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इसे देखकर, तीेन साल पहले पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ने इंडोनेशिया के सरकारी अमले से कहा था कि उन्हें बैंक के नोटों से इन हिन्दू देवताओं के अंकन हटा देना चाहिये. इस पर वहाँ के राष्ट्रपति ने उत्तर दिया था - हमने अपना धर्म बदला है, बाप नहीं (“WE HAVE CHANGED OUR RELIGION NOT THE FATHER.”).
ये शब्द उन लोगों के लिये 'बहुत कुछ' कह रहे हैं जिनका धर्म-परिवर्तन होते ही पल भर में आत्मा ऐसा रंग बदलती है कि अब तक के सब आचार-विचार-संस्कार त्याज्य हो जाते हैं, पूर्वजों को नकार कर तिरस्कृत और अपमानित करना कर्तव्य बन जाता है, अपने ही पूर्व-पुरुषों की आस्थाओँ को सार्जनिक रूप से जुतियाने में जो अपनी शान समझते हैं ,ऐसी असहनशीलता ,जिसे शत्रुता कह सकते हैं , कि अब तक की पूरी विकास-यात्रा और उपलब्धियों को नष्ट-भ्रष्ट किये बिना शान्ति से बैठ नहीं सकते , उनकी मान्यताओं के लिए प्रताड़ित करना आस्थाओँ को विरूपित कर खिल्ली उड़ाना ,संस्कृति को रौंद कर समूल उखाड़ डालना उनके लिए पुण्य-लाभ का हेतु बन जाता है .
हृदयों में इतनी घृणा , विरोध और शत्रुता की भावना कहाँ से आ समाती है ?
पिछले दिनों वैष्णो देवी तीर्थ को लेकर भारत में जब पांच रुपए का सिक्का जारी किया गया, तो इसी समाज के लोगों ने विरोध किया,लेकिन यह भूल गए कि जिस संस्कृति की छाप पूरी दुनिया में उजागर है उससे कोई कहांँ तक दूर भागेगा? वे नहीं समझेंगे कि किसी देश की सांस्कृतिक विरासत का विरोध करना तर्क संगत नहीं है.
इंडोनेशियाकी ओर से अमेरिका को 16 फीट ऊँची देवी सरस्वती की प्रतिमा भेंट किया जाना तो उन्हें घोर अधर्म का काम लगा होगा ! उनके दिमाग़ में यह कैसे घुसे कि इसका का चयन प्रतीकात्मक और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर किया गया है
वही इंडोनेशिया ,जो दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी को धारण किये है.रामायण जहाँ का राष्ट्रीय काव्य ग्रंथ है,जहाँ के नौ-सेना अध्यक्ष को लक्ष्मण कहा जाता है, यातायात सेवाओं को जटायु व संपाति नाम दिए गए हैं, सीता जी को देवी सिंता नाम से पुकारा जाता है, रामभक्त हनुमान वहाँ के सबसे लोकप्रिय पौराणिक चरित्र हैं. इंडोनेशिया के स्वतंत्रता दिवस 27 दिसंबर को राजधानी जकार्ता में सैकड़ों लोग हनुमान का वेश धारण कर सरकारी परेड में शामिल होते हैं, जहाँ के बाली द्वीप का नाम अंगद के पिता राजा बालि के नाम पर है.
वहाँ की राजधानी जकार्ता के बीचो-बीच ,आठ घोड़ों द्वारा खींचे जा रहे रथ पर भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन की विशालकाय प्रतिमा है, हिंदुत्व के प्रति सम्मान प्रकट करती ऐसी विशाल प्रतिमा, दुनिया के किसी दूसरे देश की राजधानी में नहीं है,
वर्ष 1997 में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (लंदन) द्वारा, 'रीथिंकिंग इंडियाज रोल इन वर्ल् ड' विषय पर आयोजित, एक सम्मेलन में इंडोनेशियाई विद्वान एस द्विजवांदोनो ने पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो को उद्धृत करते हुए कहा था, 'हमारी नसों में भारतीय पूर्वजों का खून बहता है और हमारी संस्कृति भारत से लगातार प्रभावित रही है....बाद में हमने इस्लाम को अपना लिया लेकिन हमारा धर्म भी हमारे पास उन लोगों के जरिए आया जो सिंधु नदी के दो किनारों से यहां पहुंचे.'
आज इंडोनेशिया एक मुस्लिम देश है लेकिन प्राचीन काल से जो संस्कृति, अब तक उनके जीवन में रमी है उससे घृणा करने की अमानवीयता उनमें कभी नहीं रही .अपने लिए सब से अलग मानदंड बना कर अन्य सबको निकृष्ट समझनेवालों को इंडोनेशिया से कुछ सीखना चाहिये.
पर सीख वही सकता है जिसमें वे संस्कार बचे होंगे,जिसने अपना बाप नहीं बदला होगा, क्योंकि बाप के बदलते ही पूरा शजरा बदल जाता है .
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इंडोनेशिया की प्रजा को नमन। काश ऐसी ही समझदारी इस देश में भी आ जाए! यहाँ तो हिन्दू मंत्री ही अब तिलक लगाने से परहेज करने लगे हैं। अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंइंडोनेशिया के राष्ट्रपति का उत्तर प्रशंसनीय है ।ये जानकारी महत्त्वपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंहम आज अपनी आस्थाओं को प्रगट करने पर साम्प्रदायिक बन जाते हैं और एक मुस्लिम देश हमारी भारतीय संस्कृति को अपना कर गर्व करता है। हमारे लिये ये लज्जास्पद है । ये भी जिज्ञासा का विषय है कि भारत में
मैंने सरस्वती का कोई मन्दिर आज तक न देखा न ही सुना । ऐसा क्यों?
सरस्वती की प्रतिमा एक मुस्लिम देश द्वारा उपहार में दी गई ?हैरानी है!
प्रतिभा जी, इस महत्त्वपूर्ण जानकारी के लिये आपका आभार । आज भारत में जिन आस्थाओं को प्रतिबंधित सा कर दिया गया है , उन्हीं को
जवाब देंहटाएंस्वीकार करके मुस्लिम इंडोनेशिया गौरवान्वित हो रहा है । सचमुच उल्टी गंगा बह रही है । ये हमारे लिये लज्जाजनक स्थिति है ।।
प्रतिभा जी, आपका आलेख पढ़कर दंग रह गई । हमने अपना स्वाभिमान
जवाब देंहटाएंऔर संस्कृति के प्रति प्रेम पूरी तरह से त्याग दिया है । विदेशी जिसकी
प्रशंसा करते हैं , हमारे लिये वह त्याज्य है । हम भारतीय और हमारा शासन-तंत्र ऐसी मान्यताओं के लिये लज्जा का पात्र है । धन्य है इंडोनेशिया की मान्यता ।
रंजना बहिन,
हटाएंउत्तर देने के बाद आपको देखा ,आभारी हूँ कि आपने संज्ञान लिया और अपनी प्रतिक्रिया से सूचित किया .
स्थिति आप देख ही रही हैं .
आदरणीया अजित जी , शकुन्तला जी और निर्मला जी ,
जवाब देंहटाएंकेवल तीन महिलाएँ अपना मत प्रकट कर सकीं!
यह बात उठाना सबको एकदम बेकार या आपत्तिजनक लगा होगा .कोई यही कह देता कि हमारे यहाँ यह सब ऐसे ही चलता है ,और चलता रहेगा - हम क्यों बोलें ?
मेरी बात में कुछ आपत्तिजनक लगा हो,तो बता सकते हैं . मुझे भी लगे कि किसी ने तो अपनी बात कही.
पर कैसी अजीब सी चुप्पी !
आप तीनों का आभार
इंडोनेशिया की सरकार शत शत बधाई की पात्र है...विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता के चिह्न अभी भी वहाँ मौजूद हैं..भारत में वे भले ही इस रूप में नजर न आते हों पर यहाँ की मिट्टी में रचे बसे हैं..सुदूर गावों में आज भी रामायण और महाभारत उतने ही सम्मानित हैं जैसे युगों पूर्व थे..आपकी पोस्ट देर से देखी, इसके लिए खेद है !
जवाब देंहटाएंपर सीख वही सकता है जिसने अपना बाप नहीं बदला। जो अपने सहोदर को ही नहीं पहचानता उसे अपना दुश्मन मानता है वह खुद अपनी सुलगाइए आतंकी आग में ही झुलसेगा।बढ़िया पोस्ट।
जवाब देंहटाएंवाह , पहली बार पता चला यह प्रकरण ! आभार आपका
जवाब देंहटाएंयहाँ तो राम का नाम लेने वालों को साम्प्रदायिक होने का खिताब मिल जाता है ... धन्य हैं इंडोनेशिया के लोग . यहाँ पर अपनी संस्कृति को मानने वालों को पिछड़ापन होने की उपाधि से विभूषित कर दिया जाता है .
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