बुधवार, 6 सितंबर 2023

अवतरो धरा पर, हे नव शिशु !

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 अवतरो धरा पर, हे नव शिशु अँधियारे के कठिन प्रहरों में, तमस् की कारा में जहाँ युग तुम्हारी  प्रतीक्षा में लोचन बिछाये है.सद्भावों के पक्ष मे दैवी शक्तियाँ स्वयं उतर आती हैं ,संयोग नहीं यह सृष्टि का ऋत नियम है 

अंधकारा के ताले खुल जाएँगे .यही दैवी विधान है ,तम  का घेरा जितना सघन होगा प्रकाश उतना ही उज्ज्वल और प्रखर  होगा !

मानव मे निहित ईश्वरत्व की संभावना तुम्हीं में साकार होनी है. 

मेरा प्रणाम लो नव-शिशु,इस काली रात की अनीति और अतिचारमयी रात्र को  पार  कर मानवता के त्राण  की  संभवनाएँ  तुम्ही में निहित हैं!  

मेरे शत-शत नमन ,उन  नन्हे चरणो  में ,जिनकी पगतलियोँ चूमने कों धरित्री तरसती  है, भूमि की उर्वरा रज, उन  अंकनो को हृदय में धारण  करने को विकल हो रही है .वे सुकुमार पग  जो हर चरण में लिखते हैं  एक नई भूमिका ब्रज के वनों में, यमुना के कछारो में और भी आगे बढ़ते मथुरा ,कुरुजाँगल होते द्वारिका के ऐश्वर्यमय भवनों तक अपनी छाप लगा जाते है.

 अनुचित के निवारण के लिये ,जिसके आगे  कोई वर्जना नहीं चलती,कोई तर्क जम नहीं रह पाता ,

 पापी को बचाने के लिए  कोई बहाना जिसके आगे नहीं चलता, औचित्य तथा न्याय की रक्षा हेतु  स्वयं अपना वचन तोड़ने पर  उतारू हो जाए .जीवन का सारा रस जन-जन को  बांटकर, निराले रंगों से संसार को रंजित कर के भी जिसकी उज्ज्वल श्यामता जस की तस रही हो ,उस  निर्लिप्त  को महामानव कहें या देवता? मान-अपमान,,यश-अपयश की प्रचलित अवधारणाएँ जिसे तोलने को  अपर्याप्त है  ,वह जब स्वयं अपना ही अतिक्रमण करता है तो परिभाषाएँ   बदल जाती हैं.  भविष्य की अपार संभावनाएँ  जिसके कर्मसंदेश में निहित हों , त्रस्त मानवता के त्राण बन कर भूतल पर उतरों ,  


हमारा अभिनन्दन स्वीकार करो ,तुम्हारा शुभागमन धरा का त्राण-कारक हो  लिए जीवन की बद्ध मान्यताएं उदार हों ,बोध की सीमाएँ  विस्तार पाएँ ,तुम आओ इस धरा की मुक्ति बन कर हृदय का उल्लास बनकर सर्वात्म को आनन्दित करो!पधारो!

धरा की माटी को चेतना से अभिमंत्रित करने हे, शोभन शिशु, तुम्हारा शत-कोटि वन्दन !

 ,निष्पाप नवल देह धरे, संतप्त मनुजता  के त्राण कर्ता..इस मृण्मयी धरित्री पर  पग धारो!

हे, चिर-सुन्दर , 

अपने नवावतरण हेतु अपनी नन्हीं पगतलियों में,

हमारे  शत-शत  वन्दन-अभिनन्दन स्वीकार करो !