कोई नई खोज करने का परिश्रम किसी खास देश के प्रबुद्धजनों ने भले ही किया हो ,उससे कल्याण सारे मानव- जगत का होता है ।दर्द से छुटकारा दिलाना बड़े पुण्य का काम और ऐसी दवायें बतानेवाला भी परोपकार के यश का भागीदार होता है। ऐसी युक्ति जान कर जिससे कष्ट से छुटकारा और सुख मिले लोग हमेशा दुआयें देते हैं ।
गर्दन के दर्द की इस दवा की खोज मंगोलिया में हुई। ज़ाहिर है वहाँ की महिलाओं की गर्दनें प्रायः ही दर्द करती होगी ।दवा ही ऐसी है कि सुन कर दर्द होने लगे ।मैंने जब अपनी मित्र को विस्तार से बताया ,उनके उसी दिन दर्द हुआ था, कहने लगीं ये इलाज वहीं की औरतों पर कारगर होगा ।'ऐसा कैसे हो सकता है' -मैंने कहा-'औरतें हर जगह की एक सी । समान प्रवृत्तियाँ ।एक से मन, एक से तन ।वही अनुभूतियाँ ,समान स्वभाव । दिल दिमाग सब एक ही ढर्रे का रचा है भगवान ने ।जो एक के लिये मुफ़ीद है सब के लिये होना चाहिये ।तुम अपने को सबसे निराला क्यों समझती हो ?चाहे प्रयोग कर के देख।'
उलन बटोर (मंगोलिया )के लोग महिलाओं को गर्दन की मोच के दर्द से मुक्ति दिलाने का बड़ा नायाब तरीका प्रयोग में लाते हैं ।महिलाओँ की सारी परेशानी एकदम उड़न-छू हो जाती है ।जिसकी गर्दन में दर्द है वह महिला घुटनों के बल बैठ जाय और किसी खूबसूरत पुरुष के घुटनों पर अपना सिर रख दे ।दर्द छू मंतर !
मंगोलिया के ऐसे उपाय और देशों में भी कारगर होंगे । आदमियों , औरतों को भी प्रकृति ने समान बनाया है ।एक जगह जो बात लागू होती है हर जगह होनी चाहिये ।मंगोलिया में जो इलाज कारगर है भला अपने भारत में क्यों नहीं होगा -ज़रूर होगा ।मानव प्रकृति हर जगह एक सी !
कहने को तो अपनी मित्र से मैं कह गई फिर सोचा यह तैयार हो गई तो इसके लिये कहाँ से लाऊंगी ऐसा व्यक्ति जिसके घुटनों पर यह सिर टका ले ।फिर दवायें भी उम्र, शरीर की अवस्था आदि देख कर प्रिस्क्राइब की जाती हैं।किस उम्र पर कितना कैसा क्या होना चाहिये यह जानने के लिये तो पूरी खोज करनी पड़ेगी ।
किसी दवा से किसी को एलर्जी हो सकती है ।किसे कैसा पुरुष चलेगा यह भी पहले जानना पड़ेगा । खूबसूरत पुरुषों का मार्केट बढ़ जायेगा क्योंकि यह बीमारी ऐसी है कि एक बार हुई तो बार-बार होने की संभावना बन जाती है ।वैसे पुरुष अधिकरतर अपने को कुछ खास समझते हैं। उस खासियत में ख़ूबसूरती शामिल है या नहीं यह जानने की मैने कभी कोशिश नहीं की ।यह भी पता करना पड़ेगा कि किस उम्र की महिला के लिये किस उम्र का पुरुष फ़ायदेमंद होगा ।नहीं तो कहीं पासा उल्टा पड़ गया तो दर्द और बढ जायेगा ।यह भी नहीं पता कितनी देर तक सिर उसके घुटनों पर रक्खे रहना है। और कैसे ? मुँह घुटनों पर औँधा कर या सीधा -आँखों से उसकी खूबसूरती निहारते हुये ।
किसी का दर्द धीरे-धीरे जाता है ,एक बार में नहीं ।कई खुराकें देनी पड़ती हैं यह रोगी की शारीरिक और मानसिक अवस्थाओँ पर निर्भर करता है ।कभी-कभी रिपीट भी करना पड़ता है ।इस सब को जानने के लिये तो विषेष अध्ययन की आवश्यकता है ।अध्य़यन के साथ अभ्यास - प्रेक्टिस भी !-व्यावहार में अलग-अलग मरीज़ों को ट्रीट किये बिना स्पष्ट हो नहीं सकता कि कितनी खुराक कहाँ कारगर है । हाँ,एक बात तो रह ही गई- खूबसूरती की सबकी अपनी-अपना पसंद होती है ।एक की रुचि को दूसरे पर थोपा नहीं जा सकता ।दवा का चयन रोगी को ध्यान में रख कर होना चाहिये ,उसकी एलर्जीज़ का विचार पहले ही कर दर्दवाली जिसे खूबसूरत माने उसी के घुटने पर सिर रखने से लाभ की आशा की जा सकती है ।वरना कहीं ऐसा न हो कि दवा उल्टी पड़ जाय और दर्द बढता चला जाये -लेने के देने पड़ जायँ । हमारे घरों में अधिकतर पति लोग अपने को पर्याप्त समझ बैठते हैं उनसे गुज़ारिश है कि भ्रम से मुक्त रह कर आचरण करें ।वैसे एक खूबसूरत पुरुष की व्यवस्था घरवालों पहले से कर ले तो अधिक अच्छा रहे ।पता नहीं कब कोई महिला गर्दन पकड़ कर बैठ जाये ।आजकल तो ऐसी ऐसी बीमारियाँ चली हैं कि एक से दूसरे को बड़ी जल्दी लग जाती हैं ।
बात इलाज की है ।ज़माना आदर्शवाद का नहीं है ।यहाँ हर चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है,मुफ़्त में कुछ नहीं मिलता ।कोई फोकट में इलाज करे यह भी संभव नहीं ।मर्ज ठीक करना है ,इलाज के लिये कीमत चुकानी होंगी ।वैसे एक बार शरीर या मन पर हावी होगये तो मर्ज़ जड़ से नहीं जाते ।बारबार होने की प्रवृत्ति बन जाती है ।कोई भी कमजोंरी या बुरी आदत आदत अगर मन उसमें रम जाये तो फ़ौरन लग भी जल्दी जाती है और फिर उसका छूटना मुश्किल !एक और कठिनाई। ऐसी दवा बाज़ार में नहीं मिलती ,दवादार ढूँढना पड़ता है । पता नहीं क्या कीमत वसूले ?मजबूरी मरीज़ की है। दर्द से छुटकारा पाना है तो मूल्य चुकाने पर राज़ी होना पड़ेगा जितना जैसा वह चाहे !चिकित्सा के लिये मूल्य देना ही उचित है नहीं तो दवा फ़ाचदा नहीं करती ।कीमत कैसे चुकायेंगी यह आप जाने और आपका काम जाने । इस पचड़े से हम दूर ही रहते हैं ।
।इस क्षेत्र में शोध और अध्ययन की अपार संभावनायें हैं ।
महिलाओं से,जिनकी गर्दन में वास्तव में दर्द है , निवेदन हैं कि इस इलाज से फ़ायदा उठायें ।कुछ बीमारियाँ ही मानसिक होती हैं, शारीरिक लक्षण बाद में दिखाई देते हैं ।शरीर और मन भिन्न नहीं एक ही वस्तु के दो पहलू हैं ।अगर कोई प्रतिक्रिया हो तो सारे लक्षण और इलाज हेतु प्रयुक्त व्यक्ति का विवरण के साथ शारीरिक स्थिति एवं मानसिक और भावनात्मक -प्रतिक्रया का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करते हुये अपने अनुभव हमें विस्तार से लिख भेजें ।आपके अनुभवों से बहुतों का मार्गदर्शन होगा और भविष्य के शोध में आपका प्रशंसनीय योगदान होगा ।क्योंकि अध्येता को यह सावधानी से देखना पड़ेगा कि शिकायत वस्तुतः शारीरिक है या मानसिक (भावनात्मक) ,और स्वस्थ होने में मानसिकता का बहुत बड़ा योगदान होता है ।
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गर्दन के दर्द की इस दवा की खोज मंगोलिया में हुई। ज़ाहिर है वहाँ की महिलाओं की गर्दनें प्रायः ही दर्द करती होगी ।दवा ही ऐसी है कि सुन कर दर्द होने लगे ।मैंने जब अपनी मित्र को विस्तार से बताया ,उनके उसी दिन दर्द हुआ था, कहने लगीं ये इलाज वहीं की औरतों पर कारगर होगा ।'ऐसा कैसे हो सकता है' -मैंने कहा-'औरतें हर जगह की एक सी । समान प्रवृत्तियाँ ।एक से मन, एक से तन ।वही अनुभूतियाँ ,समान स्वभाव । दिल दिमाग सब एक ही ढर्रे का रचा है भगवान ने ।जो एक के लिये मुफ़ीद है सब के लिये होना चाहिये ।तुम अपने को सबसे निराला क्यों समझती हो ?चाहे प्रयोग कर के देख।'
उलन बटोर (मंगोलिया )के लोग महिलाओं को गर्दन की मोच के दर्द से मुक्ति दिलाने का बड़ा नायाब तरीका प्रयोग में लाते हैं ।महिलाओँ की सारी परेशानी एकदम उड़न-छू हो जाती है ।जिसकी गर्दन में दर्द है वह महिला घुटनों के बल बैठ जाय और किसी खूबसूरत पुरुष के घुटनों पर अपना सिर रख दे ।दर्द छू मंतर !
मंगोलिया के ऐसे उपाय और देशों में भी कारगर होंगे । आदमियों , औरतों को भी प्रकृति ने समान बनाया है ।एक जगह जो बात लागू होती है हर जगह होनी चाहिये ।मंगोलिया में जो इलाज कारगर है भला अपने भारत में क्यों नहीं होगा -ज़रूर होगा ।मानव प्रकृति हर जगह एक सी !
कहने को तो अपनी मित्र से मैं कह गई फिर सोचा यह तैयार हो गई तो इसके लिये कहाँ से लाऊंगी ऐसा व्यक्ति जिसके घुटनों पर यह सिर टका ले ।फिर दवायें भी उम्र, शरीर की अवस्था आदि देख कर प्रिस्क्राइब की जाती हैं।किस उम्र पर कितना कैसा क्या होना चाहिये यह जानने के लिये तो पूरी खोज करनी पड़ेगी ।
किसी दवा से किसी को एलर्जी हो सकती है ।किसे कैसा पुरुष चलेगा यह भी पहले जानना पड़ेगा । खूबसूरत पुरुषों का मार्केट बढ़ जायेगा क्योंकि यह बीमारी ऐसी है कि एक बार हुई तो बार-बार होने की संभावना बन जाती है ।वैसे पुरुष अधिकरतर अपने को कुछ खास समझते हैं। उस खासियत में ख़ूबसूरती शामिल है या नहीं यह जानने की मैने कभी कोशिश नहीं की ।यह भी पता करना पड़ेगा कि किस उम्र की महिला के लिये किस उम्र का पुरुष फ़ायदेमंद होगा ।नहीं तो कहीं पासा उल्टा पड़ गया तो दर्द और बढ जायेगा ।यह भी नहीं पता कितनी देर तक सिर उसके घुटनों पर रक्खे रहना है। और कैसे ? मुँह घुटनों पर औँधा कर या सीधा -आँखों से उसकी खूबसूरती निहारते हुये ।
किसी का दर्द धीरे-धीरे जाता है ,एक बार में नहीं ।कई खुराकें देनी पड़ती हैं यह रोगी की शारीरिक और मानसिक अवस्थाओँ पर निर्भर करता है ।कभी-कभी रिपीट भी करना पड़ता है ।इस सब को जानने के लिये तो विषेष अध्ययन की आवश्यकता है ।अध्य़यन के साथ अभ्यास - प्रेक्टिस भी !-व्यावहार में अलग-अलग मरीज़ों को ट्रीट किये बिना स्पष्ट हो नहीं सकता कि कितनी खुराक कहाँ कारगर है । हाँ,एक बात तो रह ही गई- खूबसूरती की सबकी अपनी-अपना पसंद होती है ।एक की रुचि को दूसरे पर थोपा नहीं जा सकता ।दवा का चयन रोगी को ध्यान में रख कर होना चाहिये ,उसकी एलर्जीज़ का विचार पहले ही कर दर्दवाली जिसे खूबसूरत माने उसी के घुटने पर सिर रखने से लाभ की आशा की जा सकती है ।वरना कहीं ऐसा न हो कि दवा उल्टी पड़ जाय और दर्द बढता चला जाये -लेने के देने पड़ जायँ । हमारे घरों में अधिकतर पति लोग अपने को पर्याप्त समझ बैठते हैं उनसे गुज़ारिश है कि भ्रम से मुक्त रह कर आचरण करें ।वैसे एक खूबसूरत पुरुष की व्यवस्था घरवालों पहले से कर ले तो अधिक अच्छा रहे ।पता नहीं कब कोई महिला गर्दन पकड़ कर बैठ जाये ।आजकल तो ऐसी ऐसी बीमारियाँ चली हैं कि एक से दूसरे को बड़ी जल्दी लग जाती हैं ।
बात इलाज की है ।ज़माना आदर्शवाद का नहीं है ।यहाँ हर चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है,मुफ़्त में कुछ नहीं मिलता ।कोई फोकट में इलाज करे यह भी संभव नहीं ।मर्ज ठीक करना है ,इलाज के लिये कीमत चुकानी होंगी ।वैसे एक बार शरीर या मन पर हावी होगये तो मर्ज़ जड़ से नहीं जाते ।बारबार होने की प्रवृत्ति बन जाती है ।कोई भी कमजोंरी या बुरी आदत आदत अगर मन उसमें रम जाये तो फ़ौरन लग भी जल्दी जाती है और फिर उसका छूटना मुश्किल !एक और कठिनाई। ऐसी दवा बाज़ार में नहीं मिलती ,दवादार ढूँढना पड़ता है । पता नहीं क्या कीमत वसूले ?मजबूरी मरीज़ की है। दर्द से छुटकारा पाना है तो मूल्य चुकाने पर राज़ी होना पड़ेगा जितना जैसा वह चाहे !चिकित्सा के लिये मूल्य देना ही उचित है नहीं तो दवा फ़ाचदा नहीं करती ।कीमत कैसे चुकायेंगी यह आप जाने और आपका काम जाने । इस पचड़े से हम दूर ही रहते हैं ।
।इस क्षेत्र में शोध और अध्ययन की अपार संभावनायें हैं ।
महिलाओं से,जिनकी गर्दन में वास्तव में दर्द है , निवेदन हैं कि इस इलाज से फ़ायदा उठायें ।कुछ बीमारियाँ ही मानसिक होती हैं, शारीरिक लक्षण बाद में दिखाई देते हैं ।शरीर और मन भिन्न नहीं एक ही वस्तु के दो पहलू हैं ।अगर कोई प्रतिक्रिया हो तो सारे लक्षण और इलाज हेतु प्रयुक्त व्यक्ति का विवरण के साथ शारीरिक स्थिति एवं मानसिक और भावनात्मक -प्रतिक्रया का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करते हुये अपने अनुभव हमें विस्तार से लिख भेजें ।आपके अनुभवों से बहुतों का मार्गदर्शन होगा और भविष्य के शोध में आपका प्रशंसनीय योगदान होगा ।क्योंकि अध्येता को यह सावधानी से देखना पड़ेगा कि शिकायत वस्तुतः शारीरिक है या मानसिक (भावनात्मक) ,और स्वस्थ होने में मानसिकता का बहुत बड़ा योगदान होता है ।
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विषय बहुत रोचक था..उतने ही निराले ढंग से आपने उसे शब्दों में बाँधा है।
जवाब देंहटाएंएक बहुत स्वाभाविक सी मनोवृत्ति होती है इंसान की....पढ़ते हुए बिना किसी प्रयत्न के खुद को कहानी के किरदारों में ढालते जाना...वैसे ही हालातों में खुद को देखना...तसव्वुर करना.....चूंकि मुझे बीमारी कुछ ज़्यादा गंभीर रूप से है..यहाँ तक की मैं गुलज़ार जी की कवितायेँ उनकी ही आवाज़ में पढ़ती हूँ.....:(...इसी तरह जब आपका लेख पढ़ते पढ़ते यहाँ पहुंची -
''यह भी नहीं पता कितनी देर तक सिर उसके घुटनों पर रक्खे रहना है। और कैसे ? मुँह घुटनों पर औँधा कर या सीधा -आँखों से उसकी खूबसूरती निहारते हुये ।''
....पहले shabd से आखिरी शब्द तक पढ़ने में लगे समय में मैंने अपने सर को किसी के घुटनों पर महसूस किया...क्रम के अनुसार..पहले नीचे की तरफ..फिर चेहरे की तरफ देखते हुए....और दूसरी बारी में....मुझे ज़ोरों की हंसी आ गयी...मुझे लगता है...चेहरा घुटनों में छिपा लेना सही होता होगा...:)
अंत में फिर से कहूँगी..विषय बहुत ही रोचक है.....मैं शायद काफी दिनों तक अपनी सहेलियों से इस विषय पर चर्चा करती रहूंगी......पेशे से हम सब चिकित्सक हैं ...सो शायद हमें और भी नए नए आयाम मिल जायेंगे आपके इस विषय के...जैसे कि क्या कैसे सरदर्द ठीक होता होगा?? कौन सी नर्व या कौन सा हिस्सा मस्तिष्क का इसमें काम करता होगा....?? वगैरह वगैरह..:) :)
बधाई इस लेख के लिए !
"चेहरा घुटनों में छिपा लेना सही होता"
जवाब देंहटाएंहर मरीज़ का अलग स्वभाव तो डाक्टर भी मानते हैं .अगर डाइग्नोज़ कर लें तो यह भी सही .वैसे तुम्हीं ट्राई करना तरु, -चैन पड़ता है या बेचैनी बढ़ती है ?परिणाम मुझे भी बताना.
Pratibha ji...main nai try karoongi...main waise bhi kisi bhi tarah ke sahare lene ki virodhi hoon......aur ek purush ka to kadaapi nahin......:/:/...haan agar try karna hi pada ...to main maa ke,Sangeeta Aunty ke ya aapke hi ghutnon mein sar rakhna prefer karoongi...i bet....chain hi padega.....:) wowwwwwww !! is baat par to shandar bhavuk si kavita kahi ja sakti hai...:D...likhi agar to bhejungi...:):)
जवाब देंहटाएं(aaj naa hindi type nahin ho rahi thi..so roman mein hi likhna pada...:( )
arey baba bas karo aap dono ki dono apni doctry....varna mujhe gardan k dard k sath sath lips & cheeks ka bhi ilaz karana padega....dono hi failte failte dard ki seema par pahunch gaye hain.
जवाब देंहटाएंlekh ke 3rd pahre ki 3rd line se mere honthon ne failna shuru jo kiya to wapis apni pehli wali sthiti me aane ka naam hi nahi le rahe...to batao kya karu ab mujhe jana padega na is dard k dr. k paas bhi.
aur taru tum bhi kuchh kam nahi ho....aakhir shuru se jo dhimi dhimi mand gati se smile badhti ja rahi thi usne bambari kar hi di aur jor ka chhakka sa marte hue hansi foot hi to padi.
had he....kya chikallasbaazi hai ye aap dono ki.
:):):):)
ab hath pakad ke apne muh ko pehli si sthiti me lane ki koshish jari hai.
uffffffffffff.