लंबे प्रवास पर जाने के पहले जितना हो सके अपनों मिल लेना ठीक रहता है -फिर पता नहीं फिर कब संभव हो ! जा रही हूँ मैं भी,तीन दिन के लिये ही सही . महाशिव-रात्रि से अधिक श्रेष्ठ और कौन सा दिन होगा, हरिद्वार जाने के लिये !
प्रकृति उमा-शंभु विवाह की तैयारियाँ पूरी कर चुकी होगी .हिमालय के वनों में वसंतोत्सव चल रहा होगा. जहाँ नव-विकसित दुर्लभ पर्वतीय पुष्पों की सुगंध दिशा-दिशा में व्याप्त हो मन-इन्द्रियों को आविष्ट कर लेती है . एक बेभान करता सा नशा चढ़ा आता है कि एक अतीन्द्रिय-सा चैतन्य शेष और सारा आत्म-बोध विलय .ऊंचाइयों पर आरोहण करते हुये उन श्रेणियोंकी परिक्रमा देती बस में हो कर भी लगता है ,उन्मुक्त विचर रही हूँ .एक जगह न रह कर संपूर्ण परिवेश में व्याप्त हो कर उस एकान्त रमणीयता का एक अंश मैं !
हिमगिरि की छाया में प्रवाहित सुरसरि का नेह-जल दृष्टिमात्र से ही अंतरतम तक शीतल कर देता है.जीवन के उत्तर-काल में वह सान्निध्य पाने का हिसाब-किताब बैठा लेने भर से कहाँ काम चलता है - सांसारिक बाध्यताओं के आगे मन-चाही आज तक किसकी चल सकी ?
तो फिर जितना मिले उतना ही सही ! फिर से केलिफ़ोर्निया जाने के पहले एक बार और उस उस अनुभूति को पाने का लोभ - और अंतर्जाल से कुछ दिन छुट्टी !
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हरिद्वार घूम कर नयी ऊर्जा के साथ आइये ... हम इंतज़ार कर रहे हैं ॥
जवाब देंहटाएंशुभ यात्रा
जवाब देंहटाएंआपको ढेरों शुभकामनाएँ, यात्रा मंगलमय रहे आपकी।
जवाब देंहटाएंआपको वो समस्त प्राप्त हो, जिसकी अनुभूति की आकांक्षा है।
अपना ध्यान रखिये, शुभ कामनाएं!
जवाब देंहटाएंआप तो हरिद्वार में ही तो हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा मंगल मय हो बस यही कामना है हमारी....
जवाब देंहटाएंjald hi aapse dobara mulakat hogi.
जवाब देंहटाएंsadar
अपने विवाह में नर-नारी दोनों को देख नटराज का मन फिर हुआ होगा नाचने का।
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