शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

बीत गई श्रीकृष्ण जन्माष्टमी -

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 बीत गई श्रीकृष्ण जन्माष्टमी .पूरा हो गया व्रत!- भक्तों ने खाते-पीते नाचते-गाते,आधी रात तक जागरण कर लिया जन्म करा दिया, प्रसाद चढ़ा दिया खा-खिला दिया, पञ्चामृत पी लिया..और परम ,संतोष से बैठ गये!संपन्न  हो गई  जन्माष्टमी !

 व्रत कियाऔर पारण कर संतुष्ट् हो गये ? 

 श्रीकृष्ण .स्वयं जो  संदेश दे गये ,कितनों ने याद किया उसे ,कितनों ने  तदनुसार आचरण का विचार भी किया? कितनों ने उनका आदेश माना, शिरोधार्य करने का व्रत  लिया?

कैसा दिखावटी आचरण कि उनकी कही, पर ध्यान मत दो , बस शिकायतें किये जाओ! .चीख पुकार मचाते रहो!कितना खो चुके, और खोते चले जाओ !

बिना लड़े कुछ नहीं मिलता यहाँ ! 

धर्म के साथ कर्म भी जुड़ा है, लेकिन धन्य हैं हमारे धर्माचार्य कि समयानुकूल कर्म के लिए कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं समझते!. 

कितनी जन्माष्टमियाँ बीत गई यों ही खाते-पीते ,रोते-गाते . शिकायतें करतेस उन्हें टेरते -अवतार लो  अवतार लो ?  क्या करें अवतार लेकर? उनका कहा, किसने  माना?

 श्रीकृष्ण प्रेम का दम तो बहुत भरते हैं उनकी बात कितने सुनते है, सुन कर समझने- आत्मस्थ करने का यत्न कितने करते हैं और उस पर आचरण कितने करते हैं? युग-युग का सत्य इस कान सुना, उस कान निकाल दिया ,जानने समझने की कोशिश ही नहीं की . 

तो फिर आज जो स्थिति बनी है उसके लिये  उत्तरदायी कौन है?  

 एक बार फिर सुन लीजिये, कवि अटल बिहारी वाजपेयी के  ये शब्द.शायद बात स्पष्ट  हो जाए!

 ‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

आज,

जब कि राष्ट्र-जीवन की

समस्त निधियाँ,

दाँव पर लगी हैं,

और,

एक घनीभूत अंधेरा—

हमारे जीवन के

सारे आलोक को

निगल लेना चाहता है;


हमें ध्येय के लिए

जीने, जूझने और

आवश्यकता पड़ने पर—

मरने के संकल्प को दोहराना है।


आग्नेय परीक्षा की

इस घड़ी में—

आइए, अर्जुन की तरह

उद्घोष करें:

‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

*

- अटल बिहारी वाजपेयी 


3 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रही हैं आप, उत्सव मनाने तक ही कृष्णजन्माष्टमी को सीमित रखना ठीक नहीं है, कृष्ण की वाणी को आत्मसात् करना होगा

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  2. हम जनता किसी बात की इतनी गहराई में नहीं जाते।
    व्रत, उत्सव, त्योहार धीरे धीरे दिखावे की तरफ अग्रसर हैं।

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