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एक विशेष घटना जिसके फल स्वरूप सृष्टि में अव्यवस्था फैल गई थी
,कायस्थ लोग दीपावली की भाई दूज पर चित्रगुप्त जी की पूजा के क्रम में लेखनी और मसि पूजन के पश्चात् अगले दिन तक के लिये लेखन कार्य स्थगित कर ,कलम रख देते हैं.
इसके पीछे एक बड़ा कारण है .एक ऐसी महत्वपूर्ण धारियों को न्याय मिलना असंभव हो गया था.
इसके पीछे एक बड़ा कारण है .एक ऐसी महत्वपूर्ण धारियों को न्याय मिलना असंभव हो गया था.
हुआ यह था
जब श्रीराम लंका विजय कर अयोध्या लौट रहे थे, उनके प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे, भरत जी ने सोचा कि उनका राज्य उन्हें अर्पण कर अब यथाशीघ्र भार-मुक्त हो जाऊं. गुरु वशिष्ठ की सहमति से , वे राम जी के राज्याभिषेक की व्यवस्था में लग गए.भरत जी ने गुरु से उस अवसर पर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का निवेदन किया. प्रसन्न मन गुरु वशिष्ठ ,आमंत्रण भेजने का काम शिष्यों को सौंप अन्य कार्यों में व्यस्त हो गये.
राजतिलक के समय जब श्रीराम ने आगत देवी देवताओं में श्री चित्रगुप्त जी नहीं पधारे थे, श्री राम ने भरतजी से पूछा कि उनका आगमन क्यों नहीं हुआ.. खोज-बीन करने पर पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों द्वारा उन तक निमंत्रण पहुंचाया ही नहीं गया.
पल-पल की ख़बर रखनेवाले चित्रगुप्तजी सब-कुछ जान चुके थे उन्होंने इस भूल को अक्षम्य मानते हुए सभी प्राणियों का लेखा-जोखा बही सामने से खिसका दी और लेखनी परे रख दी .
जब सारे देवी-देवता राजतिलक से लौटे तो देखा बहुत अव्यवस्था मची हुई है. प्राणियों के कर्म का लेखा-जोखा हुआ ही नहीं.और यह निश्चित करना संभव नहीं कि किसकी कौन-सी गति हो. फलस्वरूप स्वर्ग-नरक के सारे काम रुक गये हैं.
सारा मामला श्री राम की समझ में आ गया. इस भारी चूक के परिमार्जन के लिए श्रीराम गुरु वशिष्ठ के साथ अयोध्या में श्री चित्रगुप्त जी के स्थान श्री धर्म-हरि मंदिर गये और उनकी स्तुति की.तत्पश्चात चूक के लिये क्षमा-याचना करते हुए उनसे सृष्टि-संचालन में सहयोग देने की प्रार्थना की.
श्री चित्रगुप्त जी ने राम का आग्रह स्वीकार कर लिया. उन्होंने प्रातःकाल विधिपूर्वक मसि-पात्र सहित लेखनी की पूजा कर उसे ग्रहण किया प्राणियों के कर्मों का विवरण सूची-बद्ध करने के लिए बही उठा ली और लेखन-कार्य पुनः आरम्भ कर दिया. सृष्टि का कार्य विधिवत् चलने लगा.
लेकिन इस बीच चौबीस घण्टे उनकी लेखनी निष्क्रिय रही थी. कायस्थ समाज ने इसका संज्ञान लिया और तभी से पूरी दुनिया में कायस्थ-जन दीपावली पर 24 घंटों के लिए क़लम रख देते है और अगले दिन क़लम- दावात के पूजन के बाद ही उसका प्रयोग करते हैं.
(अयोध्यापुरी में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित श्री चित्रगुप्त मन्दिर को 'श्री धर्म हरि मंदिर' कहा गया है. धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उन्हें तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होगा. भी यह उल्लेख अयोध्या माहात्म्य में मिलता है).
स्वामी विवेकानन्द ने अपनी जाति की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है:
“ मैं उन महापुरुषों का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण ''यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः'' का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं। यदि अपने पुराणों पर विश्वास हो तो, इन समाज सुधारकों को जान लेना चाहिए कि मेरी जाति ने पुराने जमाने में अन्य सेवाओं के अतिरिक्त कई शताब्दियों तक आधे भारत पर शासन किया था। यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता शेष क्या रहेगा? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, इतिहासवेत्ता, दार्शनिक, लेखक और धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चन्द्र बसु) से भारतवर्ष को विभूषित किया है। स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं। हम केवल बाबू बनने के लिये नहीं, अपितु हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिये पैदा हुए हैं। ”
—स्वामी विवेकानन्द.
बहुत सुन्दर कथानक।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आभार ,रवीन्द्र सिंह जी.
जवाब देंहटाएंरोचक और ज्ञानवर्धक पौराणिक कथा जिसके सूत्र वर्तमान तक खिंचे आए हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कथानक प्रतिभा दी।
जवाब देंहटाएंसादर।
आदरणीया प्रतिभा सक्सेना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी का आपने स्मरण कराया। मेरी सहपाठी और मित्र सुबोधिनी सिन्हा, वर्तमान में श्रीमती सुबोधिनी श्रीवास्तव से कभी स्कूली दिनों में यह कथा सुनी थी। ऐसी कथाएं हमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहना सिखाती हैं।
हार्दिक धन्यवाद इस कथा का पुनः स्मरण कराने हेतु 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुंदर जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी कहानी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर जानकारीपूर्ण आलेख, प्रभावशाली साहित्यिक लेखन नमन सह आदरणीया प्रतिभा दी।
जवाब देंहटाएंपौराणिक कथाओं की तह में कोई संदेश या घटना जरूर जुड़ी होती थी ।
जवाब देंहटाएंजानकारी युक्त सुंदर कथा ।
सादर।
हमें अपनी जड़ों से जोड़ती प्रेरक कथा 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंइस कथा के माध्यम से नई जानकारी मिली ।
जवाब देंहटाएंसंभवतः कलम-दवात की सही अर्थों में पूजा करने के कारण कायस्थ समाज अत्यधिक शिक्षित होते हैं ।
जवाब देंहटाएं