शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

और मैं चुप !

  *
'नानी ,काँ पे हो...?'
'कौन है ?'अनायास मेरे मुँह से निकला,
महरी बोली,'आपकी नतनी ,और कौन ?'
वैसे मैं जानती हूँ कौन आवाज़ लगा रहा है.
और कौन हो सकता है इतना बेधड़क !
पहले चिल्ला कर पूछती है ,पता लगते ही दौड़ कर चली आती है.नानी के हर काम में दखल देना जैसे उसका जन्म-सिद्ध अधिकार हो. 
सोच रही थी मशीन पर बैठ कर उसकी फ़्राक की सिलाई पूरी कर दूँ .
अभी सिर पर सवार हो जायेगी - मेरे और मशीन के बीच में घुस कर खुद चलाना चाहेगी.नीचे के कपड़े को खुद कंट्रोल करना चाहती है .
कहती है ,'हमको भी चिलना.'
मैं रुक जाती हूँ नन्हीं सी अँगुली सुई के नीचे आ गई तो वह तो चिल्ला-चिल्ला कर रोना शुरू कर देगी और पछताऊंगी मैं.
 नाती भी कौन कम है !
 महरी अपनी रोटी एक किनारे रख देती है .वह आता है और रोटी उठा कर भागता है .मुँह लगा कर खा भी लेता है .महरी भागती है उसके पीछे ,देखो ये हमारी रोटी उठा  कर भागे जा रहे हैं ...और झपट कर रोटी ले लेती है .
.पर करूँ क्या मुझे भी तो इनके बिना चैन नहीं पड़ता .
कभी -कभी लगने लगता है मैं उसकी नहीं वह मेरी नानी है.
कहती है लड़कियों आईं हैं ,मैंने कहा लड़कियाँ कहो बेटा , फिर सहज रूप से कहा-हाँ लड़कियों को अंदर बुला लो 
मेरे कहने से क्या होता  सही-ग़लत का निर्णय वह अपनी बुद्धि से करती है 
  उसने सिर टेढ़ा कर ,मेरी ओर देखा ,मन में सोचा होगा खुद लड़कियों कह रही हैं और मुझे मना कर रही हैं
फिर बोली ,'लड़कियों बाहर खेलने बुला रही हैं .'
और मैं चुप !
*

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 16 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... पांच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    सादर
    ज्ञान द्रष्टा

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  2. बढ़िया नानी माँ ...आज के इन नन्हें नटखटों के आगे तो स्वतः ही बोलती बन्द होजाती है . आप देखिये कि मेरी बोलती कैसे बन्द हुई है यहाँ -- http://yehmerajahaan.blogspot.in/2011/11/blog-post_12.html

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  3. शरद पूर्णिमा की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-10-2016) के चर्चा मंच "शरदपूर्णिमा" {चर्चा अंक- 2497 पर भी होगी!

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  4. वाह ! नन्ही नतिनी से हार मानने में ही भलाई है..

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "पहचान तो थी - पहचाना नहीं: सन्डे की ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. मम्मी! देख लीजिए साहित्यकार के व्याकरण सुधारने वाले घर में ही मौजूद हैं. अब इनसे कैसे निपटेंगी आप! वैसे मैं भी बच्चे के साथ हूँ... क्योंकि गुजराती में संज्ञा के साथ 'ओ' लगाकर बहुवचन बनाया जाता है. जैसे वाहन का बहुवचन 'वाहनों', बालक का बालको, दवा का दवाओ!!

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  7. बच्चों की शैतानियाँ देखकर , उनके तर्कों को सुनकर अक्सर हँसी आती है , मज़ा भी आता है लेकिन उत्तर में मौन साध लेने में ही अपना सुख होता है । उनसे क्या टकराना ?

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  8. बच्चों की सभी शरारते अच्छी लगती है। सुंदर प्रस्तुती!

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  9. बहुत ही सटीक ....... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। Nice article ... Thanks for sharing this !! :):)

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