tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post8143840735110510622..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: राग-विराग - 11.प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-9476043717873837752021-05-27T11:46:02.172-07:002021-05-27T11:46:02.172-07:00तुलसीदास जी के जीवनकी की बहुत ही हृदयस्पर्शी कथा.....तुलसीदास जी के जीवनकी की बहुत ही हृदयस्पर्शी कथा...लाजवाब लेखन<br />अद्भुत।Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-13422361271726886202021-05-19T18:43:33.555-07:002021-05-19T18:43:33.555-07:00जीवंत शब्द चित्र। प्रणाम । जीवंत शब्द चित्र। प्रणाम । राजेंद्र गुप्ता Rajendra Guptahttps://www.blogger.com/profile/01811091966460872948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-83795162812138765872021-05-08T10:34:34.146-07:002021-05-08T10:34:34.146-07:00धन्यवाद सलिल,कोशिश की है त्रुटियाँ ठीक करने की.
अप...धन्यवाद सलिल,कोशिश की है त्रुटियाँ ठीक करने की.<br />अपनी चूकें दिखाई कहाँ देती हैं जो दिमाग़ में है वही दिखाई देने लगता है.<br />फिर भी सचेत हुई हूँ,जितना हो सकी.<br />इस ओर इंगित करनेवाले का विशेष महत्व है मेरे लिये.प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-18383456315652155982021-05-08T08:11:31.531-07:002021-05-08T08:11:31.531-07:00पूज्य माँ!
आज की कड़ी कुछ लम्बी है... इस विस्तार के...पूज्य माँ!<br />आज की कड़ी कुछ लम्बी है... इस विस्तार के कारण रुकरुक कर एक एक घटना को अपने अंदर समाहित करते हुए पढ़ना पड़ा। <br />यह कड़ी पूरी तरह एक चलचित्र की पटकथा के समान है। पिछली घटना से घटनाक्रम का आगे बढ़ना और फिर कथानक अपनी केंद्रीय कथा से भटक न जाए इसलिये एक स्वप्न अर्थात ड्रीम-सिक्वेंस के माध्यम से पुन: मनस्विनी रत्ना की चर्चा और फिर अंत में पहली कड़ी की महत्वपूर्ण घटना की पुनरावृत्ति, किंतु उसके साथ ही कथा का अंतिम स्वगत सम्वाद - जिसने वह अशुभ अपावन.....मर्यादा भंग का दोषी हूँ मैं... पुनरावृत्ति को रेखांकित करता है! लेखन का यह कौशल कथाकार की लेखन कला का अद्भुत नमूना है।<br />अकबर कालीन इतिहास और जनमानस की भाषा में तुलसी का रचना संसार और यही नहीं संस्कृत के ज्ञान के साथ ही लोकभाषा में रचनाधर्मिता निभाने का स्पष्टीकरण भी इतने सहज ढंग से दिया गया है कि किसी भी पाठक के लिये सुग्राह्य है। <br />यहाँ कान को हाथ लगाते हुये मैं अपनी बात भी कहना चाहूँगा कि जब मैंने ब्लॉग लिखना आरम्भ किया था तब ठेठ बिहारी बोली में लिखना आरम्भ किया, जबकि लोगों ने मुझसे सामान्य हिंदी में लिखने का अग्रह किया.. फिर भी मैं तुलसी की तरह अडिग रहा और इसी बोली ने मुझे मेरी पहचान दिलाई।<br />तुलसी की मनोदशा का वर्णन जहाँ अपनी रतन का समाचार जानने की इच्छा और उससे विमुख रहने का प्रण बहुत ही करुण बन पड़ा है।<br /><br />तत्काल जो भी विचार इस यात्रा में मन में आए, व्यक्त कर दिये... फिर भी हृदय की अनुभूति और अभिव्यक्ति में कुछ न कुछ छूट जाता है। उसके लिये तो माँ हैं आप, क्षमा करेंगी!!<br /><br />पुनश्च: इस कड़ी में कहीं कहीं पर टंकण की त्रुटि है, एक बार पुन: ड्राफ़्ट देख लें!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-74406215833003129392021-05-08T07:17:38.096-07:002021-05-08T07:17:38.096-07:00यदि ये घटना न घटी होती तो तुलसी क्या तुलसी होते ? ...यदि ये घटना न घटी होती तो तुलसी क्या तुलसी होते ? .... सब विधान का ही खेल होता है ..... रत्ना तो बस माध्यम बन गयी ... समाज को तुलसी कि कथा की ज्यादा आवश्यकता थी . अब आगे ... ? संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-47039046426543343782021-05-08T06:03:51.961-07:002021-05-08T06:03:51.961-07:00अदभुद। तुलसी की अन्त:व्यथा से राम कथा तक।अदभुद। तुलसी की अन्त:व्यथा से राम कथा तक।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-35760193168434431182021-05-08T03:56:52.307-07:002021-05-08T03:56:52.307-07:00तुलसी के जीवन में जो भी घटा शायद यही नियति थी, आग ...तुलसी के जीवन में जो भी घटा शायद यही नियति थी, आग में तपकर ही सोना कुंदन बनता है, हर हीरे को पहले कटना होता है, रत्ना के प्रति अपार प्रेम जब सारी सीमाओं को तोड़कर बह निकला और उसका प्रतिदान ग्लानि के रूप में मिला तभी तो विनय के सुंदर पदों का जन्म सम्भव हुआ. सुंदर सृजन के लिए नमन Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.com