नवरात्र !
कानों में गूँजने लगता है -
'यो मां जयति संग्रामे, यो मे दर्प व्यपोहति ।
यो मे प्रति-बलो लोके, स मे भर्त्ता भविष्यति ।।'
- बात दैहिक क्षमता की नहीं - देहधर्मी तो पशु होता हैं ,पुरुष नहीं . साक्षात् महिषासुर ,देवों को जीतनेवाले सामर्थ्यशाली शुंभ-निशुंभ उस परम नारीत्व को अपने सम्मुख झुकाना चाहते हैं .
वह जानती है यह विलास-लोलुप , भोग की कामना से संचालित ,सृजन की महाशक्ति को शिरोधार्य कर समुचित मान नहीं दे सकता .जानती है अपनी सामर्थ्य बखानेगा , अहंकार में बिलबिलायेगा ,अंत में निराश हो
देह-धारी पशु बन जायेगा .साक्षात् क्षमता रूपिणी .अनैतिक-बल के अधीन ,उसकी ,भोग्या नहीं बन सकती ,वह अपने ही रूप में लोहा लेने सामने खड़ी है.
शक्ति को धारण करने में जो मन से भी समर्थ हो ,उसे स्वीकारेगी वह - उसे पशु नहीं , पशुपति चाहिये .जो दैहिकता को नियंत्रित करने में समर्थ हो ,उसकी सामर्थ्य का सम्मान कर उच्चतर उद्देश्यपूर्ति हेतु,माध्यम बन ,दौत्य-कर्म निभाने को भी कर्तव्य समझे.
आज भी वही पशु-बल प्रकृति और नारीत्व दोनो पर अपने दाँव दिखा रहा है .
नवरात्र की मंगल-बेला में नारी-मात्र का संकल्प यही हो कि हम पशुबल से हारेंगी नहीं !
अंततः जीत उन्हीं की होगी क्योंकि ,प्रकृति और संसृति दैहिकता-प्रधान न होकर मानसधर्मी सक्रिय शक्तियाँ हैं .वहाँ देह का पशु कभी जीत नहीं सकता ,श्रेष्ठता का वरण ही काम्य है और उसी में सृष्टि का मंगल है !
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इसी के साथ एक प्रकरण गौरा-महेश्वर के दाम्पत्य का -
शिव नटराज हैं तो गौरी भी नृत्यकला पारंगत !एक बार दोनों में होड़ लग गई कौन ऐसी कलाकारी दिखा सकता है जो दूसरे के बस की नहीं और इसी पर होना था हार-जीत का निर्णय ।नंदी भृंगी और शिव के सारे गण चारों ओर खड़े हुये ,कार्तिकेय ,गणेश -ऋद्धि,सद्धि सहित विराजमान ,कैलास पर्वत की छाया में हिमाच्छादित शिखरों के बीच समतल धरा पर मंच बना ।वीणा वादन हेतु शारदा आ विराजीं ,गंधर्व-किन्नर वाद्ययंत्र लेकर सन्नद्ध हो गये ।दोनों प्रतिद्वंदी आगये आमने-सामने -और नृत्यकला का प्रदर्शन प्रारंभ हो गया ।दोनों एक से एक बढ कर ,कभी कुमार शिव को प्रोत्साहित कर रहे हैं ,कभ गणेश पार्वती को ।ऋद्ध-सिद्धि कभी सास पर बलिहारी जा रही हैं कभी ससुरजी पर !गण झूम रहे हैं -नृत्यकला की इतनी समझ उन्हें कहाँ !दोनों की वाहवाही किये जा रहे हैं ।हैं भी तो दोनों धुरंधर !अचानक शिव ने देखा पार्वती मंद - मंद मुस्करा रही हैं।उनका ध्यान नृत्य से हट गया,गति शिथिल हो गई सरस्वती . विस्मित नटराज को क्या हो गया । बहुयें चौकन्नी- अब तो सासू जी बाज़ी मार nले जायेंगी .'
'अरे यह मैं क्या कर रहा हूँ ',शंकर सँभले ,
पार्वती हास्यमुखी ।
'अच्छा ! जीतोगी कैसे तुम और वह भी मुझसे ?'शंकर नृत्य के नये नये दाँव दिखाते हुये अचानक हाथों से विचित्र मुद्रा प्रदर्शित करते हुये जब तक गौरा समझेंऔर अपना कौशल दिखायें ,उन्होने ने एक चरण ऊपर उठाते हुये माथे से ढुआ लिया !
नूपुरों की झंकार थम गई सुन्दर वस्त्रभूषणों पर ,जड़ाऊ चुनरी ओढ़े ,पार्वती विमूढ़ !
दर्शक विस्मित ! यह क्या कर रहे हैं पशुपति !
शंकर हेर रहे हैं पार्वती का मुख -देखें अब क्या करती हो ?
ये तो बिल्कुल ही बेहयाई पर उतर आये पार्वती ने सोचा .
वह ठमक कर खड़ी हो गईं -'बस ,अब बहुत हुआ ,' मैं हार मानती हूँ तुमसे !'
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पीछे कोई खिलखिला कर हँस पड़ा .सब मुड़कर उधऱ ही देखने लगे .त्रैलोक्य में विचरण करनेवाले नारद जाने कब से आ कर वहाँ खड़े हो गये थे।
बस यहीं नारी नर से हार मान लेती है ।
लेकिन यह गौरा की हार नहीं ,शंकर की विवशता का इज़हार है !
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बस यहीं हार मान लेती है नारी .... रोचक कथा से सब कुछ बता दिया ...
जवाब देंहटाएंनवरात्र की मंगल-बेला में नारी-मात्र का संकल्प यही हो कि हम पशुबल से हारेंगी नहीं !
अंततः जीत उन्हीं की होगी क्योंकि ,प्रकृति और संसृति दैहिकता-प्रधान न होकर मानसधर्मी सक्रिय शक्तियाँ हैं .वहाँ देह का पशु कभी जीत नहीं सकता ,श्रेष्ठता का वरण ही काम्य है और उसी में सृष्टि का मंगल है !
सार्थक संदेश दिया है .... नवरात्रि की शुभकामनायें
सार्थकता लिये सटीक लेखन ... नवरात्रि की अनंत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंshiv-parvati katha sunkar bahut aanand aaya. aur iske bheetar chhupa gyan marg bhi samjha.
जवाब देंहटाएंsach kaha nari ko pashu nahi pashupati chaahiye.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 18-10 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
मलाला तुम इतनी मासूम लगीं मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते हैं ....। .
उसे पशु नहीं पशुपति चाहिए ....एक पंक्ति में नारी मन की चाहत को पूरी तरह व्यक्त कर दिया आपने ..
जवाब देंहटाएंऔर आज भी ये परम्परा कायम है कि पैर पर नाक रगड़ कर गला रेतो. और नारी जाने-अनजाने मरती रहती है.
जवाब देंहटाएंवाह ! शिव-पार्वती की कथा के माध्यम से गहरा बोध..पशु नहीं पशुपति ही वरणीय है..आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.
.आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
शिव पार्वती संवाद के माध्यम से सकारात्मक प्रस्तुति ...नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंनवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें ...........बेह्तरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंईमेल से प्राप्त-
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी , इस कविता के माध्यम से सभी ओरतों की आवाज़ को आवाज़ दी है आपने .सुन्दर रचना। मैं अपना कमेंट पोस्ट नहीं कर पा रही हूँ ।।कृपया इसे पोस्ट कर दे।आभार।
-Kavita Verma
एक सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएं।
अत्यन्त सार्थक, सशक्त एवं भाव-विभोर करने वाली प्रस्तुति है । गौरा एवं शंकर की रोचक कथा
जवाब देंहटाएंके माध्यम से नारी-शक्ति को नवरात्र के श्रेयस्कर एवं आह्लादकारी संदेश ने मन के अन्तर्तम
को छू लिया , जिसे आत्मसात करने के लिये कई बार पढ़ा । इस ललित आलेख। से प्राप्त आनन्द
के लिये आभार । नवरात्र की शुभकामनाएँ ।
इन्द्रिय सुख सर्वाधिक पशुओं एवं अन्य प्राणियों में होता है इसलिए मनुष्य को इसी पशुता से बचने के लिए इन्द्रिय निग्रह का संस्कार दिया जाता है। बहुत अच्छी प्रेरक कथा रही।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति..
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