इधर क्लोनिंग के विषय में बहुत कुछ सुनने में आ रहा है .वनस्पतियाँ तो थीं ही अब ,जीव-जन्तुओं पर भी प्रयोग हो रहे हैं और सफलता भी मिल रही है. क्लोनिंग की बात से मन में कुछ उत्सुकता और कुछ शंकायें उत्पन्न होने लगीं .
एक कोशिका से संपूर्ण का निर्माण? शरीर या भौतिक स्वरूप निर्मित हो सकता है लेकिन उसके भीतर जो प्रवृत्तियाँ ,मानसिकता और आत्म तत्व है -उसका व्यक्तित्व और उसकी अपनी अस्मिता - वह भी उस निर्मित शरीर में अपने आप आ जायेंगे ? चेतना के विभिन्न स्तरों में मानव सबसे उच्च स्तर पर है,बुद्धि का विकास और चैतन्य के गहन स्तरों तक (कोशों के हिसाब से देखें तो मानव अन्नमय और प्राणमय कोष से आगे बढ कर मनोमय,विज्ञानमय तक पहुँच रहा है और आनन्दमय कोष भी उसके लिये अछूता नहीं है जब कि पशु जगत तक की सृष्टि निम्न स्तरों तक सीमित है . खनिज ,वनस्पति और पशु इस सीढ़ी के क्रमशः निचले पायदानो पर हैं . जब तक चेतना धुँधली पड़ी है शरीर का यांत्रिक संचालन संभव है ,ऐसे तो मुर्दों को भी संचालित कर ज़ोम्बी बना कर उनसे काम लिया जाता है पर वह उनकी अपनी चेतना नहीं है.
पौराणिक कथाओं में रक्तबीज का प्रकरण आया है -रक्त की एक बूँद से संपूर्ण काया विकसित हो जाती है. वह स्वाभाविक प्राणी नहीं है(उसे क्लोन कहना अनुचित नहीं होगा).किसी विशेष उद्देश्य के लिये उसे विकसित किया गया है ,वह उद्देश्य पूरा होने के बाद उसका कोई भविष्य नहीं .रक्तबीजों में से कोई बच गया हो तो वह मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों से संचालित होगा या नहीं ,वह प्रजनन करने में समर्थ है या नहीं , क्या अपनी अस्मिता का भान उसे है, आत्मबोध से संपन्न है,एवं आत्म-विकास का उत्प्रेरण उसमें होता है या नहीं ,ये सारे ,और भी अनेक प्रश्न अनुत्तरित रह गये हैं.
नई सृष्टि प्रक्रिया अपनाने से पहले उत्तरों को खोज लेना -कम से कम मुझे- उचित लगता है।नई सृष्टि रचने से पहले उसकी भावी व्यवस्था पर विचार करना लेना रचयिता का दायित्व बनता है,विशेष रूप से जब बाकी दुनिया उससे प्रभावित होती हो.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसमय बाजार हो चुका है। मोल भाव प्रथमिकताएं। भावशून्य ज्यादा मूल्यवान है। आपकी चिन्ता लजमी है पर समय बिक रहा है।
जवाब देंहटाएंक्लोनिंग का उपयोग पौधों और जीव जन्तुओं की लुप्तप्रायः प्रजातियों तक ही रहे तो उचित है, नैतिक रूप से मानव के लिए इसका उपयोग किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता, इलाज के लिए यदि स्टेम सेल का प्रयोग कर नए अंग का निर्माण किया जाये तो उससे अवश्य लाभ हो सकता है
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार (१६-११-२०२०) को 'शुभ हो दीप पर्व उमंगों के सपने बने रहें भ्रम में ही सही'(चर्चा अंक- ३८८७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
"नई सृष्टि प्रक्रिया अपनाने से पहले उत्तरों को खोज लेना -कम से कम मुझे- उचित लगता है।"
जवाब देंहटाएंआपका कथन सत्य है..किसी भी अनुसंधान की सफलता के लिए अनुसंधान की जांच-परख हर पहलू से होनी चाहिए ।
विचारणीय लेख ....
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
कक्षा 9वीं में पेड़-पौधों के लिए क्लोनिंग शब्द का प्रयोग पढा़ था ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट
विज्ञान विकास के साथ विनाश भी करता है ।विचार करना ज़रूरी है ।
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