शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

बीत गई श्रीकृष्ण जन्माष्टमी -

*

 बीत गई श्रीकृष्ण जन्माष्टमी .पूरा हो गया व्रत!- भक्तों ने खाते-पीते नाचते-गाते,आधी रात तक जागरण कर लिया जन्म करा दिया, प्रसाद चढ़ा दिया खा-खिला दिया, पञ्चामृत पी लिया..और परम ,संतोष से बैठ गये!संपन्न  हो गई  जन्माष्टमी !

 व्रत कियाऔर पारण कर संतुष्ट् हो गये ? 

 श्रीकृष्ण .स्वयं जो  संदेश दे गये ,कितनों ने याद किया उसे ,कितनों ने  तदनुसार आचरण का विचार भी किया? कितनों ने उनका आदेश माना, शिरोधार्य करने का व्रत  लिया?

कैसा दिखावटी आचरण कि उनकी कही, पर ध्यान मत दो , बस शिकायतें किये जाओ! .चीख पुकार मचाते रहो!कितना खो चुके, और खोते चले जाओ !

बिना लड़े कुछ नहीं मिलता यहाँ ! 

धर्म के साथ कर्म भी जुड़ा है, लेकिन धन्य हैं हमारे धर्माचार्य कि समयानुकूल कर्म के लिए कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं समझते!. 

कितनी जन्माष्टमियाँ बीत गई यों ही खाते-पीते ,रोते-गाते . शिकायतें करतेस उन्हें टेरते -अवतार लो  अवतार लो ?  क्या करें अवतार लेकर? उनका कहा, किसने  माना?

 श्रीकृष्ण प्रेम का दम तो बहुत भरते हैं उनकी बात कितने सुनते है, सुन कर समझने- आत्मस्थ करने का यत्न कितने करते हैं और उस पर आचरण कितने करते हैं? युग-युग का सत्य इस कान सुना, उस कान निकाल दिया ,जानने समझने की कोशिश ही नहीं की . 

तो फिर आज जो स्थिति बनी है उसके लिये  उत्तरदायी कौन है?  

 एक बार फिर सुन लीजिये, कवि अटल बिहारी वाजपेयी के  ये शब्द.शायद बात स्पष्ट  हो जाए!

 ‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

आज,

जब कि राष्ट्र-जीवन की

समस्त निधियाँ,

दाँव पर लगी हैं,

और,

एक घनीभूत अंधेरा—

हमारे जीवन के

सारे आलोक को

निगल लेना चाहता है;


हमें ध्येय के लिए

जीने, जूझने और

आवश्यकता पड़ने पर—

मरने के संकल्प को दोहराना है।


आग्नेय परीक्षा की

इस घड़ी में—

आइए, अर्जुन की तरह

उद्घोष करें:

‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

*

- अटल बिहारी वाजपेयी 


गुरुवार, 22 अगस्त 2024

सुच्ची-रत्ता .

कमरे से बाहर निकली ही थी कि कान में आवाज़ आई- सुच्ची-रत्ता!   

 अरे,यह कैसा नाम?

 बहू फ़ोन पर किसी से बात कर रही थी.

 याद आ गया एक और सरनेम इसी प्रकार का सुना था -मेंहदीरत्ता!  मन का  समाधान कर लिया! फिर  अक्सर ही सुनाई देने लगा- सुच्ची-रत्ता  ,उत्तर मे एक नई टोन भी,   एक नारी स्वर. 

 फिर  मैने उससे पूछ ही लिया ,ये सुच्ची-रत्ता नाम है किसी का? 

 हाँ, ये  नई लड़की शामिल हुई है हमारे ग्रुप में. सुच्ची-रत्ता बोस!

 अच्छा तो ये सरनेम नहीं है नाम है- मैंने सोचा -और लड़की बंगाली है .पर बंगाली लोग तो चुन-चुन कर सुन्दर-सुन्दर नाम रखते हैं. आश्चर्य हुआ मुझे.

 कई बार अपने को समझाया छोड़ो, मुझे क्या? सब तरह के नाम होते हैं दुनिया में. जन्म दिया है माता-पिता ने पाला-पोसा है नाम रखने का अधिकार है उनका मैं कौन होती हूँ बीच मे दखल देनेवाली?

और अपने को फ़र्क भी क्या पड़ता है?

 पर मन है कि मानता नहीं- बार-बार कोई किनका अटक जाता है गले से नीचे नहीं उतरता.  जानती हूँ भारत से यहाँ आनेवाले लोगों के साथ यहाँ उन के नामों का भी अमरीकीकरण होने लगता है.कुछ बिरले ही नाम होंगे जो अपने असली रूप में बचे रहे हों .उच्चारण अवयवों की सीमित क्षमता तो एक कारण है ही पर हमारे लोग भी अपना ही नाम उसी टोन में बताने लगते हैं प्रणति अपना नाम कहती है प्रोनोती, हरीश का हैरिस बन जाता है ललिता तो लोलिता ही कही जाती हैस विद्या विडिया हो जाती है- गनीमत है वीडियो नहीं बन जाती ! शर्वाणी है देवी पार्वती का नाम  लेकिन यहाँ आकर बेटी, शरावणी बन गई है ,सबको यही  बताया भी जाता है मुझे तो श्रावणी का भ्रम हो जाता है.  

खैर वह तो एक अलग कहानी है 

पर  बात है सुच्ची-रत्ता की! 

एक दिन डिनर पर गये थे हमलोग. रेस्तरां में लोगों का आना-जाना लगा था हम ने सीट ली ही थी कि बहू बोल उठी ,अरे ,सुच्ची-रत्ता!.

मैने सिर घुमा कर देखा एक जोड़ा पति-पत्नी चले आ रहे थे

 लोग अधिक थे, बैठने की व्यवस्था धीमी थी. कुछ लोग उठें तो सीट खाली हो. 

 प्रणति ने कहा- हम तीन ही लोग हैं चौथी खाली है ,एक चेयर और डलवा लेंगे.  दोनों आ जाएँगे यहीं.

. प्यारी-सी लड़की है पति भी ठीक-ठाक.

 आ गये वे लोग. कुर्सी का भी इंतजाम हो गया. 

आपस में ये लोग हाय-हलो करते हैं, पर उसने  मुझे हाथ जोड़ कर प्रणाम किया. अच्छा लगा, मन से आशीर्वाद दिया. लड़की अभी भारत के तौर-तरीके भूली नहीं है. बातें चलती रहीं. लोग उससे सुच्ची-रत्ता सुच्ची-रत्ता कहते रहे, वह भी बोलती रही. 

अंततः मैंने पूछा ही लिया- मैं तुम्हें क्या  कह कर पुकारूँ?

आण्टी, आप भी नाम लीजिये न- सुच्चोरिता - बोलने की टोन वही बंगालियों वाली- ओ और आ की ध्वनियाँ मिली-जुली. 

  मुझे एकदम कुछ स्ट्राइक किया, कह उठी- सुचरिता - 

 वह खुश हो गई- अरे आण्टी, यही तो नाम है मेरा! पर ये सब अइसा नहीं बोलते, क्या करूँ? 

कुछ रुक कर बोली -यहाँ सबके नाम टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं! 

ठीक कह रही है सुचरिता! 

खुद मेरा नाम भी कोई ठीक से कहाँ बोलता है, किसी को क्या कहूँ?

कितना सुन्दर नाम और कैसा मरोड़ डाला. हे भगवान् !

सच्ची में यहाँ सबके नाम टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं!

 *



शनिवार, 17 अगस्त 2024

वर्णमाला का सच -

  वर्णमाला का सच -

अपनी देवनागरी लिपि के वर्ण बड़े मस्त जीव हैं. इनकी एक निराली दुनिया है, जिसमें रिश्तेदारियाँ, रीति-रिवाज़ मेल-जोल,प्रतियोगिता, लड़ाई-झगड़े. अतिक्रमण, दूसरे पर रौब जमाना, उसे चुप कर खुद हावी हो जाना,सब चलता हैं. इनके कुछ नये संबंधी भी बन गये हैं.जिनके बिना वर्णों का काम नहीं चलता.यों कहें कि इन नये लोगों द्वारा सुसेवित होकर ही ये वर्णलोग सार्थकता पाते हैं. इनके साथ जुड़ गए हैं मात्राएँ और विराम-चिह्न! सगे रिश्तेदारों की भूमिका निभाते हैं ये नये लोग- जब मात्राओं से विभूषित और विराम चिह्नों से सेवित हों तभी वर्ण मुखऱ हो पाते हैं.

 ये नवागत चुप्पे से हैं ,काम करने में विश्वास करते हैं, ढोल नहीं पीटते. परिणाम यह हुआ कि वर्णों में सुपीरियरटी कामप्लेक्स आ गया. उन्हें लगा उनके पास वाणी है -जब चाहे अपनी आवाज़ उठा सकते हैं. अब उन्हें कौन समझाए कि व्यर्थ में आवाज़ उठाने से कुछ नहीं होता जो बोला जाय वह  सार्थक,सुनियंत्रित-सुनियोजित हो तब बात बनती है.ये मात्राएँ और विराम चिह्न बोलें चाहे कुछ न, भाषा में इन तीनो गुणों का संचार करते हैं. वर्णो की वाणी पर अपना पूरा नियंत्रण रखते हैं.

यों कहने को लिपि की वर्णमाला में बावन अक्षर हैं ,पर केवल इनके होने से काम नहीं चलता इनका व्यावहारिक उपयोग आवश्यक हैं. अकेले वर्णों के बस का नहीं कि अभिव्यक्ति की पूरी भूमिका निभा लें.उन्हें सक्रिय होने के लिए सहायकों की आवश्कता होती है उनके काम में साथ खड़े रहने वाले ये मात्राएँ और विराम-चिह्न तन मन से परमानेन्ट सहायक रुप में विद्यमान हैं. पर वर्ण-परिवार में इनका नंबर तब आता है जब स्वयं वर्णाक्षर मुँह लटकाए हतबुद्ध से खड़े रह जाते हैं कि अब कैसे-क्या करें, तब यही लोग आगे आते हैं  और जड़ से खड़े वर्णों मे सक्रियता का संचार करते हैं. इनके सहारे बिना वर्ण लोग आगे बढ़ ही नहीं सकते. और भलमनसाहत देखिये इन प्राणियों की! पुकारते ही मात्रायें दौड़ कर साथ खड़ी हो जाती हैं, विराम-चिह्न बढ़ कर सबको अनुशासित कर देते हैं .इन लोगों ने अपने-अपने  स्थान  निश्चित कर रखे हैं दौड़ कर जम जाते हैं.तभी भाषा अर्थ प्रतिपादन मे समर्थ हो पाती हैं. बड़े ही सचेत-सावधान हैं ये भाषा के निष्ठावान अनुचर! 

किसी भी वर्ण को काम पर लगना होता है तो उसे तय्यार करने के लिए मात्रा की पुकार लगती है .बिलकुल इन्सानों के जैसा बिन पहने-ओढ़े कोई व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकलता वही वर्णों का हाल है. ये वर्ण लोग भी एक-दूसरे को साथ लिये बिना नहीं चलते..ये जो छोटावाला 'अ' है न ,बड़ा परोपकारी जीव है.हर वर्ण को अपना स्वर दे देता है.सबका जीवनदाता है अफ्ना स्वर न दे तो किसी वरण मे इतना दम नहीं कि मुँह से बाहरआ सके ,अंदर ही अंदर बन्द रह कर चुक जाय. वैसे ये सारे सह अस्तित्व में विश्वास करते हैं , आवश्यक होने पर  कभी भले ही इक्का-दुक्का  मिल जाएँ आपस में भले लड़-भिड़ लें लेकिन अकेलापन इन्हें काटने दौड़ता है.बोल कर देख लीजिए आपको कुछ करना-कहना है तो साथी अक्षरों को इकट्ठा किये बिना अपनी बात  नहीं कर सकते कुछ नहीं कर सकते..जैसे भूख लगी है तो कहेंगे 'खाना'. खाली खाना कहने से भी काम नहीं चलेगा, आगे स्पष्ट कहना पड़ेगा  लाओ. किसी वर्ण के लिए आवश्यक है कि सज्जित होकर आए. और ये भली लुगाइयाँ पुकार सुनते ही प्रकट हो जाती हैं,  वर्ण लोग झटपट अपनी पसन्द की चुनकर पहन-ओढ़ आगे  बढ़ आते  हैं.

माना जाता है भाषा वर्णों पर आधारित है ,लेकिन मात्राएं और विराम-चिह्नों की अनुपस्थिति में भाषा निरर्थक रह जाती है. इन लोगों की सहायता के बिना उच्चारण तो दूर की बात है. वर्ण अपना मुँह भी नहीं खोल पाते. सतत प्रयत्नशील रहते हैं कथन को अर्थपूर्ण बनाने के लिए   ये लोग भाषा के मूडानुसार चलते हैं.

मान लिया वर्णमाला है यह, हाँ वर्णौं की माला है जैसे पुष्पमाला,या मुक्ता माला! अब विचार कीजिए जिन उपकरणों वह गुम्फित की है है गई उनमें से कुछ निकाल दें तो माला बचेगी? वे माला का अवयव बन कर रहेंगी.

अन्याय देखिय़े , जैसे परिवार के फ़ोटो से परिचारक और सहायक  ग़ायब रहते हैं. वैसे ही वर्णमाला निरूपण में ये दोनों वर्ग किनारे कर दिये जाते हैं. माला के सारे उपकरण माला के अवयव है;  उन से ही पूर्णता है ,शोभा है.  पर क्या कहा जाय! 

 मति का फेर है, और क्या? 

- प्रतिभा सक्सेना. 

बुधवार, 6 सितंबर 2023

अवतरो धरा पर, हे नव शिशु !

 *

 अवतरो धरा पर, हे नव शिशु अँधियारे के कठिन प्रहरों में, तमस् की कारा में जहाँ युग तुम्हारी  प्रतीक्षा में लोचन बिछाये है.सद्भावों के पक्ष मे दैवी शक्तियाँ स्वयं उतर आती हैं ,संयोग नहीं यह सृष्टि का ऋत नियम है 

अंधकारा के ताले खुल जाएँगे .यही दैवी विधान है ,तम  का घेरा जितना सघन होगा प्रकाश उतना ही उज्ज्वल और प्रखर  होगा !

मानव मे निहित ईश्वरत्व की संभावना तुम्हीं में साकार होनी है. 

मेरा प्रणाम लो नव-शिशु,इस काली रात की अनीति और अतिचारमयी रात्र को  पार  कर मानवता के त्राण  की  संभवनाएँ  तुम्ही में निहित हैं!  

मेरे शत-शत नमन ,उन  नन्हे चरणो  में ,जिनकी पगतलियोँ चूमने कों धरित्री तरसती  है, भूमि की उर्वरा रज, उन  अंकनो को हृदय में धारण  करने को विकल हो रही है .वे सुकुमार पग  जो हर चरण में लिखते हैं  एक नई भूमिका ब्रज के वनों में, यमुना के कछारो में और भी आगे बढ़ते मथुरा ,कुरुजाँगल होते द्वारिका के ऐश्वर्यमय भवनों तक अपनी छाप लगा जाते है.

 अनुचित के निवारण के लिये ,जिसके आगे  कोई वर्जना नहीं चलती,कोई तर्क जम नहीं रह पाता ,

 पापी को बचाने के लिए  कोई बहाना जिसके आगे नहीं चलता, औचित्य तथा न्याय की रक्षा हेतु  स्वयं अपना वचन तोड़ने पर  उतारू हो जाए .जीवन का सारा रस जन-जन को  बांटकर, निराले रंगों से संसार को रंजित कर के भी जिसकी उज्ज्वल श्यामता जस की तस रही हो ,उस  निर्लिप्त  को महामानव कहें या देवता? मान-अपमान,,यश-अपयश की प्रचलित अवधारणाएँ जिसे तोलने को  अपर्याप्त है  ,वह जब स्वयं अपना ही अतिक्रमण करता है तो परिभाषाएँ   बदल जाती हैं.  भविष्य की अपार संभावनाएँ  जिसके कर्मसंदेश में निहित हों , त्रस्त मानवता के त्राण बन कर भूतल पर उतरों ,  


हमारा अभिनन्दन स्वीकार करो ,तुम्हारा शुभागमन धरा का त्राण-कारक हो  लिए जीवन की बद्ध मान्यताएं उदार हों ,बोध की सीमाएँ  विस्तार पाएँ ,तुम आओ इस धरा की मुक्ति बन कर हृदय का उल्लास बनकर सर्वात्म को आनन्दित करो!पधारो!

धरा की माटी को चेतना से अभिमंत्रित करने हे, शोभन शिशु, तुम्हारा शत-कोटि वन्दन !

 ,निष्पाप नवल देह धरे, संतप्त मनुजता  के त्राण कर्ता..इस मृण्मयी धरित्री पर  पग धारो!

हे, चिर-सुन्दर , 

अपने नवावतरण हेतु अपनी नन्हीं पगतलियों में,

हमारे  शत-शत  वन्दन-अभिनन्दन स्वीकार करो !

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

What did I learn about misinformation in 2021?

What did I learn about misinformation in 2021?

-  Arushi Saxena

The #EkMinute Project: Combatting WhatsApp misinformation in India and the wisdom of Audre Lorde

It was October 2020 and I was starting my second year of graduate school. I had to think of a thesis idea based on guidance provided to us by Harvard’s Masters in Design Engineering program. I landed on the idea of WhatsApp forwards in India due to a myriad of recent personal experiences and my discomfort with growing Hindu fundamentalism in India. WhatsApp had notoriously spurred a series of mob lynching in India over the past few years and encouraged harmful digital vigilantism. These issues were happening due to a combination of structural racism and bad digital behavior: literate individuals were frequently following victim to and propagating misleading information to one another.

Something had to be done, and I immediately knew what my end-state vision was:

My personal network in India eventually overcomes their socialized habits, cultural norms, and inter-generational tendencies to feel comfortable reproving their uncle or grandmother each time he/she forwarded a suspicious or racist message on WhatsApp.

Not so easy. But by breaking this complex system into a series of smaller steps, at least some progress was possible.

First, I needed to explore how and why people behave on WhatsApp, and test if they are amenable to change. The #Ek Minute Project (meaning “one minute” in Hindi) was born from this process. The goal was to make people more mindful of their own forwarding behavior on WhatsApp by sending them “counter-forwards” with social media best practices and food for thought. But it was also important to understand if well-meaning adults would engage with these digital literary concepts in the first place. Specifically, people who accidentally spread political and cultural misinformation without realizing its harm. This group was a very specific demographic, given that they don’t concoct or spread misinformation maliciously.

After an extensive literature review and conversing with cultural experts, activists, journalists and misinformation researchers around the world, I narrowed into the complex contagion theory. According to this theory, if you keep seeing the same thing again and again from different sources, you’ll start internalizing the content. Therefore, our WhatsApp “counter-forwards” needed to be bold and catchy (and mimic popular Indian themes). If they weren’t catchy, they wouldn’t be forwarded. And if they weren’t forwarded, it would be difficult to accomplish digital literacy at scale.

The Set-Up

I worked with my classmate, Akshay Marathe, a renowned Indian political communication strategist, on the operations and execution of EkMinute. We designed some of our own forwards, crowd-sourced others, and formally developed a handful of messages in partnership with Dhun Patel, Apurva Chavan, Vikram Sane, and Vaishnavi Patil from Therefore Design in Pune, India.

Underlying our designs were my two hypotheses:

Different tones work with different types of readers. For example: Outspoken, ideologically driven users of WhatsApp might not care to read neutral messages about fact-checking. They might, however, stop to read a funny message that makes light of misinformation.

2. Online behavior differs by age group and generation. Millenial and Gen Z participants might engage slightly differently with our campaign and its design assets. While some might be motivated and optimistic about their potential, others might be too jaded to engage. Therefore, the user research and survey questions I asked were different for each age group.

After launching an Instagram awareness campaign and conducting multiple rounds of user research, we finalized a collection of ~10 messages to pilot and forward on WhatsApp. These messages had a variety of tones and themes so that we could compare and contrast the efficacy of each.

We mobilized a group of volunteers in the US and India to forward these posters to their personal networks in India. While it was not possible to track the reach of each message due to WhatsApp encryption, we utilized proxy metrics such as website traffic on ekminuteproject.com, number of downloads, and more.

How did the campaign turn out?

It was a humbling and rewarding result. As we started our campaign, we received positive feedback from those who organically encountered our work as well as others we reached out to for help.

We also received constructive feedback that text-heavy posters were not the ideal medium to communicate. Short video clips or GIFs would be much better received. Moreover, we also encountered target audience members who pretended to care, but really didn’t care to change their behavior.

Interestingly, our survey results demonstrated that older adults actually enjoyed reading our serious concepts whereas younger individuals in the same survey believed that older adults would only enjoy funny messages. There were a few other generational misalignments that I would love to explore further later down the line.

Ultimately, the campaign was cut short due to the devastating COVID-19 second wave in India. Within a span of two weeks, WhatsApp, Instagram, and Twitter were over-flooded with requests for oxygen tanks and live updates from healthcare and social workers all over India. While COVID-related misinformation was definitely rampant on the platform, I felt odd injecting funny or playful message tones into the digital sphere. At the same, it was critical to remind people to look out for misinformation in these life versus death moments. We settled on forwarding only serious posters with very specific messaging:

In conclusion, this campaign taught me a lot of new things but also affirmed some suspicions.

To be widely read, messages need to be hyper-specific to the topic of the day/week

The medium matters and static visuals aren’t enough

People who are most affected by misinformation are hardest to reach

I would be remiss to highlight the entire irony underlying this campaign. We chose to rely on social media and its virality to counter the very virality that caused the harm we were addressing in the first place. And as Audre Lorde, the famous American womanist and civil rights activist explains, “The master’s tools will never dismantle the master’s house”.

So — as a designer and technology ethicist, it has been important for me to acknowledge this reality and this irony. My rationalization has been that social media and the digital space are not going away anytime soon. If we focus on promoting digital literacy, behavior change and responsible usage, at least some harm can be minimized going forward.

I’m hoping to continue working on this campaign by creating timely, relevant multimedia content that can be forwarded on WhatsApp India or shared via Instagram. While people’s attention spans are limited and choosy, I’m hoping we can meet our readers where they are at and cleverly inject digital literacy concepts into their world. If we’re successful, we might be able to influence democratic processes and save lives.

If you are an India-affiliated content creator, technology activist, academic, or just passionate about preventing the spread of misinformation, please reach out to me for collaboration ideas or feedback.

If you would like to forward our counter-forwards to your loved ones or anyone in your network, you can download them here. Learn more about our project at www.ekminuteproject.com.


 

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ

 विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान) -


■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l

दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त आधार पर है।

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी
2-रामायण                    वाल्मीकि
3-महाभारत                  वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य
5-महाभाष्य                  पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन
7-बुद्धचरित                  अश्वघोष
8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता        भास
11-कामसूत्र                  वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम्           कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  
14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास
15-मेघदूत                    कालिदास
16-रघुवंशम्                  कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास
18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता               बरामिहिर
23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर        सोमदेव
25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त
27-रावणवध।              भटिट
28-किरातार्जुनीयम्       भारवि
29-दशकुमारचरितम्     दंडी
30-हर्षचरित                वाणभट्ट
31-कादंबरी                वाणभट्ट
32-वासवदत्ता             सुबंधु
33-नागानंद                हर्षवधन
34-रत्नावली               हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव         भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय     जयानक
38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर
39-काव्यमीमांसा         राजशेखर
40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन         राजभोज
42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण
45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द            जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी           कल्हण
49-रासमाला               सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध          माघ
51-गौडवाहो                वाकपति
52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-

प्र.1-  वेद किसे कहते है ?
उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।                                                  
1-ऋग्वेद 
2-यजुर्वेद  
3-सामवेद
4-अथर्ववेद
प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।
        वेद              ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय
2 - यजुर्वेद      -     शतपथ
3 - सामवेद     -    तांड्य
4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर -  चार।
      वेद                     उपवेद
    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद
    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद
    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद
    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।
उत्तर -  छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
         वेद                ऋषि
1- ऋग्वेद         -      अग्नि
2 - यजुर्वेद       -       वायु
3 - सामवेद      -      आदित्य
4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-   चार ।
        ऋषि        विषय
1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान
2-  यजुर्वेद    -    कर्म
3-  सामवे     -    उपासना
4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।
1-  मंडल      -  10
2 - अष्टक     -   08
3 - सूक्त        -  1028
4 - अनुवाक  -   85 
5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।
1- अध्याय    -  40
2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।
1-  आरचिक   -  06
2 - अध्याय     -   06
3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।
1- कांड      -    20
2- सूक्त      -   731
3 - मंत्र       -   5977
          
प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर- 
1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-  
01-ईश ( ईशावास्य )  
02-केन  
03-कठ  
04-प्रश्न  
05-मुंडक  
06-मांडू  
07-ऐतरेय  
08-तैत्तिरीय 
09-छांदोग्य 
10-वृहदारण्यक 
11-श्वेताश्वतर ।

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर- 
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र

प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

पंच महायज्ञ
       1- ब्रह्मयज्ञ   
       2- देवयज्ञ
       3- पितृयज्ञ
       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
       5- अतिथियज्ञ
   
स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।
नरक  -  जहाँ दुःख है।.

भगवान शिव के  "35" रहस्य....

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को इनकी
 की जानकारी हो सके...


शुक्रवार, 9 जून 2023

क्या उत्तर देंगे?

*     

अपने समाज में अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करने का और उसे अभिव्यक्त करने वाले सांस्कृतिक चिह्नों को धारण करने का कल्चर है क्या आप लोगों में ?    

आपकी विवाहित महिलाओं ने माथे पर पल्लू तो छोड़िये, साड़ी पहनना तक छोड़ दिया...किसने रोका है उन्हें?

तिलक बिंदी तो आपकी पहचान हुआ करती थी न...कोरा मस्तक और सुने कपाल को तो आप अशुभ, अमंगल का और शोकाकुल होने का चिह्न मानते थे न...आपने घर से निकलने से पहले तिलक लगाना तो छोड़ा ही, आपकी महिलाओं ने भी आधुनिकता और फैशन के चक्कर में और फारवर्ड दिखने की होड़ में माथे पर बिंदी लगाना क्यों छोड़ दिया?

आप लोगो ने नामकरण, विवाह, सगाई जैसे संस्कारों को दिखावे की लज्जा विहीन फूहड़ रस्मों में और जन्म दिवस, वर्षगांठ जैसे अवसरों को बर्थ-डे और एनिवर्सरी फंक्शंस में बदल दिया तो क्या यह हमारी त्रुटि है?

हमारे यहां बच्चा जब चलना सीखता है तो बाप की उंगलियां पकड़ कर इबादत के लिए जाता है और जीवन भर इबादत को अपना फर्ज़ समझता है....

आप लोगों ने तो स्वयं ही मंदिरों की ओर देखना छोड़ दिया, जाते भी केवल तभी हो जब भगवान से कुछ मांगना हो अथवा किसी संकट से छुटकारा पाना हो...

अब यदि आपके बच्चे ये सब नहीं जानते कि मंदिर में क्यों जाना है, वहाँ जाकर क्या करना है और ईश्वर की उपासना उनका कर्तव्य है....तो क्या ये सब हमारा दोष है?

आप के बच्चे कॉन्वेंट से पढ़ने के बाद पोयम सुनाते थे तो आपका सर ऊंचा होता था !

होना तो यह चाहिये था कि वे बच्चे भगवद्गीता के चार श्लोक कंठस्थ कर सुनाते तो आपको गर्व, होता!  

इसके उलट जब आज वो नहीं सुना पाते तो ना तो आपके मन में इस बात की कोई ग्लानि है, ना ही इस बात पर आपको कोई खेद है!

हमारे घरों में किसी बाप का सिर तब शर्म से झुक जाता है जब उसका बच्चा रिश्तेदारों के सामने कोई दुआ नहीं सुना पाता!....

हमारे घरों में बच्चा बोलना सीखता है तो हम सिखाते हैं कि सलाम करना सीखो बड़ों से, आप लोगों ने प्रणाम और नमस्कार को हैलो हाय से बदल दिया...तो इसके दोषी क्या हम हैं?

हमारे मजहब का लड़का कॉन्वेंट से आकर भी उर्दू अरबी सीख लेता है और हमारी धार्मिक पुस्तक पढ़ने बैठ जाता है!...

और आपका बच्चा न रामायण पढ़ता है और ना ही गीता....उसे संस्कृत तो छोड़िये, शुद्ध हिंदी भी ठीक से नहीं आती क्या यह भी हमारी त्रुटि है ?

आपके पास तो सब कुछ था-संस्कृति, इतिहास, परंपराएं! आपने उन सब को तथाकथित आधुनिकता की अंधी दौड़ में त्याग दिया और हमने नहीं त्यागा बस इतना ही भेद है!....

आप लोग ही तो पीछा छुड़ाएं बैठे हैं अपनी जड़ों से! हम ने अपनी जड़ें ना तो कल छोड़ी थी और ना ही आज छोड़ने को राजी हैं!

आप लोगों को तो स्वयं ही तिलक, जनेऊ, शिखा आदि से और आपकी महिलाओं को भी माथे पर बिंदी, हाथ में चूड़ी और गले में मंगलसूत्र-इन सब से लज्जा आने लगी, इन्हें धारण करना अनावश्यक लगने लगा और गर्व के साथ खुलकर अपनी पहचान प्रदर्शित करने में संकोच होने लग गया!...

तथाकथित आधुनिकता के नाम पर आप लोगों ने स्वयं ही अपने रीति रिवाज, अपनी परंपराएं, अपने संस्कार, अपनी भाषा, अपना पहनावा-ये सब कुछ पिछड़ापन समझकर त्याग दिया!

आज इतने वर्षों बाद आप लोगों की नींद खुली है तो आप अपने ही समाज के दूसरे लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ने के लिये कहते फिर रहे हैं!

अपनी पहचान के संरक्षण हेतु जागृत रहने की भावना किसी भी सजीव समाज के लोगों के मन में स्वत:स्फूर्त होनी चाहिये, उसके लिये आपको अपने ही लोगों को कहना पड़ रहा है.... विचार कीजिये कि यह कितनी बड़ी विडंबना है!

यह भी विचार कीजिये कि अपनी संस्कृति के लुप्त हो जाने का भय आता कहां से है और असुरक्षा की भावना का वास्तविक कारण क्या है?

आपकी समस्या यह है कि आप अपने समाज को तो जागा हुआ देखना चाहते हैं किंतु ऐसा चाहते समय आप स्वयं आगे बढ़कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाला आचरण नहीं करते, जैसे बन गए हैं वैसे ही बने रहते हैं...

आप स्वयं अपनी जड़ों से जुड़े हुए हो, ऐसा दूसरों को आप में दिखता नहीं है,,

और इसीलिये आपके अपने समाज में तो छोड़िये, आपके परिवार में भी कोई आपकी सुनता नहीं,, ठीक इसी प्रकार आपके समाज में अन्य सब लोग भी ऐसा ही आपके जैसा डबल स्टैंडर्ड वाला हाइपोक्रिटिकल व्यवहार (शाब्दिक पाखंड) करते हैं!

इसीलिये आपके समाज में कोई भी किसी की नहीं सुनता!... क्या यह हमारी त्रुटि है?

दशकों से अपनी हिंदू पहचान को मिटा देने का कार्य आप स्वयं ही एक दूसरे से अधिक बढ़-चढ़ करते रहे,,

और आज भी ठीक वैसा ही कर रहे हैं ...

परंतु हम अपनी पहचान आज तक भी वैसे ही बनाए रखने में सफल रहे हैं, तो हमें देखकर आपको बुरा लगता है!

हमसे ईर्ष्या होती है हमसे घृणा करने लगते हैं आप अपनी संस्कृति और परम्पराओं को नहीं संभाल पाए तो अपनी लापरवाही और विफलता का गुस्सा हमारी जड़ों को काट कर क्यों निकालना चाहते हैं?

दूसरों को देखकर विचलित होने के स्थान पर आवश्यकता ये सीखने की है कि कैसे अपने संस्कारों में निष्ठा रखी जाती है, कैसे उन पर गर्व किया जाता है, कैसे तत्परता से उन्हें सहेज कर उनका संरक्षण किया जाता है!

अपनी पहचान को आप खुलकर प्रदर्शित कीजिये, इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है.... किंतु अपनी संस्कृति तो आपको बचानी नहीं है, उसे अपने हाथों स्वयं ही नष्ट करने पर तुले हुए हो!

अपने समाज में अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करने का और उसे अभिव्यक्त करने वाले सांस्कृतिक चिह्नों को धारण करने का कल्चर तो बनाइए पहले! 

(- जी हाँ, किसी ने कहा है यह, मैं तो केवल सामने रख रही हूँ.- प्रतिभा सक्सेना.)