*
बंधु जी बड़े सोच में थे .
इधऱ कुछ दिनो से बंधु जी बड़ी उलझन में हैं . किस विषय पर लिखें . .
'क्या टापिक उठाएं समझ में नहीं आ रहा . हास्य-व्यंग्य के सारे विषय लोगों ने जुठा डाले .'
' कुछ सदाबहार विषय भी तो हैं - पत्नी कहीं चली गईं हैं क्या ?'
'अभी ज़रा बाजार गई हैं पर इसमें वह क्या करेंगी ?उन्हें लिखने-लिखाने का ज़रा शौक नहीं .'
थोड़ा आश्चर्य. हुआ .
व्यंग्य लिखनेवालों का दिमाग तो सुना है काफ़ी चलता है ,इनका कहाँ चला गया ? कहीं बिल्कुल ही चल तो नहीं गया .
और अपनी पत्नी पर तो पूरा हक़ हासिल होता है . कोई न मिले पत्नी पर पिल पड़ो . उस पर लिखने के लिये तो पूछने -ताछने, सोचने -विचारने ,दिमाग़ चलाने की भी ज़रूरत नहीं ,जो लिखो ठीक.सबको थोड़ा तमाशा चाहिये ,उसे सामने कर दो . कोई रूप बनाकर हाज़िर कर दो - अतिशयोक्ति ,अन्योक्ति ,पुनरोक्ति ,व्यंग्योक्ति कटूक्ति -सब जायज़ है यहाँ .कसी को कोई आपत्ति नहीं होगी ,सब मज़े लेंगे .
भई ,कमज़ोर की जोरू दूसरों की भौजाई हुई .और स्पष्ट है लिखनेवाला कमज़ोर है .ताकतवर होता तो.पत्नी को प्रस्तुत कर देने की क्या ज़रूरत थी. सारी दुनिया पड़ी है अपने बल-बूते निपटते .चारों तरफ देखते , डट कर लोहा लेते.अपनी अकल के हथ-पाँव चला कर कुछ मौलिक करते. मेहरारू को घर से बाहर घसीटने की क्या जरूरत थी . काहे को बीवी को आगे कर कदम बढ़ाने की नौबत आती .पर यह बात उनसे सीधे-सीधे नहीं कही जा सकती ,कहीं उटक गये तो और मुश्किल !
हमने सर खुजाया ,फिर कहा-
'काका हाथरसी ने काकी,यानी अपनी पत्नी को ले कर कितना लिखा है .'
' हाँ, हमने पढ़ा है .बड़ा मज़ेदार लिखते हैं .हँसते-हँसते पेट में बल पड़ जाते हैं .'
'तो आप उन पर क्यों नहीं लिखते ?
'उन पर ?,उनकी पत्नी पर ?आपका मतलब है मैं काकी पर लिखूँ .अरे पिटवाना है क्या ??'
'पत्नी ! मेरा मतलब काकी नहीं. भगवान की कृपा से आप भी पत्नीवान हैं .'
उनके ज्ञान-चक्षु खुलते से लगे .हमने अपनी बात जारी रखी -
'सदाबहार विषय है .चाहे जो लिखिये ,कोई खतरा नहीं .वे तो उपकृत होंगी कि आपने उन्हें विषय बनाया, सबके सामने आने का मौका दिया ,लोग उनके बारे में भी जानते हैं.और मान लेओ गुस्सा भी हुईं, तो क्या कर लेंगी आपका ?धीरे धीरे आदत पड़ जायेगी सब झेलने की .आखिर भारत की पत्नी हैं .'
वे कुछ सोच में थे.
बीच में बोले, 'भारत की पत्नी से मुझे क्या मतलब जब अपनी है . वह तो लड़ने पर आमादा हो जायेगा.'
' ठीक कह रहे हो .डरना मत ,बंधु! सदाबहार विषय हुम्हारे हाथ में है! पति हो पति बन कर जियो .
और उनकी लेखनी धड़ल्ले से चल पड़ी .
उन भली महिला को पति की हरकतों का पता है कि नहीं ,मुझे नहीं मालूम !
*
- प्रतिभा सक्सेना
बंधु जी बड़े सोच में थे .
इधऱ कुछ दिनो से बंधु जी बड़ी उलझन में हैं . किस विषय पर लिखें . .
'क्या टापिक उठाएं समझ में नहीं आ रहा . हास्य-व्यंग्य के सारे विषय लोगों ने जुठा डाले .'
' कुछ सदाबहार विषय भी तो हैं - पत्नी कहीं चली गईं हैं क्या ?'
'अभी ज़रा बाजार गई हैं पर इसमें वह क्या करेंगी ?उन्हें लिखने-लिखाने का ज़रा शौक नहीं .'
थोड़ा आश्चर्य. हुआ .
व्यंग्य लिखनेवालों का दिमाग तो सुना है काफ़ी चलता है ,इनका कहाँ चला गया ? कहीं बिल्कुल ही चल तो नहीं गया .
और अपनी पत्नी पर तो पूरा हक़ हासिल होता है . कोई न मिले पत्नी पर पिल पड़ो . उस पर लिखने के लिये तो पूछने -ताछने, सोचने -विचारने ,दिमाग़ चलाने की भी ज़रूरत नहीं ,जो लिखो ठीक.सबको थोड़ा तमाशा चाहिये ,उसे सामने कर दो . कोई रूप बनाकर हाज़िर कर दो - अतिशयोक्ति ,अन्योक्ति ,पुनरोक्ति ,व्यंग्योक्ति कटूक्ति -सब जायज़ है यहाँ .कसी को कोई आपत्ति नहीं होगी ,सब मज़े लेंगे .
भई ,कमज़ोर की जोरू दूसरों की भौजाई हुई .और स्पष्ट है लिखनेवाला कमज़ोर है .ताकतवर होता तो.पत्नी को प्रस्तुत कर देने की क्या ज़रूरत थी. सारी दुनिया पड़ी है अपने बल-बूते निपटते .चारों तरफ देखते , डट कर लोहा लेते.अपनी अकल के हथ-पाँव चला कर कुछ मौलिक करते. मेहरारू को घर से बाहर घसीटने की क्या जरूरत थी . काहे को बीवी को आगे कर कदम बढ़ाने की नौबत आती .पर यह बात उनसे सीधे-सीधे नहीं कही जा सकती ,कहीं उटक गये तो और मुश्किल !
हमने सर खुजाया ,फिर कहा-
'काका हाथरसी ने काकी,यानी अपनी पत्नी को ले कर कितना लिखा है .'
' हाँ, हमने पढ़ा है .बड़ा मज़ेदार लिखते हैं .हँसते-हँसते पेट में बल पड़ जाते हैं .'
'तो आप उन पर क्यों नहीं लिखते ?
'उन पर ?,उनकी पत्नी पर ?आपका मतलब है मैं काकी पर लिखूँ .अरे पिटवाना है क्या ??'
'पत्नी ! मेरा मतलब काकी नहीं. भगवान की कृपा से आप भी पत्नीवान हैं .'
उनके ज्ञान-चक्षु खुलते से लगे .हमने अपनी बात जारी रखी -
'सदाबहार विषय है .चाहे जो लिखिये ,कोई खतरा नहीं .वे तो उपकृत होंगी कि आपने उन्हें विषय बनाया, सबके सामने आने का मौका दिया ,लोग उनके बारे में भी जानते हैं.और मान लेओ गुस्सा भी हुईं, तो क्या कर लेंगी आपका ?धीरे धीरे आदत पड़ जायेगी सब झेलने की .आखिर भारत की पत्नी हैं .'
वे कुछ सोच में थे.
बीच में बोले, 'भारत की पत्नी से मुझे क्या मतलब जब अपनी है . वह तो लड़ने पर आमादा हो जायेगा.'
' ठीक कह रहे हो .डरना मत ,बंधु! सदाबहार विषय हुम्हारे हाथ में है! पति हो पति बन कर जियो .
और उनकी लेखनी धड़ल्ले से चल पड़ी .
उन भली महिला को पति की हरकतों का पता है कि नहीं ,मुझे नहीं मालूम !
*
- प्रतिभा सक्सेना
badhiya aapne to bina patni par kalam chalaye pati par hi vyangay kas mara...jabardast aur sateek.
जवाब देंहटाएंहा हा ह आह आह आह
जवाब देंहटाएंव्यंगकार का खुब चले, कहते लोग दिमाग |
प्लाट ढूँढ़ ना पा रहा, चला गया या भाग |
चला गया या भाग, फैसला कर लो पहले |
घरे रहे बोलती बंद, पड़े नहले पे दहले |
दहले मोर करेज, यहाँ तो मन की बक लूँ |
कंकड़ लेता निगल, कहाँ फिर जाकर उगलूं ||
सादर -
हा हा ह आह आह आह
हटाएंव्यंगकार का खुब चले, कहते लोग दिमाग |
प्लाट ढूँढ़ ना पा रहा, चला गया या भाग |
चला गया या भाग, फैसला कर लो पहले |
घरे बोलती बंद, पड़े नहले पे दहले |
दहले मोर करेज, यहाँ तो मन की बक लूँ |
कंकड़ लेता निगल, कहाँ फिर जाकर उगलूं ??
सादर -
जो मन में हो आपके, लिखो उसी पर लेख।
जवाब देंहटाएंबिना छंद तुकबन्दियाँ, बन जाती आलेख।।
अच्छी जोर की चिकोटी भरी है पति नाम के प्राणी को ,भली करे राम ,पत्नी तो वैसे भी दीर्घ होती है पति ह्रस्व है .छोटा है वर्तनी में भी अक्ल में भी शक्ल में भी .
जवाब देंहटाएं