बुधवार, 23 नवंबर 2011


 ये बच्चे भी न !
*
 तब मेरी पुत्री का परिवार बरौनी - बिहार में था.
उन दिनों  लीचियों की बहार थी .
मेरी नातिन ,चन्दना , होगी 4-5 वर्ष की ,हम लोग लीची छील कर खाते तो अलग जा  बैठती .बड़ी अजीब दृष्टि से देखती रहती -जैसे उसे बड़ी वितृष्णा हो रही हो .
उसे बहला-फुसला कर अपने पास बुलाया और लीची का स्वाद ले सके इसलिये उसके लिए छीलने लगी ,उसने बड़ी ज़ोर से झिटका बोली,' नहीं खाना.'
 'क्यों खा कर तो देखो कितनी अच्छी है .'
वह मुँह बना कर बोली ,ऊँ.. नईँ ..चाचरोच(काक्रोच)'  .
लीची की गुठली को  वह काक्रोच समझ रही थी ,
समझाना-बुझाना सब बे-कार .
  उसके मन में जम कर बैठ गया था कि लीची के अंदर  काक्रोच घुसा है - छूना तो दूर पास तक नहीं आता थी वह.
अब तो खैर, बड़ी हो गई है ,
और इसी लड़की ने एक दिन चींटियाँ चबाईं ,फिर रोई-पछताई  .
हुआ यह कि उसने अपनी टॉफ़ियाँ  अल्मारी में रख दी थीं  ,.दो-तीन दिन बाद अल्मारी खोली तो टाफ़ी दिखाई दीं .उसने झट से निकाली और रैपर हटा कर मुँह में रख ली .
टाफ़ी ,चबाई उसने और स्वाद लेने लगी ,पर मुँह बिगाड़ कर ,थू-थू करने लगी .
ध्यान दिया तो उसके हाथ पर  नन्हीं-नन्हीं चींटियाँ रेंग रहीं   थीं ,
.  मुँह से निकली टाफ़ी में चींटियाँ चिपकी थीं- मरी-अधमरी.
अल्मारी देखी  टाफ़ियों के रैपर के अंदर  नीचे से  खोखला कर   मार चींटियां चिपकीं थीं ,झुंड की झुंड.
 चन्दना के मुँह - ज़ुबान पर भी .जल्दी-जल्दी साफ़ किया कुल्ला कराया पर जीभ पर का चींटियों का स्वाद ! वह रगड़-रगड़ कर पोंछती रही . कुल्ला करती रही .
इस टाफ़ीवाली बात से एक लालीपाप की याद आ गई .
मेरा पोता 6-7 वर्ष का .स्कूल से आया तो एक लॉलीपॉप लेकर चाटता हुआ .
घर पर टॉयलेट जाना था उसे . अब  समस्या यह कि लॉलीपॉप कहाँ रखे जहाँ बिलकुल निरापद  रहे.,किसकी सुरक्षा में दे जो उसे हाथ में पकड़े रहे ,मौका पाते ही चाटना न शुरू कर दे .
अपने से कुछ बड़ी बहिन को पकड़ाने का तो सवाल ही नहीं उठता .
.इस समय उसे मैं -बड़ी माँ, ही अपेक्षाकृत ईमानदार दिखाई दीं .
मेरे पास आकर बोला ,'मैं अभी आता हूं .ये पकड़ लीजिये .
मैंने पकड़ लिया .वह चल दिया .फिर मुड़ कर देखा उसकी दृष्टि में साफ़ संशय था .
मुझे हँसी आ गई .
अब तो उसका शक पक्का हो गया ..
चलते-चलते पीछे लौटा, बोला ,'अभी आता हूँ  पकड़े रहिये बड़ी मां,बट टोन्ट लिक इट.'
बड़ी जल्दी में था शायद एकदम दौड़ कर टॉयलेट में घुस गया .
*

11 टिप्‍पणियां:

  1. चीटियों वाली बात तो बहुत भयंकर है। लोलीपॉप को एकबार चाट ही लेना था, फिर देखती आप कि क्‍या होता है!

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  2. :):) बच्चों के मनोविज्ञान को कहती रोचक पोस्ट

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  3. दोनों ही बातें मज़ेदार लगीं वाकई बच्चे तो बच्चे ही होते हैं....आज कल बाचोन और उनकी मनोदशा पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है मैं भी बच्चों से संबन्धित कुछ पोस्ट लिखीं। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है शायद आपके और मेरे विचार मिल जाएँ :-)http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  4. बच्चे होते ही ऐसे हैं...बहुत रोचक प्रस्तुति...

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  5. बाल-सुलभ प्रवृत्तियों का सुन्दर चित्रण।

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  6. बचपन की ऐसी घटना पूरी उम्र याद रहती है।

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  7. बचपन बेहद रोचक घटनाओं मैं ले जाने के लिए
    आभार

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  8. बालसुलभ घटनाएं आनंददायी रहीं

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