका कहाँ मिलता है इत्मीनान से बैठने का भी. मन करता है आज ड्यटी से छूट मिली है ,ज़रा पाँव पसार कर लंबे हो लें .फिर कहीं कोई आ गया तो उसके साथ बैठक ही सही. कहीं बाहर भी निकल सकते हैं ,बाज़ार या कोई और कारण .लौटत-लौटते समझ में आने लगता है ' कल फिर वही ढर्रा !,सुबह जल्दी उठना है ड्यूटी पर हाज़िरी देनी है .'
वाह ,सोचा था क्या-क्या कर डालेंगे. कुछ नहीं हो पाया - बेकार निकल गया दिन - बीत गई छुट्टी !
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 11 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी आभारी हूँ ,यशोदा जी!
हटाएंई-मेल द्वारा -
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी ,
आपने तो छुट्टी के दिन का पूरा चित्र ही खींच दिया है । मुझे लगता है कि सभी घरों में प्राय: यही हाल रहता है । शब्दों की झाँकी अच्छी लगी । आज बहुत दिनों के बाद आपका लिखा पढ़ने का अवसर मिला है ।
शकुन्तला बहादुर
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.09.2015) को "सिर्फ कथनी ही नही, करनी भी "(चर्चा अंक-2095) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंवाकई छुट्टी के दिन का अपना ही मजा है..रोजाना की दिनचर्या कुछ देर को विश्राम पा जाती है तो अगले दिन से भली लगने लगती है..रोचक रचना..
जवाब देंहटाएंछुट्टी यानी खुद को छूट देना . छह दिन एकरस दिन बिताने के बाद मिली छुट्टी बड़ी सुहानी लगती है लेकिन वह छूट तब बहुत अखरती है जब समय बिना कोई आवाज किये हाथ से छूट जाता है . बिल्कुल सजीव चित्रण है छुट्टी का . बहुत दिनों बाद यहाँ आपने लिखा है . अच्छा लग रहा है .
जवाब देंहटाएंआखिर बित गयी छुट्टी........
जवाब देंहटाएंchhuti ka apna hi anand hai .. . sajiv chitran
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंअरे आपकी और हमारी छुट्टी एक सी होती है क्या बात है :)
जवाब देंहटाएंसच है, छुट्टी भी छुट्टी ही है। कई बार लगता है दिन बेकार ही गया
जवाब देंहटाएंछुट्टी के बारे में तो सिर्फ बच्चन जी का कहा ही मैं अपने लिये दोहराता हूँ. घर में सबों को कह रखा है कि मरने के बाद मुझे आठ दस दिनों तक यूँ ही रहने देना. ताकि जीवन की काल की जो छुट्टियाँ छूट गयी हैं, उन्हें आराम से सो कर बिता सकूँ, बिना किसी व्यवधान के. उसके बाद मुझे दफ़न कर देना पुरखों की मिट्टी में, क्योंकि आग से मुझे बड़ा डर लगता है.
जवाब देंहटाएंमाँ, रविवार या किसी भी छुट्टी के दिन कोई भी मुझे कम से कम 11 बजे से पहले तो फ़ोन बिल्कुल नहीं करता. सख़्त मनाही है. लेकिन नींद कहाँ आती है.
जवाब देंहटाएंHappy New Year 2016 Messages
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छुट्टी के दिन का तो सजीव चित्रण कर दिया ... लेकिन जब हर दिन छुट्टी का हो जाता है तो कुछ नियम स्वयं ही बन जाते हैं :):)अब हमारे लिए तो हर दिन छुट्टी का ही है .
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