*
'नानी ,काँ पे हो...?'
'कौन है ?'अनायास मेरे मुँह से निकला,
महरी बोली,'आपकी नतनी ,और कौन ?'
वैसे मैं जानती हूँ कौन आवाज़ लगा रहा है.
और कौन हो सकता है इतना बेधड़क !
पहले चिल्ला कर पूछती है ,पता लगते ही दौड़ कर चली आती है.नानी के हर काम में दखल देना जैसे उसका जन्म-सिद्ध अधिकार हो.
सोच रही थी मशीन पर बैठ कर उसकी फ़्राक की सिलाई पूरी कर दूँ .
अभी सिर पर सवार हो जायेगी - मेरे और मशीन के बीच में घुस कर खुद चलाना चाहेगी.नीचे के कपड़े को खुद कंट्रोल करना चाहती है .
कहती है ,'हमको भी चिलना.'
मैं रुक जाती हूँ नन्हीं सी अँगुली सुई के नीचे आ गई तो वह तो चिल्ला-चिल्ला कर रोना शुरू कर देगी और पछताऊंगी मैं.
नाती भी कौन कम है !
महरी अपनी रोटी एक किनारे रख देती है .वह आता है और रोटी उठा कर भागता है .मुँह लगा कर खा भी लेता है .महरी भागती है उसके पीछे ,देखो ये हमारी रोटी उठा कर भागे जा रहे हैं ...और झपट कर रोटी ले लेती है .
.पर करूँ क्या मुझे भी तो इनके बिना चैन नहीं पड़ता .
कभी -कभी लगने लगता है मैं उसकी नहीं वह मेरी नानी है.
कहती है लड़कियों आईं हैं ,मैंने कहा लड़कियाँ कहो बेटा , फिर सहज रूप से कहा-हाँ लड़कियों को अंदर बुला लो
मेरे कहने से क्या होता सही-ग़लत का निर्णय वह अपनी बुद्धि से करती है
उसने सिर टेढ़ा कर ,मेरी ओर देखा ,मन में सोचा होगा खुद लड़कियों कह रही हैं और मुझे मना कर रही हैं
फिर बोली ,'लड़कियों बाहर खेलने बुला रही हैं .'
और मैं चुप !
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'नानी ,काँ पे हो...?'
'कौन है ?'अनायास मेरे मुँह से निकला,
महरी बोली,'आपकी नतनी ,और कौन ?'
वैसे मैं जानती हूँ कौन आवाज़ लगा रहा है.
और कौन हो सकता है इतना बेधड़क !
पहले चिल्ला कर पूछती है ,पता लगते ही दौड़ कर चली आती है.नानी के हर काम में दखल देना जैसे उसका जन्म-सिद्ध अधिकार हो.
सोच रही थी मशीन पर बैठ कर उसकी फ़्राक की सिलाई पूरी कर दूँ .
अभी सिर पर सवार हो जायेगी - मेरे और मशीन के बीच में घुस कर खुद चलाना चाहेगी.नीचे के कपड़े को खुद कंट्रोल करना चाहती है .
कहती है ,'हमको भी चिलना.'
मैं रुक जाती हूँ नन्हीं सी अँगुली सुई के नीचे आ गई तो वह तो चिल्ला-चिल्ला कर रोना शुरू कर देगी और पछताऊंगी मैं.
नाती भी कौन कम है !
महरी अपनी रोटी एक किनारे रख देती है .वह आता है और रोटी उठा कर भागता है .मुँह लगा कर खा भी लेता है .महरी भागती है उसके पीछे ,देखो ये हमारी रोटी उठा कर भागे जा रहे हैं ...और झपट कर रोटी ले लेती है .
.पर करूँ क्या मुझे भी तो इनके बिना चैन नहीं पड़ता .
कभी -कभी लगने लगता है मैं उसकी नहीं वह मेरी नानी है.
कहती है लड़कियों आईं हैं ,मैंने कहा लड़कियाँ कहो बेटा , फिर सहज रूप से कहा-हाँ लड़कियों को अंदर बुला लो
मेरे कहने से क्या होता सही-ग़लत का निर्णय वह अपनी बुद्धि से करती है
उसने सिर टेढ़ा कर ,मेरी ओर देखा ,मन में सोचा होगा खुद लड़कियों कह रही हैं और मुझे मना कर रही हैं
फिर बोली ,'लड़कियों बाहर खेलने बुला रही हैं .'
और मैं चुप !
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