*
आज भानमती से फिर टक्कर हो गई .
मुस्करा रही थी कुछ सोच-सोच कर .मुझे उत्सुकता हुई तो पूछ बैठी ,'क्या हुआ ?'
बोली ,अब क्या बतायें रोज़ के तमाशे ,कहाँ तक सुनोगी ?'
'पर हुआ क्या ?'
' अरे, एक बार या कोई एक जन हो तो भी ठीक. पर कई बार देख चुकी हूँ ,होता ये है कि किसी का बच्चा कभी किसी चीज़ से टकरा जाय या गिर पड़े तो फ़ौरन उस चीज़ या जमीन को पीटना या मुक्के मारना शुरू कर देंगे 'ले ,हमारे मुन्ना को चोट लगा दी ,लो हमने इसकी पिट्टी कर दी. ले मार तू भी (हाथ पाँव पटक इस पर .खा और चोट !)
उससे भी पिटवायेंगे चाहे टक्कर उसी को लगती रहे !
.''लो, चींटी मर गई !'
बेकार की हाँकते हैं ,वहाँ न चींटी न चींटा .वह कौतुक से उन्हीं का चेहरा देखता है .
चाहिये था सही बात समझाते ,'बेटा,देख कर चलो ,नहीं सँभल कर काम करो तो चोट लग जाती है!'
सही कारण बताने से तर्क-बुद्धि विकसित होती उसकी.पर फिर तो बेवकूफ़ियों के आस्वादन का इनका मज़ा किरकिरा हो जाता . बच्चा अगर समझ की बात करने लगेगा,तो गज़ब हो जाएगा . परेशानी होने लगेगी . .
धन्य हैं !'
भानमती बोलती जा रही थी-
'बच्चे को क्या जड़ और जीवित के अंतर का आभास नहीं होता ?
उसे मूर्ख बना रहे हैं ,अरे , सहज-ज्ञान उनमें बड़ों से कहीं ज्यादा होता है ! ,बच्चा भी कुछ समझ अपनी गाँठ में बाँध कर लाया है और अक्ल के बीज भी.खाद-पानी देना तो दूर ,कुंठित करे डाल रहे हैं !थोप रहे हैं उस पर बेतुकी बातें .क्या करे वह बिचारा !'
'हाँ, ये तो है .'
'पर कर रहे हैं तमाशा ,मुख पर बाजीगर का भाव लिए.वह कौतुक से देखता है.विचित्र उलझन में है.अभी तर्क ,कार्य-कारण संबंध जानता नहीं पर सहज बुद्धि की कमी नहीं उसमें ! अपनी गाँठ न खोल पाओ तो उसे विकसने दो. पर कहाँ ? ट्रेनिंग दे रहे हैं उसे.कि ऊल-जलूल बातें सुनता रहे .
बड़े हैं सो, लादे जा रहे हैं उस छोटी- सी बुद्धि पर अपने अजूबे .और सोच कर खुश रहे हैं कैसा बहला दिया .सच में तो बहकाए जा रहे हैं बाल-बुद्धि समझ कर !
'अरे वाह भानमती ...!'
पर वह मेरी सुनती कहाँ है!
चलते-चलते भी अपनी ही लगाए रही -'एक बात और सुन लो , सबके भले की... .'
मैंने कान खड़े कर लिए .
'कोई अगर तुमसे ''बेवकूफ़'' कहे तो ,नाराज मत होना ,अफ़सोस मत करना ,उत्तेजित मत ,रोना भी नहीं ,शान्त रहना .
'अरे वाह !'
'देखो मूड बिलकुल मत बिगा़ड़ना ,इससे कुछ फ़ायदा नहीं .'
कैसी नई बात ! सुन रही हूँ चुपचाप .
'यह मत सोचना कि हमारी शान घट गई, .खिसियाना भी मत .'
'फिर क्या करें,सुन कर पी जाएँ ?'
'पी मत जाओ .दिमाग़ में रखे रहो .और शान्त भाव से कर चुपचाप कुर्सी पर बैठ जाओ ,कुर्सी पर न सही किसी आराम की मुद्रा में, और सोचना-विचारना शुरू करो ..'
'क्या विचारना ?'
'यही कि ये बात उसे पता कैसे लगी ?'
***
आज भानमती से फिर टक्कर हो गई .
मुस्करा रही थी कुछ सोच-सोच कर .मुझे उत्सुकता हुई तो पूछ बैठी ,'क्या हुआ ?'
बोली ,अब क्या बतायें रोज़ के तमाशे ,कहाँ तक सुनोगी ?'
'पर हुआ क्या ?'
' अरे, एक बार या कोई एक जन हो तो भी ठीक. पर कई बार देख चुकी हूँ ,होता ये है कि किसी का बच्चा कभी किसी चीज़ से टकरा जाय या गिर पड़े तो फ़ौरन उस चीज़ या जमीन को पीटना या मुक्के मारना शुरू कर देंगे 'ले ,हमारे मुन्ना को चोट लगा दी ,लो हमने इसकी पिट्टी कर दी. ले मार तू भी (हाथ पाँव पटक इस पर .खा और चोट !)
उससे भी पिटवायेंगे चाहे टक्कर उसी को लगती रहे !
.''लो, चींटी मर गई !'
बेकार की हाँकते हैं ,वहाँ न चींटी न चींटा .वह कौतुक से उन्हीं का चेहरा देखता है .
चाहिये था सही बात समझाते ,'बेटा,देख कर चलो ,नहीं सँभल कर काम करो तो चोट लग जाती है!'
सही कारण बताने से तर्क-बुद्धि विकसित होती उसकी.पर फिर तो बेवकूफ़ियों के आस्वादन का इनका मज़ा किरकिरा हो जाता . बच्चा अगर समझ की बात करने लगेगा,तो गज़ब हो जाएगा . परेशानी होने लगेगी . .
धन्य हैं !'
भानमती बोलती जा रही थी-
'बच्चे को क्या जड़ और जीवित के अंतर का आभास नहीं होता ?
उसे मूर्ख बना रहे हैं ,अरे , सहज-ज्ञान उनमें बड़ों से कहीं ज्यादा होता है ! ,बच्चा भी कुछ समझ अपनी गाँठ में बाँध कर लाया है और अक्ल के बीज भी.खाद-पानी देना तो दूर ,कुंठित करे डाल रहे हैं !थोप रहे हैं उस पर बेतुकी बातें .क्या करे वह बिचारा !'
'हाँ, ये तो है .'
'पर कर रहे हैं तमाशा ,मुख पर बाजीगर का भाव लिए.वह कौतुक से देखता है.विचित्र उलझन में है.अभी तर्क ,कार्य-कारण संबंध जानता नहीं पर सहज बुद्धि की कमी नहीं उसमें ! अपनी गाँठ न खोल पाओ तो उसे विकसने दो. पर कहाँ ? ट्रेनिंग दे रहे हैं उसे.कि ऊल-जलूल बातें सुनता रहे .
बड़े हैं सो, लादे जा रहे हैं उस छोटी- सी बुद्धि पर अपने अजूबे .और सोच कर खुश रहे हैं कैसा बहला दिया .सच में तो बहकाए जा रहे हैं बाल-बुद्धि समझ कर !
'अरे वाह भानमती ...!'
पर वह मेरी सुनती कहाँ है!
चलते-चलते भी अपनी ही लगाए रही -'एक बात और सुन लो , सबके भले की... .'
मैंने कान खड़े कर लिए .
'कोई अगर तुमसे ''बेवकूफ़'' कहे तो ,नाराज मत होना ,अफ़सोस मत करना ,उत्तेजित मत ,रोना भी नहीं ,शान्त रहना .
'अरे वाह !'
'देखो मूड बिलकुल मत बिगा़ड़ना ,इससे कुछ फ़ायदा नहीं .'
कैसी नई बात ! सुन रही हूँ चुपचाप .
'यह मत सोचना कि हमारी शान घट गई, .खिसियाना भी मत .'
'फिर क्या करें,सुन कर पी जाएँ ?'
'पी मत जाओ .दिमाग़ में रखे रहो .और शान्त भाव से कर चुपचाप कुर्सी पर बैठ जाओ ,कुर्सी पर न सही किसी आराम की मुद्रा में, और सोचना-विचारना शुरू करो ..'
'क्या विचारना ?'
'यही कि ये बात उसे पता कैसे लगी ?'
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सीख देता हुआ अच्छा आलेख , आभार
जवाब देंहटाएंवाह प्रतिभाजी सभी की दुखती रग पर हाथ रख दिया। हम सभी भी यही करते हैं। कई बार तात्कालिक आराम के लिए ऐसा ही कुछ किया जाता है, समझ की बात तो बाद में बतायी जाती है। बच्चे का मन भी स्वीकार करता है कि यदि किसी के कारण मुझे चोट लगी है तो उसे भी दण्ड मिलना चाहिए। इसी से न्याय व्यवस्था का जन्म होता है। लेकिन कुछ लोग चोट करते ही रहते हैं, जैसे सत्ता में बैठे लोग।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शिक्षा ...थोडा मुश्किल है जतन ....फिर भी उपयोगी सूत्र...
जवाब देंहटाएंसही है -सच बात से सीख भी मिलती और तर्क बुद्धि भी विकसित होती...अच्छी सीख देता आलेख.
जवाब देंहटाएं'तर्क बुद्धि' वाली वाली बात से सहमत हूँ प्रतिभा जी पर 'पिज्ज़ा पीढ़ी' में ऐसी कौतुक दृष्टि देखी नहीं...आजकल तो बच्चे समय से पहले ही 'स्मार्ट' हो जाते हैं प्रतिभा जी ......और माता पिता कौतुक भरी दृष्टि से ताकते रहते हैं उनका मुख....आपकी बातें हम पर ज़्यादा फिट होतीं हैं..मतलब हमारे बचपन पर|
जवाब देंहटाएंफिर भी सबक तो लिया ही...आज ही से व्यवहार में ढालने का प्रयत्न करुँगी...
सत्य वचन, सही कारण बताते हुए दी गई शिक्षा ही उपयोगी है और हर दृष्टि से उचित भी।
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