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'पापा, खाना खाने आइये.' बच्चे ने आवाज़ लगाई .
'नहाय रहे हैंगे' उत्तर देता वयोवृद्ध नारी स्वर .
मैं वहीं खड़ी थी ,सुन रही थी बस.
व्याकरण के पाठ में हमने पढ़ा था - क्रिया के तीन रूप होते हैं - 1 .जो हो चुका है - भूत काल, 2.जो घटित हो रहा है- वर्तमान काल और 3 .जो आगे(भविष्यमें) होगा वह भविष्य काल , मोहन आया ,मोहन आता है ,मोहन आयेगा -भूतकाल था,वर्तमान है और भविष्य (हो) गा.
फिर ये 'नहाय रहे' का 'हैंगे' किस खाते में जायेगा ?
कालों का यह रूप अक्सर सुनाई दे जाता है -कल पड़ोस की भाभी जी कह गईं -मच्छर बहुत हो गये हैंगे .
'हैगा' के चक्कर में पड़ी सोचती रही इसे वर्तमान माने या भविष्य ?
इसमें दोनों हैं-वर्तमान काल में मच्छर हैं आगे भी रहते रहेंगे - इस 'है' वाले 'गा' को कौन से टेन्स में डालें?
आजकल तो ज्ञान-विज्ञान बड़ी तीव्र गति से बढ़ रहे हैं.यह कोई नया विकास होगा.
फिर अपनी सासू-माँ की याद आई वे भी कभी-कभी ऐसे ही बोलती थीं . मुझसे बहुत बड़ी जिठानी अक्सर ही 'हैगा' लगा कर अपनी नफ़ासत दिखाती थीं .
तब मेरा ध्यान क्यों नहीं गया ?
लेकिन जाता कैसे? ससुराल की तो बहुत बातें मेरे लिये नई थीं ,क्या-क्या नोट करती और बाद में रही ही कितना!
तो यह आज से नहीं पीढ़ियों से चल रहा है .पता नहीं अब तक किसी वैय्याकरण या भाषाविद् ने इस पर कुछ कहा-सुना क्यों नहीं?
काल-क्रम में एक नया ट्रेंड आस-पास सब जगह फैल चुका है .
मंदिर में एक महिला से सुना,'हम तो रोज भगवान से मनाती हैंगी .....'
वे क्या मनाती हैं इसका ढोल नहीं पीटना मुझे, बस उनके 'हैंगी' पर विचार करना है.
मनाती हैं और मनाएँगी आश्वस्त कर रही हैं - चलो यह भी ठीक .
पर जब मुन्ना खाना खा रहा हैगा या पड़ोसी बीमार हैगा तो आखिर भविष्य तक खाता ही चला जायेगा ,या पड़ोसी बीमार ही पड़ा रहेगा - इसी चक्कर में पड़ी रही .
भला बताओ 'झूला पड़ गया हैगा'
-पड़ गया है ,तो बात खतम् ,भूतकाल हो गया काम , फिर 'गा' से क्या मतलब - उसके टूटने की संभावना है ?
मतलब होगा - झूला टूटेगा ,और पड़ेगा.
फिर तो साफ़ बता देना चाहिये .क्या फ़ायदा कोई झूलते-झूलते गिर पड़े .
लोग सोचते क्यों नहीं!
खड़ी बोली में सभ्यता से बोलने में कहा जाता है 'आइयेगा' ,
लोग औपचारिता में कहते हैं 'तशरीफ़ लाइयेगा' (यहाँ भविष्यमें आने के लिये कहा है) .
हमारे घर एक सज्जन आते हैं .एक दिन कुछ दिखाने को लाये थे . बोले, 'ज़रा देखियेगा...'
बात मुझसे नहीं इन(पति) से हो रही थी .
मै तो बस सुन रही थी.समझने का यत्न कर रही थी - अभी देखने को कह रहे हैं कि आगे कभी...
ये 'गा' वाली बातें अक्सर मेरी समझ से बाहर रह जाती हैं .
कोई भावी वैय्याकरण जब भाषा पर विचार करेगा तो व्यवहार में चल गये इस रूप को किस खाते में डालेगा?
- जानने की प्रतीक्षा रहेगी.
'पापा, खाना खाने आइये.' बच्चे ने आवाज़ लगाई .
'नहाय रहे हैंगे' उत्तर देता वयोवृद्ध नारी स्वर .
मैं वहीं खड़ी थी ,सुन रही थी बस.
व्याकरण के पाठ में हमने पढ़ा था - क्रिया के तीन रूप होते हैं - 1 .जो हो चुका है - भूत काल, 2.जो घटित हो रहा है- वर्तमान काल और 3 .जो आगे(भविष्यमें) होगा वह भविष्य काल , मोहन आया ,मोहन आता है ,मोहन आयेगा -भूतकाल था,वर्तमान है और भविष्य (हो) गा.
फिर ये 'नहाय रहे' का 'हैंगे' किस खाते में जायेगा ?
कालों का यह रूप अक्सर सुनाई दे जाता है -कल पड़ोस की भाभी जी कह गईं -मच्छर बहुत हो गये हैंगे .
'हैगा' के चक्कर में पड़ी सोचती रही इसे वर्तमान माने या भविष्य ?
इसमें दोनों हैं-वर्तमान काल में मच्छर हैं आगे भी रहते रहेंगे - इस 'है' वाले 'गा' को कौन से टेन्स में डालें?
आजकल तो ज्ञान-विज्ञान बड़ी तीव्र गति से बढ़ रहे हैं.यह कोई नया विकास होगा.
फिर अपनी सासू-माँ की याद आई वे भी कभी-कभी ऐसे ही बोलती थीं . मुझसे बहुत बड़ी जिठानी अक्सर ही 'हैगा' लगा कर अपनी नफ़ासत दिखाती थीं .
तब मेरा ध्यान क्यों नहीं गया ?
लेकिन जाता कैसे? ससुराल की तो बहुत बातें मेरे लिये नई थीं ,क्या-क्या नोट करती और बाद में रही ही कितना!
तो यह आज से नहीं पीढ़ियों से चल रहा है .पता नहीं अब तक किसी वैय्याकरण या भाषाविद् ने इस पर कुछ कहा-सुना क्यों नहीं?
काल-क्रम में एक नया ट्रेंड आस-पास सब जगह फैल चुका है .
मंदिर में एक महिला से सुना,'हम तो रोज भगवान से मनाती हैंगी .....'
वे क्या मनाती हैं इसका ढोल नहीं पीटना मुझे, बस उनके 'हैंगी' पर विचार करना है.
मनाती हैं और मनाएँगी आश्वस्त कर रही हैं - चलो यह भी ठीक .
पर जब मुन्ना खाना खा रहा हैगा या पड़ोसी बीमार हैगा तो आखिर भविष्य तक खाता ही चला जायेगा ,या पड़ोसी बीमार ही पड़ा रहेगा - इसी चक्कर में पड़ी रही .
भला बताओ 'झूला पड़ गया हैगा'
-पड़ गया है ,तो बात खतम् ,भूतकाल हो गया काम , फिर 'गा' से क्या मतलब - उसके टूटने की संभावना है ?
मतलब होगा - झूला टूटेगा ,और पड़ेगा.
फिर तो साफ़ बता देना चाहिये .क्या फ़ायदा कोई झूलते-झूलते गिर पड़े .
लोग सोचते क्यों नहीं!
खड़ी बोली में सभ्यता से बोलने में कहा जाता है 'आइयेगा' ,
लोग औपचारिता में कहते हैं 'तशरीफ़ लाइयेगा' (यहाँ भविष्यमें आने के लिये कहा है) .
हमारे घर एक सज्जन आते हैं .एक दिन कुछ दिखाने को लाये थे . बोले, 'ज़रा देखियेगा...'
बात मुझसे नहीं इन(पति) से हो रही थी .
मै तो बस सुन रही थी.समझने का यत्न कर रही थी - अभी देखने को कह रहे हैं कि आगे कभी...
ये 'गा' वाली बातें अक्सर मेरी समझ से बाहर रह जाती हैं .
कोई भावी वैय्याकरण जब भाषा पर विचार करेगा तो व्यवहार में चल गये इस रूप को किस खाते में डालेगा?
- जानने की प्रतीक्षा रहेगी.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-12-2018) को "परमपिता का दूत" (चर्चा अंक-3196) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार आ. शास्त्रीजी.
हटाएं:) सही पकड़ी हैं। हमे भी जानना है।
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट
जवाब देंहटाएंनया व्याकरण लिखने की ज़रूरत हो रही हैगी । :)
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