सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

कबीर की वापसी - अमेरिका में - भाग 1.

*
स्वर्ग मे रहते-रहते शताब्दियाँ बीत गईं । कबीरदास ठहरे फक्कड़ ,घुमक्कड़ ,खरी-खरी सुनानेवाले ! स्वर्ग के शान्त जीवन से बोर होने लगे । कभी झाड़-फटकार का मौका ही नहीं मिलता ! उन्हें धरती की याद आने लगी ।यहाँ के हाल जानने की प्रबल आकांक्षा मन मे जाग उठी । लोग किस तरह रहते हैं ,कैसे गुरु होते हैं अब , कैसे चेले ?धर्म का जो सीधा सहज मार्ग वे दिखा गए थे ,लोगों को रास आ रहा है या नहीं ?कैसा जीवन जीता है मनुष्य ? अध्यात्म की राह पर कितना आगे बढ़ा है ?उस समय तो उनके बहुत से अनुयायी हो गये थे ,पंथ का काम कैसा चला रहे है ?हिन्दू मुसलमानो मे सद्भाव के अंकुर तो उन्होने पनपा दिये थे ,अब तो सौहार्द की फ़सल पर फ़सल उग रही होगी !
उन्होने परम पिता से कहा ,' वहाँ दुनिया का पता नहीं क्या हाल होगा ! हम यहाँ खाली बैठे है ।लगा आयें एक चक्कर ?'
भगवान जानते थे स्वर्ग के गीत-संगीत , नाच-कूद मे इनकी जरा रुचि नहीं ,रूखा-सूखा खाकर ठण्डे पानी से तृप्ति पानेवाले कबीर स्वादों के आनन्द से भी निरे उदासीन हैं। उनने सोचा नीचे जाकर इस व्यक्ति को फिर अशान्ति झेलनी पड़ेगी ,हतोत्साहित करने के लिये कहा ,'वत्स , तब से गंगा मे अपार जल-राशि बह चुकी है । वहाँ कुछ भी जाना - पहचाना नहीं मिलेगा तुम्हें ।'
पर कबीर तो कबीर ठहरे ! किसी की बात लगने दें तब तो ! बोले ,' नहीं परम पिता , मैने सुना है कबीर-पंथ और कबीरपंथी वहाँ मौजूद हैं ।लोगों ने बहुत तरक्की कर ली है । मै उस दुनिया को देखना चाहता हूं ।'
झक्की आदमी है ,मानेगा नहीं ! सदा के विनोदी ,विष्णु जी की ओर देखा।उन्होंने आँख झपक कर इशारा कर दिया ।
जाने दो इसे फिर ।रोता हुआ लौट आयेगा -सोचा विधाता ने ।
' ठीक है ।जैसी तुम्हारी इच्छा !पर जाने के पहले थोड़ी तैयारी कर लो । थोड़ी अंग्रेज़ी भाषा सीख लो , आजकल वहाँ उसी का बोल-बाला है ।सब सुविधायें हैं ,घूमना आसान है ,देस-विदेश घूमोगे बहुत काम आयेगी ।'
पुस्तक बहा देने मे विश्वास करनेवाले ठहरे कबीर , मसि कागद तो कभी छुआ नहीं अब कलम क्यों हाथ मे पकड़ें ?
बोले ,' हमे अंग्रेजी से क्या काम ? कौन दुनियादारी करने जा रहे हैं ?राम का नाम तो अभी भी चलता है वहाँ ,हमेश-हमेशा चलता रहेगा ।जिसने आतम को जान लिया राम को पहचान लिया उसे कुछ जानना बाकी नहीं रहा -ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय ।'
विष्णु ने ब्रह्मा को साभिप्राय देखा। दोनो मुस्कराए ।
' ठीक है ! तुम्हारे जाने का प्रबन्ध हो जाएगा ।'
तर्क-कुशल कबीर ने अंग्रेजी का पीछा छोड़ दिया ।अच्छा किया ।नहीं तो उसकी भी छीछालेदर कर डालते ! जब के एन ओ डबल् एल ई डी जी ई स्पेलिंग कर नालेज पढ़ते तो डंडा लेकर खड़े हो जाते । कहते जब के और डी की आवाज़ नहीं निकलती तो इन्हे निकाल फेंको ।जहाँ टी और पी साइलेन्ट देखते तो उन्हे वर्णमाला से ही बाहर धकियाने पर उतारू हो जाते ।अक्खड़ आदमी ठहरे ,कुछ सुनने समझने को तैयार ही नहीं !
जनम के फक्कड़ ! कुछ गठरी-मुठरी तो बाँधनी नहीं थी ।यान चालक को आते देखा तो उठाली लुकाठी हाथ मे और तैयार हो गय़े ।
' कहाँ उतरोगे ,संत जी ?'
'कहीं उतर जागेंगे ,इतनी बड़ी दुनियाँ है ।कबिरा खड़ा बजार मे माँगे सबकी खैर ,ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर !और भी , ना घर तेरा ,ना घर मेरा चिड़िया रैन बसेरा है ।'
साथ आया दूत मुस्करा दिया ।
ऊपर से नीचे उतरते-उतरते आठ दस- घन्टे लग गए ,जब तक यान धरती छूता वह घूम गई थी ,नीचे का हिस्सा सामने आ गया था । थोड़ी ऊपर थे तभी से यहाँ के दृष्य दिखाई देने लगे । ऊँची-ऊँची इमारतें दौड़ती हुई तरह-तरह की गाड़ियाँ ,कुछ यान आसमान मे उड़ते हुए पहले ही देख चुके थे वे ।
' हमे का फिर किसी स्वरग मे लै आए हो ?'
'वही धरती है सन्त जी ,जो आप छोड़ गए थे । पहचान मे नही आ रही ना ?'
' सच मे बहोत तरक्की कर ली है लोगन ने ! '
'अब तो एक जगह बैठ कर ही दुनियाभर की बातें सुन सकते हो , जिसे चाहो देख भी सकते हो ।'
सब हठयोग का चमत्कार होगा । कबीर ने सोचा- साधना से क्या-कुछ नहीं हो सकता !
' ये सब कैसे ढाँचे बने हैं लाइन की लाइन खम्बे गाड़ रक्खे हैं ,काहे ?'
' का,का समुझावैं ?अब नीचे जा रहे हो सब आपै देख लेना ।'
'अच्छा ये तो बताय देओ ये कौन देस है जहाँ उतार रहे हो ?'
'यू अमरीका है जिसे पहले के जमाने मे पाताल कहा जात रहा ।'
अनजानी जगह सारी नई-नई बातें देख कबीर को कुछ घबराहट होने लगी ,लेकिन कहा कुछ नहीं , शान जो घट जाती !
सोचते रहे - कौन जगह है यह ? पाताल लोक या नाग लोक ? दुनियाँ मे थे तो घूम-फिरकर और सत्त्संग कर कर के बहुत बातें जान गए थे पर तत्व-तत्व की ग्रहण कर बाकी भूसे की तरह उड़ा दीं । उन्हे मलाल होने लगा भूसा भी कभी-कभार बड़े काम आता है, थोड़ा ऱख लेना था ।
चलो ,होयगी सो देखी जायगी !
उतार दिया गया उन्हे केलिफ़ोर्लिया के सानफ्रान्सिसको नगर मे ।चकराए से खड़े हो गये ।
'तो अब हम चलें ? ''दूत ने पूछा ।
'कौन किसका साथ देता है ?'
यह आदमी हमेशा दार्शनिक बना रहता है ,उसने ने सोचा और झट् से विमान उड़ा ले गया ।
सानफ़्रानसिसको की चमक-दमक भरी गगनचुम्बी इमारतों को आँखे फाड़े देखते कबीर खड़े थे ।
समुद्र की ओर से आते शीतल हवा के झकोरे । कबीर को झुरझुरी उठने लगी ।साफ़ -सुथरी चौड़ी सड़कें शानदार कारें दौड़ रही हैं ,विचित्र वेष-भूषा मे लोग ! सब अपने-अपने मे व्यस्त !यहाँ भी-अप्सराएँ हैं क्या ? सुनहरे-रुपहले मुक्त केश ,एकदम गोरा रंग बदन-दिखाऊ कपड़े पहने स्वतंत्रता से विचरण कर रही हैं ।उनने आँखें फेर लीं ,स्वर्ग मे भी अप्सराओं से कतराते फिरते थे ।वे मुस्कराती हुई पास आतीं तो 'बहना -बहना ' बोल कर इधऱ -उधऱ टल थे ।
अचानक उन्होने देखा एक ओर के सँकरे रास्तेपर जिस पर गाड़ियों का आवागमन नहीं है ,बनियान घुटन्ना पहने एक आदमी भागा जा रहा है । कबीर चौकन्ने हो गये - जरूर कोई चोर-उचक्का है । यहाँ कोई ध्यान ही नहीं दे रहा अजीब लोग हैं ! नहीं ,सामने-सामने देख कर चुप रह जायँ यह हमसे लहीं होगा ! क्षणभर मे उन्होने तय कर लिया और भागे उसके पीछे ! वह आगे भागता चला जा रहा था ,कबीर दौड़ लगा रहे थे उसे पकड़ने के लिए -झपट कर पकड़ ही लिया !उसके दोनो हाथ पकड़े खड़े हैं कबीर! लोग निकलते चले जा रहे हैं ,किसी को कोई मतलब नहीं और उचक्का जाने किस भाषा मे कुछ कहे जा रहा है।
'अरे कोई है ' कबीर चिल्लाए । और किसी ने तो न उनकी भाषा समझी न पुकार का प्रत्युत्तर !एक आदमी , जो कुछ समय पहले ही फ़िज़ी से आया था सामने आ गया ।
'का हुइ गवा ?'
'ई चोर है ,जरूर कुछ चुराए भागा जा रहा है ' कबीर कस कर हाथ पकड़े हैं ।उसने उस घुटन्नेवाले से कुछ गिटर-पिटर की ,वह भी तमतमा रहाथा।
'अरे छोड़िये उसे , वह जागिंग कर रहा है ।'
ई का होवत है ?'
'मैड मैन ---पुलिस 'आदि जाने क्या कहता वह फिर भागता चला गया । "
बात समझकर बड़ी हैरत हुई उन्हें ! पागल कह गया है जाने दो पहले भी इस दुनिया के लोगन ने पागल समझा था ।
'भले तुम मिल गए ,नहीं जाने का होता ! भइया तोहार नाम का है ?'
'राम भजन ! '
'का खूब मिलाया है राम ने !' दोनो मे बातचीत होने लगी । चलो एक ठिकाना तो मिला !
' ई सामने कोई राजा का महल है ?'
'नाहीं ऊ तो रामडा इन है । इन मतलब रहने की जगह , सराय ।"
मगन होगए कबीर राम का नाम सुनकर ।तब तो हियईं टिक जाएंगे , एकाध फक्कड़ और मिल गए तो खूब जमेगी ! वे रामडा इन मे जा घुसे - राम के नाम पर बनी है १ कितनी भक्ति है ,रामड़े को अभै तक पकड़े हैं लोग ! प्रसन्न होगया कबीर का मन ! इतने सुन्दर सुहाने घास के चौक ,फूलों की बहार सब राम की माया है १
लान मे बैठ गए जाकर राम-नाम जपने लगे ! वो उधर एक युवा स्त्री साथ मे एक पुरुष क्या कर रहे हैं ? हाय राम ,आँखे फटी की फटी रह गईं ।खूब ज़ोर से खाँसा-खखारा ,वे लोग अपनी लीला मे लीन रहे ।कबीर मुँह फेर कर बैठ गए ,पर चैन नहीं पड़ रहा था .।रामडे की सराय ,यही नाम तो बताया था राम भजन ने ,मे आते-झाते लोग दिखाई पड़ रहे थे -सरे आम लिपटते झिपटते किसी को शरम नहीं कोई रोक-टोक नहीं ।इससे अच्छा है अंदर चलें - राम की सराय मे संतों का जमावड़ा होता ही होगा ,थोड़ा सत्संग हो जाय !अंदर के दृष्य - शराब पीने और पिलानेवालो की भरमार ! वे आगे बढ़ते चले गए भोजन -मांस मच्छी झींगे केकड़े और जाले क्या-क्या ! अजीब महक !गाय और सुअर की शकलें बनी हैं-दोनो का मांस राँधते हैं ।और का देखना बाकी है? न हिन्दू ,हिन्दू रहा , न मुसलमान ,मुसलमान १
राम का नाम धरके कैसे पाप - करम कर रहे हैं लोग !
भागते रहे कबीर यहाँ से वहाँ .! सागर किनारे की रंग-रलियाँ देखीं ,बाज़ारों मे बिकता नंगापन । राम भजन का घर भी देख चुके -मेहरारू के कपड़े ?वे तो मुँह फेर कर बैठे रहे ।खाने की भली चलाई पानी तक नहीं पिया गया ।उसी से सुना यहाँ तलाक देकर औरतें भी बार-बार नए-नए मरदों से शादी कर लेती हैं ! कान पर हाथ धर लिए उन्होने तो । अब नहीं देखा जाता !पर जायँ तो जायँ कहाँ ?
सुना था लोग सुखी हैं
सचमुच- सुखिया सब संसार है खाये अरु सोवे ,दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवे !
सागर किनारे एक चट्टान पर बिसूरते बैठे हैं । कौन जाने परमात्मा को कब दया आएगी !
(

3 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक पूरी पोस्ट नहीं पढ़ी थी...सोचती रही थी..के आखिर कबीर दास जी अमेरिका पहुंचेंगे कैसे और क्यूँ भला..?? मगर किस खूबसूरती से आपने उन्हें अमेरिका पहुँचाया...

    और यहाँ -
    ''तो अब हम चलें ? ''दूत ने पूछा ।
    'कौन किसका साथ देता है ?'

    कबीर का एक धुंधला सा चेहरा (थोडा सा फनी भी)..आँखों के आगे आ गया...होंठों पर मुस्कान तैर गयी.....:)

    ''यह आदमी हमेशा दार्शनिक बना रहता है ,उसने ने सोचा और झट् से विमान उड़ा ले गया ।''
    ..ही ही ही..यहाँ एक दूत का चेहरा कैसा हुआ होगा..ये सोच सोच हंस हंस के मैं थक गयी....(जाने क्यूँ तसव्वुर में बार बार यमदूत ही उभरा..मैंने कोशिश की कि कोई देवदूत आये..मगर न..यमदूत dominant था..सींग वाला मुकुट पहने...:) )

    ''वो उधर एक युवा स्त्री साथ मे एक पुरुष क्या कर रहे हैं ? हाय राम ,आँखे फटी की फटी रह गईं ।खूब ज़ोर से खाँसा-खखारा ,''.....

    ओह! यहाँ तो मैं इस बारेमें सोचना भूल ही गयी थी...कि कबीर तो अमेरिका में हैं...:D...
    किसी भी चीज़ को पढ़ने के पहले अटकलें लगाना मेरा स्वभाव ही है......इसलिए यहाँ भी वही करती रही...even mujhe lagta raha ki Raambhajan bhagwanji hi bane honge..kabeer ki help karne aaye honge...:)

    ''सागर किनारे एक चट्टान पर बिसूरते बैठे हैं । कौन जाने परमात्मा को कब दया आएगी !''

    शिखा दी का एक ब्लॉग है....''Spandan''...एक बार कभी वहां ''puppy face'' का जिक्र पढ़ा था....यहाँ वही चेहरा वही शक्ल याद आई एकदम टन्न से.....:)

    बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट....
    ..पढ़ने के पहले बहुत बार दूसरी रचनाएँ देखते हुए ये शीर्षक आँखों के आगे आता रहा था..और Pratibha ji मैं इसे नज़रंदाज़ करती रही थी...कि पता नहीं..मेरी तबियत का नहीं होगा इसमें कुछ..छोड़ो..कुछ और पढ़ती हूँ....:)
    वाकई.....मैं सही bhi थी......मगर ताज्जुब है..मुझे ये पसंद आया....वास्तव में प्रतिभा जी....मैंने yahi सोचा था कि इस पोस्ट में बहुत धीर गंभीर बातें होंगी....या होनी चाहिए..कबीर जी धरती पर आये......उन्हें जो निराशा हुई होगी..दुःख हुआ होगा..आपने वो सब उनके ह्रदय में बैठकर लिखा होगा....मुझे भावुक संस्मरण या कहानियाँ ज़्यादा पसंद आतीं हैं आपकी naa isliye.....मगर आपने तो एकदम विपरीत aur santulit ही लिखा....:)...कहीं भी मन को बुरा नहीं लगा कुछ.....कबीर के इस तरह kee व्यथा के लिए खुद को तैयार करके बैठी थी...जरूरत नहीं पड़ी...आपने सब कुछ एक साथ लिख दिया......:) व्यथा भी कह दी गयी..कबीरदास जी दुखी हो हो कर वापस जाने की आरज़ू लिए बैठ भी गए सागर किनारे..और दुनिया का नवीन परिचय भी उन्हें प्राप्त हो गया......:)

    बधाई....और ऐसी पोस्ट के लिए आभार जिसे पढके दूसरे मुस्कुरा लेते हैं हंस लेते हैं..:)

    शुभ raatri !

    जवाब देंहटाएं
  2. aaj is lekh ko padh kar sach me kabeer k is dohe ki gahrayi samajh aayi...
    sachmuch sukhiya sab sansar hai...khave aru sove, dukhiya das kabeer hai, jage aru rove.

    :)

    ye lekh shayad hi mere hriday - patal se vismrit ho paye.

    kash aapne kabeer ko ek bar bharat ki dharti par bhi utara hota...par aap bhi to yaha thodi shayad swarthi ban gayi...kyuki apko bhi to fir bharat bhraman k liye aana padta.

    ha.ha.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह! प्रतिभा जी.कबीर को आपने स्वर्ग से अमेरिका में
    और फिर रामडा इन में क्या क्या अनुभव करवा दिया.

    अब कबीर क्या कहें

    रहना नहीं देश बिराना है
    माया महा ठगनी हम जानी

    संगीता जी की हलचल में खूब हलचल मचा दी
    है आपके कबीर जी ने.

    मेरे ब्लॉग पर भी आ जाईयेगा जी ,प्रतिभा जी.
    कबीर जी को साथ लेकर.

    जवाब देंहटाएं