tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post6856470334788752089..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: एक नदी बहती है - आकाश में.प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-92069750825790162712011-03-10T21:06:36.281-08:002011-03-10T21:06:36.281-08:00बहुत ही सुन्दर और अध्यात्मिक लेख । मन की आँखों से ...बहुत ही सुन्दर और अध्यात्मिक लेख । मन की आँखों से देखें तो शब्द विस्तार लेते हुए एक अनुपम और असीम आकाश में ले जाते हैं । जहाँ हम वो सब कुछ देख पाते हैं जो कवि के शब्दों में है।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-69529199289868972962011-03-10T10:01:25.448-08:002011-03-10T10:01:25.448-08:00...शायद कवि की वाणी में उसका मन भी सकारात्मक रूप स......शायद कवि की वाणी में उसका मन भी सकारात्मक रूप से एकाकार हो जाता होगा...तभी तो सत्य होती होगी वाणी.....अन्यथा मन में किसी प्रकार का 'अभाव' रहे तो कविता में संपूर्णता नहीं आ सकती होगी........या शायद वही अधूरापन संपूर्ण होकर कविता में व्याप्त हो जाया करता होगा...<br /><br />आपकी पोस्ट ने बताया...मन का आकाश सचमुच के आकाश से भी विशाल है..असीम है...और शायद अखंड भी.........जहाँ की ऋतुएं भावों के अधीन हैं....जब जो भाव ह्रदय में प्रधान हुआ....तब उसी भाव का चित्र मन रुपी गगन पर खींच शब्दों में ढाल दिया......<br /><br />खैर...<br />मन में हर की पौड़ी वाली माँ गंगा का दृश्य उभर आया...<br />अच्छी लगी पोस्ट......थोड़ा अच्छा जो नहीं लगा...वो ये की हमारी माँ नर्मदा त्रिपथ गामिनी क्यूँ नहीं हैं.......? <br /><br /><br />बधाई !Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-14660856695601057202011-03-10T06:19:47.136-08:002011-03-10T06:19:47.136-08:00शब्द चित्र साकार होते लग रहे हैं।शब्द चित्र साकार होते लग रहे हैं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-91296762993690247222011-03-10T04:14:29.872-08:002011-03-10T04:14:29.872-08:00सुन्दर शब्द चित्र...सुन्दर शब्द चित्र...Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-24456090221027884962011-03-09T21:59:33.625-08:002011-03-09T21:59:33.625-08:00कितने दिनों बाद लगा जैसे दशाश्वमेघ घाट पर भोर का आ...कितने दिनों बाद लगा जैसे दशाश्वमेघ घाट पर भोर का आकाश देखा, गँगा माँ ही हैं ऊपर-नीचे-मन में।<br />अंतस भी जैसे धवलिमा में घुल गया। कवि की वाणी निःसंदेह सत्य हो जाया करती हैं।<br />साधु!!Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-68462705848189528602011-03-09T19:49:20.613-08:002011-03-09T19:49:20.613-08:00प्रतिभा जी,
कल्पना द्वारा खींचा हुआ चित्र अत्यन्...प्रतिभा जी,<br /><br /> कल्पना द्वारा खींचा हुआ चित्र अत्यन्त मनोरम है। इस सौंदर्य में डूब जाने का मन हुआ । साधुवाद!!शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-86769023613916917482011-03-09T18:24:28.347-08:002011-03-09T18:24:28.347-08:00एक गंगा मन में बहे,
निर्मल निर्मल ....एक गंगा मन में बहे,<br />निर्मल निर्मल ....दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com