*
'हेलो ,हेलो,' क्यों करते हैं ?
टेलिफ़ोन के आविष्कारक एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल की मार्गरेट नाम धारिणी एक मित्र थीं जिनका पूरा नाम था मार्गरेट हेलो . पर बेल साहब उन्हें 'हेलो' कह कर पुकारते थे.
ग्राहम बेल ने फ़ोन का आविष्कार सफल होने पर पहला संवाद किया तो यही नाम उनके मुख से निकला. कहा यह भी जाता है कि बेल साहब ने जल-यात्रा में प्रयोग किये जाने वाला Ahoy शब्द बोला था लेकिन थामस एडिसन को वह 'हेलो' सुनाई दिया.
एडिसन महोदय ने सही सुन पाया ,या उनके कान ने कुछ गड़बड़ कर दिया कहा नहीं जा सकता . कारण कि छोटी उम्र से ही उन्हें बहरेपन की समस्या से जूझना पड़ा था (बचपन में स्कारलेट फ़ीवर और बार-बार के कान के संक्रमण का दुष्प्रभाव) . लेकिन ऐसी स्थिति में वे कुछ और भी तो सुन सकते थे . उन्हें बेल साहब द्वारा पुकारा जानेवाला उन महिला का 'हेलो ' नाम ही क्यों सुनाई दिया ? - आश्चर्य !).
एक संभावना यह भी कि बेल ने Ahoy कहने का विचार किया हो पर अवचेतन में 'हलो' होने के कारण मुख से वही उच्चरित हो गया , और बेल साहब को ,स्वयं ही भान न हो कि क्या बोल गये !
हम लोग तो बस ,अनुमान ही कर सकते हैं. अस्तु ,जिसे, जैसा ठीक लगे !
तब से यही 'हेलो' फ़ोन-संपर्क का अवधान बन गया.यह घटना 1876-77 की है. टेलिफ़ोन के प्रचलन के साथ बेल साहब का यह संबोध भी यथावत् प्रयोग में आ गया . 'हेलो' शब्दोच्चार द्वारा स्वागत किये जाने के कारण 1889 तक वहाँ की केन्द्रीय फ़ोन ऑपरेटर्स 'hello-girls' कहलाने लगीं थीं.
भाषा-गत उपयोग देखें तो 1833 में Hello शब्द का प्रयोग अमेरिका की एक पुस्तक ( The Sketches and Eccentricities of Col. David Crockett, of West Tennessee) में मिलता है जो उसी वर्ष 'लंदन लिटरेरी गज़ेट' में पुनर्मुद्रित हुई थी .लेकिन इस शब्द के व्यावहारिक उपयोग के और उदाहरण नहीं मिलते. कुछ प्रयोग कहीं दबे-छिपे पड़े हों तो कुछ कहा नहीं जा सकता .इसलिए इस 'हेलो' को फ़ोनवाली 'हेलो' से जोड़ कर देखना तर्क-संगत नहीं लगता.
बेल साहब की 'हेलो' का व्यापक प्रसार हुआ और इसके अनेक संस्करण हो गये- किसी से मिलने पर ,आश्चर्य व्यक्त करने के लिए ,किसी को सचेत करने के लिए ,इत्यादि.
बाद में 1960 तक यह शब्द लेखन में भी भरपूर प्रयोग में आ गया और अनेक प्रयोगों में चल गया. भिन्न देशों के परिवेशानुसार 'हेलो' के कई रूप सामने आए -
वियतनाम,तुर्की,तमिल -A lo!,
थाई (hān lǒ),
स्वीडिश - hallå !,
स्पेनिश- hola !,
फ़्रेन्च, रोमानियन,पुर्तगीज़,पर्शियन फिनिश-अरेबिक- alo,
एस्परेंतो,जर्मन,पुर्तगीज़,पर्शियन,फ़िनिस, अरेबिक,कन्नड़ - haloo?
ख़्मेर,वियनामी - allô
जब चार कोस पर बानी बदल जाती है, तब देशों के अंतराल में ध्वनियों का इतना सा हेर-फेर महत्वहीन है. भाव वही, अर्थ वही, प्रयोग वही और आत्मा भी वही - बेल साहब की 'हेलो'वाली !
इस प्रयोग से पहले 40 वर्षों से भी अधिक अनजान-सी रही 'हेलो' को बेल साहब की मित्रता ने स्वर देकर सार्वदेशिक व्याप्ति प्रदान की - अपने आविष्कार के लिए ग्राहम बेल महोदय को कोई भले ही न याद करे ,उनकी 'हेलो' सबकी ज़ुबान पर चढ़ी रहेगी !
अपनी मित्र के लिए कोई और, कर सका है इतना ?
*
'हेलो ,हेलो,' क्यों करते हैं ?
टेलिफ़ोन के आविष्कारक एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल की मार्गरेट नाम धारिणी एक मित्र थीं जिनका पूरा नाम था मार्गरेट हेलो . पर बेल साहब उन्हें 'हेलो' कह कर पुकारते थे.
ग्राहम बेल ने फ़ोन का आविष्कार सफल होने पर पहला संवाद किया तो यही नाम उनके मुख से निकला. कहा यह भी जाता है कि बेल साहब ने जल-यात्रा में प्रयोग किये जाने वाला Ahoy शब्द बोला था लेकिन थामस एडिसन को वह 'हेलो' सुनाई दिया.
एडिसन महोदय ने सही सुन पाया ,या उनके कान ने कुछ गड़बड़ कर दिया कहा नहीं जा सकता . कारण कि छोटी उम्र से ही उन्हें बहरेपन की समस्या से जूझना पड़ा था (बचपन में स्कारलेट फ़ीवर और बार-बार के कान के संक्रमण का दुष्प्रभाव) . लेकिन ऐसी स्थिति में वे कुछ और भी तो सुन सकते थे . उन्हें बेल साहब द्वारा पुकारा जानेवाला उन महिला का 'हेलो ' नाम ही क्यों सुनाई दिया ? - आश्चर्य !).
एक संभावना यह भी कि बेल ने Ahoy कहने का विचार किया हो पर अवचेतन में 'हलो' होने के कारण मुख से वही उच्चरित हो गया , और बेल साहब को ,स्वयं ही भान न हो कि क्या बोल गये !
हम लोग तो बस ,अनुमान ही कर सकते हैं. अस्तु ,जिसे, जैसा ठीक लगे !
तब से यही 'हेलो' फ़ोन-संपर्क का अवधान बन गया.यह घटना 1876-77 की है. टेलिफ़ोन के प्रचलन के साथ बेल साहब का यह संबोध भी यथावत् प्रयोग में आ गया . 'हेलो' शब्दोच्चार द्वारा स्वागत किये जाने के कारण 1889 तक वहाँ की केन्द्रीय फ़ोन ऑपरेटर्स 'hello-girls' कहलाने लगीं थीं.
भाषा-गत उपयोग देखें तो 1833 में Hello शब्द का प्रयोग अमेरिका की एक पुस्तक ( The Sketches and Eccentricities of Col. David Crockett, of West Tennessee) में मिलता है जो उसी वर्ष 'लंदन लिटरेरी गज़ेट' में पुनर्मुद्रित हुई थी .लेकिन इस शब्द के व्यावहारिक उपयोग के और उदाहरण नहीं मिलते. कुछ प्रयोग कहीं दबे-छिपे पड़े हों तो कुछ कहा नहीं जा सकता .इसलिए इस 'हेलो' को फ़ोनवाली 'हेलो' से जोड़ कर देखना तर्क-संगत नहीं लगता.
बेल साहब की 'हेलो' का व्यापक प्रसार हुआ और इसके अनेक संस्करण हो गये- किसी से मिलने पर ,आश्चर्य व्यक्त करने के लिए ,किसी को सचेत करने के लिए ,इत्यादि.
बाद में 1960 तक यह शब्द लेखन में भी भरपूर प्रयोग में आ गया और अनेक प्रयोगों में चल गया. भिन्न देशों के परिवेशानुसार 'हेलो' के कई रूप सामने आए -
वियतनाम,तुर्की,तमिल -A lo!,
थाई (hān lǒ),
स्वीडिश - hallå !,
स्पेनिश- hola !,
फ़्रेन्च, रोमानियन,पुर्तगीज़,पर्शियन फिनिश-अरेबिक- alo,
एस्परेंतो,जर्मन,पुर्तगीज़,पर्शियन,फ़िनिस, अरेबिक,कन्नड़ - haloo?
ख़्मेर,वियनामी - allô
जब चार कोस पर बानी बदल जाती है, तब देशों के अंतराल में ध्वनियों का इतना सा हेर-फेर महत्वहीन है. भाव वही, अर्थ वही, प्रयोग वही और आत्मा भी वही - बेल साहब की 'हेलो'वाली !
इस प्रयोग से पहले 40 वर्षों से भी अधिक अनजान-सी रही 'हेलो' को बेल साहब की मित्रता ने स्वर देकर सार्वदेशिक व्याप्ति प्रदान की - अपने आविष्कार के लिए ग्राहम बेल महोदय को कोई भले ही न याद करे ,उनकी 'हेलो' सबकी ज़ुबान पर चढ़ी रहेगी !
अपनी मित्र के लिए कोई और, कर सका है इतना ?
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रोचक!!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-12-2014) को "धर्म के रक्षको! मानवता के रक्षक बनो" (चर्चा-1826) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अरे वाह , यह तो नई और बढ़िया जानकारी है .
जवाब देंहटाएंरोचक शोध ! आभार आपका इस मनोरंजक तथ्य को सबके साथ साझा करने के लिये !
जवाब देंहटाएंहलो प्रतिभाजी.. इतनी मजेदार जानकारी और इतने रोचक ढंग से...बधाई..
जवाब देंहटाएंbahut rochak va nayi jaankari...aabhar iss post hetu..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंरोचक और मनोरंजक .. पर तथ्यपूर्ण जानकारी ...
जवाब देंहटाएंये जानकारी तो मुझे थी किन्तु उसकी रोचक प्रस्तुति ने कथा में जान डाल दी है । साधुवाद, प्रतिभा जी । एक और बात -" संस्कृत भारती"
जवाब देंहटाएंसंस्था के सदस्य फ़ोन आने पर " हरि ओम " कहते हैं - जो श्रुतिमधुर
लगता है और सार्थक भी ।