tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post8027469557266068443..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: नहीं ,नहीं जायेंगे आप !प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-45878708624620717922012-04-04T19:55:52.447-07:002012-04-04T19:55:52.447-07:00अद्भुत शैली में गूढ़ विषयअद्भुत शैली में गूढ़ विषयM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-81690170344596332532012-04-04T09:46:50.043-07:002012-04-04T09:46:50.043-07:00पोस्ट के बारे में कहने योग्य नहीं हूँ प्रतिभा जी.....पोस्ट के बारे में कहने योग्य नहीं हूँ प्रतिभा जी.....मगर मुझ अल्पज्ञानी ने ज्ञानार्जन किया बहुत अधिक... आपकी पोस्ट से भी और गुणीजनों की मूल्यवान टिप्पणियों से भी । <br />अच्छा है आपने इस विषय को विस्तार दिया :)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-19202986728177742322012-04-02T20:06:29.684-07:002012-04-02T20:06:29.684-07:00अनुस्वार एवं अनुनासिक का विश्लेषण सूक्ष्मता से किय...अनुस्वार एवं अनुनासिक का विश्लेषण सूक्ष्मता से किया गया है।आज<br />कल लोग दोनों के भेद को भूलने लगे है।"कादम्बिनी"जैसी पत्रिका में भी चन्द्रबिन्दु के स्थान पर सर्वत्र अनुस्वार का ही प्रयोग शब्द की ध्वनि को विकृत करके अनिष्ट अर्थ देने लगता है।उसे अपनी बुद्धि से ही समझा जाता है।जैसे-हँस(हँसना) और हंस(पक्षी)।हँसने में अनुस्वार का प्रयोग अनुचित है।कुँवर और कुंदन-एक में क् का उकार अनुनासिक है और दूसरे में क् के उकार पर अनुस्वार है,जो<br />नकार के स्थान पर आया है।दोनों की उच्चारण ध्वनियाँ भिन्न हैं।<br />अनुनासिक वर्णों और अनुस्वार के सूक्ष्म स्पष्टीकरण के लिये प्रतिभा जी का साधुवाद!!आलेख की नाटकीयता ने वर्णों के विवरण को अत्यन्त रोचक बना दिया है।शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-58745645439869453642012-04-02T10:11:40.607-07:002012-04-02T10:11:40.607-07:00अक्षरों का इतना बारीक अध्ययन, उनके उच्चारण के फर्क...अक्षरों का इतना बारीक अध्ययन, उनके उच्चारण के फर्क को इतना सरल, बोधगम्य और रोचक बनाकर पेश करना, वर्णों को जीवंत पात्र बना देना, यह सब प्रतिभा जी के वश की ही बात है. कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग आदि के अंतिम अक्षरों की जगह अनुस्वार के प्रयोग के बाद भी ध्वनि उस अंतिम वर्ण की ही आती है, खास तौर से इस तरह की बातों की ओर ध्यान आकृष्ट करना उनके फोनेटिक्स के गहरे ज्ञान को दर्शाता है. प्रतिभा जी का प्रोफाइल देखा यह जानने के लिए कि वे हैं क्या. वहां इतनी काम जानकारी है कि निराशा हुई. अस्तु.Dr. SS Jaiswalhttps://www.blogger.com/profile/01266806182797254099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-41127689917905098132012-04-02T07:41:12.612-07:002012-04-02T07:41:12.612-07:00मेरे पास तो बस इस प्रस्तुति के लिये एक ही शब्द है ...मेरे पास तो बस इस प्रस्तुति के लिये एक ही शब्द है "अद्भुत".रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-672896858620751522012-04-02T06:01:34.885-07:002012-04-02T06:01:34.885-07:00ये तो अद्भुत लेखन है...!!!
सादर।ये तो अद्भुत लेखन है...!!! <br />सादर।S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')https://www.blogger.com/profile/10992209593666997359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-32880937921181715622012-04-01T21:44:58.839-07:002012-04-01T21:44:58.839-07:00बहुत सुंदर । पञ्चमाक्षरों की रामकहानी ही हिन्दी की...बहुत सुंदर । पञ्चमाक्षरों की रामकहानी ही हिन्दी की रामकहानी है । दरअसल पहले मैं इसे शोकगाथा समझता था । मगर बाद में जब सन्त साहित्य देखा, हिन्दी समेत अन्य भाषाओं का व्यापक स्वरूप देखा तब लगा कि किसी भी भाषा का शुद्धतम रूप निश्चित करते ही सबसे पहले वही मानक रूप चलन से बाहर होता है । पिछली टिप्पणी में भी कहा था कि मनुष्य का स्वभाव ही अराजक होता है और भाषाओं का भी । वही भाषा बढ़ती है जो ज्यादा अराजक होती है । वर्णों का स्वभाव और चरित्र निश्चित होने के बावजूद भाषा के दायरे में आकर सचमुच गड़बड़ होने लगती है । यह ठीक वैसा ही है जैसे आप पानी के गिलास से पेपरवेट का काम लेने लगें। पेपर वेट से हथोड़ी का और चम्मच से स्क्रू कसने लगें । किताब को मटके का ढक्कन बना दें । लेकिन ऐसा ही होता है । ये तो बेजान चीज़ें हैं, हमारे संस्थानों तक में यही होता है । जिसे जो करना है , वह न कराते हुए उससे कुछ और काम लिया जाता है । स्वाभाविक है कि कशमकश तो होती है । पर दुनिया यूँ ही चलती है :)अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-87330773373526026822012-04-01T10:16:30.034-07:002012-04-01T10:16:30.034-07:00शुरू में तो लगा की आप कोंई कहानी सुना रही होंगी --...शुरू में तो लगा की आप कोंई कहानी सुना रही होंगी ---अंत आ जाता है पर मन नहीं भरता पडने(पढ़ने) से ---<br /><br />आप मेरी प्रतिक्रिया की --हंसी (हँसी) न उडाना (उड़ाना )Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-77263151012267274192012-03-31T21:28:44.075-07:002012-03-31T21:28:44.075-07:00सार्थक बैठक!! उनका द्वार प्रवेश बड़ा भयजनक था :)
प...सार्थक बैठक!! उनका द्वार प्रवेश बड़ा भयजनक था :)<br /><br />पञ्चमाक्षरों की शिकायत वाज़िब है। बड़े स्वच्छ और सचेत होते है अपने अपने वर्ग सीमा में रहते हुए ही अपने साथी की अग्र-ढ़ाल बनते है। नासिका सुरक्षा के लिए। भिन्न वर्गाक्षर के सिर पे सवार होना इनकी फितरत नहीं है। पर अनुस्वार जाति के होने के कारण अपने ही जातिबंधु से भेदभाव प्रकट नहीं करते।<br /><br />ण की नकल उतारना भारी पडा :) वस्तुतः प्राकृत भाषा में इसे सबसे बड़ा सम्मान प्राप्त है वस्तुत: राजस्थान, पंजाब, हरियाणा नें तो ण को कण्ठ लगाया हुआ है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-82914998199468395292012-03-31T21:11:04.274-07:002012-03-31T21:11:04.274-07:00एक से ही नकियाने लगते हैं, यहां तो पांच-पांच एक सा...एक से ही नकियाने लगते हैं, यहां तो पांच-पांच एक साथ धमके हैं, लेकिन अच्छी मेजबानी...Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.com