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अभी तक सुना करती था कि अमुक , उपायों से अमुक रसायनो से या अमुक (अष्टांग योग आदि की) साधना से -आयु बढ़ जाती है .मुझे आश्चर्य होता था कि संसार में जीव अपनी निश्चित आयु लेकर आता है ,गिनी हुई सांसें ,निश्चित अवधि .फिर इन उपायों से क्या विधि के विधान में व्यवधान आ जायेगा !
पर अब जाना कि मृत्यु दो प्रकार की होती है .काल-मृत्यु और अकाल मृत्यु .अकाल-मृत्यु रोग,से विष से या अन्य अनगिनती प्रकार से हो सकती है . बताये गये सब उपाय शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और रखने के लिये हैं - अकाल मृत्यु से बचने का हर संभव ,सावधान प्रयत्न !
और काल-मृत्यु जन्म के साथ जुड़ा एक सत्य - सृष्टि का अनिवार्य नियम .
काल मृत्यु हमारे यहाँ ग्राह्य है , पूजनीय है (कालमृत्यू च सम्पूज्यो सर्वारिष्ट प्रशान्तये ').उसके प्रति भय या तुच्छ-भाव रख कर भागने और बचने का कोई लाख प्रयत्न करे, सब बेकार .यह विधान उन मनीषियों ने इसीलिये किया होगा कि ऐसी मानसिकता का निर्माण हो और जीवन का मान और गौरव इसी में कि सहज-स्वाभाविक धर्म समझ कर इसे शिरोधार्य कर सकें .इसीलिये वैभव,शक्ति या विद्या-कला की साधना में भी यह भान भूले नहीं .और सचमुच शक्ति-त्रय में से किसी की भी (शक्ति ,लक्ष्मी और सरस्वती ) साधना में काल-मृत्त्यु का स्मरण विहित है (दुर्गासप्तशती में )- क्यों कि काल-मृत्यु देह का धर्म है .
उद्देश्य यही होगा कि साधना के क्रम में और सफल होने पर भी व्यक्ति को अपनी असलियत का भान रहे ,और व्यर्थ के अहंकारजन्य अरिष्टों का शमन होता रहे
ऊपरी उपाय ग्रहणीय हैं स्वस्थ और मुदित रहने के लिये .जीवन की क्वालिटी बढाने के लिये .
इस पर सुधी-जनों के मत जानने की उत्सुकता रहेगी .
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बहुत ही सारगर्भित रचना आभार
जवाब देंहटाएंOur aim should be to keep ourselves happy and to keep others happy. Rest is in God's hands. As far as 'Death' is concerned...Date and time is destined, nothing can change it.
जवाब देंहटाएंसत्य वचन!
जवाब देंहटाएंis lekh dwara aapne meri bhi shanka ka samaadhan kar diya. saargarbhit lekh. aabhar.
जवाब देंहटाएंसाधना से आयु बढ़ती है या नहीं, कह नहीं सकता, पर यह सुना है कि साधना मोक्ष प्रापति के लिए करते हैं, अब जब मोक्ष की चाहत हो तो उससे आयु का क्या लेना देना?
जवाब देंहटाएंकाल मृत्यु तो शाश्वत है .. जीवन को इसके इंतज़ार में नहीं बल्कि सार्थक उपयोग करते हुए जीना चाहिए .. सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं"जीवेत शरदः शतं" की बात हो, "सर्वे संतु निरामयाः" की, या चतुराश्रम की, भारतीय संस्कृति में 100 वर्ष की सम्पूर्ण आयु सामान्य मानी गयी है। लेकिन साथ ही "तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:
जवाब देंहटाएंमा गृध: कस्यस्विद्धनम्" जैसे विचारों के साथ हिंसा, द्वेष, अनिष्ट, अकाल मृत्यु आदि देने-लेने से यथासम्भव बचा गया है। योगाभ्यास हो, आयुर्वेद या समर कलायें या "परित्राणाय साधूनां" का उद्घोष, हमारी संस्कृति में जीवन को उल्लासपूर्वक जीने और समय आने पर समारोहपूर्वक त्यागने की ही बात है।
मृत्यु ही हमें सारे रोगों से मुक्ति प्रदान करती है।
जवाब देंहटाएंजो प्रकृति एवं ईश्वर द्वारा निर्धारित विधान है उसको शिरोधार्य करना ही हमारा धर्म होना चाहिये ! सारगर्भित आलेख के लिये आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बात उठायी है प्रतिभा जी। पता नहीं...कहीं पढ़ा था या शायद माँ ने मुझे बताया था...'' कि श्मशान से लौटने के पश्चात कैसी भावनाएँ उमड़तीं हैं...सांसारिक रिश्ते नाते सब गौण लगने लगतें हैं..अंतिम सत्य आँखों के सामने स्पष्ट हो जाता है...लगता है, क्या पैसों के पीछे मारामारी करना..क्या दूसरे का दिल दुखाना...सब तो मिट ही जाना है...आदि आदि'। ये सब बातें याद हो आयीं इस पोस्ट को पढ़ते पढ़ते।
जवाब देंहटाएंएक बात और कहने का मन है...और ये मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण है ...'' ऊपरी उपाय मेरे लिए ग्रहणीय नहीं हैं...शायद इसलिए कि मुझे उन पर विश्वास नहीं..और आगे आने वाले जीवन में भी ये उपाय तब तक ग्राह्य नहीं होंगे जब तक कि मेरा कोई अपना कष्ट में न हो..जिसके लिए मैं संसार में उपलब्ध हरसंभव उपाय,महामृत्युंजय जाप से लेकर अमुक बाबा की अमुक औषधि तक, ढूँढना/अपनाना चाहूँगी...इस स्थिति को छोड़ दें तो केवल अपने आप को दीर्घायु और स्वस्थ बनाये रखने के लिए मैं कोई भी रसायन,उपाय और साधना नहीं ही करूँगी।
इस एक बात को छोड़ के बाक़ी पूरी पोस्ट से मेरा ह्रदय और मस्तिष्क सहमत है....:)
बहुत अच्छा लेख है प्रतिभा जी....बहुत सी बातें taaza हो gayin.
(मैं बहुत दिनों बाद आई प्रतिभा जी आपके पास...थोड़ी अस्वस्थता थी...आना संभव न हो सका था..बहुत कुछ छूट गया है...सब पढ़ना है धीरे धीरे ...क्षमा कीजियेगा विलंब के लिए...:(...)
प्रेरणा अर्गल जी ,
जवाब देंहटाएंमैं बराबर ब्लागर्स मीट वीकली (18)पर पहुँचने के लिये प्रयत्न कर रही हूँ ,लेकिन वह साइट नहीं खुल रहा है .कैसे जाना होगा उस पृष्ठ पर -कृपया बतायें .
आपका ई-मेल पता भी नही मेरे पास
मृत्यु की बात पढ़कर मुझे अपनी कुछ पंक्तियाँ याद आगईं।
जवाब देंहटाएंज़िंदगी जीना है हमको,साँस जब तक चल रही है।
एक भी तो साँस घट सकती नहीं,
एक भी तो साँस बढ़ सकती नहीं,
फिर भला रोकर यहाँ हम क्यों जियें?
आँसुओं से ज़िंदगी की राह क्यों बोझिल करें?
ज़िंदगी के चार दिन हँसते हुए जीना हमें,
और मन की सभी खुशियाँ बाँटना सब में हमें।।
जीवन ज़िंदादिली से जीने और सभी कार्यकलाप सुचारु रूप करते रहने के लिये स्वस्थ नीरोग शरीर की आवश्यकता है,जिसकी पूर्ति
अष्टांग-योग करता है।ये मन और शरीर दोनों को स्वस्थ रखता है ।