गुरुवार, 22 अगस्त 2024

सुच्ची-रत्ता .

कमरे से बाहर निकली ही थी कि कान में आवाज़ आई- सुच्ची-रत्ता!   

 अरे,यह कैसा नाम?

 बहू फ़ोन पर किसी से बात कर रही थी.

 याद आ गया एक और सरनेम इसी प्रकार का सुना था -मेंहदीरत्ता!  मन का  समाधान कर लिया! फिर  अक्सर ही सुनाई देने लगा- सुच्ची-रत्ता  ,उत्तर मे एक नई टोन भी,   एक नारी स्वर. 

 फिर  मैने उससे पूछ ही लिया ,ये सुच्ची-रत्ता नाम है किसी का? 

 हाँ, ये  नई लड़की शामिल हुई है हमारे ग्रुप में. सुच्ची-रत्ता बोस!

 अच्छा तो ये सरनेम नहीं है नाम है- मैंने सोचा -और लड़की बंगाली है .पर बंगाली लोग तो चुन-चुन कर सुन्दर-सुन्दर नाम रखते हैं. आश्चर्य हुआ मुझे.

 कई बार अपने को समझाया छोड़ो, मुझे क्या? सब तरह के नाम होते हैं दुनिया में. जन्म दिया है माता-पिता ने पाला-पोसा है नाम रखने का अधिकार है उनका मैं कौन होती हूँ बीच मे दखल देनेवाली?

और अपने को फ़र्क भी क्या पड़ता है?

 पर मन है कि मानता नहीं- बार-बार कोई किनका अटक जाता है गले से नीचे नहीं उतरता.  जानती हूँ भारत से यहाँ आनेवाले लोगों के साथ यहाँ उन के नामों का भी अमरीकीकरण होने लगता है.कुछ बिरले ही नाम होंगे जो अपने असली रूप में बचे रहे हों .उच्चारण अवयवों की सीमित क्षमता तो एक कारण है ही पर हमारे लोग भी अपना ही नाम उसी टोन में बताने लगते हैं प्रणति अपना नाम कहती है प्रोनोती, हरीश का हैरिस बन जाता है ललिता तो लोलिता ही कही जाती हैस विद्या विडिया हो जाती है- गनीमत है वीडियो नहीं बन जाती ! शर्वाणी है देवी पार्वती का नाम  लेकिन यहाँ आकर बेटी, शरावणी बन गई है ,सबको यही  बताया भी जाता है मुझे तो श्रावणी का भ्रम हो जाता है.  

खैर वह तो एक अलग कहानी है 

पर  बात है सुच्ची-रत्ता की! 

एक दिन डिनर पर गये थे हमलोग. रेस्तरां में लोगों का आना-जाना लगा था हम ने सीट ली ही थी कि बहू बोल उठी ,अरे ,सुच्ची-रत्ता!.

मैने सिर घुमा कर देखा एक जोड़ा पति-पत्नी चले आ रहे थे

 लोग अधिक थे, बैठने की व्यवस्था धीमी थी. कुछ लोग उठें तो सीट खाली हो. 

 प्रणति ने कहा- हम तीन ही लोग हैं चौथी खाली है ,एक चेयर और डलवा लेंगे.  दोनों आ जाएँगे यहीं.

. प्यारी-सी लड़की है पति भी ठीक-ठाक.

 आ गये वे लोग. कुर्सी का भी इंतजाम हो गया. 

आपस में ये लोग हाय-हलो करते हैं, पर उसने  मुझे हाथ जोड़ कर प्रणाम किया. अच्छा लगा, मन से आशीर्वाद दिया. लड़की अभी भारत के तौर-तरीके भूली नहीं है. बातें चलती रहीं. लोग उससे सुच्ची-रत्ता सुच्ची-रत्ता कहते रहे, वह भी बोलती रही. 

अंततः मैंने पूछा ही लिया- मैं तुम्हें क्या  कह कर पुकारूँ?

आण्टी, आप भी नाम लीजिये न- सुच्चोरिता - बोलने की टोन वही बंगालियों वाली- ओ और आ की ध्वनियाँ मिली-जुली. 

  मुझे एकदम कुछ स्ट्राइक किया, कह उठी- सुचरिता - 

 वह खुश हो गई- अरे आण्टी, यही तो नाम है मेरा! पर ये सब अइसा नहीं बोलते, क्या करूँ? 

कुछ रुक कर बोली -यहाँ सबके नाम टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं! 

ठीक कह रही है सुचरिता! 

खुद मेरा नाम भी कोई ठीक से कहाँ बोलता है, किसी को क्या कहूँ?

कितना सुन्दर नाम और कैसा मरोड़ डाला. हे भगवान् !

सच्ची में यहाँ सबके नाम टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं!

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